ये वादा रहा-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Vada Hindi Kahani
Ye Vada Raha

Vada Hindi Kahani: “बेटा , तेरी मां को आजकल बहुत तकलीफ़ रहने लगी है। दमे के कारण सांस फूल जाता है।  एक बार शहर के डाक्टर के पास दिखा लेंगे तो अच्छा रहेगा।” दिलीप जी ने अपने बड़े बेटे केशव को फोन पर कहा।
“पापा वो तो ठीक है ….यह लेकिन यहां डाक्टर को दिखाना इतना आसान नहीं है। घंटों लाइन में लगना पड़ता है। इस वक्त आफिस में काम भी बहुत है। आने- जाने का खर्चा और झंझट अलग से ।फिर मानो एक बार दिखा भी दिया तो बार बार दवा लेने और चेकअप करवाने के लिए लाते रहो। मैं तो आपकी सुविधा के लिए हीं बोल रहा हूं। आप माधव को क्यों नहीं बोलते। उसका तो अपना बिजनेस है। एक- दो दिन का समय निकालकर मां को दिखा देगा ।”  केशव ने अपने छोटे भाई पर बात टालते हुए कहा।
एक आशा भरी निगाहों से दिलीप जी ने एक बार फिर फोन की ओर देखा और अपने छोटे बेटे माधव के पास फोन मिला दिया । काफी देर घंटी बजने के बाद माधव ने‌ फोन उठाया ,

” हैलो , बेटा कैसा है तूं ?? और बच्चे और बहू मजे में तो हैं ना। “
” हां पापा, हम सब ठीक हैं । अभी काम का टाइम है तो आप जल्दी बताओ कुछ काम है क्या ?? ,,

“बेटा, वो…. तेरी मां की तबियत आजकल ठीक नहीं रहती। एक बार शहर में डाक्टर को दिखा लेते तो अच्छा रहता।,,

“पापा, आपको तो दूर के ढोल सुहावने लगते हैं …  शहर में कौन से अलग डाॅक्टर बसते हैं। आपको पता भी है यहां कितना प्रदूषण है ? यहां की धूल- मिट्टी में मां की तबियत और बिगड़ जाएगी। चैन से जहां रह रहे हैं वहीं रहीए।  गांव जैसा माहौल इस शहर में कहां मिलेगा। “
बेटे का दो टूक जवाब सुनकर दिलिप जी चुप रह गए। पास बैठी उनकी पत्नी लीला जी भी फोन पर हुई बातें सुन रही थीं। एक मां तो हमेशा इसी भ्रम में रहती है कि बच्चों की कुछ मजबूरी होगी तभी ऐसा बोल रहे होंगे।  पति की आंखों में  बेटों के प्रति हताशा देखकर लीला जी ने बात संभालते हुए कहा, ” जी, वो ठीक हीं तो बोल रहा है। वहां शहर में रखा हीं क्या है? बेचारे जब यहां आते हैं तो देखते नहीं कितने कमजोर लगते हैं? वो हमारे बारे में सोच कर हीं बोल रहे होंगे। “

पत्नी की बात सुनकर दिलीप जी लम्बी आह भरते हुए बोले, ” काश हमने भी अपने बारे में कुछ सोचा होता तो आज हमारे बच्चों को हमारे बारे में इतना नहीं सोचना पड़ता। उस वक्त तो बस हमें यही सोच रहती थी कि किसी तरह बच्चे पढ़ लिख लें। जब पढ़- लिख लिए तो उनके कारोबार के लिए जमीन तक बेच दी  , रह गया तो बस ये दो कमरों का छोटा सा मकान। चलो छोड़ो,….  तुम खड़ी हो जाओ अभी पास वाले वैद्य जी के पास दिखा लाता हूं।”
“अजी, आप यूं ही परेशान हो रहे हैं। थोड़ा गर्म काढ़ा पी लूंगी तो आराम आ जाएगा।”

“बस तुम्हारी इसी लापरवाही के कारण आज इतनी तकलीफ़ भोग रही हो….. बड़ा डाॅक्टर ना सही जो है कम से कम उसकी दवा तो ले लिया करो । ” इस बार थोड़ा डांटते हुए दिलीप जी बोले तो लीला जी चुपचाप खड़ी हो गई।
कुछ दिनों बाद अचानक से दोनों बेटे और उनका परिवार गांव आ गया। उन्हें देखकर दिलीप जी और लीला जी खुश तो थे। लेकिन दिलीप जी के मन में ढ़ेरों सवाल भी उठ रहे थे।

कुछ देर तो सब ठीक रहा लेकिन धीरे-धीरे केशव और माधव मुद्दे पर आ गए ।  केशव बोला, ” पापा मैं सोच रहा था अब आप दोनों की भी उम्र हो गई है। आपको यूं अकेले छोड़ने का मन नहीं करता। ,,
आज वर्षों बाद बेटे के मुंह से ऐसी प्रेम भरी बातें सुनकर दिलिप जी और लीला जी हैरान थे। लीला जी तो भाव विभोर होकर चमकती हुई आंखों से दिलीप जी की ओर देख रही थी मानो कह रही हों, ” देखा, मैं कहती थी ना कि हमारे बेटे हमारी बहुत चिंता करते हैं।  ,,

 माधव ने भी बड़े भाई की बात में बात मिलाते हुए कहा, ” हां पापा, अब यहां रखा हीं क्या है। अपने पोते – पोतियों के साथ आराम से टाइम पास कीजिए और हमें भी सेवा का मौका दीजिए। ,,

लीला जी ने तो अपना पूरा मन बना लिया था लेकिन दिलीप जी सिर्फ मुस्कुरा कर रह गए।
 अगले दिन केशव कुछ कागजात लेकर दिलीप जी के पास आया, ” पापा यहां हस्ताक्षर कर दीजिए।,,
” ये कैसे कागज हैं बेटा?? ,, दिलीप जी ने आश्चर्य से पूछा।
” पापा अब आप दोनों हमारे साथ शहर में रहेंगे तो फिर यहां इस मकान की देखभाल कौन करेगा?? हमने सोचा है कि इसे बेच कर इस चिंता से भी मुक्त हो जाते हैं। ,,
दिलीप जी बेटे की बात सुनकर सन्न रह गए। संभलते हुए वो बोले, ” बेटा मैं सोच कर बताऊंगा। आखिर ये गांव में हमारी आखिरी निशानी है। ,,
केशव ने अपनी मां की ओर देखा जैसे विनती कर रहा हो कि वो पापा को समझाए।
रात को लीला जी ने थोड़ी मनुहार करते हुए कहा, ” जी बच्चे ठीक हीं तो बोल रहे हैं । अब बच्चों के साथ रहना है तो ये मकान किस काम का। वैसे भी हमारे बाद ये इन बच्चों का हीं तो है। हम थोड़े ही अपने साथ कुछ लेकर जाएंगे? ,,
दिलीप जी बिना कुछ बोले लम्बी आह भरकर करवट बदलकर सोने की कोशिश करने लगे।  लीला जी को याद आया कि केशव और माधव को गांव का दूध बहुत पसंद है। इसलिए वो दूध गर्म करके बेटों को देने के लिए रसोई में चली गईं।

कमरे की तरफ जाते हुए बड़ी बहू के शब्द उनके कानों में पड़े, ” देखो,  मैं अकेले इन दोनों की सेवा करने से रही। तुम हीं संभालना अपने मां बाप को। ,,
” अरे तुम समझती क्यों नहीं ! मकान बेचकर जो पैसे मेरे हिस्से में आएंगे उससे छत पर दो कमरे बन जाएंगे। बच्चे भी बड़े हो रहे हैं तो कमरा उनके काम आ जाएगा। वैसे भी कौन सा ज्यादा दिन ये हमारे पास रहेंगे?? छह महीने बाद माधव के घर भेज देंगे। ,,

लीला जी के कदम वही जड़ हो गए । दूध के गिलास भी बहुत मुश्किल है उनके हाथों से गिरते गिरते बचे। भारी कदमों से वो माधव के कमरे की ओर मुड़ी।  वहां से भी आवाजें आ रही थीं , ” तुम्हारी मां तो सारा दिन खांसती रहती है। मैं बच्चों को इनके पास भी नहीं जाने दूंगी। पता नहीं कौन सी बीमारी है? और हां इनसे कह देना कि मेरी रसोई में हाथ लगाने की भी जरूरत नहीं है। ,,
” यार, तुम्हारा जो मन करे करना लेकिन अभी चुप रहो। एक बार इस मकान का हिस्सा मिल जाए तो कारोबार को थोड़ा आगे बढ़ाने की सोचूं। वैसे भी पहले छह महीने तो ये लोग भईया – भाभी के पास हीं रहेंगे। ,,

लीला जी की आंखों से आंसू ढलक गए। जिसे वो बच्चों की अपने प्रति फ़िक्र समझ रही थी वो तो सिर्फ अपना- अपना स्वार्थ देख रहे थे। माता – पिता के लिए चिंता तो सिर्फ दिखावा था।

भारी कदमों से वो वापस बरामदे में आकर खटिया पर बैठ गई।  दिलीप जी जो अभी तक जाग रहे थे वापस लीला जी की ओर करवट बदलकर बोले, ” क्या हुआ भागवान,  जाने की खुशी में नींद नहीं आ रही क्या? ,,
” जी , आप सही कह रहे थे। काश हमने अपने बारे में सोचा होता तो आज बच्चों को हमारे बारे में इतना सोचने की जरूरत हीं नहीं पड़ती।  ,, कहते हुए लीला जी ने तकिए के नीचे रखे हुए घर के कागजात निकालकर फाड़ दिए।

दिलीप जी हतप्रभ से अपनी पत्नी को देख रहे थे। वो समझ चुके थे कि एक मां की आंखों पर बंधी पट्टी शायद खुल चुकी है।
सुबह जब फटे हुए कागज दोनों बेटों ने देखे तो खीझते हुए वापस शहर लौटने की तैयारी करने लगे। बहुओं की बड़बड़ाहट भी चालू थी , ” और दिखाओ  चिंता…… ये लोग अकेले रहने लायक हीं हैं….. इस उम्र में भी जमीन जायदाद का मोह नहीं छूटता….. ,,
दिलीप जी और लीला जी ने जैसे अपने कान बंद कर लिए थे लेकिन आज उन्होंने एक प्रतिज्ञा जरूर ले ली थी कि आज के बाद कभी अपने बच्चों के मोह में नहीं फसेंगे… अब अपने जीवन की अंतिम सांस इसी मिट्टी में लेंगे। एक दूजे का हाथ थामे दोनों एक दूसरे से वादा कर रहे थे कि अब हम हीं एक दूसरे का सहारा हैं …….