Manto story in Hindi: नौ महीने पूरे हो चुके थे। मेरे पेट में अब पहले-सी गड़बड़ नहीं थी, पर मैडम डीकॉस्टा के पेट में चूहे दौड़ रहे थे। वह बहुत परेशान थी। चुनांचे मैं आने वाली घटना की तमाम अनजानी तकलीफें भूल गई थी और मैडम डीकॉस्टा की हालत पर रहम खाने लगी थी। मैडम डीकॉस्टा मेरी पड़ोसन थी। हमारे फ्लैट की बालकनी और उसके फ्लैट की बालकनी के बीच सिर्फ लकड़ी का एक तख्ता था, जिसमें अनगिनत नन्हे-नन्हे सुराख थे। उन सुराखों में से मैं और मेरी सास मैडम डीकॉस्टा के सारे खानदान को खाना खाते देखा करते थे।
जब उनके घर सुखाई हुई झींगा मछली पकती और उसकी नाकाबिले-बरदाश्त बू उन सुराखों में से छन-छनकर हम तक पहुंचती तो मैं और मेरी सास बालकनी का रुख तक न करती थीं।
मैं अब भी कभी-कभी सोचती हूं कि इतनी बदबूदार चीज खाई कैसे जा सकती है। पर बाबा, क्या कहा जाए। इंसान बुरी-से-बुरी चीजें खा जाता है। कौन जाने उन्हें इस बू में ही मजा आता हो। मैडम टीकॉस्टा की उम्र लगभग चालीस-बयालीस साल की होगी। उसके कटे हुए बाल, जो अपनी सियाही बिलकुल खो चुके थे और जिनमें बेशुमार सफेद धारियां पड़ चुकी थीं, उसके छोटे से सिर पर, घिसे हुए नमदे की टोपी के रूप में बिखरे रहते थे। कभी-कभी जब वह नया भड़कीले रंग का बहुत ही भद्दे तरीके से सिला हुआ फ्रॉक पहनती थी तो सिर पर लाल-लाल बुंदकियों वाला जाल भी लगा लेती थी, जिससे उसके छिदरे बाल उसके सिर के साथ छिपक जाते थे। उस हालत में वह दर्जियों का ऐसा मॉडल दिखाई देती थी जो नीलाम घर में पड़ा हो।
मैंने कई बार उसे अपने इन्हीं बालों में लहरें पैदा करने की कोशिश में भी व्यस्त देखा है। जब वह अपने चार बेटों को नाश्ता करा दिया करती थी, जिनमें एक ताज़ा-ताज़ा फौज में भरती हुआ था और अपने आपको हिंदुस्तान के हाकिमों की सूची में शामिल समझता था, और दूसरा, जो हर रोज अपनी कलफ लगी पतलून इस्त्री करके पहनता था और नीचे आकर छोटी-छोटी क्रिश्चियन लड़कियों के साथ मीठी-मीठी बातें किया करता था।
बेटों को नाश्ता कराने और अपने बूढ़े पति को, जो रेलवे में नौकर था, बालकनी में निकलकर हाथ के इशारे से बाय-बाय करने के बाद छुट्टी पा जाती थी तो अपने सिर के इन बिखरे हुए बालों में लहरें पैदा करने वाले क्लिप अटका दिया करती थी और उन क्लिपों को लगाकर सोचा करती थी कि मेरे यहां बच्चा कब पैदा होगा। वह खुद आधे दर्जन पैदा कर चुकी थी, जिनमें से पांच जिंदा थे। उनके जन्म पर भी क्या वह इसी तरह दिन गिना करती थी या चुपचाप बैठी रहती थी और बच्चे को अपने आप पैदा होने के लिए छोड़ देती थी?
इसके बारे में मुझे कुछ पता नहीं, लेकिन मुझे इस बात का तल्ख तजुर्बा जरूर है कि जो कुछ मेरे पेट में था, उससे मैडम डीकॉस्टा को, जिसका दायां पैर और उसके ऊपर का हिस्सा, किसी बीमारी के कारण हमेशा सूजा रहता था, बहुत गहरी दिलचस्पी थी। चुनांचे दिन में कई बार बालकनी में से झांक कर वह मुझे आवाज दिया करती थी और ग्रामर की परवाह न करने वाली अंग्रेज़ी में, जिसे न बोलना शायद उसके नजदीक हिंदुस्तान के मौजूदा शासकों का अपमान था, मुझसे कहा करती थी, ‘मैं बोली, आज तुम किदर गया था…।’
जब मैं उसे बताती कि मैं अपने शौहर के साथ शॉपिंग करने गई थी तो उसके चेहरे पर निराशा के आसार पैदा हो जाते और वह अंग्रेज़ी भूलकर बंबइया हिंदुस्तानी में बात करना शुरू कर देती, जिसका मकसद मुझसे इस बात का पता लगाना होता था कि मेरे ख्याल के मुताबिक बच्चे के पैदा होने में कितने दिन बाकी रह गए हैं।
मुझे इस बात का पता होता तो मैं निश्चय ही उसे बता देती। इसमें हर्ज ही क्या था। उस बेचारी को ख्वाहमख्वाह की उलझन से छुटकारा मिल जाता और मुझे भी उसके नित-नए सवालों का सामना न करना पड़ता। पर मुसीबत यह है कि मुझे बच्चों की पैदाइश और उससे संबंधित बातों का कुछ पता नहीं था। मुझे सिर्फ इतना पता था कि नौ महीने पूरे हो जाने पर बच्चा पैदा हो जाया करता है।
मैडम डीकॉस्टा के हिसाब से नौ महीने पूरे हो चुके थे। मेरी सास का ख्याल था कि अभी कुछ दिन बाकी हैं। लेकिन ये नौ महीने कहां से शुरू करके पूरे कर दिए गए थे, मैंने बहुतेरा अपने दिमाग पर जोर दिया, पर समझ न सकी। बच्चा मुझे पैदा होने वाला था, शादी मेरी हुई थी, लेकिन सारा बही-खाता मैडम डीकॉस्टा के पास था। कई बार मुझे ख्याल आया कि यह मेरी बेपरवाही का नतीजा है। अगर मैंने किसी छोटी-सी नोट बुक में, उस कॉपी में ही, जो धोबी के हिसाब के लिए बनाई गई थी, सब तारीखें लिख छोड़ी होतीं तो कितना अच्छा था।
इतना तो मुझे याद था और याद है कि मेरी शादी 26 अप्रैल को हुई थी। यानी 26 की रात को मैं अपने घर के बजाय अपने शौहर के घर में थी। लेकिन इसके बाद की घटनाएं कुछ ऐसी उलझी हुई थीं कि उस बात का पता लगाना मुश्किल था और मुझे ताज्जुब इसी बात का है कि मैडम डीकॉस्टा ने कैसे अंदाजा लगा लिया था कि नौ महीने पूरे हो चुके हैं और बच्चा लेट हो गया है।
एक दिन उसने मेरी सास से बेचैनी भरे लहजे में कहा, ‘तुम्हारी डॉटर इन लॉ का बच्चा लेट हो गया है। पिछले वीक में पैदा होना ही मांगता था।’
मैं अंदर सोफे पर लेटी थी और आने वाली घटना के बारे में अटकलें लगा रही थी। मैडम डीकॉस्टा की यह बात सुनकर मुझे बड़ी हंसी आई और ऐसा लगा कि मैडम डीकॉस्टा और मेरी सास दोनों प्लेटफार्म पर खड़ी हैं और जिस गाड़ी का उन्हें इन्तजार था, वह लेट हो गई है।
अल्लाह बख्शे, मेरी सास को, उन्हें इतनी शिद्दत से इंतजार नहीं था, चुनांचे वे कई बार मैडम डीकॉस्टा से कह चुकी थीं, ‘कोई फ्रिक की बात नहीं। खुदा अपना फजल करेगा। कुछ दिन ऊपर हो जाया करते हैं।’ मगर मैडम डीकॉस्टा नहीं मानती थी। जो हिसाब वह लगा चुकी थी, गलत कैसे हो सकता था?
जब मैडम डीसिल्वा के बच्चा होने वाला था तो उसने दूर ही से देखकर कह दिया था कि ज्यादा-से-ज्यादा एक हफ्ता लगेगा। चुनांचे चौथे दिन ही मैडम डीसिल्वा अस्पताल जाती नजर आईं। खुद डीकॉस्टा ने छह बच्चे जने थे जिनमें से एक भी लेट नहीं हुआ था। फिर वह नर्स थी। यह अलग बात है कि उसने किसी अस्पताल में दाईगिरी की ट्रेनिंग नहीं ली थी, पर सब लोग उसे नर्स कहते थे। चुनांचे उनके फ्लैट के बाहर, छोटी-सी लकड़ी की तखती पर ‘नर्स डीकॉस्टा’ लिखा रहता था। उसे बच्चों की पैदाइश का समय मालूम न होता तो और किसको होता?
जब कमरा नंबर 17 में रहने वाले मिस्टर नजीर की नाक सूज गई थी तो मैडम डीकॉस्टा ने ही बाजार से रुई का पैकेट मंगवाया था और पानी गरम करके टकोर दी थी। बार-बार वह इस घटना को सनद के रूप में पेश किया करती थीं, चुनांचे मुझे बार-बार कहना पड़ता था, ‘हम कितने खुशकिस्मत हैं कि हमारे पड़ोस में ऐसी औरत रहती है जो मिलनसार होने के साथ-साथ अच्छी नर्स भी है।’
यह सुनकर वह बहुत खुश होती थी। उनको यों खुश करने से मुझे फायदा यह हुआ कि जब ‘उन्हें’ तेज बुखार चढ़ा था तो मैडम डीकॉस्टा ने बर्फ लगाने वाली रबड़ की थैली मुझे फौरन ला दी थी। वह थैली एक हफ्ते हमारे यहां पड़ी रही और मलेरिया के शिकार कई लोगों के काम आती रही।
यों भी मैडम डीकॉस्टा बड़ी सेवा करने वाली थी पर उसके इस सेवा भाव में उसकी नाक-धंसाऊ आदत का बड़ा हाथ था। दरअसल, वह अपने पड़ोसियों के उन सारे राजों को जानने की भी बड़ी इच्छुक थी, जो वे अपने सीनों में ही रखते चले आए थे। मिसेज़ डीजिल्वा मैडम डीकॉस्टा की हम-मजहब थी, इसलिए उसकी बहुत-सी कमजोरियां उसको मालूम थीं। मसलन वह जानती थी कि मिसेज डीसिल्वा की शादी क्रिसमस में हुई और बच्चा जुलाई में हुआ, जिसका साफ मतलब यह था कि उसकी असली शादी पहले हो चुकी थी। उसको यह भी पता था कि मिसेज डीसिल्वा नाचघरों में जाती है और यहां बहुत-सा रुपया कमाती है और यह कि अब वह उतनी सुंदर नहीं रही, जितनी की पहले थी। इसलिए उसकी आमदनी भी पहले से कम हो गई है। हमारे सामने जो यहूदी रहते थे, उनके बारे में मैडम डीकॉस्टा के अलग-अलग बयान थे। कभी वह कहती थी कि मोटी मोजेल, जो रात को देर से घर आती है, सट्टा खेलती है और वह ठिगना-सा बुड्ढा, जो पतलून के गैलिसों में अंगूठे अटकाए और कोट कंधे पर रखे, सुबह घर से निकल जाता है और शाम को लौटता है, मोजेल का पुराना दोस्त है। उस बुड्ढे के बारे में उसने खोज लगाकर यह मालूम किया था कि वह साबुन बनाता है, जिसकी सजावट बहुत सुंदर होती है।
एक दिन उसने हमें बताया था कि मोजेल ने अपनी लड़की को, जो बहुत सुंदर थी और हर रोज नीले रंग की जींस पहनकर स्कूल जाती थी, उस आदमी से मंगनी कर रखी है जो हर रोज एक पारसी को मोटर में लेकर आता है। मैं उस पारसी के बारे में सिर्फ इतना जानती हूं कि उसकी मोटर हमेशा नीचे खड़ी रहती थी और वह मोजेल की लड़की के मंगेतर सहित रात वहीं बिताता था।
मैडम डीकॉस्टा का यह कहना था कि मोजेल की लड़की फ्लोरी का मंगेतर पारसी का मोटर ड्राइवर की बहन लिली का आशिक है जो अपनी बहन वायलेट समेत उसी फ्लैट में रहती थी। वायलेट के संबंध में मैडम डीकॉस्टा की राय बहुत खराब थी।
वह कहा करती थी कि वह लौंडिया, जो हर समय एक नन्हे से बच्चे को उठाए रहती है, बहुत बुरे केरेक्टर की है और उस नन्हे से बच्चे के बारे में उसने हमें एक दिन यह ख़बर सुनाई थी कि जैसा मशहूर किया गया है, वह किसी परसिन का लावारिस बच्चा नहीं, बल्कि खुद वायलेट की बहन लिली का है और जो लिली है….। बस मुझे इतना ही याद है, क्योंकि जो वंशावली मैडम डीकॉस्टा ने तैयार की थी, वह इतनी लंबी है कि शायद ही किसी को याद रह सके।
सिर्फ आसपास की औरतों और पड़ोस के मर्दों तक मैडम डीकॉस्टा की जानकारी सीमित नहीं थी, उसे दूसरे मुहल्ले के लोगों के बारे में भी बहुत-सी बातें मालूम थीं। चुनांचे जब वह अपने सूजे हुए पैर का इलाज कराने की गरज से बाहर जाती तो घर लौटते हुए, दूसरे मुहल्लों की बहुत-सी ख़बरें लाती थी।
एक दिन जब मैडम डीकॉस्टा मेरे बच्चे के जन्म का इंतजार कर-करके थक-हार चुकी थी, मैंने उसे बाहर फाटक के पास अपने दो बड़े लड़कों को एक लड़की और पड़ोस की दो औरतों के साथ बातें करते हुए देखा। मैं यह सोचकर मन-ही-मन बहुत कुढ़ी कि वह मेरे बच्चे के लेट हो जाने के बारे में बातें कर रही होगी।
चुनांचे जब उसने घर का रुख किया तो जंगले से परे हट गई। पर उसने मुझे देख लिया था। सीधी ऊपर चली आई। मैंने दरवाजा खोलकर उसे बाहर बालकनी में ही मूढे़ पर बैठा दिया। मूढ़े पर बैठते ही उसने बंबई की हिन्दुस्तानी और ग्रामर-रहित अंग्रेज़ी में कहना शुरू किया, ‘तुमने कुछ सुना? मातमा गांडी ने क्या किया? साली कांग्रेस एक नया कानून पास करना मांगटी है। मेरा फ्रेड्रिक ख़बर लाया है कि बोम्बे में प्रोहिबीशन हो जाएगा। तुम समझता है, प्रोहिबीशन क्या होता है?’
मैंने अंजानापन प्रकट किया, क्योंकि जितनी अंग्रेज़ी मुझे आती थी, उसमें प्रोहिबीशन शब्द नहीं था। पर मैडम डीकॉस्टा ने कहा, ‘प्रोहिबीशन शराब बंद करने को कहते हैं। हम पूछता है, इस कांग्रेज का हमने क्या बिगाड़ा है कि शराब बंद करके हमको तंग करना मांगटी है। यह केसा गौरमेंट है? हमको ऐसा बात एकदम अच्छा नहीं लगता।
‘हमारा त्योहार कैसे चलेगा? हम क्या करेगा? ह्विस्की हमारा त्योहारों में होना ही मांगता है। तुम समझती हो न। क्रिसमस कैसे होगा? क्रिश्चियन लोग तो इस लॉ को नहीं मानेगा। कैसे मान सकता है? मेरे घर में चौबीस क्लॉक (घंटे) ब्रांडी का जरूरत रहता है। यह लॉ पास हो गया तो कैसे काम चलेगा। यह सब कुछ गांडी कर रहा है। गांडी, जो मोहमडन लोग का एकदम बैरी है। साला आप तो पीता नहीं और दूसरों को पीने से रोकता है। और तुम्हें मालूम है, यह हम लोगों का, मेरा मतलब है, गौरमेंट का बहुत बड़ा एनेमी है….।’
उस वक्त ऐसा मालूम होता था कि इंग्लिस्तान का सारा टापू मैडम डीकॉस्टा के अंदर समा गया है। वह गोआ की रहने वाली, काले रंग की क्रिश्चियन औरत थी, मगर जब उसने ये बातें कीं तो मेरी कल्पना ने उस पर सफेद चमड़ी मढ़ दी। कुछ क्षणों के लिए यह यूरोप से आई हुई, ताज़ा-ताज़ा अंग्रेज औरत दिखाई दी, जिसे हिंदुस्तान और उसके महात्मा गांधी से कोई वास्ता न हो।
समुद्र के पानी से नमक बनाने का आंदोलन महात्मा गांधी ने शुरू किया था। चरखा चलाना और खादी पहनना भी उन्होंने लोगों को सिखाया था। इसी किस्म की और भी बहुत-सी ऊटपटांग बातें कर चुका था।
शायद इसीलिए मैडम डीकॉस्टा ने यह समझा था कि बंबई में शराब सिर्फ इसलिए बंद की जा रही है कि अंग्रेज लोगों को तकलीफ़ हो। वह कांग्रेस और महात्मा गांधी को एक ही चीज समझती थी यानी लंगोटी।
महात्मा गांधी और उसकी सात पीढ़ियों पर लानतें भेजकर, मैडम डीकॉस्टा असली बात की तरफ आई, ‘और हां, तुम्हारा यह बच्चा क्यों पैदा नहीं होता? चलो, मैं तुम्हें किसी डॉक्टर के पास ले चलूं।’
मैंने उस वक्त बात टाल दी। मगर मैडम डीकॉस्टा ने घर जाते हुए फिर मुझसे कहा, ‘देखो, तुमको कुछ ऐसा-वैसा बात हो गया तो फिर हमको न बोलना।’
इस वार्तालाप के दूसरे दिन की बात है, ‘वे’ बैठे कुछ लिख रहे थे। मुझे ख्याल आया, कई दिनों से मैंने मिसेज काजिमी को फोन नहीं किया। उसको भी बच्चे की पैदाइश का बहुत ख्याल है, इस वक्त फुरसत है और नजीर साहब का दफ्तर, जो उनके घर के साथ ही मिला था, बिलकुल खाली होगा, क्योंकि छह बज चुके थे।
उठकर टेलीफोन कर देना चाहिए। यों सीढ़ियां उतरने और चढ़ने से डॉक्टर साहब और तजुर्बेकार औरतों की सलाह पर अमल भी हो जाएगा, जो यह था कि चलने-फिरने से बच्चा आसानी के साथ पैदा होता है।
चुनांचे मैं अपने पैदा होने वाले बच्चे समेत उठी और धीरे-धीरे सीढ़ियां चढ़ने लगी। जब पहली मंजिल पर पहुंची तो मुझे ‘नर्स डीकॉस्टा’ का बोर्ड नजर आया और इससे पहले कि मैं उसके फ्लैट के दरवाजे से गुजरकर दूसरी मंजिल के पहले जीने पर कदम रखूं, मैडम डीकॉस्टा बाहर निकल आई और मुझे अपने घर ले गई।
मेरा दम फूला हुआ था और पेट में ऐंठन-सी पैदा हो गई थी। ऐसा महसूस होता था कि रबड़ की गेंद है। जो कहीं अटक गई है। इससे बड़ी उलझन हो रही थी। मैंने एक बार इस तकलीफ़ का जिक्र अपनी सास से किया था तो उसने मुझे बताया था कि बच्चे की टांग-वांग इधर-उधर फंस जाया करती है। चुनांचे यह टांग-वांग ही हिलने से कहीं फंस गई थी, जिसकी वजह से मुझे बड़ी तकलीफ़ हो रही थी।
मैंने मैडम डीकॉस्टा से कहा, ‘मुझे एक जरूरी टेलीफोन करना है, इसलिए मैं आपके यहां नहीं बैठ सकती।’ और बहुत से बहाने मैंने पेश किए, पर वह न मानी और मेरा बाजू पकड़कर उसने जबरदस्ती मुझे उस सोफे पर बैठा दिया, जिसका कपड़ा मैला हो रहा था।
मुझे सोफे पर बैठाकर, जल्दी-जल्दी उसने दूसरे कमरे से अपने दो छोटे-छोटे लड़कों को बाहर निकाला। अपनी कुंवारी जवान लड़की को भी, जो महात्मा गांधी की लंगोटी से कुछ बड़ी निक्कर पहनती थी, उसने बाहर भेज दिया और मुझे खाली कमरे में ले गई। अंदर से दरवाजा बंद करके उसने मेरी तरफ उस अफ्रीकी जादूगर की तरह देखा, जिसने अलादीन का चाचा बनकर उसे गुफा में बंद कर दिया था। यह सब उसने इतनी फुर्ती से किया कि मुझे वह एक बड़ी भेद भरी औरत दिखाई दी। सूजे हुए पैर की वजह से उसकी चाल में हल्का लंगड़ापन पैदा हो गया था जो मुझे उस समय बहुत भयानक दिखाई दिया। मेरी तरफ घूरकर देखने के बाद उसने इधर दीवार की तीन खिड़कियां बंद कीं। हर खिड़की की चटकनी चढ़ाकर, उसने मेरी तरफ इस अंदाज से देखा जैसे उसे इस बात का डर हो कि मैं उठ भागूंगी। ईमान से कहूं, उस वक्त मेरा जी यही चाहता था कि दरवाजा खोलकर भाग जाऊं। उसकी खामोशी और उसके खिड़कियां-दरवाजे बंद करने से मैं बहुत परेशान हो गई थी। आख़िर इसका मतलब क्या था? वह चाहती क्या थी? इतने जबरदस्त एकांत की क्या जरूरत थी? और फिर, वह लाख पड़ोसिन थी, उसके हम पर कई एहसान भी थे, लेकिन आख़िर वह थी तो एक गैर औरत। और उसके बेटे… वह मुआ फौजी और वह कलफ लगी पतलून वाला, जो छोटी-छोटी क्रिश्चियन लड़कियों से मीठी-मीठी बातें करता था… अपने, अपने होते हैं और पराए, पराए।
मैं कई इश्किया उपन्यासों में कुटनियों का हाल पढ़ चुकी थी। जिस अंदाज से वह इधर-उधर चल-फिर रही थी और दरवाजे बंद करके परदे खींच रही थी, उससे मैंने यही नतीजा निकाला था कि वह नर्स-वर्स बिलकुल नहीं, बल्कि एक बहुत बड़ी कुटनी है। खिड़कियां और दरवाजे बंद होने की वजह से, कमरे में, जिसके अंदर लोहे के चार पलंग पड़े थे, काफी अंधेरा हो गया था, जिससे मुझे और भी घबराहट हुई। पर उसने फौरन ही बटन दबाकर रोशनी कर दी। समझ में नहीं आता था कि वह मेरे साथ क्या करेगी। बड़े भेद-भरे तरीके से उसने अंगीठी पर से एक बोतल उठाई, जिसमें सफेद रंग का तरल पदार्थ था, और मुझसे मुखातिब होकर कहने लगी, ‘‘अपना ब्लाउज उतारो… मैं कुछ देखना मांगती हूं।’’
मैं घबराई, ‘‘क्या देखना चाहती हो?’’
ऊपर से सब कुछ साफ नजर आ रहा था। फिर ब्लाउज उतरवाने का क्या मतलब था और उसे क्या हक हासिल था कि वह दूसरी औरतों को यों घर के अंदर बुलाकर, ब्लाउज उतारने पर मजबूर करे। मैंने साफ़-साफ कह दिया, ‘‘मैडम डीकॉस्टा, मैं ब्लाउज़ हरगिज नहीं उतारूंगी।’’ मेरे लहजे में घबराहट के अलावा तेजी भी थी।
मैडम डीकॉस्टा का रंग पीला पड़ गया, ‘‘तो….तो…..फिर हमको मालूम कैसे पड़ेगा कि तुम्हारे घर बच्चा कब होगा। इस बोतल में खोपरे का तेल है। यह हम तुम्हारे पेट पर गिराकर देखेगा। इससे एकदम मालूम हो जाएगा कि बच्चा कब होगा। लड़की होगी या लड़का।’’
मेरी घबराहट दूर हो गई। मैडम डीकॉस्टा फिर मुझे मैडम डीकॉस्टा नजर आने लगी। खोपरे का तेल बड़ी बेजरर चीज है। अगर पेट पर उसकी पूरी बोतल भी उंड़ेल दी जाती तो क्या हर्ज था और फिर तरकीब कितनी दिलचस्प थी। इसके अलावा अगर मैं न मानती तो मैडम डीकॉस्टा को कितनी बड़ी निराशा का सामना करना पड़ता। मैं वैसे भी किसी का दिल तोड़ना पसंद नहीं करती। चुनांचे मैं मान गई। ब्लाउज और कमीज उतारने में मुझे काफी मुश्किल हुई, पर मैंने बरदाश्त कर ली। मेरे पेट पर ठंडे-ठंडे तेल की एक लकीर दौड़ गई। मैडम डीकॉस्टा खुश हो गई। मैंने जब कपड़े पहन लिए तो उसने संतोष भरे लहजे में कहा, ‘‘आज क्या डेट है ग्यारह… बस पंद्रह को बच्चा हो जाएगा और लड़का ही होगा।’’
बच्चा 25 तारीख को हुआ, लेकिन था लड़का। अब, जब कभी वह मेरे पेट पर अपने नन्हे-नन्हे हाथ रखता है तो मुझे महसूस होता कि मैडम डीकॉस्टा ने खोपरे के तेल की सारी बोतल उंड़ेल दी है।
