Bharat Katha Mala
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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

हरियाणा के एक गाँव में एक 14 वर्ष की लड़की राधा रहती थी। वह अपनी माँ चन्दा और एक छोटे भाई पवन व एक छोटी-सी बहन मधु के साथ छोटे से घर में रहती थी। उसके पिता रामलाल का 2 साल पहले लम्बी बीमारी के कारण देहांत हो गया था। माँ चन्दा का भी स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था। घर की अधिक जिम्मेदारी राधा पर ही थी। वह कक्षा साचवीं की छात्रा थी। वह पढ़ाई के साथ घर का काम-काज भी करती थी और शाम को अपने बनाये खिलौने भी बेचती थी।

उसका छोटा भाई पवन केवल 11 साल का था और छोटी बहन मध 9 साल की थी। वह दोनों भी उसके काम में हाथ बंटाते थे। माँ चन्दा बहुत कमज़ोर दिखती थी क्योंकि उसे “सांस की बीमारी” थी। चन्दा डॉक्टर की फीस न दे पाने के कारण डॉक्टर को नहीं दिखा पाती थी। सुबह उठकर राधा सरकारी स्कूल जाने के लिए तैयार होती और अपने दोनों भाई-बहन को भी तैयार करती। इसके साथ ही अगर वक्त मिलता तो राधा नाश्ता बनाने में माँ की सहायता भी कर देती थी। माँ दिन भर खांसती रहती थी।

सरकारी स्कूल में राधा ध्यान से पढ़ाई करती और वह पढ़ाई में बहुत होनहार थी। वह बड़ी होकर अध्यापिका बनना चाहती थी। शाम को मिट्टी के खिलौने बेचती थी जिसे वह खुद बनाती थी। पूरे गाँव में उस के बनाये खिलौने मशहूर थे और सभी खिलौने बहुत पसन्द करते थे। खिलौनों में दीये, छोटी मटकी (करवे) गुल्लक, गुड़िया, हाथी, गाय, चिड़िया, कबूतर, बिल्ली, माँ दुर्गा, कृष्ण और गणेश की मूर्ति आदि बनाती थी। यह हुनर उसने अपने पिता रामलाल से सीखा था। उसके पिता रामलाल अच्छे खिलौने बनाया करते थे। पिता की जीविका का साधन खिलौने बना कर बेचना ही था। इस जीविका के साधन को राधा ने कायम रखा। अक्सर पिता के साथ राधा भी खिलौने बनाया करती थी। वह खिलौने बनाने के लिए मिट्री पास के जंगल से ले कर आती थी। राधा खिलौने बनाती और उन पर रंग भी करती थी। घर के बाकी सदस्य भी इस काम में उसकी मदद करते। साथ ही वह अपने भविष्य के सपनों को भी बुनती थी। माँ के लिए इलाज और अपने लिए व भाई-बहन के लिए अच्छी शिक्षा दिलाना ही उसका सपना था।

राधा पढ़ाई में अच्छी होने के साथ-साथ मीठा बोलने वाली व सहृदय थी। माँ चन्दा बीमार रहती थी मगर राधा, पवन व मधु को हमेशा अच्छे संस्कार देती रहती थी! माँ, राधा को आगे बढ़ने की प्रेरणा देती तथा खुद पर विश्वास रखना और सच्चाई के मार्ग पर चलना सिखाती थी! स्कूल में कक्षा अध्यापक उसे अक्सर कक्षा का मॉनीटर बना दिया करते थे क्योंकि वह सहृदय तथा निपुण लड़की थी। परीक्षा में हर वर्ष अच्छे नम्बरों से पास होती थी। स्कूल से घर आकर कभी कभार माँ के साथ दोपहर का खाना बनाने में सहायता करती। फिर खाना खाकर जंगल से खिलौनो के लिए मिट्टी लेने चली जाती। मिट्टी को गीली कर माँ की मदद से खिलौनों के लायक बनाती।

राधा के घर में पिता द्वारा खरीदा हआ छोटा सा “चाक” भी था. उस पर गीली मिट्टी रख कर “चाक” चला कर दीये, छोटी मटकी (करवे), गुल्लक आदि बनाती थी। उसके पास खिलौने बनाने के कई “सांचे” भी थे जो उसके पिता द्वारा खरीदे हुए थे। “सांचो” की सहायता से कबूतर, चिड़िया, गुड़िया, माँ दुर्गा, कृष्ण, गणेश की मूर्ति बनाती फिर धूप में सुखाकर रंग भी करती थी। घर के सारे लोग उस की सहायता करते थे! शाम को बाज़ार में माँ के साथ खिलौने बेचने जाती। बार-बार आवाज लगाती कि “अपने बच्चों के लिए खिलौने ले लो बाऊजी, माँजी!”, खिलौने बेच कर पैसे कमाती। खिलौने बेच कर जो पैसे मिलते, उसे माँ को देती। एक व्यापारी की तरह मोल-भाव करना सीख गई थी राधा! रात को स्वंय भी पढ़ती और अपने भाई-बहन को भी पढ़ाती! यही उसकी दिनचर्या थी!

फिर हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी एक दिन स्कूल में “दीवाली मेला” लगना था। उसने स्कूल के प्रिंसिपल से अनुमति ले कर “खिलौने का स्टॉल” लगाने की सोची! स्कूल के प्रिसिंपल ने राधा को “खिलौने का स्टॉल” लगाने की अनुमति दे दी! यह सुन कर राधा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

राधा घर लौट कर आई तो बहुत खुश थी।

माँ ने उसका खिला चेहरा देख पूछ लिया, “क्या बात है बिटिया, आज बड़ी खुश हो?”

राधा ने चहक कर कहाँ, “माँ आपको पता है स्कूल के दीवाली मेले में प्रिंसिपल सर ने मुझे “खिलौनों का स्टॉल” लगाने की अनुमति दे दी है!”

माँ बोली, “अरे वाह! ये तो बहुत खुशी की बात है।”

पवन व मधु भी एक स्वर में बोल उठे, “वाह दीदी मज़ा आयेगा, जब हम अपने “खिलौनों का स्टॉल” लगायेंगे।

बस फिर क्या था शाम से ही घर के सारे लोग खिलौने बनाने की तैयारी में जुट गये।

माँ चन्दा, भाई पवन व बहिन मधु ने खूब सारे खिलौने बनाये तथा उन्हें रंग भी किया! राधा को लग रहा था कि वह बहुत सारे खिलौने बेच कर अपने सभी सपनों को पूरा कर पायेगी।

स्कूल में “दीवाली मेला” लगाने का दिन भी आ गया! राधा व उसके परिवार ने बहुत उत्साह व मेहनत से तैयारी की थी! स्कूल में “दीवाली मेले” मे सब से सुन्दर राधा की “खिलौने की स्टॉल” थी! स्कूल के सभी बच्चे राधा की “खिलौने की स्टॉल” की तरफ खिंचे चले आ रहे थे! राधा बहुत खुश थी क्योंकि उसके खिलौनों की खूब बिक्री हो रही थी!

बालमन की कहानियां
Bharat Katha Mala Book

अचानक बिजली चमकी और मूसलाधार बारिश शुरू हो गई। पैसे की कमी के कारण “खिलौने की स्टॉल” पर बरसाती नहीं डाली थीं! राधा के सभी खिलौने भी कच्चे थे, वो सब टूट गये, साथ में उसके सारे सपने भी चकनाचूर हो गये। सभी गांव वाले अपने-अपने घर चले गये! बस सभी यही कह रहे थे कि, “बारिश का सोचकर, पूरा प्रबंध रखना चाहिए था!” लोग नसीहत पर नसीहत दे कर राधा को दिलासा दे रहे थे! राधा का मन बहुत उदास था और घर आकर अपनी माँ से लिपट कर बहुत रोई।

छोटे भाई बहन भी बहुत दुखी थे।

माँ तो आखिर माँ है, माँ ने समझाया, “बिटिया इस प्रकार हिम्मत नहीं हारनी चाहिए।” माँ ने आगे कहा, “राधा! धैर्य से काम लो और अपना मन छोटा न करो, दृढ़ निश्चय व आत्मविश्वास से अपना काम करते जाओ, ऐसी दुर्घटनाएँ तो जीवन का हिस्सा होती हैं।”

माँ चन्दा की नसीहत तथा हौंसले भरे शब्द राधा के काम आये! वह फिर से पढ़ाई के साथ खिलौने भी बनाने लगी! माँ ने पिता के पुश्तैनी खेत का एक हिस्सा बेच दिया ताकि राधा के खिलौने सही ढंग से बने और बिक सके! गांव वालो और माँ की सहायता से खिलौने पक्के करने के लिए छोटी-सी भट्ठी लगाई और बरसाती भी खरीद ली। राधा खूब मन लगाकर पढ़ाई करती और अपने भाई, बहन को भी पढ़ाती। हर साल की तरह इस साल भी राधा परीक्षा में अच्छे नम्बरों से पास हुई। स्कूल के सभी अध्यापक और प्रिंसिपल राधा की मेहनत से प्रसन्न थे। सभी गांव वाले राधा की माँ चन्दा को बधाई देते कि, “राधा लड़कों से भी बढ़कर है” और माँ गर्व से फूली नहीं समाती।

कुछ पैसे इकट्ठे कर के राधा माँ को “सांस की बीमारी” के इलाज के लिए डॉक्टर के पास ले गई। राधा की माँ चन्दा की बीमारी बढ़ गई थी। फेफड़े कमज़ोर हो गए थे तभी दिन भर वह खांसती रहती थी। डॉक्टर ने बहुत सारी दवाइयां लिख दीं। दवाई काफी महंगी थी। माँ तैयार नहीं हो रही थी पर राधा और डॉक्टर के समझाने पर इलाज के लिए तैयार हो गई। माँ राधा के प्यार की कद्र करती थी और नियम पर सभी दवाई लेती थी। धीरे-धीरे माँ चन्दा की “सांस की बीमारी” कुछ ठीक होने लगी।

शाम को राधा “खिलौनों की दुकान” चलाती और नए-नए खिलौने भी बनाती। माँ भी अब खिलोनै बनाने में काफी साथ देती। इस वर्ष स्कूल के “दीवाली मेले” का इंतज़ार था। राधा ने माँ चन्दा तथा भाई बहन की सहायता से खूब खिलौने तैयार कर लिए और भट्ठी में पक्के भी कर लिए। बारिश से बचने के लिए बरसाती भी ले ली तथा एक छतरी भी ली।

इस साल फिर राधा ने अपने स्कूल में दीवाली मेले पर “खिलौनों का स्टॉल” लगाने की अनुमति प्रिंसिपल से माँगी। पूरी बातचीत और जांच पड़ताल करने के बाद उन्होंने राधा को खिलौनों का स्टॉल लगाने की अनुमति दे दी। वह बहुत प्रसन्न हुई। “दीवाली मेले” का दिन भी आ गया। राधा अपने पूरे परिवार सहित “खिलौनों का स्टॉल” लगाने के लिए स्कूल पहुंच गई। इस बार राधा ने पूरे इंतज़ाम कर रखे थे। इस बार उसके खिलौने पिछली बार से अधिक संख्या मे खूब रंगदार व खूबसूरत और पक्के भी थे। बड़ी नम्रता से सबको अपने बनाये खिलौनों को दिखाती। सब को राधा के बनाए खिलौने बहुत पसन्द आए। खिलौनों की खूब बिक्री हुई। स्कूल में राधा के “खिलौनों की स्टॉल” को “सर्वोत्तम स्टॉल” घोषित किया गया और उसे “प्रथम पुरस्कार” मिला। राधा और उसके परिवार की मेहनत रंग लाई। वह फूली नहीं समा रही थी। गांव वालों ने राधा व उसकी माँ को बहुत बधाई दी। आज मेले में खूब बिक्री हुई थी। सब पैसे इकट्ठे करके राधा ने मां को दिए। माँ ने इनाम स्वरूप तीनों बच्चों के लिए नये कपड़े और मिठाई खरीदी। सब बच्चे बहुत खुश हुए।

अब वह आठवीं कक्षा में आ गई थी। परिवार की कामयाबी सुन कर राधा के दादा-दादी भी उन्हें मिलने चले आए। पहले यही दादा-दादी उन्हें बोझ समझ कर इन्हें अपने से दूर ही रखते थे। तीनों बच्चों ने दादा-दादी की खूब सेवा की। दादा-दादी बहुत प्रसन्न हुए। दोनों कहते, “चन्दा तूने, होनहार बेटी नहीं बेटे को जन्म दिया है।” गांव के सरपंच ने। एक सभा में राधा को “होनहार बालिका” के रूप में सम्मानित भी किया जिसमें माँ, भाई-बहन के साथ उसके दादा-दादी भी शामिल हुए।

दादा-दादी का प्यार पा राधा बहुत प्रसन्न हुई। राधा को अब अपने लक्ष्य को पाना था। उसका लक्ष्य था माँ चन्दा का पूरा इलाज करवाना व अपने को और भाई बहन को खूब पढ़ाना ताकि सब का भविष्य उजागर हो। और राधा खुद पढ़ लिख कर सफल अध्यापिका बनना चाहती थी। “खिलौनों की दुकान” ही उसकी सब से बड़ी सफलता की कुंजी थी। इसीलिए राधा नए-नए पक्के सुन्दर खिलौने बनाना नियमित जारी रखती थी।

दूर-दूर के गांवों से भी लोग उसके बनाये खिलौने लेने आने लगे थे। एक समाज सेविका की मदद से “खिलौनों की स्टॉल” शहर की प्रदर्शनी में भी लगाने में सफल हो गई। शहर में धूम मच गई कि नन्हीं-सी बालिका इतने सुंदर खिलौने बनाती है। प्रदर्शनी में लोगों ने खूब खिलौने खरीदे। राधा अपनी सफलता के कारण काफी आत्मविश्वास से भर गई। कुछ और अच्छा तथा नया करने का उत्साह भर गया। राधा खिलौने बनाने तथा बेचने मे काफी निपुण हो गई थी। स्कूल की छुट्टियों में राधा अपनी माँ तथा समाज सेविका की सहायता से अक्सर “खिलौनों की प्रदर्शनी” लगाने लगी।

राधा कई शहरों में “खिलौनों की प्रदर्शनी” लगाने के लिए जाती। परिवार ने काफी धन अर्जित कर लिया। माँ लगभग ठीक हो गई। अपने भाई बहन की मनचाही फरमाइशें भी पूरी कर राधा को बहुत खुशी होती।

दादा-दादी भी उनके साथ में रहने लगे। इस प्रकार राधा ने “खिलौने बनाने के हुनर” को अपनी कामयाबी की सीढ़ी बनाया। राधा गांव और शहर में “खिलौनों वाली लड़की” के नाम से मशहूर हो गई। राधा ने इस छोटी-सी उम्र में बड़ी होशियारी से अपना, अपनी माँ तथा अपने छोटे भाई-बहन का ख्याल रखा व अपनी कड़ी मेहनत से राधा सफलता की सीढ़ी चढ़ने लगी। राधा की माँ मन ही मन कहती. “धन्य हो गई मैं राधा जैसी बेटी पाकर।”

आजकल लोग सच ही कहते हैं “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ”! यह सब राधा पर सार्थक लगता है।

जयहिंद!!!

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’

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