अफलातून के नाती-गृहलक्ष्मी की कहानी: Hindi Kahaniya
Aflatun ke Naati

Hindi Kahaniya: स्नेहा जब भी खाने में कुछ अच्छा व्यंजन बनाती, तो बच्चे और सास माँ(सुषमा) स्नेहा की तारीफ करते नहीं थकते।उस पर रवि(पति) का कहना होता,” अरे यह तो कुछ भी नहीं इससे अच्छा तो मैं बना लूं।”

इतना सुन बच्चें कहते,”वाह पापा यू आर ग्रेट, तो अबकी बार संडे के दिन पापा आप ही ब्रेकफास्ट में छोले भटूरे बनाना।”

रवि भी खुश होकर कहते,” हां बेटा क्यों नहीं, मैं तुम्हें छोले भटूरे बनाकर खिलाऊंगा , अरे उंगलियां चाटते रह जाओगे।” 

इतना कहने मात्र से बच्चे रवि को पप्पियां करने में कोई कसर नहीं छोड़ते।

यह रोज-रोज की बातें थीं, इन रोज-रोज की बातों से स्नेहा को चिढ़न होने लगी, करना धरना तो कुछ है नहीं रवि को…,बस डींगे हांकनी हैं।

“कहावत है पति के दिल का रास्ता पेट से होकर गुजरता है, पता नहीं कैसा पेट है इनका दो बोल तारीफ के नहीं मेरे लिए।”

शनिवार के दिन सुषमा जी ने स्नेहा से कहा,”बेटी चने भिगो दें कल रवि छोले भटूरे बनाएगा।”

इस पर स्नेहा ने कहा,”मैं क्यों बीच में टांग अड़ाऊं, रवि ने वादा किया है,रवि का काम है रवि जाने।” 

सास माँ चुप हो गई, इतना जरूर कहा,अरे बेटी…,ना समझी की बातें हैं।

सास माँ की बात सुनकर स्नेहा ने चुप-चाप चने भिगो दिए। अगले दिन सुबह के समय स्नेहा ने अपने लिए चाय बनाई और टी-वी के सामने सोफे पर बैठी चाय पीने लगी। 

चाय पी तो रही थी लेकिन मन ही मन बड़ाबडा भी रही थी…,कि अभी तक सोए पड़े हैं…जनाब, देखती हूं छोले भटूरे का मुहूर्त कब निकलेगा?

बच्चे(पिंकी और नमन) रात से ही अगले दिन के इंतजार में थे, कि कल हम छोले भटूरे खाएंगे।

“जनाब को कोई चिंता ही नहीं, कि उन्होने बच्चों से छोले  भटूरों का वादा किया है।”

यह सब देखते हुए,स्नेहा ने रसोई में जाकर कुछ -तैयारी कर दी थी, कि बच्चे उठते ही छोले भटूरे खाना चाहेंगे, एक दम से कैसे मैनेज होगा?

सुषमा जी ने देखा रवि बेटा सोया हुआ है,यह सोच रवि को उठाने चली गई,और छोले भटूरे का वादा याद दिलाया।

रवि झुंझलाकर बोला,”ओफ्फो माँ सोने दो…ना, एक इतवार का दिन ही तो मिलता है…आराम से सोने के लिए…,कौन सी ऐसी आफत आ गई? बच्चों को छोले- भटूरे ही तो खाने हैं,स्नेहा से कह दो…वह बना लेगी।”

बच्चों से तुमने वादा किया था…बेटा..,मां सुषमा ने  याद दिलाया !!

रवि ने सुनी अनसुनी कर सिर दूसरी ओर घुमा लिया।

स्नेहा ने सब सुन लिया था,मन ही मन बड़बड़ाई ,कि कहते हैं,”छोले भटूरे बनाऊंगा, उंगली चाटते रह जाओगे, नापते हैं सौ गज, फाड़ते हैं एक गज।”

अजी एक गज भी किसके?

स्नेहा किलसती हुई, किचन में छोले भटूरे बनाने चली गई।

बच्चों ने सोकर उठने के बाद, ब्रश किया…बाहर आकर  देखा, पापा तो कहीं नजर नहीं आ रहे, और मम्मी किचन में लगी हुई हैं। 

बच्चों ने जानना चाहा, मम्मी छोले भटूरे का क्या हुआ?

स्नेहा कह बैठी..,जाओ ..जाकर पूछों अपने “ग्रेट पापा” से !!

मैं तो कर ही रही हूँ।”थोथा चना बाजे घना।”

बच्चों ने इधर-उधर नजर की तो पता चला कि “पापा जान” तो सोए हुए हैं।

पिंकी और नमन अपना सा मुंह लेकर रह गए…,जाकर देखा… दादी “सोए पापा”को उठाने में लगी हैं, और पापा हैं कि उठने का नाम नहीं ले रहें हैं।

बच्चों ने सोचा मम्मी का गुस्सा तो लाजमी है, बच्चे मम्मी के पास आए और  कहा,” मम्मी जब नाश्ता बन जाए तो टेबल पर लगा देना ,हमें बहुत  जोरों की भूख लगी है।”

 स्नेहा ने नाश्ता तैयार कर टेबल पर लगा दिया।

मम्मी आप भी आओ ना…हमारे साथ !!

हां बेटा, मैं भी आ जाऊँगी, पहले दादी मां को तो बुला लो! 

बच्चे मां से बात कर ही रहे थे ,कि रवि महाश्य उठ आए और यह देख..,टेबल पर नाश्ता लगा है, और बच्चे मां का इंतजार कर रहे हैं।

रवि कह बैठे…,वाह बेटा! ! अकेले-अकेले ..वो वादा भूल गए जो हमने किया था,” पूरे सप्ताह में सिर्फ रविवार का दिन ही तो मिलता है, हम सब का इकट्ठे  बैठ कर गपशप करते हुए, डायनिंग टेबल पर सब के साथ खाने का..,और छुट्टी के दिन हम सब कैसे एन्जॉय करेगें ,यह डिस्कस करने का। ऐसा करने से आपस में प्यार बढ़ेगा और एक दूसरे को जानने और समझने का मौका मिलेगा। 

कहा था या नहीं?

बच्चों ने कहा,” हाँ पापा वो तो ठीक है. ..,पहले यह बताओ कि आपने जो वादा किया था..आपके उस वादे का क्या हुआ?”

रवि होठ विचका कर बच्चों की शक्ल देखने लगे! !

और बच्चो ने पापा से इतना कह मम्मी की ओर मुखातिब हो कर कहा,”वाह मम्मी छोले भटूरों में मजा आ गया,आप के हाथों में तो जादू है… मम्मी डार्लिंग।”

इतना सुनते ही रवि बोले,”अरे यह तो कुछ भी नहीं, इससे अच्छा तो … बात पूरी भी नहीं हुई..,स्नेहा से नजरें मिली और शब्द मुंह में ही रह गए।”

इसी बीच माँ(सुषमा) बोल पड़ी…बस… बहुत हो गया, “अपने मुंह मियां मिट्ठू” बनना छोड़ दो अब…”अफलातून के नाती।” 

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