रविवार का दिन यानी छुट्टी का दिन।देर तक बिस्तर पर पड़े रहने में जो मज़ा है, वह रोज के भागा-दौडी़ में कहाँ? पड़े रहिए जब तक आप का मन करे ।आपका अपना दिन है जैसे चाहे गुजारिए, कोई कुछ कहने वाला नही,लेकिन एक बात का ध्यान रखिए पैर पसारे पड़े रहने के लिए केवल रविवार या छुट्टी का दिन होना ही अनिवार्य नहीं है, इसके लिए एक और बात का होना बहुत जरूरी है और वह है आप का स्टेटस सिंगल होना,यदि ये नहीं है तो आप चाह कर भी ऐसा कुछ नहीं कर सकते।
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टुएन्टी परसेन्ट – गृहलक्ष्मी कहानियां
सर, हमारा इनाम” नर्स ने मोती लाल की ओर आशा भरी नजरों से देखा ।
“इनाम भी मिलेगा भई ,पहले लड़के का मुंह तो दिखा दो ”
बाई की बेटी – गृहलक्ष्मी कहानियां
आकाश पर केवल उसका अधिकार होता है, जिसे अपने पंखों पर विश्वास होता है। आकाश की असीमता से डरने वाले तो अपने पांव तले की ज़मीन भी नहीं बचा पाते। कुछ ऐसा ही सबक छिपा है इस कहानी में।
अहल्या यह भी तो – गृहलक्ष्मी कहानियां
स्त्री की देह पाने को आतुर रहा पुरुष सदियों से उसकी देह तक आकर ही ठिठक जाता है। स्त्री के मन के तल तक जाने की सामर्थ्य न कभी पुरुष में रही, न उसने इसकी आवश्यकता ही समझी। ऐसी ही एक भावभीनी कहानी।
प्रेम परीक्षा – गृहलक्ष्मी कहानियां
देखो राघव ! मैं आज भी वही हूँ, जैसी तुम छोड़कर गए थे।तुमने तो पलटकर भी नहीं देखा कभी मैं किस हाल में हूँ पर मैंने तो प्यार किया था तुमसे जो फिर किसी और इन्सान से नहीं हुआ । अपने लक्ष्य से प्यार कर लिया मैंने और अब मैं फॉरेस्ट ऑफिसर स्नेहा शुक्ला हूँ ।
अडिग फैसला – गृहलक्ष्मी कहानियां
सुजाता रसोई में काम करते हुए लगातार बड़बड़ाये जा रही थी।”जीजी का तो अधेड़ावस्था में दिमाग खराब हो गया है ,भला लोग क्या कहेंगे।इस उम्र में शादी करने की बात कर रही हैं जब भतीजे – भतीजी शादी के लायक हो गए हैं। अब उम्र भी कितनी बची है जो अपना अलग संसार बसाने की सोच रही हैं। सारी उम्र तो यहां रहीं और अब अपनी सारी दौलत लुटाने को हमसफर ढूंढ रही हैं।”
मालिक- गृहलक्ष्मी कहानियां
रामगढ़ राजा शिवदत्त सिंह चौहान की रियासत थी। आजादी के बाद रियासतें तो चली गईं। राजा सिर्फ नाम को रह गए थे। राजा शिवदत्त के कोई बेटा ना होने के कारण उनकी इकलौती बेटी सारे जायदाद की वारिस बनी। वे हमीरपुर के राजघराने में ब्याही थी।
फिर शादी का दिखावा हो दिखावे की शादी हो – गृहलक्ष्मी कहानियां
शादियों से कमाने खाने वालों को भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए कि ये ‘केवल पचास’ वाला प्रतिबंध अब जल्दी समाप्त हो और शादियों की रौनक फिर से लौटे। फिर गार्डन सजे। फिर बैंड बाजे बजे।
लिली – गृहलक्ष्मी कहानियां
दोस्ती से शुरू हुआ अमित और लिली का यह रिश्ता प्यार में बदल गया। प्यार की गहराई में डूबते अमित के दिलो-दिमाग पर लिली इस कदर छाई थी कि उसने अपना सब कुछ लिली के नाम कर दिया, इस बात से अंजान कि लिली के दिलो-दिमाग में क्या चल रहा है और फिर अमित का उस हकीकत से सामना हुआ, जो उसकी कल्पनाओं से भी परे था।
अंतिम संस्कार – गृहलक्ष्मी कहानियां
सुबह के छह बज रहे थे। सारी रात कुर्सी पर बैठे बैठे हो गयी थी।सुषमा को बार-बार नींद के झोंके आ रहे थे।
यह समीर भी जाने कहां रह गया ।वैसे छह बजते न बजते वो आ ही जाता था । शायद क्रॉसिंग पर फंस गया हो। दो दिन पहले जब अम्मा जी का टेस्ट कराया था ,तब यह उम्मीद नहीं थी ,कि बात इतनी सीरियस हो जाएगी ।माना की अम्मा जी अस्सी से ऊपर हो रही थीं और उन्हें ब्लड प्रेशर और डायबिटीज भी थी, लेकिन छोटे-मोटे बुखार खांसी के अलावा उन्हें कोई और बीमारी हुई हो और वह दो दिन बिस्तर पर पड़ी रही हों ऐसा तो कभी नहीं हुआ।
