(Karbala) कर्बला : एक परिचय
मुंशी प्रेमचंद का “कर्बला” एक उनके महत्वपूर्ण नाटक है जो भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह नाटक मुस्लिम समुदाय की एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना, करबला की घटना, पर आधारित है, जो हज़रत इमाम हुसैन और उनके साथियों के बलिदान की कहानी को उजागर करता है।
कहानी का केंद्रीय पात्र हुसैन है, जो प्रेमचंद के द्वारा एक नायक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। हुसैन ने अपनी आत्मा को समर्पित करने का निर्णय लिया है और उन्होंने अपने आदर्शों और धरोहरों के लिए सच्चाई और न्याय की रक्षा करने का संकल्प किया है।
कर्बला की घटना में, हुसैन अपने साथियों के साथ नाना नवाब के साथ लड़ते हैं जो उन्हें न्यायपूर्ण और इंसानी आदर्शों के लिए लड़ने का आदान-प्रदान करते हैं। इस नाटक में, प्रेमचंद ने धर्म, न्याय, और सच्चाई के महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है और उन्होंने यह दिखाने का प्रयास किया है कि इन मूल्यों का पालन करने का मतलब सिर्फ एक विशिष्ट धर्म या समुदाय के साथ ही नहीं होता है, बल्कि यह इंसानियत के सभी व्यक्तियों के लिए होना चाहिए।
नाटक में भूमिका, संघर्ष, और उत्कृष्ट व्यक्तित्वों के माध्यम से प्रेमचंद ने दर्शकों को सोचने पर मजबूर किया है और उन्हें सामाजिक न्याय और इंसानी अधिकारों के महत्वपूर्णीयता का आभास कराया है।
“कर्बला” मुंशी प्रेमचंद की विचारशीलता, साहित्यिक कला, और समाजशास्त्र की अद्वितीय शैली को दर्शाता है और यह एक अद्भुत कला दर्पण है जो धार्मिक और सामाजिक मुद्दों पर सोचने के लिए प्रेरित करता है।
(Karbala) कर्बला के लेखक : मुंशी प्रेमचंद

हिंदी साहित्य जगत में प्रेमचंद (31 जुलाई 1880- 8 अक्टूबर 1936) की लोकप्रियता इस कदर है कि उन्हें ‘उपन्यास सम्राट’ की उपाधि दी गई है। यह उनकी कलम का ही जादू है कि शायद ही कोई बच्चा उनके नाम और उनकी कहानी ‘ईदगाह’ के बारे में न जानता हो।
उनकी सभी रचनाएं समाज की विभिन्न पहलुओं, मनोदशाओं एवं विडम्बनाओं को दर्शाती हैं , फिर चाहे वह कहानियों के माध्यम से हो या फिर उपन्यासों के माध्यम से। गंवई पृष्ठभूमि, जमींदारी प्रथा, मानवीय संवेदनाएं उनकी रचनाओं में प्रमुख स्थान पाते हैं , जो तत्कालीन समाज का आईना लगती हैं।
उनकी कहानियों की चर्चा करें तो ‘ईदगाह’, ‘नशा’, ‘दो बैलों की कथा’ ,’नमक का दरोगा’, ‘कफ़न’ जैसे कई कहानियां और ‘सेवासदन’ ,’कायाकल्प’ ,’गबन’ और ‘गोदान’ आदि उपन्यास आज भी प्रासंगिक लगते हैं क्योंकि ये समाज की निम्न एवं मध्यवर्गीय सोच और रहन सहन को दर्शाते हैं। उर्दू और हिंदी दोनों ही भाषा में उन्होंने प्रसिद्धी पाई जो उनकी मृत्यु के बाद भी कम नहीं हुई है और उनकी रचनाएं हिंदी साहित्य की धरोहर हैं।
कर्बला – मुंशी प्रेमचंद -1
पहला दृश्य: {समय – नौ बजे रात्रि। यजीद, जुहाक, शम्स और कई दरबारी बैठे हुए हैं। शराब की सुराही और प्याला रखा हुआ है।}
यजीद – नगर में मेरी खिलाफ़त का ढिंढोरा पीट दिया गया?
जुहाक – कोई गली, कूचा, नाका, सड़क, मसजिद, बाजार, खानकाह ऐसा नहीं है, जहां हमारे ढिंढोरे की आवाज न पहुंची हो। यह आवाज़ वायुमंडल को चीरती हुई हिजाज, यमन, इराक, मक्का-मदीना में गूंज रही है और, उसे सुनकर शत्रुओं के दिल दहल उठे हैं read more
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