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विडंबना – गृहलक्ष्मी कहानियां

ये एक स्त्री के लिए विडंबना ही तो है कि घर-बाहर हर जगह उसका अपना ही वजूद सुरक्षित नहीं। नरपिशाचों से खुद को बचाते हुए लक्ष्मी का भाग्य भी ऐसी ही परिस्थितियों से गुज़र रहा था।

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इतिश्री – गृहलक्ष्मी कहानियां

प्रसव के दौरान देवरानी पलक की मौत ने मुझे भीतर तक झकझोर दिया, उसकी उम्र ही क्या थी? मौत उम्र नहीं देखती, उसे जब आना होता वह आती है। मन को समझाएं हुए मैं उसकी नवजात बेटी को कमरे में सुलाने गयी तो वहां ताई सास अपनी बहू मीना को पाठ पढ़ा रही थीं। ‘मीना’ तू अपने मायके खबर कर दे। तेरे घर वाले सांत्वना देने आ जाएंगे, फिर मौका देखकर तेरी बहन रीना के रिश्ते की बात पल्लव से चला देंगे। बच्चों की खातिर शादी के लिए पल्लव मान ही जायेगा।

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अनुभूति प्यार की – भाग 2 गृहलक्ष्मी कहानियां

उधर सुमित, आफिस में सिगरेट पर सिगरेट फूंके जा रहा था। काम पर कन्संट्रेट नही कर पा रहा था। वह शाम तक एक निर्णय पर पहुंचा। वह ऑफिस के काम से फुर्सत निकालकर ,शहर के एक नामी काउंसलर से प्रॉब्लम शेयर करने गया ।

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पाप का ताप- गृहलक्ष्मी कहानियां

 सुबह लगभग साढ़े नौ बजे शिवानी आफिस पहुँची। उसने अपना हैंडबैग टेबल पर रखा ही था कि:-  मैडम, आपको मैनेजर साहब ने बुलाया है, अभी”चपरासी ने शिवानी को आकर संदेश दिया।  ठीक है तुम जाओ”कह कर शिवानी कम्पनी के मैनेजर ‘गजेन्द्र सिन्हा’ के केबिन में दाखिल हुई।  अरे आओ शिवानी क्या बात है? आज तो […]

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मुन्ने की वापसी – गृहलक्ष्मी कहानियां

पहले-पहल राइचरण जब मालिक के यहाँ नौकरी करने आया, तब उसकी उम्र बारह वर्ष की थी। जैसोर ज़िले में उसका घर था। लंबे बाल, बड़ी-बड़ी आँखें, साँवला, चिकना और छरहरा। जात से कायस्थ। उसके मालिक भी कायस्थ थे। मालिक के एक साल के बच्चे की देखभाल और पालन-पोषण में सहायता करना ही उसका प्रधान कर्त्तव्य था।

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जरिया – गृहलक्ष्मी कहानियां

आखिर नंबर घुमाते ही कान चोंगे से सट जाते हैं । घंटी बज रही है । ‘हलो’ भी होने लगी । निगम ‘हलो’ को बहुत खींचते हैं…मगर प्रत्युत्तर में वह कुछ खींचती-सी खामोश हो आई । यूं…यूं मजा नहीं आएगा । फोन उसके चेहरे पर थिरकते इंद्रधनुष को अभिव्यक्त नहीं कर पाएगा । उसकी उत्तेजक खुशी मात्र सूचना बनकर रह जाएगी ।

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भीड़ साक्षी है- गृहलक्ष्मी कहानियां

……अचानक अस्पताल में हो-हंगामा मच गया, ‘क्या हुआ, क्या हुआ?’….कहते हुये लोग ‘अपातकालीन कक्ष’ की ओर भागने लगे। तीन बच्चे, एक महिला व एक पुरुष बुरी तरह छटपटा रहे थे। नीचे जमीन में पड़े वे इतने छटपटा रहे थे कि लगता था अब प्राण छोड़ें और तब प्राण छोड़ें।

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अपनेपन की महक – गृहलक्ष्मी लघुकथा

सोमेश ने घर में घुसते ही सभी को आवाज लगाई ,”चलो सभी ,सुगंधा (सोमेश की पत्नी ) नितिन ( बेटा ) नीति (बेटी) जल्दी इधर आ जाओ । नए घर का नक्शा बनकर आ गया है, जिसको जो भी चेंज कराने हो अभी बता देना, एक बार नक्शा फाइनल हो गया तो फिर कुछ नहीं हो सकता। ”

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सुभा – गृहलक्ष्मी कहानियां

जब कन्या का नाम सुभाषिणी रखा गया, तब कौन जानता था कि वह गूँगी होगी। उसकी दोनों बड़ी बहनों का नाम सुकेशिनी और सुहासिनी रखा गया था, अतः मेल के अनुरोध पर उसके पिता ने छोटी कन्या का नाम सुभाषिणी रखा। अब सब उसे संक्षेप में सुभा कहते।

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चोरी का धन – गृहलक्ष्मी कहानियां

महाकाव्य के युग में स्त्री को पौरुष के बल पर प्राप्त किया जाता था, जो अधिकारी होते वही रमणी-रत्न प्राप्त करते। मैंने कापुरुषता के द्वारा प्राप्त किया, यह बात जानने में मेरी पत्नी को विलंब हुआ। किन्तु, विवाह के बाद मैंने साधना की; जिसे धोखा देकर चोरी से पाया, उसका मूल्य प्रतिदिन चुकाया है।

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