Summary: मध्य एशिया और फारस से शुरू होकर भारत तक पहुंचा सीख कबाब
सीख कबाब केवल दिल्ली या लखनऊ का व्यंजन नहीं है, बल्कि इसकी जड़ें मध्य एशिया और मुगल काल तक जाती हैं। समय के साथ यह आम गलियों, घरों और रेस्टोरेंट तक पहुंच गया।
Seekh Kebab History: भारतीय खाने की खुशबू में अगर किसी एक चीज ने हमेशा लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है, तो वह है सीख कबाब। धुएं में सुलगती सींखों पर चढ़ा मसालेदार कीमा, जिसकी खुशबू दूर से ही भूख जगा देती है। सीख कबाब का सफर रसोई की साधारण “सीख” से शुरू होकर शाही दस्तरख्वान तक पहुंचा और आज यह हर गली, हर ढाबे और हर घर की पहचान बन चुका है। अगर आप अब तक यही सोच रहे हैं सीख कबाब दिल्ली या लखनऊ से है तो आप गलत हैं। आइए जानते हैं सीख कबाब के सफर के बारे में।
जंग के मैदान से रसोई तक
सीख कबाब की कहानी हमें मध्य एशिया और फारस तक ले जाती है। माना जाता है कि पुराने जमाने में सैनिक अपने साथ कीमा और मसाले लेकर चलते थे। वे आग जलाकर तलवार पर मांस लपेटकर भून लेते थे। यही आसान तरीका धीरे-धीरे कबाब की पहचान बना। जब मुगल भारत आए, तो अपने साथ कबाब बनाने की यह परंपरा भी लाए। उनके साथ आए शाही बावर्चियों ने इसमें देसी मसालों, जड़ी-बूटियों और खास तरीकों का मेल कर इसे नया और शानदार स्वाद दिया।
शाही रसोई से गलियों तक पहुंचा सीख कबाब का स्वाद
मुगल काल में सीख कबाब सिर्फ पेट भरने के लिए नहीं था, बल्कि शान का प्रतीक बन गया था। बादशाहों के लिए बनाए जाने वाले कबाब में बढ़िया मांस, केसर, जायफल, जावित्री और खास मसालों का इस्तेमाल होता था। कबाब इतना नरम बनाया जाता कि मुंह में रखते ही घुल जाता था। कहते हैं कि कुछ कबाब तो बिना चबाए ही खाए जा सकते थे। समय बदला और शाही रसोई की चीजें और खाना आम लोगों तक पहुंचने लगीं। लखनऊ, दिल्ली, हैदराबाद और भोपाल जैसे शहरों की गलियों में सीख कबाब ने अपनी अलग पहचान बनाई। कहीं यह भैंस या मटन से बना, तो कहीं चिकन ने इसकी जगह ली।
घर की रसोई में सीख कबाब
आज सीख कबाब सिर्फ होटल या रेस्टोरेंट की डिश नहीं रहा। घरों में भी इसे बड़े चाव से बनाया जाता है। पहले जहां लोहे की सींख और अंगीठी जरूरी मानी जाती थी, वहीं अब अवन, तवा और यहां तक कि एयर फ्रायर ने इसे और आसान बना दिया है। शाकाहारी परिवारों ने इसमें सोया, पनीर और सब्जियों का प्रयोग कर अपना अंदाज जोड़ लिया है। यानी सीख कबाब ने समय के साथ खुद को ढाल लिया।
सीख कबाब का परफेक्ट स्वाद
सीख कबाब बनाने की शुरुआत सबसे पहले कीमा से होती है। मटन या चिकन को अच्छी तरह से पीसकर बारीक बनाया जाता है ताकि मसालों के स्वाद के साथ यह आसानी से चिपक सके और नरम बने। इसमें मसालों का मिश्रण तैयार किया जाता है। अदरक-लहसुन का पेस्ट, हरी मिर्च, धनिया, पुदीना, जीरा और लाल मिर्च डालकर इसे अच्छी तरह से मिलाया जाता है। साथ ही हल्का गरम मसाला और धनिया पाउडर मिलाकर इसका स्वाद और खुशबू बढ़ाई जाती है। इसके बाद कोयला या तंदूर पर थोड़ा घी या तेल डालकर उसमें कीमा मिश्रण के ऊपर हल्का धुआं देकर इसे दम दिया जाता है।
कीमा तैयार होने के बाद इसे सीख या स्क्यूअर पर आकार देना होता है। हाथों को हल्का गीला करके कीमा को स्क्यूअर पर लगाते हैं। अब सीख को धीमी आंच पर कोयले या तवा या ग्रिल पर रखा जाता है और हर तरफ से गोल्डन और क्रन्ची होने तक पकाया जाता है।
सीख कबाब का मॉडर्न वर्जन
आज सीख कबाब भारतीय रेस्टोरेंट के साथ इंटरनैशनल मेन्यू का भी हिस्सा है। फ्यूजन के दौर में चीजी सीख कबाब, हर्ब्स से भरे कबाब और हेल्दी वर्जन वाले कबाब खूब पसंद किए जा रहे हैं। लेकिन इसे धीमी आंच और सही मसाले के साथ ही बनाया जाता है।
