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क्या नहीं हो सकता – गृहलक्ष्मी कहानियां

उसकी निगाह मुझ पर आकर टिक गई तो मुझे लगा कि वह मुझे कुछ पहिचानने की कोशिश कर रहा है। तभी उसने दूर से नाम लेकर मुझे आवाज लगाई और मेरी ओर बढ़ने लगा। मुझे भी यह चेहरा कुछ जाना पहचाना लग रहा था। मैंने दिमाग पर जोर डाला, ‘कौन हो सकता है यह आदमी? है भी निकट का, नाम लेकर साधिकार आवाज दी है उसने मुझे।’ किन्तु पुरजोर कोशिश करने के बाद भी मैं उसे पूरी तरह नहीं पहचान सका।

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दीदी – गृहलक्ष्मी कहानियां

किसी ग्रामवासिनी अभागिन के अन्यायी अत्याचारी पति के सब दुष्कृत्यों का सविस्तार वर्णन करते हुए पड़ोसिन तारा ने बड़े संक्षेप में अपनी राय प्रकट करते कहा‒ऐसे पति के मुँह में आग!

सुनकर जयगोपाल बाबू की पत्नी शशि ने बड़े कष्ट का अनुभव किया‒पति जाति के मुख में सिगार की आग छोड़ अन्य किसी दूसरी तरह की आग की किसी दशा में भी कामना करना स्त्री जाति को शोभा नहीं देता।

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राधा – गृहलक्ष्मी कहानियां

राधा का जवाब सुनते ही राघव का चेहरा तमतमा गया।

‘क्यों? आखिर क्यों ! तुम नहीं जानती तो और कौन जानता है?

‘कौन है वह जिससे मैं पूछने जाऊं? जब भी मैंने तुमसे पूछा, तुमने हमेशा ही उल्टा जवाब दिया।’

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चाय का चक्कर या चाय की महिमा – गृहलक्ष्मी कहानियां

चाय की चाह का जवाब कोई नहीं, हर सवाल का जवाब चाय होती है। इस देश के सभी वासी जानते हैं कि चाय की महिमा है अपरंपार। देखिए, इसी की एक बानगी।

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अतिथि – गृहलक्ष्मी कहानियां

काँठालिया के ज़मींदार मतिलाल बाबू सपरिवार नौका से अपने घर जा रहे थे। रास्ते में दोपहर के समय नदी किनारे की एक मंडी के पास नौका बाँधकर भोजन बनाने का आयोजन कर ही रहे थे कि इसी बीच एक ब्राह्मण बालक ने आकार पूछा, “बाबू, तुम लोग कहाँ जा रहे हो?” प्रश्नकर्ता की आयु पंद्रह-सोलह से अधिक न होगी।

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मद्धिम रोशनी – गृहलक्ष्मी कहानियां

नीम अंधेरी रात थी। मौन रात के सन्नाटे के बीच रह-रह कर फड़फड़ाते पत्तों की आवाज़ दिल में अजीब सी दहशत पैदा करने लगी थी। दूर कहीं बहुत दूर से आती कुत्तों की आवाज़ और दरवाजों के बंद होने व खुलने की चरमराहट वातावरण में मनहूसियत घोलने लगी थी। पिछले आधे घंटे से निधि इस सुनसान अंधेरी सड़क पर खड़ी विरेन का इंतज़ार कर रही थी। सामने की बिल्डिंग में अब भी कुछ घरों की बत्तियां जल रही थी।

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अढ़ाई गज की ओढ़नी – गृहलक्ष्मी कहानियां

डोंगे में लबालब ‘फ्रूटक्रीम’ भरकर उसका ढक्कन लगाने से पहले उमा ने प्रिया को गुहार लगायी कि वह रसोई में आकर ‘फ्रूटक्रीम’ देखकर तनिक अंदाजा लगा ले कि एक डोंगा ‘फ्रूटक्रीम’ से उनकी पिकनिक का काम चल जायेगा या उमा शेष बची ‘फ्रूटक्रीम’ मिलाकर उसे किसी बड़े डिब्बे में भरकर पूरी की पूरी उन्हें दे दे ।

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छुट्टी – गृहलक्ष्मी कहानियां

बालकों के सरदार फटिक चक्रवर्ती के दिमाग़ में चट से एक नए विचार का उदय हुआ नदी के किनारे एक विशाल शाल की लकड़ी मस्तूल में रूपांतरित होने की प्रतीक्षा में पड़ा था; तय हुआ, उसको सब मिलकर लुढ़काते हुए ले चलेंगे।

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नई जिन्दगी – गृहलक्ष्मी कहानियां

हमेशा की भांति आज भी वह छड़ी लिए अपनी ही धुन में सवार उस सड़क पर चलते-चलते बहुत दूर निकल गया था। प्रातःकाल की इस सुनहरी बेला में चिड़ियों का चहचहाना नव प्रभात का सन्देश दे रहा था। सामने की ओर बर्फ से आच्छादित पहाड़ियां अत्यधिक मनमोहक लग रही थी। मन्द-मन्द चल रहे पवन के झोंको से जहां आनन्द की अनुभूति हो रही थी, वहीं गरम कपड़ों से पूरी तरह ढके अंग-प्रत्यंग में भी एक सिहरन सी दौड़ जाती थी। मौसम खराब होने के साथ-साथ आस-पास की सारी पहाड़ियां बर्फ से पूरी ढक सी गई थी। अन्य दिनों की अपेक्षा आज नदी का प्रवाह भी बढ़ गया था।

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मुझे माफ कर देना – गृहलक्ष्मी कहानियां

माफी मांग लेने से की गई गलती सही तो नहीं हो जाती, पर इससे मन का भार काफी हद तक कम हो जाता है। सुभाष नीरव की ये कहानी भी कुछ ऐसी ही मानवीय संवेदना को व्यक्त करती है।

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