Hindi Love Story: मां के गुजर जाने के बाद मेरे जीवन में एक तरह से खालीपन आ गया था। मां होती तो लंच बनाती। भईया भाभी थे मगर उनकी अपनी जिंदगी थी। क्यों वे मेरे लिए सुबह सुबह लंच बाक्स तैयार करें? लिहाजा मेैं बिना लंच के स्कूल जाता। एक रेाज “यामली” से रहा न गया। तब मेरे और उसके बीच कुछ नहीं था।
‘‘आप लंच नहीं लाते?’’उसके सवाल पर मेरे चेहरे पर एक फीकी मुस्कान तिर गयी।
‘‘बस ऐसे ही?’’ मैंनेे टाला।
उसने गौर किया कि मैं अक्सर पढाने के बाद लंच के समय उदास रहता। एक दिन जब स्कूल के एक खाली पीरियड के समय हम दोनों अकेले में मिले तो पूछी। तब मैंने कुछ नहीं छिपाया। सच सच बता दिया। उसे मुझसे सहान्भूति हो गयीं।
अब जब भी लंच लाती उसमें दो रोटी मेरे लिए भी रहता। एकाध रोज तो ठीक था। परंतु रोज रेाज लंच करना मुझे उचित न लगा। उस पर लेागों की कानाफूसी शुरू हो गयी। सोे मौका पाकर मैंने साफ— साफ मना कर दिया।
‘‘आप खामख्वाह परेशान होते हैं। लेाग तो ऐसे ही कहते रहते है।’’
‘फिर भी।’’ मेेैंने जोर दिया तो उसने मेरे लिए लंच लाना बंद कर दिया। उसे कोई डर नहीं था। मगर मुझे था। वह एक अच्छे परिवार से आती थी वही मेरे लिए यह मामूली सी नौकरी भी अहम थी। उसकी नौकरी चली जाती तो भी उसे कोई फर्क नहीं पडता मगर मेरी जाती तो निश्चय ही मेरी परेशानी बढ जाती। पिता रिटायर थे। मुझे आज भी ढंग की नौकरी नहीं मिली थी। मैं प्रयासरत था। “यामली” के आने से मेरे जीवन का खालीपन कुछ कुछ भरने लगा था।
अब स्कूल में उसका इंतजार रहता। एक दिन न आती तो सारा दिन उचाट लगता। इसके बावजूद मैंने आजतक उससे अपने मन की बात नहीं कही। समझने को दोनों समझते थे मगर पहल कौन करेें।
स्कूल का वार्षिक प्रेाग्राम था। प्रेाग्राम “शहर” के एक आडिटोरियम में रखा गया था। रात दस बजे जब लौटने का हुआ तब स्कूल के एक वरिष्ठ टीचर ने “यामली” को सही सलामत घर पहुंचाने की जिम्मेदारी मुझे दी। पहली बार मुझे “यामली” के बेहद करीब आने का मैाका मिला। मैं असहज था। कुछ ऐसी ही स्थिति उसकी भी थी। काफी दूर तक आने के बावजूद हमदेानों के बीच मौन पसरा रहा। ’’मैं आपसे प्रेम करता हूं।’’ बस इतना कहना था मुझे। वह भी नहीं कह पाया। रिक्शा उसके घर तक आ गया और मेरे दिल की हसरत जस की तस रह गयी।
एक हफ्ते नहीं आयी। मेरी निगाहें रोजाना फाटक पर उसे ढूंढती। एक रोज आयी तो ऐसा लगा मानों फिजां में बहार आ गयी हो। मेरी खुशी का पारावार न रहा। उस रोज उसने टिफिन के समय सारे टीचरों को मिठाई खिलाने लगी। बाद में मुझे पता चला कि उसकी शादी तय हो गयी। आज उसका आखरी दिन था। मेेरे चेहरे की खुशी अचानक काफूर हेा गयी। मैं गहरे निराशा में डूब गया। स्कूल से छूटने के बाद
आज हमदेानों रोजाना से परे एक साथ चले। बेखैाफ कि लेाग क्या कहेगें। आज मेरा हमनशी हमेशा-हमेशा के लिए बिछडने वाला था। इसलिए उसे भरपूर देख लेना चाहता था। उसके करीबीपन को जी लेना चाहता था।
‘‘मुझे माफ कर देना।’’ ‘यामली’ का स्वर टूटा हुआ था।
‘‘माफी” तो मुझे अपने आप से मांगनी चाहिए थी। जो बिना सोचे समझे आपसे दिल लगा बैठा।’’मेरा स्वर भींग गया।
‘‘गलत क्या किया?’’यामली कही।
‘‘क्यों नहीं गलत किया? यह जानते हुए कि हमदोनों नदी के उस किनारे की तरह है। जो कभी नहीं मिलते।’’
‘‘क्या जरूरी है कि जो सोचा जाए वह हो भी जाए। ’’
‘‘मतलब?’’
‘‘हमदोनों मेाहब्बत की इस खुशबू को ताउम्र महसूस करे।’’यामली” के दर्शन ने भले ही थोडे देर के लिए मुझे राहत दे दी हो मगर मैं जानता था कि उसकी गैरमोैजूदगी मेरे अंतर्मन की पीड़ा को शायद ही कम कर पाये।
