Balman Story
Bharat Katha Mala

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

मनु को संगीत का बहुत शौक था। एक दिन उसने एक कलाकार को दूरदर्शन पर पानी से भरी कटोरियों पर लंबी सिलाईनुमा डंडियों के साथ चोट करते हुए संगीत बजाते हुए देखा तो बहुत प्रभावित हुआ। उसके पास वाद्ययंत्र तो नहीं थे पर घर के ड्राइंग रूम में रखी लकड़ी की मेज पर ढोलक बजाना, अपनी सादी-सी गिटार से धुने निकालना, हाथों की ताली बजाकर व मुंह से आवाज़ निकालकर धुन तैयार करना आदि उसके शौक थे। या यूं कहें कि ये सब उसके वाद्ययंत्र थे। वो एक जिज्ञासु बालक था। हर काम को करने की ललक उसमें कूट-कूट कर भरी थी। दूरदर्शन पर पानी की कटोरियों वाला यंत्र देखकर उसने भी घर के बर्तनों से कटोरियाँ निकाल ली। किसी कटोरी में कम, किसी में आधा, व किसी को पूरा पानी भर कर रख लिया। बजाने के लिए दो चम्मच ले लिए और हो गया शुरू। सच मे, हर कटोरी की धुन का स्वर अलग-अलग और मीठा था। मनु उन्हें बजा-बजाकर धुने निकाल रहा था। उसे धुने निकालते हुए बहुत आनंद आ रहा था। धुन बजाते-बजाते उसकी आंखें कब बंद हो गई पता ही नहीं चला। वो मस्ती से वाद्ययंत्र बजा रहा था।

रोज दोपहर का खाना खाकर दादी गहरी नींद में सो जाती थी और मां घर के कामकाज में लगी रहती। मनु स्कूल का काम करता और शाम को दादी संग मंदिर भी जाता।

“अरे ओ मनु, ये क्या शोर मचा रखा है। सोने क्यों नहीं देता। अभी-अभी आंख लगी थी” दादी ज़ोर से चिल्लाते हुए बाहर निकली। मनु उत्सुकता से अपनी कटोरियाँ दिखाता हुआ बोला, “देखो दादी कितना बढ़िया वाद्ययंत्र बनाया है और उसमें से कितनी सुंदर धुने निकल रही है।”

परन्तु दादी ने एक न सुनी। आव देखा न ताव सारी कटोरियाँ उठाकर उनका पानी फेंक दिया और कटोरियाँ माँजने को रख दी।

“कितनी बार समझाया है, बर्तन बजाना अच्छा नहीं होता। कल तक तू चाबियों के गुच्छे संग खेल रहा था मैंने बताया था न कि यह सब चीजें बजाने से घर में लड़ाई होती है। तुझे एक बार में समझ क्यों नहीं आता।” कहती हुई दादी, माँ पर भी बरस पड़ी,

“तू भी इसे मना नहीं करती बहू।” मां बेचारी क्या कहती। कुछ ना बोली।

“मां भी तो काम करते हुए कितना शोर करती है दादी। उसकी चूड़ियाँ कितनी जोर-जोर से आवाज करती है जब माँ घर में चलती है तो उसकी पाजेब के घुघरू कितनी जोर से बजते हैं। उसे तो तुम कुछ नहीं कहती। मुझे भी परीक्षा के दिनों में इन आवाज़ों से पढ़ने में परेशानी होती है।”

“अरे पगले, चूड़ियाँ, पाजेब तो सुहाग की निशानी होती हैं। घर में इनका बजना तो शुभ होता है।” दादी ने प्यार भरी नज़रों से मां की ओर देखा और मनु के गालों को पुचकारती हुई बोली।

“सुहाग की निशानी?

“ये सुहाग क्या होता है दादी?” मनु ने हैरान होकर पूछा।

“हर विवाहित स्त्री अपने पति की सलामती तथा उसे रिझाने के लिए श्रृंगार करती हैं। माथे पर बिंदिया, मांग में सिंदूर, हाथों में चूड़ियाँ, पाँव में पाजेब, व पैरों मे बिछिया पहनती है। उसे सुहागिन कहते हैं। यह सभी श्रृंगार की चीजें सुहाग की प्रतीक मानी जाती है।” दादी ने मनु को समझाया।

बालमन की कहानियां
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मनु यह सब सुन हैरान हुआ। कुछ सोचते हुए उसने दादी से पूछा, “दादी, इसका मतलब मेरी टीचर सुहागन नहीं है? वह तो यह सब चीजें नहीं पहनती। हाँ, कभी-कभी त्योहारों पर जब वो स्कूल आती है तो बहुत तैयार होकर आती है।”

“मुझे तुम्हारी बात समझ में नहीं आती दादी।”

“तुम दो तरह की बातें मत किया करो। शोर तो पाजेब और चूड़ियों का भी होता है। माँ बर्तन माजती है, तब भी होता है, बस मेरे कटोरियों संग खेलने से ही तुम परेशान हो गई। ऐसा क्यों?” दादी चुप रही।

मनु थोड़ा असमंजस में था। समझ नहीं पा रहा था कि दादी ऐसा क्यों कह रही है। वह दादी से नाराज़ था क्योंकि दादी ने उसके प्रश्नों के उत्तर सही नहीं दिए थे।

शाम होते-होते मंदिर जाने का समय हुआ तो प्रतिदिन की भांति मनु दादी के साथ मंदिर चला गया। मंदिर के बाहर बहुत से भिखारी बैठे होते हैं। कुछ लोग उन्हें प्रसाद के रूप में कुछ खाने को दे देते तो कुछ पैसे दे देते। दादी घर से रोज़ कुछ ना कुछ बनाकर लाती। पंडित जी से कह भगवान को भोग लगवाती। माथा टेकती और मनु को भी हाथ जोड़ प्रार्थना करना सिखाती और पंडित जी के पैर छुआ कर आशीर्वाद दिलवाती। फिर वे दोनों घर लौट आते। दादी मंदिर के बाहर बैठे भिखारियों को कभी कुछ ना देती।

एक बुढ़िया औरत, झुकी कमर, फटी धोती पहने घर पर भी कभी-कभी खाना मांगने आती। तो दादी उसे भी दुत्कार कर भगा देती। मनु का कोमल मन इस दृश्य को देख दुखी होता। वह उस बुढिया औरत को रोटी-सब्जी खाने को देना चाहता था। परंतु दादी के डर से ऐसा कर नहीं पाता था। एक दिन मनु ने हिम्मत कर पूछ ही लिया। “दादी, तुम रोज़ मंदिर में पत्थर से बनी मूर्ति के लिए खाने को कुछ ना कुछ लेकर जाती हो। उस मूर्ति को भगवान मान उसे भोग लगाती हो और मान लेती हो कि भगवान जी ने खाना खा लिया, जबकि ऐसा होता नहीं है। इस बेचारी भूखी बुढ़िया को भी कभी कुछ खाने को दे दिया करो।”

दादी मनु को झिड़कते हुए बोली, ऐसा नहीं कहते बेटा। ईश्वर तो सर्वज्ञानी हैं। वो सबकी भावना समझते हैं। जो जिस भावना से उनकी प्रार्थना करता है या कुछ अर्पण करता है, वो स्वीकारते हैं।”

“पर दादी, ईश्वर को ये भी तो पता है ना कि वो बूढ़ी अम्मा भूखी है। तुम उसे रोटी क्यों नहीं देतीं?” दादी के पास कोई उत्तर नहीं था। वो चुप रही।

रात भर मनु करवटें बदलता रहा। रह-रहकर भूखी बुढ़िया का चेहरा उसकी आँखों के सामने घूम जाता था। वह समझ नहीं पा रहा था कि दादी भगवान जी के लिए नाना प्रकार के व्यंजन बना कर ले जाती है परंतु उस भूखी बुढ़िया को पेट भरने को खाना क्यों नहीं देती?

– मां की चूड़ियां व पाजेब का शोर दादी को परेशान क्यों नहीं करता?

– दादी मेरा धुन निकालने का शोर बर्दाश्त क्यों नहीं कर पाती?

– सुहाग क्या होता है?

बहुत से ऐसे प्रश्न थे जिनके उत्तर मनु को उसकी दादी ने नहीं दिए। शायद दादी सोचती है कि बच्चा है, धीरे-धीरे समझ जाएगा। वो बाल मन में उठ रही विभिन्न प्रकार की जिज्ञासाओं से अनभिज्ञ थी।

रात को सभी चैन की नींद सो रहे थे परन्तु मनु अपने मन में उठ रहे सवालों के उत्तर ना मिल पाने से बहुत बेचैन था। बहुत देर तक यूँ ही करवटें बदलता रहा। फिर ये सोच कर कि सुबह स्कूल टीचर से सभी सवालों के जवाब जानेगा। संतुष्ट हो उसने सोने के लिए करवट बदल आंखें मूंद लीं क्योंकि वो जानता था कि उसकी स्कूल टीचर उसे बड़े प्यार से इन सभी सवालों के जवाब दे देंगी।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’

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