समिधा को अपनी ससुराल, लखनऊ की पुस्तैनी हवेली, रास न आई। उसे यह हवेली कम, भुतहा महल ज्यादा लग रही थी। अब वह अपने मायके से, शिकायत भी नहीं कर सकती, उसी ने मनोज को चुना है। घर में सभी उसके चुनाव से प्रसन्न हो गए।
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श्रीमती जी की नाराजगी – गृहलक्ष्मी कहानियां
समाज से बहिष्कृत लेखक नामक इस प्राणी को इस स्थान से अधिक सकून और कहां मिल सकता है। नैतिकता के बोझ तले दबा यह प्राणी एकांतवासी न हो तो और क्या हो?
मुंशी प्रेमचंद की सवा सेर गेहूॅं- गृहलक्ष्मी कहानियां
क्या घर आए साधु को भोजन खिलाने की चाहत रखना शंकर की गलति थी या ये उसकी अज्ञानता थी जिसने उसके साथ असके परिवार का भी सर्वनाश कर दिया।
शीत युद्ध – गृहलक्ष्मी कहानियां
जब से वो आई थी, मेरा जीना हराम हो गया था। घर के सभी सदस्यों पर तो जैसे उसने जादू ही कर दिया था। उसको काबू करने की मेरी तमाम कोशिशें नाकाम हो गई थीं, जिससे वो मेरी आंखों में भी चुभने लगी।
वैसे भी मेरा उससे कोई खास लगाव का रिश्ता नहीं था, क्योंकि वह मेरे ससुराल से आई थी।
गृहलक्ष्मी की कहानियां : एहसास
बीस साल की राधिका शहर में आने के बाद और आकर्षक लगने लगी थी। कुछ ही दिनों में उसका सौंदर्य निखर आया था। अत: रमेश का उसकी तरफ खिंचाव बढ़ रहा था।
सजा – गृहलक्ष्मी कहानियां
मेरे और मुन्नू के लिए एक लाइन तक नहीं लिखी थी। न प्यार, न आने के लिए कुछ। पूरे साल में पप्पा का यह पहला कार्ड था और हमारे विषय में कुछ नहीं लिखा, जैसे उन्हें मालूम ही नहीं हो कि हम भी यहाँ हैं। क्या पप्पा ने अपने को इतना बदल लिया है? उन्होंने […]
दूसरा मायका – गृहलक्ष्मी कहानियां
संयुक्त परिवार में पली-बढ़ी लता बहुत ही संस्कारी और सबकी चहेती थी। भगवान ने भी रंग रूप देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। दादा-दादी, चाचा- चाची, ताऊ-ताई, छह बहन, पांच भाई इतना बड़ा परिवार था उसका । परिवार में इतनी बेटियां होने के कारण शीघ्र ही उनका विवाह कर दिया जाता था। लता भी अब शादी की उम्र में आ चुकी थी, हालांकि अभी वह केवल 19 वर्ष की ही थी किंतु विवाह के लिए अब उसका नंबर आ गया था।
आकर्षण का मूलमंत्र – गृहलक्ष्मी कहानियां
कई दिनों से देख रही थी कि सामने वाले मकान में सफाई हो रही थी। मेरी बालकोनी से सामने वाले फ्लैट के अन्दर तक दिखाई देता है अगर पर्दा ठीक से न लगा हो। फिर हफ्ते भर दीवाली की साजो सफाई में इतनी व्यस्त रही कि सामने वाले फ्लैट में कोई आ भी गया यह तब पता चला जब एक दिन सवेरे कुकर की सीटी सुनाई दी।
पहल – गृहलक्ष्मी कहानियां
आज जैसे ही मैं कालेज से घर पहुंची, पूरे घर पर सन्नाटा पसरा हुआ था.रोज इस वक्त मां दादी के पैर दबा रही होती हैं, बड़ी भाभी बच्चों को होम वर्क और छोटी भाभी खाने पर मेरा इंतजार कर रही होती है, परन्तु आज का दृश्य कुछ और ही था. मैं समझ गई आज फिर छोटी भाभी को लेकर अवश्य कोई विवाद उत्पन्न हुआ होगा.
गृहलक्ष्मी की कहानियां : चक्रव्यूह में फंसी औरत
गृहलक्ष्मी की कहानियां : घर के छोटे से बगीचे में हरे भरे सुंदर फूलों के पौधे करीने से गमलों में लगे थे। मेन दरवाजे से अन्दर घुसते ही भगवान जी की एक सुंदर बड़ी सी मूर्ति स्थापित थी और मोगरा अगरबत्ती की खुशबू का झोंका यकायक सांसों को महकाने लगता। एक कोने की तिकोनी मेज […]