भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
धरती और आकाश के बीच किसी एक गांव में एक चतुर बीरबानी [स्त्री] रहती थी। गांव के लोगों में उसकी बड़ी इज्जत थी, लेकिन उसका घरवाला बेवकूफ था। वह उसे बिना बात “बावली बूच्य” कहता रहता था। स्त्री हंसकर टाल देती थी। उस बीरबानी को दुनिया भर की बात और अनेक किस्से-कहानी याद थे, जो उसने अपने नाना से सुने थे। हर बात का जवाब उसकी जुबान पर धरा रहता था। वो बड़ी हंसमुख और मखौलिया सुभाव की थी।
न्यून तो गांव में कई महिलाएं इकट्ठी होकर सुबह-सुबह पानी भरने जाती हैं, लेकिन एक दिन उसके बेटे ने खेल-खेल में पानी का मटका तोड़ दिया। पानी बह गया तो उसे भरी दुपहरी में पानी भरने कुएं पर जाना पड़ा। वो पानी भरकर टोकनी सर पर रखने वाली थी कि पांच बटोही आ गए। बोले, “हमें प्यास लगी है, पानी पिला दें।” गांव-देहात में महिला किसी अनजान व्यक्ति से बात नहीं करती। ऐसा रिवाज है। उस महिला ने कहा, “देखो भाई, मैं अनजान माणस को पाणी कोन्या प्याऊं, पहले न्यू बता दो, अक तुम कूण सो।”
एक ने जवाब दिया, “बहन हम बटोही सैं।” वो मखौलिया थी। बोली, “ना भाई, तम कड़े के बटोही। बटोही तो वे हों सै जो चालते-चालते ही रहवें, थमे कोणी। तुम तो रात होते ही, पड़ कई सो जावोगे। बटोही तो दो और ही सै।”
उस आदमी ने पूछा, “वे कौन हैं?”
महिला ने कहा, “एक सूरज और दूसरा चांद। वे कदै रुकते देखे सै?”
अब दूसरा बोला, “हम तो [तिसाए] प्यासे सैं।”
पणिहारी बोली, “तम कड़े के तिसाये। तिसाए तै वे हों सै, जिनकी प्यास कदै खत्म ना हो। वे तै दो और सै।”
उस माणस नैं पूछा, “वे कूण?”
वो बोली, “एक तै चकवा [चातक] और दूसरी धरती मां।”
तम उसका यो जवाब सुणकर तीसरा बोल्या, “बेबे! हम तो चोर सां।”
महिला बोली, “ना भाई, तम कड़े के चोर सो, राजा का सिपाही दो डंडे मारेगा, सारा माल निकाल के दे दोगे। असली चोर तो दो और सै। जो एक बर कुछ चुरा लें, तो वापिस ना करें।”
उस आदमी ने पूछा, “इस्से चोर कूण?”
औरत बोली, “गुरु अर बुढ़ापा।”
वो सारे आदमी अचरज से बोले, “गुरु अर चोर?”
औरत बोली, “रे बावलों! गुरु अज्ञान ने चुरा ले, फेर के देवे सै?”
चौथा बोला, “बेबे, हम तै मूरख सै, जो इस गाम मह मरण आ गए।”
औरत हंसकर टोकनी से पानी पिलाते हुए बोली, “मूर्ख तै जगत में दो और…”
उसकी बात पूरी ना हुई के उसका पति आ धमका। वो गुस्से में बोला, “मैं घणी हाण का देखू सूं। तू इन पराये मरदां, इन चार मुस्टंडा तेन मस्ताण लाग रही सै। तेरा चाल-चलण ठीक कोन्या। मैं तन्ने तै घर तै काडूंगा।”
उसका पति उसे व उन पांचों को राजदरबार में ले गया। वहां फरियाद कर दी कि मेरी बीरबानी बदबख्त है। मुझे इससे निजात दिलाओ। राजा ने पूछा, “वो कैसे?”
उसने कहा, “महाराज! या भरी दोपहरी मैं कुएं पै अकेली खड़ी होकर मुस्टंडा गैल्यां गिरकावै थी।”
राजा ने उस औरत से पूछा, “क्या तू अनजान लोगों से बात कर रही थी?”
वा बोली, “जी!”
राजा ने उसके पति की बात सच मानकर फैसला दे दिया कि तलाक मंजूर है। औरत रोने लगी। बोली, “महाराज, मैं बेकसूर हूं।”
रानी जो वहां बैठी थी। उसे औरत पर दया आ गई। बोली, “तू बेकसूर कैसे है साबित कर।”
औरत बोली, “रानी जी! इसके लिए आपको मेरा पूरा बयान सुनना पड़ेगा।”
राजा-रानी दोनों बोले, “सुनाओ।”
उसने सारी कहानी सुना दी। रानी ने कहा, “महाराज! इन बातों से तो यह साबित नहीं होता कि यह बदचलन है।”
राजा भला रानी की बात कैसे टालता। लेकिन फैसले से पहले उसने पूछा, “तूने अंत में कहा, मूर्ख दो और वे कौन?”
औरत बोली, “व महाराज! जाण दो जी, के करोगे जवाब सुणकर।”
राजा बोला, “ना, इस सवाल का जवाब भी तन्नै देणा ए पड़ेगा।”
वो बोली, “महाराज! अब तक आपको मेरे सारे जवाब ठीक लागै सैं। कहीं इसका सच्चा जवाब सुनकर मुझे सजा दे देंगे।”
राजा बोला, “तू इतनी समझदार सै। मन्ने तसल्ली सै, तेरा जवाब गलत नहीं हो सकता।”
औरत बोली, “ठीक सै। मैं जवाब तै दे दयूंगी। मगर आप वचन देओ, के मेरे जवाब का बुरा नहीं मानोगे।”
राजा बोले, “मंजूर।”
औरत बोली, “महाराज! पहला मूर्ख तो मेरा पति सै, जिसने पूरी बात जाने बिना मुझ पर इल्जाम लगा दिया कि मैं मुस्टंडा गैल्यां बतलाऊं थी और दूसरा मूर्ख वो सै, जो किसी की कही-सुनी पर बिना सोचे-समझे यकीन कर ले। जैसे, म्हारे राजा साहब नै मेरे पति की बात मानकर मुझे बदचलन मान लिया। महाराज! कहदी इस खात्यर मुआफी चाहूं सूं।”
उसकी ये बात सुणकर राजा हंस पड़ा और उसके पति से बोला, “तू बड़ा भाग्यशाली है, जो तुझे इतनी समझदार पत्नी मिली। इसकी बात मान्या कर सुखी रहेगा।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’