मैं तुझ जैसी समझदार नहीं—गृहलक्ष्मी की कहानियां: Samjhdari
Samjhdari

Samjhdari: आज अचानक शीतल को घर आया देखकर मुझे किंचित आश्चर्य हुआ।
‘‘तू कब आयी?’’मैने पूछा।
‘‘थोडी देर पहले।’’.शीतल” ने बेरूखी से जवाब दिया।
‘‘क्या बात है सब ठीक तो है न?’’मुझे संशय हुआ। मेरे कथन पर शीतल चिल्ला उठी।

‘‘मैं उस घर कभी नहीं जाउॅगी।’’ शीतल का इतना कहना भर था कि मेरा
सर्वांग कांप गया। भावी अनिष्ट की कल्पना मात्र से ही मैं सिहर गयी। तो क्या
उसी घटना की पुनरावृत्ति हो रही है जिसे मैं बीस साल पहले छोड़ आयी
थीं? तब ”शीतल” तीन वर्ष की थी। मेरी सुधीर से कभी नहीं पटी। हमारी
वैचारिक मतभेद इतने बढ़ गये कि हमने अलग होने का फेैसला ले लिया।

आज
अपने फैसले पर अफसोस होता है। पति पत्नी के बीच इतनी बडी खाई नहीं
होती जिसे पाटा न जा सके। छोटे— छोटे मतभेद तो रहते ही है। जैसे मैं
मेहनती थी तो वही सुधीर आलसी। मैं हर काम मे परफैक्शन चाहती तो वह किसी
तरह काम को टालने में भरेासा रखता था। मुझे ईमानदारी पसंद थी वही
वह समय और अवसर देखकर अपनी बात कहता वर्ना छुपा जाता। यही मुझे नहीं पसंद
थी। मैंने अपने आलमारी में कभी ताला नहीं लगाया। पति पत्नी में कैसा
दुराव छिपाव। एक रेाज उसने मुझसे बिना बताए 2000 हजार रूपये निकाल लिये। ”शाम”
मेैने गिना तो रूपये कम मिले। मैं बिफर पड़ी।
‘‘अचानक रूपयों की जरूरत थी। इसलिए ले लिया। यह सेाचकर शाम एटीएम से रूपया
निकालकर जैसा था वैसे ही रख देता,‘‘सुधीर बोला।
‘‘मुझसे बताकर लेते तो क्या मैं इनकार कर देती?‘‘मेरा सवाल था।
‘कितनी बार ऐसा ही किया है। अगर तुम शाम को आलमारी न खोलती तो अगली सुबह
तुम्हें रूपये जस के तस मिलते।,‘‘ सुधीर ने लाख सफाई दी मगर मै टस से मस
नहीं हुयी। उसे हर घटना छोटी नजर आती। जबकि मेरे लिए वह पहाड से कम
नही लगती। इसलिए हमारी उससे कभी नहीं पटी। आखिरकार एक दिन हमदोनों
ने अलग होने का फैसला ले लिया। आज उम्र के इस पडाव पर आत्मविष्लेशण करती
हूं तो खुद पर तरस आता है। बेकार ही सुधीर हमेशा गुनहगार साबित
करती रही। जबकि वह तो वही करता रहा जो उसे उचित लगा। मुझे उसके नजरिये का
भी सम्मान करना चाहिए था।
वह न तो शराबी था न ही उसे किसी बुरी लत का
शिकार था। आफिस से सीधे घर आता और अपनी पारिवारिक जिम्मेदारी में जुट
जाता। तलाक के समय शीतल की उम्र चार साल थी। किस तरह मैंने उसे पाला मैं
ही जानती थी। दूसरी शादी इसलिए नहीं की कि पता नहीं वह कैसा इंसान
होगा। मेरी बेटी केा बाप का दर्जा देगा या नहीं। शीतल को नौकरानी के
भरोसे छोडकर आती। स्कूल से आने के बाद वही शीतल की देखभाल करती।

मेरे आने के बाद ही वह घर जाती। इस बीच सारी जिम्मेदारी उसी की रहती। गैर
गैर ही रहता है। मुझे नही लगता कि वह शीतल को मनुहार से खिलाती होगी।
जो खाया सो खाया शेष खुद खा जाती। शीतल का स्वास्थ्य संतोषजनक न था।
न दिन का चैेन, न रात केा आराम। हर वक्त एक अजीब सी
बेचैेनी रहती। उस पर शीतल का बार— बार पापा को पूछना। मैं क्या जवाब देती?
वक्त के साथ जैसे ही वह बडी हुई मैंने उसकी शादी भी कर दी।
उसकी शादी के एक साल ही बीते कि वह ससुराल छोडकर मेरे पास आ गयी। वह
भी कभी वापस न जाने के फैसले के साथ। उसकी बातें सुनकर मैं हताशा
में डूब गयी।
‘‘वह मुझे जरा भी पसंद नहीं है मम्मी।’’शीतल के तेवर तल्ख थे।
‘‘क्या कमी है उसमें?’’मेरा सवाल था।
‘‘वही जो पापा में था।,’’सुनकर मुझे लगा मानों मेरे सारे अंग शिथिल पड
गये हो। किसी तरह खुद को संभाला।
‘‘ससुराल छोडकर आने का मतलब समझती हो।’’
‘‘खूब समझती हॅू। मुझे नहीं रहना उस गंवार का साथ।’’
‘‘शीतल,’’.मैं चीखी। मेरी सांसे धौकनी की तरह चलने लगी। मेैं सिर
पकड़ कर बैठ गयी। उस रोज मैने किसी तरह के बहस से बचाया। बेटी केा लेकर
आवेश में कुछ कहना सुनना उचित न था। सेाची जब उसका दिमाग शांत
हो जाएगा तब बात करूंगी।
अगली सुबह मुझे काम पर जाने का मन न था फिर भी गयी। चिंता के मारे
काम में मन नही लगा। शाम होते ही मुझे हरारत सा महसूस होने लगी। घर
आयी तो देखा शीतल सो रही थी। मैने तीन चार दिन काम पर न जाने का
फैसला किया। इस बीच शीतल को समझा बूझा कर घर भेजना ही मेरा मकसद
था।

‘‘हर मॉ बाप से गलती होती है, मगर वे नहीं चाहते कि उनके बच्चे भी
उसी रास्ते पर चले। मेरी जिन्दगी में तुम थी,मगर तुम्हारी जिंदगी में कौन
होगा। अगर पति न हुआ तो कैसे काटोगी अजगर की तरह पसरे वक्त को? कैसे
सहोगी जो मैने सहा। आवेश मैं उठाया गया हर कदम तुम्हे गहरे पश्चाताप
के सागर में डूबो देगा। क्या कभी सोचा है?’’अभी यही सबकुछ मैं
शीतल से कहने ही जा रही थीं कि देखा शीतल सूटकेस उठाये मेरी तरफ
आ रही है। मुझे सुखद आश्चर्य हुआ। इससे पहले कि मैं कुछ पूछने की
मुद्रा में आती उसी ने कहा,‘‘घर जा रही हूूॅ।’’ सुनकर मेरा मन भींग
गया। आंखे छलछला आयी। स्नेह से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बरबस मेरे
मुख से निकला‘‘माफ करना बेटी,मै तुझ जैसी समझदार नही। तुमने जिस गलती
को सुधारने के लिए कुछ घंटे लिए उसे मैं वर्षों बाद भी सुधार न
सकी।’’’