Kahaniya: दिल्ली के रिहायशी इलाके में अपनी बड़ी कोठी के बगीचे में रघुदयाल बैठे थे। अपना मन लगाने के लिए उनको वह सबसे अच्छी जगह लगती थी। फूल, पेड़, तितलियां और एक तालाब जिसमें कुछ कमल खिले थे। उनकी पत्नी रमा कुछ साल से “महिला कल्याण संस्थान” और कृष्णा जी के काम में व्यस्त रहने लगी थीं।
इससे पहले कईं साल से खुद को घर गृहस्थी में झोंक रखा था उन्होंने। जब रमा घर पर नहीं होती थीं और बेटा बहू अपने काम में व्यस्त होते तो पुराने हिंदी फिल्मों का हल्का संगीत और खूबसूरत बगीचा मनपसंद साथी थे रघुदयाल के।
हमेशा की तरह सुबह बगीचे में बैठे थे और तालाब में खिले खूबसूरत कमल को देख रहे थे तभी
उनकी नजर पानी में बनी अपनी परछाई पर पड़ी…..
आज पहली बार उन्होंने अपने आप की उस उम्र को ध्यान से देखा। बहुत देर तक वो अपनी परछाई
को ध्यान से देखते रहे। अपने चेहरे के सांवले रंग पर पड़ी झुर्रियों को देखा.. कुछ आंखों के पास,
माथे पर और कुछ गालों पर। आंखों के पास की लकीरें नज़र के चश्मे के पीछे छुप रही थीं। बाल भी
पहले से कुछ कम हो गए थे और जो बचे थे उनमें काली रात कम और चांदनी ज्यादा चमक रही थी।
अपनी उम्र का अंदाज़ा लकीरों से लगाने लगे। उम्र का तो पता ही चला और साथ में अपने तजुर्बों
को भी गिनने लगे जो अब तक उन्होंने कमाए थे। परछाई देखते देखते बहुत कुछ सोच ही रहे थे की
एक छोटी सी चिड़िया पानी के ऊपर पंख मारती हुई उड़ी..
परछाई हिंडोले खाने लगी और रुकते रुकते रघुदयाल के अतीत की परछाई में बदल गई जिसमें उन्हें एक युवा रघुदयाल दिखाई दिया।
बाद में उनकी ज़िंदगी के कई अलग-अलग पड़ावों में परछाइयां बदलती रहीं]
21 साल का आम सा लड़का जो एक छोटे शहर से दिल्ली आया था कुछ करने और अपने सपनों
को साकार करने। रघुदयाल ने ‘इंटीरियर डिजाइनिंग एंड डेकोरेशन’ में डिग्री हासिल कर रखी थी,
लेकिन उससे कहीं ऊपर था उसका अपना दिमाग और शौक। वो किसी भी चीज से लगभग कुछ
भी बना सकता था और वह भी बहुत सुंदर।
उस परछाई को वह देख ही रहे थे के एक हवा का झोंका आया और रघुदयाल को अपनी हताश
वाली परछाई दिखी। उसको देख उनका मन भर आया। कईं जगह आवेदन देने के बाद भी उन्हें कहीं
काम नहीं मिला था। किसी को तजुर्बा चाहिए था तो किसी को बड़े इंस्टिट्यूट का नाम। वह चाहते थे
कि कोई छोटा सा काम उन्हें देकर तो देखे लेकिन कोई तैयार नहीं होता था।
एक दिन रघुदयाल परेशान एक पार्क में बैठे थे कि किसी ने उन्हें पुकारा। उन्होंने पलट कर देखा तो
उनके स्कूल का पुराना साथी अशोक था। दोनों दूसरे के बारे में पूछते हैं तो रघुदयाल को पता
चलता है कि अशोक ने अपने पिता की छोटी सी दुकान को अब एक बड़े शोरूम में बदल दिया है
और वह अपने पुराने घर को भी एक नया चेहरा देना चाहता है। रघुदयाल अशोक से कहते हैं,” मैं
तुम्हारे लिए घर का एक सुंदर नक्शा बना दूंगा और सजा भी दूंगा, अगर तुम चाहो तो।”
“क्या बात कर रहे हो यार! तुमसे अच्छा डिज़ाइनर और डेकोरेटर मुझे कहां मिलेगा। मगर बात यह है
कि मेरे पास ज़्यादा पैसे नहीं हैं। अभी बिज़नेस में भी काफी लग गया है।” अशोक कहता है।
रघुदयाल कहते हैं,” तुम जो चाहो दे देना, मैं तुम्हारा काम कर दूंगा।”
रघुदयाल पूरी मेहनत और ईमानदारी से अशोक के घर का काम करते हैं। अपने दिमाग से घर में
कुछ बदलाव भी लाते हैं। अशोक और उसका परिवार देखते रह जाते हैं। अशोक अपने घर में इसी
खुशी में दावत रखता है। जो आता है वह रघुदयाल के काम की तारीफ करता चला जाता है। उस
दिन दावत में रघुदयाल को दो नए कॉन्ट्रैक्ट ही नहीं रमा भी मिलती हैं। रमा अशोक के कॉलेज की
दोस्त थीं। वहां से रघुदयाल और रमा की दोस्ती शुरू होती है और आखिरकार शादी में संपन्न होती
है।
रघुदयाल का काम लोगों को पसंद आने लगा। इधर परिवार भी बड़ा बेटे के पैदा होने से उधर उनका
काम भी बढ़ने लगा। उनको कईं कॉन्ट्रैक्ट मिलने लगे जिससे उन्होंने बहुत पैसा बनाया।
आखिरकार रघुदयाल ने रमा के साथ चर्चा करके अपना फर्निशिंग का ब्रैंड बनाया और उसी का
काम शुरू कर दिया। उनका बेटा भी बड़ा होने लगा था। रघुदयाल को कॉन्ट्रैक्ट का काम और
बिज़नेस भी देखना था और वह उसको बड़े ध्यान से संभाल लेते थे। अब उनका नाम शहर के बड़े
लोगों में था। धीरे-धीरे उन्होंने बिज़नेस को पक्के तरीके से जमा लिया और आगे बढ़ाया। अब
उनका बेटा भी बड़ा हो गया था और काम में हाथ बंटाने लगा था।
तभी पानी को एक तितली छूकर उड़ती है और परछाई एक अधेड़ रहीस आदमी की उभर
आती है। रघुदयाल के चेहरे पर उस परछाई को देखकर गर्व से भरी मुस्कान आ जाती है। वह
भगवान को धन्यवाद देते हैं कि उन्होंने उनको कितना कुछ दिया है जीवन में..पैसा, रमा जैसी जीवन
साथी, ज़िम्मेदार बेटा और काबिल बहू जिसने बिज़नेस को अपनी पढ़ाई और समझदारी से आगे
बढ़ाने में मदद करी और एक प्यारी सी पोती।
तभी कहीं से एक कंकड़ पानी में गिरता है और रघुदयाल का ध्यान नई परछाई पर पड़ता है।
उसको देख कर उनकी आंखें भर आती हैं। परछाई बेशक वही बुढ़ापे की दिखाई देती है लेकिन इस
बार उसमें साथ था उनका परिवार। उनकी रमा, बेटा, बहू और पोती। रघुदयाल के जीवन की यह
परछाई उनकी सबसे सुंदर परछाई थी।
