Vandana Grehlakshmi Story: स्वाति का विवाह समारोह चल रहा था। अग्नि को साक्षी मानकर उसके भाई अमित और भाभी वन्दना ने उसका कन्यादान करा। आंखों में वन्दना के लिए आदर सम्मान के आंसू लिए अमित का छोटा भाई अंकुर सोचने लगा, “कहने को तो भाभी घर की बड़ी बहू है लेकिन हमारे लिए मां बनने में कोई कमी नहीं रखी और आज उन्होंने मां का सबसे बड़ा फ़र्ज़ कन्यादान पूरा किया” यही सोचते हुए वह करीब 15 साल पीछे चला जाता है……
तकरीबन 11 साल का अंकुर और 9 साल की स्वाति पूरे घर में धूम मचाते हुए घूम रहे हैं। आज उनके बड़े भाई अमित की शादी है। यूं तो अमित की कोई ज्यादा उम्र नहीं थी परंतु घर की और छोटे भाई बहन की देखभाल के लिए किसी ज़िम्मेदार औरत का होना ज़रूरी था। बच्चों की मां कुछ साल पहले अपनी बीमारी के चलते चल बसी थी। पिता के लिए कारोबार, घर और बच्चे संभालना मुश्किल हो रहा था।
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एक दिन उनके पुराने दोस्त मिलने आए। बातों में पता चला कि उनकी एक बेटी है वन्दना। अमित के पिता ने अपनी तरफ से हां कर दी। उन्होंने अपने दोस्त से कहा,” मुझे अपनी चिंता नहीं लेकिन अंकुर और स्वाति ने अपनी मां को बहुत छोटे में देखा था। मुझे तो ऐसी बहू चाहिए जो बच्चों को मां सा प्यार दे सके। एक बार अपनी बेटी से पूछ लो”।
दो दिन बाद खुशखबरी आई शादी पक्की होने की।
आखिरकार वन्दना बड़ी बहू बनकर अमित के घर आई। आते ही उसने पूरी ज़िम्मेदारी से घर और बच्चों को संभाल लिया। वह सवेरे अंकुर और स्वाति को नाश्ता करा कर टिफिन देकर स्कूल भेजती। मंदिर में दीपक जलाना हो या घर की साफ़ सफ़ाई, तीनों वक्त का खाना, कपड़ों का काम आदि वह सब कुछ बड़े कायदे से निभाती।
घर पटरी पर आने लगा था कि अमित के पिताजी की तबीयत बिगड़ने लगी। डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने जवाब दिया,” कुछ ही वक्त है इनके पास”। अमित पर कारोबार की पूरी ज़िम्मेदारी आ गई इधर वन्दना ससुर की जितनी सेवा कर सकती थी उसने बहुत अच्छे से करी। पर तीन हफ्ते बाद ही अमित के पिता गुज़र गए। दोनों छोटे बच्चों के लिए अब बड़ा भाई और भाभी ही मां-बाप थे।
वन्दना अंकुर और स्वाति को स्कूल से आने के बाद पढ़ाती। उसने पढ़ाई के अलावा अंकुर को पेंटिंग और स्वाति को संगीत की शिक्षा भी दिलाई। दोनों बच्चे उससे अपनी हर बात करते और वह भी समझदारी से उनकी बात सुनती और सही राय देती। वक्त आगे बढ़ता गया।
अंकुर कॉलेज पास करके एमबीए करने विदेश गया और स्वाति भी मेडिकल की पढ़ाई में लग गई थी। वन्दना अब कंप्यूटर की मदद से घर बैठे फ्रीलांस काम करने लगी थी। अंकुर अपनी एमबीए की पढ़ाई करके भारत वापस आ गया। उसने यहीं एक अच्छी नौकरी भी ढूंढ ली थी। वापस आकर उसने वन्दना को शालिनी के बारे में बताया जो उसके साथ पढ़ती थी।
वंदना और अमित शालिनी के माता-पिता से मिलने गए। वन्दना ने अपनी सास का दूसरा पुश्तैनी कंगन निकाला और शालिनी को पहनाते हुए कहा,” आज से तुम हमारे घर की छोटी बहू हो”। बातचीत करके शादी की तारीख तय कर दी गई।
पूरे ज़ोर शोर से अंकुर की शादी के कार्यक्रम रखे गए। वन्दना ने किसी भी तरीके से कोई कमी नहीं रखी। अंकुर और शालिनी के लिए वन्दना ने अमित से बात करके पहले ही यूरोप के टिकट बुक करा रखे थे। उनको यूरोप के लिए विदा करके स्वाति की थोड़ी मदद से वन्दना ने बाकी का लेना देना करा और घर समेटा।
अमित ने भी पहले से कारोबार और घर में दोनों भाई बहन के लिए बराबर का हिस्सा निकाल रखा था। यूरोप से वापस आकर अंकुर पास ही के अपने नए घर में शिफ्ट हो गया। उसने और स्वाति ने कारोबार और घर वापस बड़े भाई के नाम कर दिया।
वन्दना हर इतवार पूरे परिवार के साथ घूमने या घर पर ही खाने का इंतज़ाम करती। लेकिन इस बात के लिए किसी पर कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं थी। जिसको जितना ठीक लगता उतना हो जाता।
कुछ महीने बाद जब शालिनी ने वन्दना को अपने गर्भवती होने की खुशखबरी दी तो वन्दना की खुशी देखने लायक थी। वह मानो आसमान में उड़ने लगी थी। अंकुर और स्वाति की ज़िम्मेदारी में कमी ना आए इसलिए उसके अपने कोई बच्चे नहीं थे।
वन्दना ने शालिनी का पूरा ध्यान करा। पूरे 11 महीने शालिनी वन्दना के साथ रही। शालिनी का ऑफिस का टिफिन, सेहत का खाना, दवाइयां सब कुछ जो शालिनी को चाहिए था, वन्दना वह सब का ख्याल रखती। बेटा होने के बाद जब अंकुर शालिनी को घर लाया तो वन्दना ने जच्चा एवं बच्चा दोनों का ख्याल रखा। बाद में जब शालिनी अपने घर गई तब भी जब कभी उसको बच्चे के लिए मदद चाहिए होती तो वन्दना हमेशा तैयार रहती।
स्वाति की मेडिकल की पढ़ाई पूरी हो गई थी। एक दिन उसने भी अंकुर की तरह अपनी पसंद भाभी के सामने रखी और कहा,” अरविंद मेरे साथ कॉलेज में था और अब वह भी डॉक्टर बन गया है। लेकिन वह दूसरी जाति का है, अगर आप लोग मना करेंगे तो मैं पीछे हट जाऊंगी।” वन्दना और अमित ने खुले दिल से मुस्कुराकर रिश्ते के लिए हां कर दी।
सगी मां की तरह वन्दना ने अपनी बेटी जैसी नंद के लिए सोना, चांदी और नकद जोड़ रखा था। बहुत धूमधाम से मेहंदी, हल्दी और शादी की रस्में पूरी की गईं।
आज स्वाति की शादी का वही शुभ दिन है। अंकुर का ध्यान टूटा जब अमित ने कहा,” अंकुर चलो, स्वाति की विदाई का वक्त हो गया है”।
स्वाति, अंकुर और शालिनी ने एक दूसरे की आंखों में देखा। वह तीनों वन्दना के पास गए और उसका हाथ पकड़ कर आंखों में पानी लिए मिलकर उन्होंने उसके लिए एक गीत गाया:
ओ हमारी प्यारी भाभी
तुझ पर जाएं बलिहारी
भाभी बिन न भाए हमें
भाई संग त्यौहार
उनकी प्यारी जोड़ी पर
हम जाएं सब कुछ वार
ओ हमारी प्यारी भाभी
तुझ पर जाएं बलिहारी
मां की जगह तू ही
हमारा घर और संसार
सुबह शाम तू ही करती
घर में मंगलाचार
ओ हमारी प्यारी भाभी
तुझ पर जाएं बलिहारी
चंदा लाएं या तारे
या लाएं हीरों का हार
सारे तोहफे पड़ जाएं छोटे
बांटें अनमिट प्यार
ओ हमारी प्यारी भाभी
तुझ पर जाएं बलिहारी।।
