एक-दूजे के संग-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Grehlakshmi Story

Grehlakshmi Story: घर के बीचों – बीच बने आंगन में लगे हुए तुलसी के पौधे को पानी देते हुए सुमित्रा जी यह प्रार्थना कर रहीं थीं, कि इस घर में सदैव सुख, शांति और समृद्धि बनी रहे। घर की पहली मंजिल की बालकनी में कुर्सी पर बैठकर शिवराम जी अखबार को बड़ी मग्नता के साथ में पढ़ रहे थे और बार – बार अपनी पत्नी सुमित्रा जी को चाय के लिए आवाज लगा रहे थे। सुमित्रा जी आरती की थाली को घर के मंदिर में रखकर अपनी बड़ी बहू वर्षा जो रसोईघर में चाय और नाश्ता बना रही थी उससे चाय और नाश्ते की प्लेट को लेकर बालकनी में बैठे अपने पति शिवराम जी के हाथों से अखबार को छीनकर उनको देती हैं और कहती हैं – ” बस सुबह हुई नहीं कि आपका यह चाय का गीत चालू हो जाता है।

छोटा बेटा श्याम अपने कॉलेज जाने के लिए अपनी किताबों को अपने बैग में रख रहा था श्याम को कॉलेज खत्म करने के बाद आर्मी में भर्ती होना था अपने बड़े भाई दीपक की तरह इसलिए वह मन लगाकर पढ़ाई कर रहा था तभी मां की आवाज आती है “श्याम बेटा चाय नाश्ता करके ही कॉलेज जाना बिना चाय नाश्ता किए कॉलेज गए तो तुम सोच लेना बहुत डांट पड़ेगी”। श्याम कहता है -” हां ! मां मुझे मालूम है , मैं चाय नाश्ता करके ही कॉलेज जाऊंगा। आप चिंता ना करें”। श्याम चाय नाश्ता करके अपने माता – पिता और अपनी भाभी के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेकर अपने कॉलेज की ओर चल पड़ता है। मां सुमित्रा जी और पिता शिवराम जी दोनों घर के पास में एक मंदिर में भगवान के दर्शन करने के लिए चले जाते हैं। घर में काम करने वाले भोलू को वर्षा सब्जी मंडी से सब्जियां लाने के लिए भेज देती है।
वर्षा अपने कमरे में खिड़की के पास रखी कुर्सी पर बैठकर चाय नाश्ते की प्लेट को मेज पर रखकर दीवार पर लगी अपने पति दीपक की फोटो को एकचित्त होकर निहार रही थी। देखते ही देखते वह अपने कॉलेज के दिनों में खो जाती है,जब पहली बार दीपक से कॉलेज की कैंटीन में मिली थी, और पहली ही नजर में अपना दिल दे बैठी थी कुछ यही हाल दीपक का भी था वह भी वर्षा को पहली ही नजर में प्यार करने लगा था। वर्षा अपनी ग्रेजुएशन के अंतिम साल में थी और दीपक अपने पोस्ट ग्रेजुएशन के अंतिम साल में मगर दोनों अक्सर साथ में कभी कॉलेज की कैंटीन में,गार्डन में , तो किसी कॉफ़ी शॉप में देखे जाते थे। दोनों का प्यार पूरे कॉलेज में छा गया था। फ़िर एक दिन दोनों ने अपने प्यार को एक नाम देने का निश्चय किया। मगर एक वादा दोनों ने एक – दूसरे के साथ किया, कि दोनों हमेशा एक – दूसरे के सपनों का सम्मान करेगें। वर्षा ने अपने पिताजी को यह वादा किया था कि वह एक सरकारी टीचर बनकर उनका सपना पूरा करेगी तो दीपक ने अपने पिताजी को आर्मी में जनरल बनने का वादा किया था। दोनों ने एक – दूसरे को साक्षी मानकर गले लगाकर यह प्रतिज्ञा ली कि वह इस वादे का हमेशा ख्याल रखेंगे। दोनों परिवार राज़ी हो जाते हैं दोनों विवाह के बंधन में बंध जाते हैं मगर शादी के दो दिन बाद ही दीपक को आर्मी में ज्वॉइन होने का लेटर आ जाता है, अभी वर्षा की मेंहदी का रंग भी नहीं उतरा था।

तभी भोलू की आवाज आती है -“वर्षा भाभी सब्जियां लेकर आ गया हूं आप कहो तो धोकर रसोईघर में रख दूं”।
वर्षा अपने कमरे से बाहर आती है और गोलू से कहती है – “हां, तुम रख दो मैं अभी आती हूं”। वर्षा अपना चाय नाश्ता करके रसोईघर की ओर चल पड़ती है ,तभी उसे घर के दरवाजे पर डाकिया खड़ा हुआ दिखाई देता है , वर्षा डाकिए से कहती है – “अरे ! आप रुक क्यों गए ? आइए अंदर” । डाकिया वर्षा से मुस्कुराते हुए कहता है – “अरे मास्टरनी जी ,इसकी कोई जरूरत नहीं है बस यह दो लेटर आए हैं आपके और दीपक बाबू के नाम । अच्छा अब मैं चलता हूं , राम , राम”। वर्षा डाकिए से राम, राम करके अपने कमरे में आ जाती है और लेटर खोलती है,पहला लेटर उसके प्रिंसिपल के पद पर प्रोमोशन का होता है और दूसरा दीपक की छुट्टियां कैंसल होने का। वर्षा एक गहरी सांस लेकर मेज पर दोनों लेटर रखकर खिड़की पर खड़े होकर उस रास्ते को देखती रहती है जिस पर चलकर जाते हुए उसने दीपक को आखिरी बार देखा था। वर्षा दीपक से बातें तो करना चाहती है मगर जो दोनों ने मिलकर संग प्रतिज्ञा ली थी ,जिसकी वजह से दीपक ने अपने नाराज माता – पिता को मेरे पिताजी के सपने को पूरा करवाने के लिए उनको राजी किया था। तो क्या मैं स्वार्थी होकर अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ दूं। नहीं मैं ऐसा नहीं कर सकती, मैं इंतजार करूंगी। ऐसा निश्चय करके वर्षा अपने स्कूल के लिए निकल जाती है।
शाम को स्कूल से लौटकर वर्षा जब घर आती है, तो वह माता-पिता को बरामदे में उसके आने के इंतजार में बैठे हुए पाती है। पिताजी वर्षा को कुर्सी पर बैठने का इशारा करते हैं और उससे पूछते हैं – तुमने हमें आज आए लेटर के बारे में क्यों नहीं बताया ? इस समय तुम ही हमारी बहु और बेटा हो क्या तुम्हें हम रोकते जाने से ?दीपक आर्मी में है और …।
तभी दरवाजे पर दस्तक होती है ,भोलू दरवाजा खोलता है, तभी एक व्यक्ति की परछाई सामने आती है सुमित्रा जी पूछती हैं – कौन आया है भोलू ? सभी लोग दरवाजे की ओर चल देते हैं। सभी के चेहरे खिल उठते हैं और आंखों से आंसू बहने लगते हैं।
मगर सबसे ज्यादा खुशी वर्षा के चेहरे पर आंसू वर्षा की आंखों से बहते हैं, कुछ ही पलों बाद वर्षा दीपक से कसकर गले लगकर रोने लगती है, मानो कि अब वह दीपक को कहीं भी जानें नहीं देना चाहती हो। दीपक भी वर्षा से कुछ इसी प्रकार कसकर गले लग जाता है मानो कि वह उसे कभी भी छोड़कर नहीं जाना चाहता हो।