भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
Old Hindi Story: तब राजा भोज का राज था। उन्हीं दिनो की बात है कि कहीं एक बूढ़ी कुटनी रहती थी। उसका एक लड़का था। कुटनी मांग कर खाती थी। उसकी कमर झुकी थी, इसलिये गांव के लड़के उसे चिढ़ाते थे। कुटनी का लड़का इससे और भी चिढ़ता था। आखिर अपनी मां किसे प्यारी नहीं होती? कुटनी का लड़का कभी उनसे लड़ पड़ता था। तब गांव के लड़के बुरी तरह उसके पीछे पड़ जाते थे। कभी तो वह रो भी पड़ता था। एक दिन लड़के चिढ़ा ही रहे थे उसे कि कुटनी का लड़का मुस्कराया और बोला, ‘मुझे चिढ़ाते हो न! कभी मेरे दिन भी आयेंगे। आज ही मुझे सपना हुआ है कि…।’
लड़के उसका मुंह देखने लगे। ‘क्या सपना हुआ?’, एक ने पूछा। कुटनी का बेटा चुप रहा। शायद बता भी देता पर तभी किसी ने ताना दिया, ‘अरे, कुटनी का छोकरा राजा बनने के सपने देखता होगा।’ फिर क्या था, सब खिलखिला कर हंस पडे। कटनी का लडका अपना-सा मंह लेकर रह गया।
दिन बीते। फिर महीने बीते। इतना ही नहीं, वर्ष भी बीतने में देर न लगी। कुटनी का लड़का अब बड़ा हुआ। उन्हीं दिनों की बात है कि उधर से राजा की सवारी आ निकली। गांव के लोगों ने सुना तो काम-काज छोड़कर भागे-भागे चले आये और सबने राजा को घेर लिया। कुटनी के लड़के ने राजा को कभी देखा न था। वह भी दौड़ आया और राजा के आगे खड़ा हो गया। बहत देर तक वह राजा को टकटकी लगाकर देखता रहा फिर उसका ध्यान राजकुमारी पर गया। वह रूप में परी-सी लगती थी, मानों पंख लगाकर उड़ जायेगी। उसके गालों में बुरांस के फूल फूले थे और जवानी पानी के ताल की तरह भरी हुई थी। कुटनी के लड़के ने उस रूप को देखा, देखता ही रहा और तब उसे वह अनुहार जानी-पहचानी सी लगी फिर जैसे उसे कुछ याद आया और सहसा वह खुशी में मुस्कुरा उठा।
राजा ने यह सब देखा तो आग-आग हो गया। एक साधारण कुटनी के छोकरे की यह हिम्मत कि वह एक राजा की लड़की को देखे, घूरे और फिर इस तरह हंसे? राजा को बहुत बुरा लगा। उसने एकदम सिपाहियों को कहा और उन्होंने लड़के को पकड़ लिया। कुटनी को किसी ने आकर बताया तो वह राजा के पांवों में पड़कर रोई, गिड़गिड़ाई, पर कुछ न हुआ। राजकुमारी तो हक्की-बक्की रह गयी। उसने एक बार राजा को कुछ कहना चाहा पर उसे साहस न हो सका।
सारथी ने रथ वापिस मोड़ा। राजा राजभवन में आया। लड़के को एक अंधेरी कोठरी में डाल दिया गया। वहां उसे न खाना दिया गया, न पानी। लड़का बेचारा भूख प्यास से तड़पने लगा। उसके प्राण आकुल हो उठे। तभी एक रात के सूनेपन में उसे एक आहट ने चौका दिया। उसने देखा, राजकुमारी थी। वह कांप उठा। राजकुमारी ने उसके आगे खाना रखा और चली गई। दूसरे दिन भी ऐसा ही हुआ, तीसरे दिन भी। इस तरह वह रोज खाना दे जाती और वह खा लेता। इतने दिनों तक उसने कभी उससे बात नहीं की। जाते हुए कभी उसके चेहरे पर एक सूनी नजर डाल लेता बस।
एक दिन न जाने क्या हुआ कि राजकुमारी खाना लेकर देर से आई। उस दिन वह कुछ उदास भी लग रही थी। फल जैसे कुम्हला गया हो। लडका उस दिन चुप न रह सका। ‘क्या हुआ?’ उसने पूछा। राजकुमारी ने ऐसे ही टाल दिया, ‘कुछ नहीं!’ लड़के ने कहा, ‘नहीं, कोई बात जरूर है। न बताना चाहो तो बात दूसरी है। पर अगर मैं कोई काम आ सकूँ तो।’
तुम जानकर भी क्या करोगे? राजकुमारी ने कहना चाहा, पर फिर बोली, यह हमारे राज की लाज का सवाल है।’ लड़के ने सोचा, ‘शायद शत्रु ने आक्रमण कर दिया हो।’ इसलिये उसने कहा, ‘तो क्या हुआ? राजा की इतनी बड़ी सेना है।’
‘नहीं!’ राजकुमारी ने सिर हिलाया और कहा, ‘यह तो बुद्धि का युद्ध है लड़के। हमारे पड़ोसी राजा ने हमारी सभा में पंडित भेजा है। कई दिन से वाद-विवाद हो रहा है। आज उसने जो प्रश्न पूछा, उसका उत्तर न दिया गया तो हार माननी पड़ेगी।’ राजकुमारी का चेहरा कहते-कहते पीला पड़ गया। लडके की दृष्टि उस दिन उस पर न टिक सकी। इधर-उधर कुछ खोजता-सा उसने एक क्षण देखा और फिर बोला, ‘क्या प्रश्न है राजकुमारी?’
राजकुमारी का मन नहीं किया कि प्रश्न उसको बताये। राजसभा के बड़े-बड़े विद्वान ही जब निरुत्तर रह गये तो यह कुटनी का जाया ही क्या कर लेगा? पर उसका मन रखने के लिये उसने प्रश्न बता दिया, ‘मान लो एक गोल छड़ी है जो सब जगहों से बराबर मोटी है कैसे मालुम करोगे कि कौन उसका तना वाला भाग है और कौन चोटी वाला?
कुटनी के लड़के ने प्रश्न सुना। कुछ देर वह उधेड़-बुन में लगा रहा और फिर बोला, ‘उस छड़ी को पानी में डालो। जो भाग दब जाय वही तना है।’
राजकुमारी ने उत्तर सुना और दौड़ती हुई राजा के पास गई और बोली’पिता जी, उस पंडित के प्रश्न का उत्तर मैं दूंगी।’ दूसरे दिन सभा में राजा ने गर्व से कहा, इस प्रश्न का उत्तर हम क्या, हमारी नन्ही बेटी भी दे सकती है।’ राजकुमारी ने कुटनी के लड़के का बताया उत्तर सुनाया। पंडित अवाक् रह गया। राजकुमारी की जय जयकार हुई।
राजकुमारी फिर खाना लेकर आई। उस दिन वह बहुत खुश थी। लड़के ने पूछा, ‘मेरा उत्तर ठीक निकला न? राजकुमारी ने हामी भरी और बोली, आज उसने एक और प्रश्न पछा है। अजीब सा है. गरु ने शिष्य को शिक्षा दी। बेटा, कभी झूठ न बोलना और गौ-ब्राह्मण की रक्षा करना। एक दिन शिष्य कहीं से लौट रहा था कि पहले उसे एक गाय मिली और फिर उसकी खोज करता एक कसाई। कसाई ने कहा बटोही भाई, तुमने गाय भी देखी? शिष्य सोच में पड़ गया। यदि हां कहता हूं तो गाय मारी जायेगी और ना कहूं तो झूठ बोलने का पाप चढ़ेगा। दोनों से बचने के लिये उसने क्या कहा होगा?
कुटनी के लड़के ने कहा, ‘उसे कहना चाहिये, भाई मैं क्या कहूं? जो मुंह कह सकता है उसने देखा नहीं और जिस आंख ने देखा है उसके पास कहने को जबान नहीं।’
राजकुमारी ने पंडित को उत्तर जा सुनाया। राजसभा कोलाहल से गूंज उठी।
राजकुमारी फिर खाना लेकर आई, ‘मेरा उत्तर ठीक निकला न? राजकुमारी ने हामी भरी और कहा, ‘अभी तक एक और प्रश्न बचा है। ” लड़के ने पूछा, ‘कौन सा? ‘राजकुमारी ने बताया, ‘दो घोड़ियां हैं बराबर ऊंचाई की। एक ही सी लगती है सब तरफ से। पर है दोनों मां बेटी। कौन मां है, यह कैसे बतायें?’
लड़का मुस्कराया, यह तो सरल है। मां को मालूम करना कभी कठिन नहीं होता। मां में ममता होती है। तुम जानती हो, जिस दिन राजा ने मुझे पकड़ा था, मेरी मां कितनी रोई थी।’
लड़का जैसे भावों में खो गया। राजकुमारी के हृदय पर चोट-सी हुई। उसने कहा, पिता जी का गुस्सा ठंडा होने दो। वे तुम्हें छोड़ देंगे।
लड़के का ध्यान लौटा। उसने कहा, ‘मैं तुम्हारा प्रश्न तो भूल ही गया था। हां, उन दोनों घोड़ियों को धूप में बांध दो। फिर पानी पीने के लिये खोल दो। लौटते हुए जो आगे आये और पीछे देखे, वह मां है अन्यथा नहीं।
राजकुमारी ने पंडित को उत्तर दिया। सबने उसके चातुर्य की प्रशंसा की। राजा ने उसकी पीठ थपथपाई। पर राजकमारी खश न थी। वह अनमनी-सी शैय्या पर लेट गई।
राजा को मालूम हुआ तो वह बेटी के पास गया। उसकी उदासी का कारण पूछा, पर वह कुछ न बोली। राजा को आश्चर्य हुआ, बेटी, हम सब तो तेरी विजय पर इतने खुश हैं और तू…! ‘राजकुमारी जैसे तड़प उठी। सहसा उसके चेहरे के रंग उड़े और साहस कर उसने कहा, ‘इसका श्रेय तो कुटनी के लड़के को है पिता जी।’
‘कौन कुटनी का लड़का, राजा ने त्योरियां चढ़ाई।’
‘वही, जिसे आपने मुस्कराने पर उस दिन कैद कर दिया था।’ राजकुमारी ने जवाब दिया और सारी बात कह सुनाई। राजा ने कुटनी के लड़के को बुलाया। राजकुमारी कांप उठी। जानती थी, लड़का अब जिन्दा नहीं छूटेगा। पर हुआ कुछ और ही। राजा ने उसे शाबाशी दी और आधा राज देकर राजकुमारी उससे ब्याह दी।
फिर क्या था, कुटनी का छोकरा राजा बन गया। तब राजकुमारी ने कुटनी के लड़के से पूछा, ‘तुम उस दिन मुस्कराये क्यों थे? लड़का मुस्कराया और बोला,’ इसीलिये तो मुस्कराया था, मैंने सपने में देखा था जैसे मेरा ब्याह तुमसे हो गया और मैं राजा बन गया। उस सपने को याद कर मुस्कराया था। तब उस दिन, यह सोचकर कि यह कैसा मजाक है! कहां मैं और कहां तुम।’
तब वे आनन्द से रहने लगे। कुटनी भी वहीं जाकर रहने लगी। जिन्दगी बदल गई उनकी। सपना जैसे मुस्करा उठा।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
