Motivational Story: पंडित दीनदयाल जी राधे गांव के एक साधारण से स्कूल के शिक्षक थे। उनकी तीन बेटियां थीं ।बेटे की चाह में एक के बाद एक बेटियां होती चलीं गईं। एक साधारण सी तनख्वाह और तीन-तीन बेटियां !उनका कलेजा छलनी हो जाता था मगर होनी को कौन रोक सकता था! ऊपर से घर परिवार के लोगों के तानें सुन सुनकर दीनदयाल जी ने यह तय कर लिया था कि वह अपनी तीनों बेटियों को अपनी हैसियत से बढ़कर पढ़ाएंगे लिखाएंगे और उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने देंगे। बगैर पैसे तो किसी की शादी होने वाली नहीं और उनकी हैसियत नहीं कि वह दान दक्षिणा दे सकें।
सुमित्रा तीनों बहनों में सबसे बड़ी थी। राधा और तूलिका से लगभग 5 साल बड़ी।पढ़ने में भी वह काफी अच्छी थी।
स्कूल से स्कॉलरशिप भी मिलता था। एक ब्राह्मण होने की नाते वह अपनी बिटिया को वेद रामायण आदि भी पढ़ाया करते और समझाया करते थे।जैसे-जैसे सुमित्रा बड़ी हो रही थी वह अपने पिता की हैसियत और घर की सच्चाई से वाकिफ हो रही थी।
उसे समझ आ रहा था कि तीनों बहनें अपने माता-पिता के ऊपर कितनी बड़ी बोझ हैं। ऊपर से दादी, चाचा-चाची और आस पड़ोस सभी लोगों के तानें भरी बातें उसके दिल को छलनी छलनी कर जाया करती थी।
अपने स्कूल के समय ही उसने तय कर लिया था कि वह बहुत ही मेहनत कर मन लगाकर पढ़ाई करेगी और अपने पैरों पर खड़ी होगी।अपने माता-पिता का सहारा बनेगी।
लगातार स्कॉलरशिप और मेडल मिलने के कारण दीनदयाल जी सुमित्रा से बहुत ही ज्यादा खुश रहते थे। वह चाहते थे कि सुमित्रा पढ़ाई करे और अपनी जिंदगी में कामयाबी हासिल करे।
लेकिन भगवान की लीला का क्या कहना! एक दिन स्कूल से लौटते हुए उन्हे लू लग गया और फिर डिहाइड्रेशन के कारण हार्ट अटैक के कारण उनकी मृत्यु हो गई।
अब दीनदयाल जी का पूरा परिवार बिखर गया था। उस समय सुमित्रा 12वीं में पढ़ रही थी। उसके दोनों बहनें उससे काफी छोटी थी।
पिता के अक्समात मृत्यु के कारण उसके पढ़ने का सपना रह गया। अब उसके आगे आने वाला भविष्य था।उसे अपना परिवार संभालना था।
उसने अपनी मां और दोनों बहनों को देखकर यह अपने आंसू पोंछ लिए।
सरकारी सहायता से उसे पार्ट टाइम नौकरी मिल गई और साथ में स्वतंत्र रूप से आगे की पढ़ाई करने की छूट भी मिल गई। अब वह पढ़ भी रही थी और साथ में नौकरी भी कर रही थी।
उसी की नौकरी का आसरा था कि घर चल रहा था। उसकी दोनों बहनें पढ़ रही थीं।
देखते-देखते समय बीतता चला गया। सुमित्रा की पढ़ाई पूरी हो गई।अब वह प्रशासनिक और सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन देने लगी।इसी बीच एक बैंक में ऊंची तन्खाह में उसकी नौकरी लग गई थी।
वह बहुत खुश थी ।
“मां, अब पापा का सपना पूरा होगा।वह जो मेरे लिए सपने देखे थे वह तूलिका और राधा पूरी करेगी।”
“नहीं बिटिया उन दोनों की अपनी किस्मत है। तेरी नौकरी लग गई है। तू अपनी नौकरी से अपने लिए दहेज जमा कर और अपने घर चली जा। वे दोनों अपनी पढ़ाई करेंगी और अपना भविष्य खुद बनाएंगी ।
सिर्फ तुम्हारे पिता की छत्रछाया तुम्हारे सिर से थोड़े ही हटा है, हम सबका हटा है।
त्याग करना सिर्फ तुम्हारा अधिकार थोड़े ही है सुमित्रा, हम सब का है।’
“ नहीं मां मैं अभी शादी नहीं करूंगी। जब तक मेरी दोनों बहने अपनी जिंदगी में सेटल नहीं हो जाएंगी तब तक मैं किसी के साथ भी नहीं निभा पाऊंगी मां इसलिए मुझे शादी के लिए प्लीज दबाव मत डालो ।”
समय बीता, राधा ने भी बीए के बाद कई सरकारी परीक्षाओं के लिए आवेदन दिया और क्वालीफाई कर गई। वह भी एक अच्छी सरकारी नौकरी में आ गई थी।
“दीदी, अब तुम्हारी जिम्मेदारी मेरी। अब आप फ्री हो।”
“नहीं रे, जिम्मेदारी मेरी है।मुझे ही उठाने दो।” सुमित्रा मुस्कुरा दी।
राधा भले ही उससे 3 साल छोटी थी। मगर थी उसकी प्रतिछाया ।
सुमित्रा जो सोचती थी वह भी राधा को पता चल जाता था।
राधा को पता था कि पंडित शुभानचंद्र जी का बड़ा बेटा नितिन और सुमित्रा दोनों एक दूसरे को पसंद करते थे मगर सुमित्रा दीदी ने घर के जिम्मेदारी के कारण नितिन को मना कर रखा था।
जैसे ही राधा की नौकरी लग गई उसने नितिन से बात कर लिया। नितिन तो तैयार था ही,उसके घर वाले भी तैयार थे।
कई दिनों से ऑफिस में ओवरटाइम के कारण सुमित्रा घर में बात नहीं कर पा रही थी। उसके ऑफिस में एक नया लड़का जतिन ज्वाइन किया था। जब से वह ज्वाइन किया था तब से सुमित्रा की नजर उसपर ही पड़ी हुई थी राधा के लिए वह उससे बात करना चाहती थी।
उस दिन सुमित्रा का जन्मदिन था। वह ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रही थी राधा ने उसे कहा” दीदी शाम को पार्टी सनशाइन होटल में रख लें।”
“हां बिल्कुल पर मुझे रिटर्न गिफ्ट क्या मिलेगा?”
“ मिलेगा ना एक बहुत बड़ा सरप्राइज।”
अच्छा अगर मुझे नहीं पसंद आया तुम्हारा सरप्राइज तो?”
“ नहीं दीदी तुम्हें जरूर पसंद आएगा।”
“ ठीक है मैं ऑफिस के लिए निकलती हूं शाम को मिलते हैं।”
बाहर सावित्री देवी उसका इंतजार कर रही थी।
“बेटी जल्दी से अपना लंच ले ले नहीं तो भूखे रह जाएगी।”उन्होंने लंच सुमित्रा के हाथ में पकड़ाते हुए कहा।
“कई दिनों से आपसे कुछ बात करना था राधा के बारे में ।राधा अब नौकरी करने लगी है। समय रहते ही उसकी शादी कर देनी चाहिए।”
“यह तो तूने ठीक कहा।”
“ मैं ऑफिस में से बात कर लिया है,जन्म कुंडली भी दिखा दिया है। उन लोगों ने राधा का फोटो देखा है। आज होटल में मैं उसे लेकर आती हूं। इसी बहाने वह राधा को देख भी लगा। अगर पसंद आए तो शादी भी पक्की हो जाएगी।”
सावित्री देवी मुस्कुरा दी।
“अच्छा कह रही है तू ,लड़कियां अपने घर चली जाएं तो ही अच्छा है।”
“ मगर मां मैं आपके साथ ही रहूंगी।”
“ हां ठीक है मैं तुझे छोड़ने वाली भी नहीं। अब चल जल्दी निकल। नहीं तो देर हो जाएगी तुझे।”
सुमित्रा जल्दी से अपना लंच बॉक्स लेकर निकल गई।
उसने अपने ऑफिस से ही होटल में डिनर बुक कर लिया था।
अपने कलिग्स के साथ उसने जतिन को भी बुला लिया था।
राधा ने भी नितिन को डिनर के लिए बुलाया था।
इधर सुमित्रा के ऑफिस के कॉलीग और उधर राधा नितिन और उसके परिवार को लेकर पहुंच गई ।
नितिन को देखते ही सुमित्रा आश्चर्यचकित हो गई।
“आप यहां?”
“आपकी बहन ने मुझे इनवाइट किया है !”नितिन मुस्कुराते हुए बोला।
“दीदी यही है सरप्राइज गिफ्ट मैं आपके लिए एक लड़का तय कर रखा है !अच्छा है ना?आपको पसंद है ना?”
सुमित्रा मुस्कुरा दी ।”मैंने भी तुम्हारे लिए कुछ रखा है।”
उसने जतिन से मिलवाते हुए कहा “यह राधा है और यह जतिन है। मैंने तुम्हारे लिए लड़का देखा है।अब तुम दोनों देखकर बताओ बातचीत कर लो और देखकर बताओ कि तुम्हें पसंद है या नहीं ।”
जतिन भी एक लंबा पतला दुबला सुंदर सुदर्शन युवक था और उसकी नौकरी भी अच्छी थी।परिवार भी बहुत अच्छा था।उन लोगों के साथ सुमित्रा की बहुत अच्छी बनती भी थी और साथ ही उन लोगों को राधा बहुत पसंद आ गई थी।
नितिन अब तक सुमित्रा से प्यार करता था। सुमित्रा ने शादी के लिए हामी भर दी लेकिन वह अपनी मां को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी।
उसने से कहा “नितिन, मैं अपनी मां को नहीं छोड़ सकती ।”
“मैं भी नहीं छोड़ सकता मां हमारे साथ ही रहेंगी ।”
“और मैं कहां रहूंगी? मेरे बारे में कोई नहीं सोचता?”
“तुम्हारे लिए बस एक ही रास्ता बचा है कि तुम कोई प्रशासनिक परीक्षा उत्तीर्ण कर लो फिर हम सब तुम्हारे साथ ही रहेंगे ।”नितिन कहकहे लगाकर कहा।
सब लोग खुशी से हंस पड़े। बहुत दिनों बाद घर में हंसी खुशी का माहौल बन गया था।
सुमित्रा ने अपनी दोनों बहनों को अपने गले से लगा लिया।
“कहीं हमारी खुशियों को किसी की नजर न लग जाए!”
