कहानी- बराबरी: Story on Equality
Barabari Credit: istock

Story on Equality: ठण्ड के मौसम में सुषमा शॉल ओढ़े अपने आँगन में बैठी थी। चाय की चुस्की लेते हुए वो अखबार पढ़ रही थी। सुबह- सुबह जहां उसे घर की रसोई में सबके लिए चाय- नाश्ता बनाना था, बच्चो का टिफिन पैक करना था,  बच्चो को स्कूल भेजना था, वहां वो इन सब कामो की चिंता छोड़, आज एक सुकून भरी सुबह का आनंद ले रही थी।

दूध वाले ने जब घंटी बजायी, तो विवेक ही बाहर दूध लेने गए। पड़ोस में रहने वाली मीना ने देखा की मैडम तो आराम से अखबार पढ़ रही है, और  बिचारे पतिदेव आज घर के सारे काम संभाले हुए है। वो अपनी सहेली रूचि से बोली- “बताओ कैसी बेपरवा है ये, इसे न तो बच्चो की फ़िक्र है, और न ही, अपने पति की। मैडम आराम से कुर्सी पर बैठकर चाय पी रही और देखो बिचारे इसके पतिदेव एक तरफ नाश्ता बना रहे है, और दूसरी तरफ बच्चो को तैयार कर रहे है। इसे तो अपने पति पर बिलकुल तरस ही नहीं आता।” सुषमा मीना और रूचि की बाते चुप चाप सुन रही थी और विवेक भी। मीना और रूचि अपने घर चली गयी।

थोड़ी देर दोनों बच्चे तैयार होकर आये, विवेक ने दोनों को नाश्ता दिया और लंच भी पैक करके दिया। वो बाय कहकर स्कूल वैन में चले गए। सुषमा ने भी दोनों बच्चो को बाय किया। चलो एक काम ख़त्म हुआ, विवेक ने चेन की सास लेते हुए कहा। आखिर आज इन दोनों पति पत्नी को हुआ क्या है? क्यों आज विवेक घर के सारे काम बिना किसी चिल्लम चिली के कर रहा है? और आज सुषमा इतनी रिलैक्स क्यों है? ये सवाल मीना और रूचि दोनों को खाये जा रहा था। लेकिन उन्हें इसके पीछे की कहानी नहीं पता।

दरअसल, विवेक और सुषमा बहुत ही सुलझे हुए है। वो हमेशा एक दूसरे का सम्मान करते है। विवेक ने हमेशा सुषमा को सपोर्ट किया है, और सुषमा भी कंधे से कन्धा मिलाकर हर दुःख सुख में विवेक की साथी बनी है। लेकिन एक दिन उन दोनों की बेटी ने विवेक से कहा, “पापा क्या मै भी शादी के बाद घर ग्रहस्ती सम्भालूंगी? अगर किसी दिन मेरा खाना बनाने का मन नहीं हुआ तो? अगर किसी दिन मुझे आपकी तरह सुकून से एक कप चाय पीनी हो तो? क्या मै ये सब नयी कर पाऊँगी? मैंने तो कभी ऐसे नहीं देखा की माँ तो आराम से अखबार पढ़ रही है, और पापा सुबह सुबह सारे काम कर रहे है। जब मेरे घर में ही बराबरी नहीं है तो मै बाहर क्या उम्मीद रखू? ऐसा भी तो हो सकता है की दोनों मिलकर काम करे, ये जरुरी तो नहीं की घर के सारे काम का बेड़ा सिर्फ औरतो के मत्थे ही मढ़ दिया जाए।”

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अपनी बेटी की इन बातो का विवेक पे बहुत प्रभाव पड़ा और फिर विवेक ने बोला, बेटा अब तो बराबरी की शुरुआत अपने घर से ही करनी होगी। बेटा लेकिन ध्यान रखना, बराबरी की परिभाषा का पाठ पति पत्नी दोनों के लिए जरूरी है। जब पति सारा दिन मेहनत करके घर खर्च में सहयोग दे सकता है तो पत्नी को भी आत्मनिर्भर बनकर इसमें बराबरी करनी चाहिए। इसलिए तो, जीवनसाथी का तो मतलब ही यही होता है की एक दूसरे की सहयता करे , एक दूसरे का विश्वास करे और गाडी के दो पहियों की तरह साथ चले। बस अगले दिन से ही विवेक ने अपनी बेटी के लिए घर में बराबरी को बढ़ावा दिया और सारा काम खुद करके सुषमा को भी समझा। शुरुआत तो हमे भी अपने घर से ही करनी होगी।

सुषमा अपनी अखबार पढ़ने के बाद नहा धोकर तैयार होकर स्कूल के लिए निकल गयी। वो मैथ्स की टीचर है। और वही विवेक किचन समेट के, घर को व्यवस्थित करके जल्दी से तैयार होकर ऑफिस निकल गए। जल्दी जल्दी में नाश्ता करना तो विवेक को याद ही नहीं रहा और अपना लंच पैक करना भी वो भूल गए।

विवेक ऑफिस पहुंच के सुषमा को फोन करता है और बोलता है- ‘अरे यार! तुम एक दिन में इतना काम कैसे कर लेती हो? तुम्हे पता है, आज मुझे नाश्ता और लंच बाहर से करना पड़ा?, सच में औरतो से बराबरी करना तो बहुत मुश्किल काम है।

 सुषमा बोली, कोई बात नहीं आपको भी तो पता चला न की सुबह सुबह हमारे लिए कितना काम हो जाता है। और हॅसने लगती है, वैसे एक बात कहू, बहुत दिन बाद, मुझे आज चाय की चुस्किया लेने में जो सुकून मिला है न, वो में बयान नहीं कर सकती।

चलो, अच्छा है। चलो, अब मै रखता हूँ, ऑफिस में बहुत काम है, ये कहकर विवेक ने फोन काट दिया। 

जितना सपोर्ट एक औरत करती है  अपने पति को उतना सपोर्ट एक पति को भी करना चाहिए, ऐसे माहौल में बच्चे भी अपना काम स्वयं करना सीखते है।  न पति को अपने सपने की उड़ान भरने से रुकना होगा न पत्नी को अपने घर परिवार के लिए अपने सपनो की कुर्बानी देनी होगी। और दोनों मिलकर अपने बच्चो को अच्छी परवरिश दे पाएंगे।

ऐसे पति पत्नी समाज के लिए उदहारण बनते है| ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती।  और इसमें मुख्य भूमिका होती है परिवार की।  बराबरी बोलने से नहीं आएगी।  हर परिवार को इस बराबरी को अपनी सोच में डालना होग।  जब सोच में बराबरी आयेगी तभी सब संभव होगा। और हाँ, बराबरी का मतलब लड़ना नहीं, एक दूसरे का साथ देकर आगे बढ़ना भी होता है।