गली के अंदर आते ही कनक ने देखा कि बाएं हाथ की तरफ लाला की किराने की दुकान, उसके बगल में कापी किताब की दुकान और उसके बगल में मुन्ना चाचा की मिठाई की दुकान जहां अक्सर पापा के साथ जलेबी खाने आती थी। सब कुछ वैसा ही था। बस थोड़ा दुकानों पर पुताई और रंग हो गए थे। थोड़ा रोशनी और चहल पहल पहले से ज्यादा हो गयी थी।

तभी सामने से एक बूढ़े सज्जन निकले और अपना चश्मा ठीक करते हुए बोले, अरे तू तो अपने प्रिंसिपल साहब की बेटी कनक है। कैसी हो बिटिया ? बहुत समय बाद देखा तुमको। अच्छा किया बिटिया जो तुमने अपनी बेसहारा मां के लिए वक़्त निकाल लिया। फिर क्षण भर रुककर बोले कि प्रिंसिपल साहब के जाने से बेचारी बहुत दुखी थी। वो हलके से मुस्कुराई और रिक्शा हिचकोले खाते आगे बढ़ गया। कनक मन ही मन सोंचने लगी कि अच्छा हुआ कि गली और दुकानों के साथ साथ रिश्ते भी नही बदले। तभी घर आ गया। घर के सामने पहुंचते ही अन्दर से दीपक आया और बोला कि चाची कनक दीदी आ गयी है। आप अन्दर चलो, मैं समान लेकर आता हूं। दीपक उनके घर का पुराना नौकर था और मां , पापा के साथ यहीं रहता था।

ड्राइंग रूम से अन्दर दाखिल हुई तो सामने से मां चली आ रही थी | मां को देखते ही कनक का कलेजा मुंह तक आ गया। हे भगवान, मां का क्या हाल हो गया है। इस हालत में वो मां से अपनी बात कैसे रखेगी, जिस मकसद से वो यहां आयी थी,  मगर कुछ भी हो बात तो करनी ही होगी। मां बेटी मिलते ही रो पड़ी। थोड़ी देर तक मां बेटी ऐसे ही बैठी रही। जब दीपक चाय लेकर आया तब जाकर दोनों सहज हुईं। दीपक बोला कि चाची हमने आपको समझाया था कि जब दीदी आयें तो रोना मत, मगर आपने मेरी बात नही सुनी। वो मां से इतने अधिकार से बात कर रहा था कि कनक को उसका इतना अपनापन दिखाना अच्छा न लगा। इसके बाद मां ने खाना बनाया और सब लोगों ने खाना खाया और कनक मां के साथ सोने चली गयी।

दिन भर की थकान के कारण लेटते ही सो गयी। सुबह उठी तो देखा मां पूजा में बैठी अपने गोविन्द जी से बातें कर रही है तो उसने पूछा कि मां क्या बोल रही हो अपने भगवान् जी से। मां ने कहा कि कनक अपने साथ बच्चों को भी ले आती तो होली में कुछ और रौनक हो जाती। वैसे भी तुम्हारे पापा के जाने के बाद यह पहली होली है। मां वो चिंटू का एग्जाम था तो मेरे साथ नहीं आ पाए, तभी तो उन्होंने भेजा हमें कि तुम माँ के साथ रह लोगी और वो सभी लोग होली की छुट्टियों में आ रहे है। मां पूजा करके रोज की तरह बाहर बरामदे में चाय पीने आ गयी , वहीं बगल में कनक बैठी थी। मां ने चश्मा लगाया और अखबार पढ़ने लगी, तभी कनक ने प्यार से मां को गले लगाते हुए कहा कि मां तुमसे कुछ बात करनी है। मां ने उसके सर पर हाथ फेरा और कहा कि क्या बात है बेटा, कल से लग रहा है कि तुम कुछ कहना चाह रही हो। कनक ने कहा कि देखो मां, मेरी बात को ध्यान से सुनना , अन्यथा मत लेना। अपना जो कानपुर में प्लाट है उसे हम बेचने की सोच रहे हैं। तुम अच्छी तरह जानती हो कि गुप्ता जी और पापा ने ये प्लाट साथ में खरीदा था। अब तो दोनों ही नहीं हैं और उनका बेटा तो बहुत ही बदतमीज है। उस प्लाट को लेकर उसने पापा को कितना परेशान किया था। इतने सालों से हमारी प्रोपर्टी ऐसे ही पड़ी है। मां बोली, वो सब तो ठीक है पर तुम्हें पता है कि उनकी क्या स्थिति है। क्या तुम यह भी भूल गयी कि उस झगड़े के तीन महीने बाद ही उनकी एक हादसे में मौत हो गयी थी। फिर भला गुप्ता आंटी से कैसे बात करते।

तुम्हारी आंटी ने घर पर ही परचून की दुकान खोल ली थी और उसी दुकान से अपने घर का खर्च चलाती थी। किसी तरह अपने जीवन की गाड़ी को खींच लायीं थीं। अगर हम उस प्लाट में कुछ भी करते तो उस बेचारी का क्या होता, उनका हिस्सा तो पीछे का था। इसलिए तुम्हारे पापा ने भी कुछ नहीं कहा और वैसे भी हमारे पास भगवान का दिया सब कुछ है। मगर मां, ठीक है वो तब की बात थी, अब तो सुना है कि उनका बेटा दिल्ली में किसी अच्छी कंपनी में नौकरी कर रहा है। मुझे नहीं लगता कि हमें और दया दिखानी चाहिए। मगर कनक, वो तो जमीन का एक छोटा टुकडा तो ही है | छोटी सी जमीन ……!!! , जानती हो मां, उसकी कीमत आज करोड़ों की है पर सूरज भी उसे बेचना चाहते हैं, अब तुम बताओ तुम्हें क्या करना है। मां ने अपना चश्मा हटाया और दोनों हांथो से गहरी सांस लेते हुए आंखों पर हाथ फेरा। बेटा जो तुम दोनों को अच्छा लगे, पर एक बात का ध्यान रखना कि किसी का दिल न दुखे।

कुछ क्षण रुकी, फिर पापा की बैठक में चली गयी और कनक चुपचाप वही निस्तब्ध बैठी रही। कुछ दिनों बाद ही सूरज भी आ गये। उन सबके आने से मां के चेहरे पर थोड़ी सी खुशी भी झलक आयी।  पर न जाने क्यों कनक को लगता कि मां उससे कुछ नाराज हो गयी। बहरहाल हम दोनों ही समझ गए थे कि मां प्लाट नहीं बेचना चाहती हैं, पर हम दोनों ने भी तय कर लिया कि मां कुछ भी सोंचें, अब फैसला तो हम दोनों को ही लेना है। ऐसे भी मां की उम्र हो चली है। सूरज ने आते ही प्लाट बेचने के लिए कई लोगों से बात करना शुरू कर दिया। सुबह शाम बैठक में लोगों का आना जाना शुरू हो गया, पर वाजिब दाम न मिल पाने के कारण कहीं कुछ बात नहीं बन पा रही थी।

कनक चाहती थी कि सब कुछ फाइनल करके होली बाद वापस लौट जाए, वैसे भी मां की तरफ से कुछ ऐसी प्रतिक्रिया भी नहीं थी। पर होली वाले दिन कुछ ऐसा घटा कि कनक और सूरज को अपना निर्णय बदलना पड़ा। घर में सुबह से ही सन्नाटा पसरा था, सारा वातावरण गुमसुम था। बच्चे अभी सो रहे थे, नहीं तो शायद उनकी आवाज़ ही गूंजती। तभी एक औरत ने घर में प्रवेश किया और जोर जोर से रोने लगी। आवाज़ सुनकर घर के सभी लोग बाहर आ गए। अरे ये तो गुप्ता अंकल की पत्नी है, जिनसे हमारी अच्छी खासी दुश्मनी चलती थी। वो यहां क्यों आयी ?

एक पल विचार आया कि उन्हें प्लाट बेचने का पता चल गया क्या ? लेकिन वो तो और जोर जोर से रोने लगी, और कनक का हाथ पकड़ कर वहीं जमीन पर बैठा लिया और कहा कि बेटा मुझे आज ही तुम्हारे पापा की खबर मिली है। उनके  जाने से हम बेसहारा हो गए। अब कैसे मेरा चूल्हा जलेगा | उधर कनक को कुछ भी पल्ले नही पड़ रहा था। कनक ने कहा साफ़ साफ़ बताओ। बेटा तुमसे क्या छुपाना, मेरे बेटे रमेश कि नौकरी दिल्ली में लग गयी थी और वहीं उसने एक लड़की से शादी कर ली थी और मेरी जो छोटी सी दुकान थी उसे भी बेच दिया। एक दिन मैं तीन दिन की भूखी हनुमान जी के मंदिर की सीढ़ियों में बैठी थी और तुम्हारे पापा भी रोज मंदिर दर्शन करने आते थे, उन्हें मुझ पर दया आ गयी और मेरी गलतियों और बेटे की बदतमीजी को भुलाकर बोले, ये लो 2000 रुपये और खाना खा लो तुम्हें भूखों मरने की जरूरत नहीं | मैं जब तक ज़िंदा हूं तुम्हें भूखे पेट नहीं सोना पड़ेगा। इसके बाद हर दस तारीख को दरवाजे पर पैसा रखकर तेजी से वापस चले जाते थे।

इन दस सालों में वो न कभी पैसा देना भूले और न कभी बात की। बस फ़रिश्ते की तरह आते और चले जाते। उधर कनक की आंखों के रास्ते गर्म पानी बहकर गालों पर लुढ़कता आ रहा था। कनक ने सामने दीवार पर लगी अपने पापा की फोटो को देखा और और उसे लगा कि पापा अब भी कह रहे हैं कि बेटा तुम अब तो बदल जाओ , वो शख्सियत बनो कि मुझे तुम पर गर्व हो। जीवन में रिश्ते नहीं, रिश्तों में जीवन ढूंढो | कनक आंटी को उठाते हुए बोली, आप बेसहारा कैसे हो गयी, वो आपकी जिम्मेदारी हमें दे गए हैं | जैसे पापा आपको पैसे देते थे वैसे ही उनकी बेटी आपको पैसे देगी। तभी प्लाट का खरीददार आ पहुंचा। कनक ने कहा कि अब हमें प्लाट नहीं बेचना। मां दूर बैठी सारा नज़ारा देख रही थी। पास आकर कनक को गले लगा लिया और बोली, कनक ये तेरे पापा की परवरिश का रंग है, एक दिन तुझपे चढ़ना ही था। ये होली के कच्चे रंग नहीं, जो समय के साथ धुल जाएं | ये हमारी परवरिश का ऐसा रंग है जो आसानी से छूटे नाहि। तभी पीछे से बच्चों ने पिचकारी से सभी के ऊपर रंग डाल कर खुशियों से सराबोर कर दिया।

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