Chronic Kidney Disease: क्रोनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) गुपचुप तरीके से जीवन में फैली है और पूरी दुनिया में करीब 85 करोड़ से ज्यादा लोग इसकी चपेट में हैं. भारत में भी सीकेडी मामलों की संख्या बढ़ रही है. जागरूकता की कमी (CKD) सीकेडी के बढ़ने में काफी योगदान करती है. 2040 तक हर 10 एडल्ट लोगों में एक के क्रोनिक किडनी डिजीज से पीड़ित होने का चिंताजनक अनुमान है. इस मुश्किल टाइम को रोकने के लिए तुरंत एक्शन लेने की जरूरत है.
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किडनी डिजीज से बचाव के 8 गोल्डन रूल्स
पीतमपुरा स्तिथ मधुबन किडनी केयर, नई दिल्ली के फाउंडर व डायरेक्टर डॉक्टर विकास जैन ने क्रोनिक किडनी डिजीज के बारे में विस्तार से जानकारी दी और लोगों को इनसे बचाव के तरीके भी बताए. भले ही बीमारी का प्रसार तेजी से हो रहा है लेकिन इससे बचाव उम्मीद की किरण भी है. 8 गोल्डन रूल्स के बारे में जानकर उन्हें अपनाने से व्यक्ति अपनी किडनी को स्वस्थ रख सकता है. इन रूल्स में फिजिकल फिटनेस, बेहतर डाइट, ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर की लगातार मॉनिटरिंग, ज्यादा तरल पदार्थों का सेवन, स्मोकिंग से दूरी, पेन किलर से दूरी और रेगुलर किडनी फंक्शन टेस्ट शामिल है.
1-फिट और एक्टिव रहें: लगातार एक्सरसाइज करने से कार्डियोवैस्कुलर स्वास्थ्य में सुधार होता है, जिससे सीकेडी का रिस्क कम होता है.
2-हेल्दी डाइट लें: पोषक तत्वों से परिपूर्ण खाना खाएं. खाने में सोडियम कम और सैचुरेटेड फैट भी कम हो. इससे किडनी फंक्शन में मदद मिलती है.
3- ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर को लगातार मॉनिटर करें: क्रोनिक किडनी डिजीज की प्रोग्रेस को रोकने में ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर पर लगातार नजर बनाकर उसे मेंटेन रखना बेहद महत्वपूर्ण है.
4- पर्याप्त तरल पदार्थ का सेवन: अपनी बॉडी को हाइड्रेट रखें, खूब पानी पिएं, इससे किडनी फंक्शन को मदद मिलती है.
5- धूम्रपान न करें: स्मोकिंग से किडनी डैमेज का खतरा रहता है, ऐसे में इस पर काबू करना बेहद जरूरी हो जाता है.
6-ओटीसी/रेगुलर पेन किलर लेने से बचें: कुछ लोग दर्द से बचाव के लिए ज्यादा पेन किलर का इस्तेमाल करते हैं, ये किडनी के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक होता है.
7-रेगुलर किडनी फंक्शन टेस्ट कराएं: किडनी की रुटीन स्क्रीनिंग से डिजीज का जल्दी पता लगाने में मदद मिलती है. बीमारी पर कंट्रोल करने के लिए ये कदम एक आधारशिला के रूप में काम करता है.
8-एविडेंस बेस्ट इंटरवेंशन अपनाएं: इलाज कराते वक्त ये ध्यान दें कि जिनका कोई प्रमाण न हो वैसा ट्रीटमेंट न चुनें.
एंड-स्टेज किडनी डिजीज का लोड

भारत में, खासकर यूपी जैसे घनी आबादी वाले राज्यों में एंड-स्टेज किडनी डिजीज (ईएसकेडी) का कितना बोझ है, ये स्पष्ट नहीं है. वहीं, डेडिकेटेड सेंटरों की कमी, व्यापक रजिस्ट्री की अनुपस्थिति के साथ मिलकर चुनौतियों को बढ़ाती है. इसका नतीजा ये है कि 2 लाख से ज्यादा मरीज ट्रांसप्लांटेशन की वेटिंग लिस्ट में पड़े हुए हैं.
भारत ‘डायबिटीज की राजधानी’ के रूप में पनप रहा है जिसके चलते यहां किडनी डिजीज का प्रकोप और घातक हो रहा है. डायबिटीज के मामलों में तेजी से वृद्धि सीकेडी के प्रसार में मदद करती है और कई लोगों को डायलिसिस की जरूरत पड़ती है. जागरूकता की कमी और पारिवारिक हिचकिचाहट के चलते जीवित डोनर ट्रांसप्लांट में रुकावट आती है. जबकि कुछ मरीजों का इलाज सिर्फ किडनी ट्रांसप्लांट के जरिए ही संभव रह पाता है.
किडनी डिजीज के साथ एनीमिया और कार्डियोवैस्कुलर से जुड़ी बीमारियां भी हो जाती हैं. सर्वाइवल रेट में कमी, इलाज पर ज्यादा खर्च जैसे कारकों को देखते हुए किडनी डिजीज का अर्ली डिटेक्शन बेहद महत्वपूर्ण है.
स्क्रीनिंग प्रोग्राम में बदलाव लाना बेहद अहम है. ज्यादा उम्र वाले लोग और डायबिटीज से पीड़ित जैसे हाई रिस्क लोगों को पहचानने की जरूरत है. रोग की जल्दी पहचान न केवल उसकी प्रगति को रोकती है बल्कि मॉर्बिडिटी और मृत्यु दर को भी कम करती है.
वैकल्पिक उपचारों का प्रसार संदेह और गलत सूचनाओं को भी जन्म देता है. ऐसे में एविडेंस बेस्ड इलाज का विकल्प चुनना बेहद जरूरी है ताकि सीकेडी के असर से बचाव किया जा सके.
इसके अलावा, तकनीक में हुई प्रगति ने भी किडनी के इलाज को काफी प्रभावशाली बना दिया है. मिनिमली इनवेसिव ट्रांसप्लांट के जरिए सटीकता आती है और सर्जरी में होने समस्याओं में कमी आती है. नई तकनीक का उपयोग करने मरीज के लिए रिजल्ट अच्छे आते हैं जिससे पीड़ित लोगों को राहत मिलती है.
किडनी हेल्थ के संरक्षक के रूप में जिम्मेदारी हम पर टिकी हुई है. लोगों में जागरूकता बढ़ाई जाए, बचाव की संस्कृति को बढ़ावा दिया जाए और किडनी केयर के बुनियादी ढांचे को मजबूत किया जाए.
क्रोनिक किडनी डिजीज का खतरा बड़ा है जो जीवन को रिस्क में डाल रहा है और हेल्थ सिस्टम को स्ट्रेस दे रहा है. लेकिन निराशा के बीच हमेशा आशा की किरण होती है. 8 गोल्डन रूल्स को अपनाकर हम एक ऐसे रास्ते की तरफ अग्रसर हो सकते हैं जहां किडनी की हेल्थ बेहतर हो सके और ये मौत का कारण न बने.
