दीप तो शादी के लिए अपनी मर्जी बताकर अपने मम्मी पापा के साथ वापस लौट गया लेकिन उसके बाद शुचिता के घर में अजीब सी कशमकश का माहौल पैदा हो गया । घर के हरेक सदस्य के चेहरे पर दुविधा साफ नजर आ रही थी । नंदिता तो दीप की बात सुनते ही दौड़कर अपने कमरे में बंद हो गई । शुचिता अपने मम्मी पापा को देखकर एक फीकी सी हंसी हंस दी और टेबल पर रखी हुई चाय नाश्ते की प्लेट्स ट्रे में जमा करने लगी । सुधीर – शुचिता के पापा, वहीं सोफे पर विचारशून्य होकर बैठ गए । अपने पति को इस तरह भावविहीन चेहरा लेकर बैठा देख शालिनी उनके पास आकर बैठ गई ।

“अब बैठे रहने से थोड़े ही कुछ होगा । कुछ तो सोचना होगा इस बारें में ।” सुधीर ने शालिनी की बात का कोई जवाब न देकर एक ठण्डी आह भरी । सुधीर को चुप पाकर शालिनी ने ही आगे कहा, “माना कि नंदिता हमारी बेटी जैसी ही है लेकिन …”

 “बात लेकिन परन्तु की नहीं है शालिनी । बात उसूलो की है । वे अगर शुचिता को देखने के बाद मना कर देते तो मुझे इतना दुख नहीं होता जितना उनके इस बदले हुए फैसले को सुनकर हो रहा है ।” सुधीर ने शालिनी की बात काटते हुए कहा ।

“हां ! बात तो तुम्हारी भी सही है लेकिन अब किया ही क्या जा सकता है ? उस दिन के बाद सालभर में नंदिता को भी तो कितनी बार फिर से शादी कर लेने को समझाया लेकिन वो तो अपने मन पर जैसे पत्थर रखकर बैठ गई है ।”  शालिनी ने सुधीर की बात का समर्थन करते हुए नंदिता को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की ।

शुचिता अब तक सारी प्लेट्स लेकर कीचन में चली गई थी ।

“नंदिता की फ़िक्र मुझे भी है पर अपने निर्णय उस पर थोपे भी तो नहीं जा सकते । अपनी खुद की बेटी होती तो थोड़ा दबाव डाला जा सकता था ।” सुधीर ने गीली हो रही अपनी आंखों को पोंछते हुए कहा ।

“आप एक बार दीप जी के पापा से बात कर देखिए । आखिर ये हमारी शुचिता की जिन्दगी का भी सवाल है । वो न जाने क्या सोच रही होगी दीप के इस तरह के अप्रत्याशित फैसले को लेकर ।” अपनी बेटी के बारें में सोचते हुए शालिनी का मन अब बैठा  जा रहा था ।  

नंदिता कीचन में खड़ी हुई अपने मम्मी पापा के बीच हो रही बातें सुन रही थी । शालिनी की बात सुनकर वो बाहर आ गई ।

“मुझे दीप के इस फैसले से कोई हैरानी नहीं हुई और न ही मैं उसके इस फैसले से दुखी हूं ।” शुचिता अब शालिनी के पास आकर  सोफे पर बैठ गई ।

“मतलब तुझे पहले से पता था कि दीप यह सब कहने वाल है ?” सुधीर ने चौंकते हुए पूछा । शालिनी भी जवाब सुनने को शुचिता की तरफ आतुरता से देख रही थी ।

“पहले से तो नहीं पापा पर अभी मिलने पर ही उसने सबकुछ बताया ।” शुचिता ने गंभीर होकर जवाब दिया और चुप हो गई ।

शुचिता की बात सुनकर शालिनी के मन में शंका के बादल गहराने लगे । उसने तुरंत ही शुचिता से आगे और जानने की कोशिश की, “क्या बताया उसने ? क्या वह नंदिता को पहले से जानते है ?”

:हां ! वे दोनों बी. ए. एम. एस. के फायनल इयर में साथ में थे ।” शुचिता ने संक्षेप में जवाब दिया ।

“मतलब दीप जी का यह फैसला सोच समझकर लिया हुआ कदम है ।  उनका नंदिता को पसंद करना अब समझ आ रहा  है । लेकिन उनको नंदिता के बारें सबकुछ पता तो है ?” सुधीर ने कुछ सोचते हुए आगे कहा, “और नंदिता क्या चाहती है ? बुलाओ तो उसे ।”

सुधीर के कहने पर शुचिता नंदिता को बुला लाई । शुचिता अब सुधीर के पास जाकर बैठ गई और नंदिता शालिनी के बाजू में बैठी हुई थी । दीप के इस फैसले के बाद वह घर में किसी से अपनी नजरें नहीं मिला पा रही थी ।

“इट्स ओके नंदिता । अभी जो कुछ हुआ उसे लेकर तुम्हें गिल्टी फील करने की कोई जरूरत नहीं है ।” सुधीर ने बोझिल हुए माहौल को सहज बनाते हुए बहुत ही संयत स्वर में नंदिता से कहा ।

नंदिता ने अब सिर उठाकर सुधीर को देखा ।

“दीप ने शुचिता को सबकुछ बता दिया है । मैं तुम्हारी मर्जी जानना चाहता हूं बेटी ?” सुधीर ने आगे कहते हुए नंदिता से पूछा ।

सुधीर की बात सुनकर नंदिता ने धीमे से कहा, “मैं फिर से शादी नहीं करना चाहती । मैं समझ नहीं पा रही हूं कि दीप ने ऐसा क्यों किया ।”

“कब से जानती हो दीप को ?” सुधीर ने अगला सवाल किया ।

“बी. ए. एम. एस. के आखरी साल में साथ साथ थे । मुझे लेकर उसके मन में सॉफ्ट कोर्नर था लेकिन मेरा यकीन मानिए पापा… मेरे मन में उस वक्त ऐसा कुछ नहीं था ।” नंदिता ने स्पष्ट करते हुए अपने मन की बात कही ।

“हम तुम पर शक नहीं कर रहे है बेटी । केवल तुम्हारी इच्छा जानना चाहते है ।” सुधीर ने नंदिता को समझाते हुए स्नेह से कहा ।

“राजन से शादी हो जाने के बाद हम कभी नहीं मिले और न ही कभी फोन पर बात हुई । इस मामले में दीप काफी सुलझा हुआ लड़का है ।” नंदिता ने आगे कहा ।

“दीप अगर सुलझा हुआ इन्सान है तो फिर तुम्हें अब फैसला लेने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए । नंदिता… तुम भले ही मेरी खुद की बेटी नहीं हो लेकिन यह बात मैं तुम्हें राजन की डेथ के बाद पहले भी कई बार कह चुका हूं और आज फिर से कह रहा हूं …” अपनी बात अधूरी रखकर सुधीर ने एक बार फिर से अपनी आंखों को पोंछा और आगे कहने लगा, “अब जो है ही नहीं उसकी यादों को लेकर अकेले घुट घुटकर जीना आज के जमाने में प्रैक्टिकल बात नहीं नहीं है ।”

“मैं जैसी भी हूं बहुत खुश हूं । अब मुझे इससे अधिक खुशी नहीं चाहिए ।” कहते हुए नंदिता की आवाज में एक उदासी झलक रही थी ।

“देखो नंदिता, तुम और दीप अजनबी नहीं हो । जिन्दगी में अच्छे मौके बार बार नहीं मिलते । स्वीकार कर लो दीप का प्रस्ताव ।” सुधीर ने बहुत ही भावपूर्ण लहजे में नंदिता से कहा ।

“नहीं पापा । दीप शुचिता के लिए आया था । मेरा उस पर कोई हक नहीं है ।” नंदिता ने स्पष्ट शब्दों में मना करते हुए कहा और शुचिता की तरफ देखा ।            

“भाभी ! दीप ने सबकुछ बता दिया है मुझे । वह पहले से ही मन ही मन आपको चाहता है लेकिन जब उसे पता चला कि राजन भैया से आपकी सगाई हो चुकी है तो अपनी चाहत उसने मन में ही दफन कर दी । उसका प्रेम निश्चल और निर्मल है तभी तो आपके बारें में सबकुछ जानकर भी वो आज भी आपको अपनी जीवनसंगिनी बनाने को तैयार है । आप दीप का हाथ थाम लो । ईश्वर ने मेरी जिन्दगी को रोशन करने वाला शायद कोई दूसरा पुरूष बनाया है ।” शुचिता ने नंदिता का संकोच दूर करते हुए कहा और उसके पास आकर खड़ी हो गई ।

“अब मना मत कर नंदिता । शुचिता ठीक कह रही है । तेरी हां सुनकर मेरे मन का भारीपन दूर हो जाएगा ।” शालिनी ने नंदिता का हाथ अपने हाथ में लेते हुए एक आसभरी नजर उस पर डाली ।

कुछ देर बाद जवाब में नंदिता के चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट छा गई । जहां घर का माहौल कुछ देर पहले दीप के फैसले को सुनकर बोझिल हो गया था अब वहीं नंदिता का फैसला सुनकर घर का कोना कोना खुशियों से भर गया था ।

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