मृत्यु एक अंतिम सत्य है-गृहलक्ष्मी की कहानी: Death Story
Mrityu Ek Antim Satya Hai

Death Story: रवि शास्त्री आज बैठे—बैठे अपने पिछले जीवन में जैसे घूम रहें हो
दिन ढल के आसमान से विदा लेकर रात्रि के द्वार पर दस्तक दे रहा था।
रात दिन दोनों के बीच शाम की सुंदर बेला अधीर हो कर मिलन के पल की प्रतीक्षा को निहार रही थी । शहर की सड़कों पर लोग अपने घरों को उतावलेपन के साथ ले जाने का जी तोड़ प्रयास कर रहीं थी । उद्योगपति से लेकर मजदूर तक हर कोई अपने घर जल्दी से जल्दी पहुँच जाना चाहते थे। किसी को अपने बच्चों को खिलौनें देने की जल्दी थी तो किसी को सुकून भरे आँगन में सबके साथ बैठकर खाना खाने की आतुरता थी।  रवि शास्त्री जी सड़क किनारे पर एक पड़ी बैंच पर बैककर यही सब देख रहे थे,जो कि उनकी दिनचर्या का अभिन्न हिस्सा बन चुका था !
अब तो मन ऊब जाए तो रोज शाम यही रोड के किनारे आ जाते और बैठे बैठे बहुत रात हो जाती पता ही नही चलता ,, खुशी से यहाँ विरानों की तरह तो कोई भी नही बैठता बस रवि शास्त्री भी अपना अकेलेपन की वजह से बैठा करते थे और उनके साथ उनकी बग़ल में बैठा हुआ उनका हमराह बना टॉमी जो कि एक  कुत्ते का बच्चा था रोज ही उनका साथ बखूबी निभा रहा था। वह कहने को तो एक  कुत्ता था। लेकिन रवि शास्त्री जी उसे अपने मन के सभी दुखदर्द बताया करते थे, कहने सुनने में तो ये बड़ा ही अटपटा लगता है। लेकिन प्रकृति के मौन मुखर अभिव्यक्ति से कहीं अधिक संजीदगी लिए होते हैं। एक ऐसा ही रिश्ता इन दोनों के बीच विकसित हो चुका था। 
शाम के पौने पाँच बजे से बैठे बैठे बातें करते और अपने जीवन के बीते हुए पलों को सोचते विचारते कब रात के ग्यारह बज गये पता ही नहीं चला, तभी रात की गश्त करते हुये पुलिस वाले ने आकर आवाज़ दी 
“बाबूजी ग्यारह बज गये हैं घर नहीं जाना क्या”?
हृदय कोई उत्तर देता भी तो क्या देता बस यही कह पाये “”बस अभी ही जा रहा हूँ ,यहाँ ठंडक बहुत है तो मन रम गया””!  इतना कहकर रवि शास्त्री जी बेमन से उठे और थके क़दमों से घर की ओर चल पड़े । कई विचारों ने फिर उनको घेर लिया। सोच रहे थे
अपने बीते हुए कल के बारे में कि वो भी क्या जमाना था जब जरा सी देर होने पर पत्नी का फोन आ जाता था । बेटा कार लेकर ऑफ़िस आकर कई बातें सुनाकर झट से घर ले जाया करता था। बेटे चिंता करने लगते, पापा कहाँ देर लगा दी आपने हम लोग कितना परेसान थे,, लेकिन देखते ही देखते सब कुछ कहाँ खो गया । पता ही नहीं चला! 

रवि शास्त्री जी शहर के बड़े उद्योगपति थे। शान शौकत नाम शोहरत सभी चीजें परमात्मा ने दिलखोल कर दिया था। दोनों बेटों को विदेश पढ़ने भेजा था। दोनों ने अपनी पसंद की लड़की से वहीं विवाह कर के पहली चोट रवि शास्त्री जी को उपहार में दी थी। धीरे धीरे समय गुजरने लगा।  दोनों बेटे अभी और तनु जिनका नामकरण पुरोहित  विधि विधान से करवाया था। अब पूर्णतया बदल चुकें हैं। दोनों बहू किट्टी पार्टियों में लीन रहती हैं। अपने पतियों से कहकर पूरी ज़ायदाद नाम पर करा ली हैं। हँसते खेलते घर को नजर लग चुकी थी। अब तो हर रोज ही लडाई होने लगी थी।  रवि शास्त्री जी और उनकी पत्नी एक एक पैसों के लिए तो परेशान थे साथ ही सबसे बड़ी बात थी कि मानसिक दुःख सहने की ताकत अब नहीं बची थी। घर की स्थिति को देखते देखते रवि शास्त्री जी की जीवन संगनी उनका साथ छोड़कर चली गई थी।  अब वो बिल्कुल अकेले हो चुके थे, जहाँ उनके नौकर पहले  रहते थे अब उस कमरे में अपने पुराने नौकर बिनाइ के साथ रह रहे थे। 
इतनी सारी बातें मन में भारी बोझ की तरह लदी थी और बढ़ते कदमों से यही सब सोचते- सोचते कब घर आ गया कि पता ही नहीं चला। उनका कुत्ते का बच्चा भी भौंकर कह रहा था दोस्त कल मिलते हैं। दरवाजे पर बिनाइ उनका नौकर खड़े होकर राह देख रहा था । 
 “””आ गये बाबूजी”” कहाँ थे कब से राह ताक रहा हूँ
 “”कहाँ जाता ….??? जाता भी तो??
 बिनाइ इसके आगे कुछ नहीं बोल पाया।  फिर पानी देते हुए विनम्र स्वर में बोला “”बाबूजी खाना लगा दिया है आज तो खा ही लिजिये दो दिन से कुछ नहीं खाया है आपने””
“बिनाइ  खाना तो जीने के लिए खाया जाता है।और किसी मकसद के लिये जिया जाता है । अब न कोई मक़सद है और न ही कोई जीवन,तो फिर खाना का क्या??””
“”बाबूजी हम भी नहीं खाये हैं ;आप खाओगे तो ही हम भी खायेंगे “”
यह सुनते ही रवि शास्त्री जी की आँखें डबडबा गई । दोनों बैठकर भोजन करने लगे, रवि शास्त्री जी बोले “” बेटों को बहुत दिनों से देखा नहीं बड़ा जी करता है उनसे बात करने का”” उनको देखने का जाने क्यों इतना मोह हो रहा है उनके लिए
“”बाबूजी ऐसी संतान किस काम की जिसे अपने बाप की महीनों से कोई खबर तक नहीं है । इन से अच्छा तो वो टॉमी कुत्ता है जो दोस्ती निभा रहा है””।
“”बिनाइ अब सोचता हूँ कि तुम अपने गाँव चले जाओ और में अपने दोस्तों के पास वृद्धाश्रम चला जाता हूँ””।
बिनाइ रो पड़ा “”बाबूजी ऐसा तो ना कहिये बचपन से आपके यहाँ हूँ छोटे बच्चा जब था तब से आपने मुझको सहारा दिया घर दिया खाने को भोजन और आपका मालकिन का प्यार भी अब तो जीना मरना सब आपके साथ होगा।आपने एक अनाथ को अपने पास इतने दिनों तक रखा और जीवन में सब कुछ दिया । ऐसे में आपको छोड़कर नहीं जाऊँगा। कल आपका चश्मा बनवाने मैं खुद चलूँगा । कल मेरी पगार मिल जाएगी””।
 यह सुनते ही रवि शास्त्री जी सिसक सिसक कर रो पड़े ।
बिनाइ को रोते हुये गले से लगकर बोले “”बेटा मेरा किया कुछ तो काम आया । मैं तुझे छोड़कर कहीं नहीं जा रहा हूँ । हम साथ में ही रहेंगे””।
बिनाइ ने बिस्तर लगा दिया । कुछ सोचते- सोचते रवि शास्त्री जी सो गए!