लिली की बिंदास पहल ने अमित को पेशोपेश में डाल दिया। एक दिन हंसकर बोली, ‘क्या तुम मुझसे दोस्ती करना पसंद करोगेे?’ उस रोज वह झेप गया। तत्काल उसे कोई जवाब नहीं सूझा। बस मुस्कुरा भर दिया। रात वह लिली के ही बारे में सोच रहा था। कल जब उससे मुलाकात होगी तो वह क्या जवाब देगा? क्या उसके प्रस्ताव को अस्वीकार कर देगा? लिली पहली लड़की थी, जिसने उसे प्रपोज किया।
एक अदने से शहर से होकर जब मुंबई नौकरी करने आया तब सिवाय नौकरी के उसे कुछ नहीं पता था। न ही यहां की लड़कियों के तौर-तरीके, न ही इस शहर का मिजाज। लिली उसे एक रेस्टोरेंट में मिली थी, जहां वह अक्सर खाना खाने जाता था। यहीं से दोनो में जान-पहचान शुरू हुई। लिली ने उसे अपना वाट्सऐप का नंबर दिया। ‘यदि हां हो तो जरूर संदेश देना।’ जाते-जाते कहती गई।
लिली सुदंर थी। छोटे शहर की लड़कियों से अलग उसका रूपरंग चित्ताकर्षक था। वह फैशनेबुल महिला थी। अमित के लिए यह बिल्कुल नया अनुभव था। सोच-विचार कर उसने फैसला लिया कि वह लिली के पहल को अस्वीकार नहीं करेगा। अगले दिन जब रेस्टोरेंट में गया तो सबसे पहले उसकी नजर लिली के चेयर पर गई। यही वक्त होता था लिली के आने का। उसने चारो तरफ नजरें दौड़ाई मगर वह नहीं दिखी। वह बेचैन हो गया। आज उसके दिल में एक खालीपन का अनुभव हुआ। कुर्सी पर बैठकर खाने का इंतजार करने लगा। रह-रह कर नजर प्रवेश द्वार पर चली जाती। तभी लिली का आगमन हुआ। अमित का चेहरा खिल गया। लिली ने मुस्कुराकर उसे विश किया, उसके बाद अपने चेयर पर बैठ कर मोबाइल पर उंगलियां फेरने लगी। अमित से रहा न गया। उसने तत्काल उसे मैसेज दिया।
‘शाम खाली हो?’ लिली ने मैसेज का तुरंत जवाब दिया।
‘हां।’ इस तरह दोनों ने शाम साथ बिताने का निर्णय लिया। अमित खुश था। एक नियत जगह पर दोनों मिले। मोटरसाईकिल पर बैठकर मैरिन ड्राइव पर आये। समुद्र के किनारे लगे चबूतरे पर बैठकर दोनों आपस मे बातचीत करने लगे।
‘तुम किस कंपनी में हो?’ लिली ने पूछा।
‘यही एक साफ्टवेयर बनाने वाली कंपनी में इंजीनियर हूं।’
‘अकेले हो? मेरा मतलब शादी से है।’
‘अभी कुंवारा हूं’, अमित हंसा। कुछ सोचकर अमित ने लिली से भी यही सवाल किया। जवाब में लिली ने बतलाया कि वह कुंवारी है। एक कुरियर कंपनी में नौकरी करती है। इस तरह जब भी समय मिलता दोनों एक दूसरे के साथ बिताना पसंद करते। धीरे-धीरे दोनों के संबंध प्रगाढ़ होते गये। एक रोज लिली गले में सुंदर सी चेन पहनकर आई थी। अमित ने देखा तो तारीफ किये बिना न रह सका।
‘मां ने दिया है। आज मेरा बर्थडे है।’ लिली के कथन से उसे अपराधबोध हुआ। ब्वायफ्रेंड होने के नाते यह अधिकार सबसे पहले उसे जाता था। काश पहले पता होता तो निश्चय ही वह लिली को सरप्राइज देकर निहाल कर देता। कुछ सोचकर बोला, ‘देर से ही सही आज तुम्हारा बर्थडे मेरे फ्लैट पर धूमधाम से मनेगा। मां से बोल दो कि आने में देर होगी।’ अमित उत्साहित था। लिली के साथ वह एक अच्छे से दुकान में गया। वहां उसकी पसंद के सोने के झुमके दिलवाये। चालीस हजार का बिल चुकता किया। लिली ने मना किया मगर अमित के लिए अपने पहले प्रेम का तोहफा था। उसके बाद केक और पिज्जा लेकर अपने फ्लैट पर आया। खूब मजे किये दोनो नें। रात ग्यारह बजने को हुये। ‘अच्छा तो मैं चलती हूं।’ लिली ने अपना पर्स संभाला। अमित का मन तो नहीं था उसे छोड़ने का मगर कैसे कहे। जुमा-जुमा चार दिनों की मुलाकात थी। कहीं वह बुरा न मान ले। लिली, अमित के करीब आई उसके गालों पर हल्की चुंबन का स्पर्श दिया। अमित का रोम-रोम पुलक उठा।
लिली के जाने के बाद वह उसके ही ख्वाबों और ख्यालों में डूबा रहा। रह-रह कर गालों पर अपनी उंगलियां फेरता तो ऐसा लगता लिली अब भी उसके करीब है। एक अजीब सी मादकता उसके ऊपर हावी हो गई। तभी मोबाइल की घंटी बजी। फोन लिली का था।
‘पहुंच गई?’ अमित ने पूछा।
‘हां’, लिली का जवाब था। ‘क्या कर रहे हो? सोये नहीं।’ उसने पूछा।
‘नींद नही आ रही’, अमित का जवाब था।
‘रात के दो बज रहे हैं। ऑफिस नहीं जाना है?’
‘यार, तुम तो अभी से मेरे लिए चिंतित होने लगी?’
‘क्या करूं। दिल के हाथों मजबूर हूं।’
‘ऐसा क्या देखा मुझमें?’ अमित हंसा। लिली सोचकर बोली, ‘कभी-कभी भावनाओं के आगे शब्द कम पड़ जाते हैं।’ वह आगे कही, ‘तुमने मुझमें क्या देखा?’ अमित ङ्क्षकचित् सकुचाते हुए कहा, ‘तुम्हारे अधर। जब गुलाबी लिपस्टिक लगाकर आती हो तो ऐसा लगाता है मानो गुलाब की दो पंखुड़ियां एक दूसरे को चूम रही हों।’
‘ऐसा था तो पहल क्यों नहीं किया?’ लिली ने शरारत की।
‘डरता था कहीं तुम बुरा न मान जाओ।’
‘मन तो नहीं कर रहा पर क्या करें नौकरी जो करनी है। अच्छा गुड नाइट।’ लिली ने मोबाइल का स्विच ऑफ कर दिया।
आज लिली सफेद कपड़े पर गुलाब के फूल बने छींटे वाले समीज पहनकर आई थी। बालों को खास तरीके से गूंथी थी। लट चेहरे पर झूल रहे थे। गोरा रंग उस पर सुर्ख गुलाबी होंठ कयामत ढा रहे थे। देखता ही रह गया। आज शाम दोनो ने पिक्चर जाने का प्रोग्राम बनाया। हॉल का गहन सन्नाटा पाकर अमित की भावनाएं कुछ ज्यादा उबाल लेने लगी। रहा न गया तो उसके अधरों को चूम लिया। क्षणांश सकपकाई बाद में सहज हो गई।
यह सिलसिला निर्बाध गति से चलता रहा। अब दोनो के बीच कुछ भी वर्जित न रहा।
एक रोज लिली परेशान थी। अमित ने उसकी परेशानी का कारण पूछा तो बोली, ‘मुझे पचास हजार की जरूरत है।’ यह पहला अवसर था जब लिली ने उससे रुपयों की डिमांड की। इज्जत का सवाल था वह ना न कर सका। तुरंत उसके खाते में पचास हजार ट्रांसफर कर दिये। अब वह खुश थी। लगभग दो महीने हो गये दोनो की दोस्ती के। बातों-बातों में लिली ने बताया था कि वह मुंबई में अकेले रहती है। मां-पिता पूना में रहते हैं। क्यों न हम एक साथ रहें? अमित को यह अटपटा लगा। इससे अच्छा है दोनों शादी कर लें। अमित यही चाहता था। मगर लिली तैयार नहीं हुई।
‘अमित, शादी कोई गुड्डे गुड्डी का खेल नहीं। पहले हम एक दूसरे को समझ लें फिर शादी कर लेंगे। लिव-इन-रिलेशन में रहेंगे तो एक दूसरे को समझने में आसानी होगी’, दो टूक कहकर लिली ने अपनी मंशा जाहिर कर दी। अब अमित को फैसला लेना था कि वह इसे स्वीकार करता है या नहीं। अमित, लिली को खोना नहीं चाहता था। वहीं उसके संस्कार बिना विवाह किसी महिला के साथ रहने की इजाजत नहीं दे रहे थे।
‘यह कैसा संबंध लिली! बिना शादी हम एक दूसरे के साथ रहें? क्या रह जाएगा हमारे तुम्हारे बीच। ऐसे ही साथ रहना है तो शादी में क्या बुराई है?’
‘कैसी दकियानूसी बात कर रहे हो? मैं बर्फ नहीं जो तुम्हारे साथ रह कर पिघल जाऊंगी? साल- छ: महीने साथ रह लेंगे तो क्या बिगड़ जाएगा?’ लिली ने उलाहना दिया, ‘तुम कौन सी दुनिया में रह रहे हो अमित। यह नयी दुनिया है, पुरानी मान्यताएं टूट रही हैं।’ लिली के प्रस्ताव के आगे अमित ने हाथ डाल दिये। लिली कुछ कपड़े और एक सूटकेस लेकर अमित के पास रहने चली आई। लिली रविवार को अपने मां-बाप से मिलने पूना जाती। अमित भी जाना चाहता मगर वह मना कर देती। क्यों? यह उसकी समझ से परे था। लिली के रूप-रंग में आकंठ डूबे अमित को लिली के सिवाय कुछ नहीं सूझता। आहिस्ता-आहिस्ता लिली, अमित के हर मामले में दखल देने लगी। अमित पूरी तरह से लिली पर निर्भर हो गया। अपने महीने की तनख्वाह लिली के हाथ में सौंप कर निश्चिंत रहता। एक दिन लिली पूना गई तो तीन दिन बाद लौटी। अमित परेशान हो गया। लिली को फोन लगाता तो स्विच ऑफ मिलता। तीन दिनों बाद लिली लौट आई। अमित ने शिकायत भरे लहजे में उससे हुई देरी की वजह पूछी तो वह नाराज हो गई। ‘अमित, मैं तुम्हारी बीवी नहीं हूं। हम दोस्त हैं। बेहतर होगा मेरे बारे में ज्यादा खोजबीन न किया करो।’ अमित को बुरा लगा। मगर चुप रहा यह सोचकर की लिली ने सही कहा कि वे सिर्फ दोस्त हैं। अमित के बिगड़े चेहरे को लिली ने भांप लिया। लिली को यह कुछ ठीक नहीं लगा सो गलती सुधारने की नियत से अमित के करीब आकर बैठ गई। बालों पर हाथ फेरते हुए बोली, ‘डाॄलग, नाराज मत होना। मां की तबीयत ठीक नहीं थी। रोक लिया। तो रूकना पड़ा।’ लिली की सफाई पर अमित का मूड बदल गया। वह फिर से सामान्य हो गया।
‘तुम नहीं जानती मैं कितना परेशान था’, बच्चे सरीखे बर्ताव था अमित का। लिली उसकी कमजोरी जानती थी।
सुबह दोनो अपने-अपने काम पर निकल गये। शाम दोनो ने फिर से बाहर खाने की योजना बनाई। रात ग्यारह बजे लौटकर आये। जैसे ही आराम करने के लिए बिस्तर पर गये तभी लिली के मोबाइल की घंटी बजी। वह बारामदे में आई। पंद्रह मिनट बाद वह वापस आई। आते ही बिस्तर पर पड़ गई। अमित ने इस बार कोई सवाल नहीं किया क्योंकि वह जान चुका था कि लिली इसे अपना पर्सनल मामला कहकर चुप करा देगी। अमित सोचने लगा यह कैसा संबंध है कि मेरे हर चीज पर लिली का अधिकार है। बदले में कुछ पूछता हूं तो यह कहकर मुंह बंद करा देती है कि मैं तुम्हारी बीवी नहीं। हम लिव-इन-रिलेशन में हैं।’ एकबारगी उसका मन हुआ कि लिली से साफ-साफ कह दे कि या तो वह उससे शादी कर ले नहीं तो अपना बोरिया बिस्तर बटोर कर चली जाए। गोल मोल नहीं चलेगा। ऐसा करने की सोच ही रहा था कि अगली शाम लिली ने उसके लिए एक सुंदर सा शर्ट खरीदकर तोहफे में दिया। ‘यह क्या?’ अमित ने सवाल किया।
‘आज तुम्हारा जन्मदिन है’, अमित क्षणांश जज्बाती हो गया। लिली को बाहों में भर लिया। अमित का सवाल सवाल ही रह गया। अगले दिन रविवार था। लिली अपनी मां के पास जाने लगी।
‘क्या मैं तुम्हारी मां से नहीं मिल सकता?’ लिली सुनकर सकपका गई। अगले पल खुद को संभाली। चेहरे पर फीकी मुस्कान लाते हुए बोली, ‘अभी समय नहीं आया है।’ लिली चली गई। एक ही छुट्टी मिलती थी वह भी लिली अपनी मां के पास गुजार देती थी। अमित दिनभर बोर होता। आज उसने अकेले ही घूमने का मन बनाया। मैरिन ड्राइव पर बैठा समुद्र की लहरों को निहार रहा था कि लिली का फोन आया।
‘अमित मुझे 1 लाख की सख्त जरूरत है। अभी और इसी वक्त मेरे खाते में डाल दो। सारी बातें आने पर बताऊंगी’, कहकर लिली ने फोन काट दिया। वाट्सऐप पर लिली ने अपने एकाउंट का डिटेल भेजा था। अमित ने बिना देर किये उतने रुपये ट्रांसफर कर दिए। उसका मन उचाट हो गया। एक तरफ वह लिव-इन-रिलेशन की बात कहकर खुद को गैर बताती है दूसरी तरफ उसके रुपयों पर ऐसे अधिकार जताती है मानो वह मेरी बीवी हो। यह चक्कर उसकी समझ से परे था।
लिली बदहवास थी। मानो किसी बहुत बड़े संकट से छूट कर आई हो।
‘तबीयत तो ठीक है?’ अमित ने पूछा।
‘नहीं। आज मै ऑफिस नहीं जाऊंगी’, कहकर सो गई। अमित अकेले ही काम पर चला गया। शाम लौटा तो लिली के लिए पिज्जा लेते हुए आया। पिज्जा देखकर लिली खुश हो गई। अमित के गालों को चूम लिया।
‘तुम मेरा कितना ख्याल रखते हो?’ दोनो खाने लगे। खाने के बीच अमित ने रुपयों की बात छेड़ी।
‘रुपये तुमको वापस मिल जाएंगे’, लिली के कथन से अमित संतुष्ट नहीं था। लिली ने भांप लिया। पिज्जा मुंह में डालते हुए बोली, ‘डाॄलग, क्यों परेशान होते हो। क्या अपनी लिली के लिए इतना भी नहीं कर सकते?’
‘ऐसी बात नहीं है। मैं सोच रहा था कि ऐसे कब तक चलेगा?’
‘मैं समझी नहीं?’ लिली बोली।
‘मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं।’
‘फिर वही शादी का रोना। अमित तुम समझने की कोशिश करो। जब तक हमदोनों एक दूसरे को समझ नहीं लेते शादी का कोई मतलब नहीं है।’ तभी लिली के मोबाइल की घंटी बजी। वह पिज्जा बीच में खाना छोड़कर बारामदे में आई। अमित सोफे पर बैठा लिली का इंतजार करने लगा। करीब 15 मिनट बाद वह आई।
‘किसका फोन था?’ अमित से रहा न गया।
‘अगर तुम्हें बताऊंगी तो शायद बुरा लगे। मगर मैं तुमसे छुपाऊंगी नहीं।’ लिली के कथन पर वह संशय में पड़ गया।
‘मेरे एक्स बायफ्रेंड का फोन था।’
‘क्या तुम्हारा किसी और से भी संबंध था?’
‘हां, ये तो आम बात है। मैं उसके साथ एक साल तक रिलेशन में थी।’
‘ये तो अनैतिक है?’
‘तुम्हारे छोटे से शहर के लिए हो सकता है। मगर महानगरों के लिए नहीं। रही बात अनैतिकता की तो इसमें बुरा क्या है। पटा तो शादी कर ली, नहीं तो अलग हो गये।’ लिली कहती रही, ‘कौन सी चमड़ी घिसती है लिव-इन-रिलेशन में? दोष हमीं में ही क्यों? पुरुष कौन-सा दूध का धुला हुआ था? आज वही काम हम स्त्री कर रही हैं, जिस पर कभी पुरुष का अधिकार था।’ अमित, लिली के विचारों से पूरी तरह सहमत नहीं था। यह ठीक है कि पुरानी मान्यताएं टूट रही हैं। घिसी पिटी लकीरें जिस पर चलकर हम जड़ हो चुके हैं, उसमें दरार आनी शुरू हो चुकी है। वहीं नयापन था लिव-इन-रिलेशन में। इसके बावजूद शादी की अहमियत को ठुकरा नहीं सकते। संबंध पुराने सामान की तरह नहीं है, जिसे हटा कर नया खरीद लिया जाए। बल्कि यह भावनाओंं से जुड़ा है। जिस तरह से लिली ने अपने पुराने संबंधों को तोड़कर मुझसे जुड़ना उचित समझा। यह नारी मुक्ति के लिए अहम् है मगर ऐसा कब तक चलेगा? किसी न किसी से तो शादी करनी ही होगी। कब तक नये पुरुषों पर लिली प्रयोग करती रहेगी। इसका कोई अंत नहीं?’ अमित की चिंता स्पष्ट थी।
साल भर से ऊपर हो चुके थे दोनो को एक साथ रहते हुए। न लिली, अमित को अपने मां-बाप से मिलवाती न ही शादी के लिए उसके मन में कोई ख्याल आता। ऐसे कब तक चलता। आजिज आकर एक दिन लिली ने साफ-साफ लफ्जों में कहा, ‘ठीक है, मैं शादी करने के लिए तैयार हूं मगर हम रहेंगे कहां? क्या हमारे पास कोई अपना फ्लैट है?’ शादी से फ्लैट का क्या ताल्लुक? अमित के सवाल पर लिली तुनक उठी। ‘जब तक अपना फ्लैट नहीं होगा मैं शादी नहीं करूंगी?’ अमित के लिए यह यक्षप्रश्न था जिसका उसे समाधान खोजना था। या तो लिली से संबंध विच्छेद कर ले या फिर जैसा वह कह रही है, वैसा करे। अमित के लिए लिली को खोना आसान न था। वह उसके रग-रग में समा चुकी थी। उसके बगैर जिंदगी की कल्पना भी बेमानी थी। इस तरह वह उसके दिलोदिमाग पर छा चुकी थी। काफी दिमाग इधर-उधर दौड़ाया। बनारस में पुश्तैनी मकान था। क्यों न उसे बेचकर मुम्बई में फ्लैट खरीद लिया जाए। विचार बुरा नहीं था। लिली को अमित का आइडिया पसंद आया। अमित अगले दिन ऑफिस से छुट्टी लेकर बनारस आया।
‘तुमने कैसे सोच लिया कि हम पुश्तैनी मकान बेचकर मुंबई रहने लगेंगे? रही शादी की बात यहीं कोई लड़की देखकर शादी कर लो। मुझे वह लड़की बिल्कुल पसंद नहीं है।’ अमित के पापा ने साफ शब्दों में कहा।
‘पापा, हम कई महीनों से लिव-इन-रिलेशन में हैं।’ सुनते ही वह भड़क गये।
‘शर्म नहीं आती ऐसी बाते करते हुए। कैसी बेशर्म लड़की है, जो बिना शादी किये तुम्हारे साथ रहती है? और कैसे मां-बाप हैं उसके जो लड़की को बिना शादी किये किसी गैर लड़के के साथ रहने की इजाजत दे दी?’ अमित अपनी मां की तरफ लाचार भरे लहजे में बोला, ‘मम्मी, तुम्हीं पापा को समझाओ। आजकल ऐसे ही चलता है। पहले हम साथ रहकर एक दूसरे को समझते हैं। फिर उचित लगता है तो शादी करते हैं वर्ना एक दूसरे से अलग हो जाते हैं।’
‘ऐसे तो वह और कईयों से साथ रही होगी?’ अमित के पापा ने सच ही कहा मगर अमित के दिमाग में घुसे तब ना। उसके ऊपर तो लिली का भूत सवार था। अंतत: अमित की मां के आगे उन्हें समर्पण करना पड़ा। मकान का एक हिस्सा बेचकर उन्होंने अमित को रुपये दे दिये। जाते-जाते एक नसीहत दी कि देखना तुम एक दिन पछताओगे। अमित रुपया पाकर मुंबई लौट आया।
फ्लैट लिली के नाम खरीदा। लिली का कहना था कि जब शादी करनी है तो चाहे तुम अपने नाम खरीदो या फिर मेरे, बात तो एक ही है। अमित को लिली में कुछ भी संदेहास्पद नहीं लगा। अब दोनो निश्चिंत थे। एक हफ्ते बाद अमित ने लिली से कोर्ट मैरेज करने के लिए कहा। वह टालती रही। आजिज आकर एकदिन अमित ने तल्ख शब्दों में कहा, ‘लिली, अब देर किस बात की है?’
‘अमित, शादी करके घर-गृहस्थी में तो फंसना ही है, क्यों न कुछ दिन और मजे ले लें।’ लिली का कथन उसे अच्छा न लगा। दूसरे दिन ऑफिस के काम से वह अहमदाबाद चला गया। दो दिन बाद लौटा तो देखा एक आदमी उसकी फ्लैट के अंदर था।
‘ये कौन है?’ अंदर घुसते ही उसने सबसे पहलेे लिली से प्रश्न किया।
‘मेरा फुफेरा भाई। आज ही आया है।’ वह दूसरे कमरे में आया। पीछे-पीछे लिली भी आई।
‘पहले तो तुमने इसके बारे में कोई जिक्र नहीं किया था। अब ये कहां से आ गया?’ उस रोज किसी तरह लिली ने बहाने करके फुफेरे भाई का प्रसंग टाला। मगर अमित इससे संतुष्ट नहीं था। वह अक्सर उससे शादी की जिद करने लगा। लिली के मन में तो कुछ और ही चल रहा था। एक दिन उसने भी त्यौरियां चढ़ा ली।
‘मान लो कि मैं तुमसे शादी के लिए तैयार नहीं होती हूं तो तुम क्या कर लोगे?’ इस अप्रत्याशित कथन ने उसे सकते में डाल दिया।
‘तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो लिली? हम काफी दूर निकल चुके हैं।’
‘तुम्हारी गवई सोच है। वर्ना तुम्हारे साथ रहकर मैं तो ऐसा नहीं सोचती?’
‘मतलब।’
‘मतलब साफ है। मैं किसी और से शादी करना चाहती हूं।’ अमित को काटो तो खून नहीं। उसे सपने में भी भान नहीं था कि लिली के मन में उसके प्रति इतना छल भरा है। उसे पापा का कथन याद आने लगा। जब उन्होंने कहा था कि देखना तुम एक दिन पछताओगे। लिली ने खुद बताया था कि उसके जीवन में और भी अफेयर रहे। इसके बावजूद अमित नहीं चेता। अब सिवाय झनकने के उसके पास कोई रास्ता नहीं रहा। फ्लैट लिली के नाम से था। उसकी तनख्वाह का अधिकत्तर हिस्सा लिली के ऊपर खर्च होता रहा। वह यही सोचता रहा कि जिसके साथ जीवन गुजारना है उससे क्या हिसाब ले? मगर लिली के भीतर तो कुछ और ही चल रहा था। फिर भी उसका मन नहीं माना।
‘लिली, तुम मजाक तो नहीं कर रही हो’, अमित का स्वर डूबा था।
‘बिल्कुल नहीं। जिस लड़के को मैं फुफेरा भाई कह रही थी वही मेरा पति होगा।’
‘लिली, तुमने मेरे साथ इतना बड़ा छल किया?Ó लिली के होंठो पर कुटिल मुस्कान तैर गई।
‘मैं तुम्हे एक हफ्ते का मोहलत दे रही हूं। इस फ्लैट को खाली कर दो।’ लिली ने फैसला सुना दिया।
‘नहीं छोडूंगा। यह मेरा फ्लैट है।’ अमित की बात पर लिली ठहाका लगाकर हंस पड़ी।
‘एक साल तक मेरे जिस्म पर तुम्हारा अधिकार रहा। क्या उसकी कीमत नहीं दोगे? थोड़े से नगदी। कुछ गहने और यह फ्लैट। इतना ही तो लिया है तुमसे। क्या इतना भी नहीं देना चाहोगे माई डीयर।’ अमित के पास इसका कोई जवाब नहीं था। गलती तो उससे हुई है। सो दंड भुगतना ही होगा।
‘यही कीमत है लिव-इन-रिलेशन का। मुफ्त में तुम्हें क्यों दूं? एक वेश्या भी अपने शरीर का सौदा करती है। वह भी कुछ घंटों के लिए। मैंने तो कई महीने तुम्हारे साथ गुजार दिये।’ अमित की आंखों से आंसू निकल पड़े। उसे यही चिंता खाने लगी कि वह अपने मां-बाप को क्या मुंह दिखायेगा?
अगली सुबह भरे मन से उसने लिली का फ्लैट छोड़कर वापस बनारस जाने का फैसला ले लिया। लिली के चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं थी। वह खुश थी। चलो मुक्ति तो मिली। अब किसी और को फांसकर लिव-इन-रिलेशन का खेल खेलेगी।
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