Bahu ko Rotiyan Bana Kar Nhi Khila Sakti
Bahu ko Rotiyan Bana Kar Nhi Khila Sakti

Saas Bahu Story: ” पता नहीं किस जन्म की दुश्मनी निकाल रही हैं मुझसे…… ऐसी छुई- मुई बनकर बैठी रहती हैं जैसे मेरे आने से पहले आठ- दस नौकर- चाकर आगे – पीछे फिरते रहते थे। थोड़ा बहुत हाथ- पैर हिलाने से कौन सा शरीर घिस जाएगा इनका ….. सब कुछ मेरे भरोसे छोड़ कर बैठ जाएंगी ….. बाहर से थक कर आओ और फिर घर में आते ही रसोई में लग जाओ …. । ,, वंदना खीझते हुए अपना सारा गुस्सा रसोई में बर्तनों पर निकाल रही थी।

ऐसा नहीं था कि उसकी सास रूक्मणी जी को बहू के बड़बड़ाने का भान नहीं था लेकिन वो भी ठिठाई पर थीं। बहू की बड़बड़ाहट को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल रही थीं।
वंदना एक पढ़ी लिखी लड़की थी । उसका सपना था कि वो अपने पैरों पर खड़ी होगी । उसने नौकरी के लिए कई जगह आवेदन भी दे रखा था इस बीच जब उसके लिए अनिकेत का रिश्ता आया तो उसने साफ- साफ कह दिया कि वो शादी इसी शर्त पर करेगी कि शादी के बाद उसे अच्छी नौकरी मिली तो कोई उसे नौकरी करने से नहीं रोकेगा । आखिर इतना पढ़ने लिखने के बाद वो घर पर नहीं बैठ सकती।
अनिकेत और उसके घरवालों को इस बात से कोई आपत्ती नहीं थी कि उनकी बहू नौकरी करेगी इस लिए दोनों तरफ से खुशी- खुशी ये रिश्ता हो गया।
शादी के कुछ दिनों बाद ही वंदना का ज्वाइनिंग लेटर आ गया।
जिस दिन वंदना ने अपने ससुराल वालों से कहा था कि वो अब नौकरी करेगी तो उसकी सास रूक्मणी जी ने सारे परिवार के सामने कह दिया था, ” बहू नौकरी करे इससे मुझे कोई आपत्ती नहीं है । मैं ये भी नहीं कहूंगी कि वो पहले सारे घर का काम करे फिर नौकरी पर जाए लेकिन मैं भी अब पहले की तरह पूरा घर नहीं संभाल सकती ….. मुझे सब कुछ मंजूर है लेकिन मुझसे ये उम्मीद मत करना कि मैं बहू को रोटियां बनाकर खिलाऊंगी ….. मुझे पता है कि अगर मैं एक बार इस भंवर में फंस गई तो जिंदगी भर नहीं निकल पाऊंगी ….. । ,,
उस वक्त सबको रूक्मणी जी की बातें सुनकर हैरानी तो हुई थी। उनके पति ने तो ये भी कहा कि मुझे नहीं पता था कि मेरी सीधी- सरल पत्नी भी सास बनते ही अपना रूप बदल लेगी । ,,
लेकिन इन सब बातों का रूक्मणी जी पर कोई असर नहीं हुआ। वो तो अपनी ज़िद पर अड़ी थीं।
खैर वंदना को तो नौकरी करनी ही थी क्योंकि घर के थोड़े से काम के लिए वो अपनी इतनी अच्छी नौकरी तो नहीं छोड़ सकती थी। वहीं उसके पति और ससुर जी ने भी नौकरी की इजाजत दे दी थी तो वो फिर कहां रूकने वाली थी। इस समस्या का ये हल निकाला गया कि घर के कामों के लिए एक कामवाली और खाना बनाने के लिए कुक रख ली गई। खाना बनाने वली सुबह और शाम का खाना बनाकर चली जाती । वंदना का काम था ऑफिस से आकर बस खाना परोसना।
यूं ही दिन निकल रहे थे । वंदना की शादी को दो साल हो चुके थे । अब तो वंदना और बाकी सब घरवालों को इस रूटिन की आदत हो गई थी लेकिन मुश्किल तो तब होती थी जब कभी खाना बनाने वाली छुट्टी ले लेती थी।ऐसा ही कुछ इन दो दिनों से हो रहा था जिस कारण से वंदना खीझी हुई थी। आफिस से आकर रोटियां बनाना उसे बहुत बड़ा बोझ लगता था। वैसे तो रूक्मणी जी इन दिनों में सब्जियां काट कर बना देती थी लेकिन बहू के ऑफिस से आने के बाद रसोई में झांकती भी नहीं थी। उस समय वंदना को अपनी बैठी हुई सास बहुत चुभती थी। वो बड़बड़ाती रहती और रोटियां बनाती रहती। बाद में अपनी मां से फोन पर भर- भरकर शिकायत करती जिसके बाद उसे थोड़ा सा सुकून मिलता था।
कुछ दिनों बाद वंदना के भाई की शादी भी तय हो गई। वंदना की होने वाली भाभी भी नौकरी पेशा था। वंदना की मां ने सगाई के वक्त ही खुश होते हुए गर्व से कह दिया ,” भई मैं तो और सासों की तरह नहीं हूं जो बहू के आने पर हाथ पर हाथ धरकर बैठ जाऊं ….. जब अभी तक पूरा घर संभाल रही थी तो अब क्यों नहीं ?? मेरी बहू को मेरी तरफ से पूरी छूट रहेगी । जब एक मां अपने बच्चों को रोटियां बनाकर खिला सकती है तो बहू को क्यों नहीं खिला सकती !! बहू तुम निश्चिंत होकर नौकरी करना। रसोई मैं संभाल लूंगी। ,,
वंदना की मां के उच्च विचार सुनकर उसकी होने वाली भाभी का पूरा परिवार और खुद वंदना भी गदगद हो गई ,” वाह मां, आप कितने बड़े दिल की हैं … काश मेरी सास भी आपकी तरह होती….. लेकिन मेरी किस्मत में ये सुख कहां । मेरी सास को तो बस हुकुम चलाना आता है । मुझे गर्व है कि मेरी मां इतने खुले विचारों की है। ,, अपनी चिड़चिड़ाहट निकालते हुए वंदना बोली।
कुछ दिनों में ही वंदना के भाई की शादी हो गई और कुछ दिनों बाद ही वंदना की भाभी ने अपनी नौकरी ज्वाइन कर ली। वंदना की मां भी अपनी बहू को हथेलियों पर रखती थी। सुबह उसका नाश्ता, टिफिन फिर रात का खाना भी तैयार रखती थी । अपने हाथों से परोसकर सबको खाना खिलाती थी । उनकी बहू भी मम्मी जी- मम्मी जी करती हुई अपनी पसंद- नापसंद बताती रहती थी जिसे वंदना की मां बड़े चाव से पूरा करने में लगी रहती थी । खुशी खुशी दिन बीत रहे थे लेकिन ये प्रकिया धीरे धीरे अब उदासीनता में बदल रही थी । वंदना की भाभी को अब कुछ भी ना करने की आदत पड़ गई थी …. ।
एक दिन जब वंदना फोन पर अपनी मां से बात कर रही थी तो उसकी मां बस रो पड़ी ,” बेटा, मैं इतना करती हूं तेरी भाभी के लिए फिर भी उसे मेरी कद्र नहीं…. अरे मेरी दी हुई छूट अब मुझपर ही भारी पड़ने लगी है । ,,
” क्या हुआ मां!! आप ऐसे क्यों बोल रही हैं ? आप तो भाभी का मुझसे भी ज्यादा ध्यान रखती हैं….. क्या भाभी ने आपसे कुछ कहा है। ?? ,, वंदना बेचैन होते हुए पूछने लगी।
” कुछ क्या बेटा … अब तो सब कुछ वो मुझे ही कहती है । आफिस से आने के बाद एक गिलास पानी के लिए भी मुझे आवाज देती है । नाश्ते में थोड़ी देर हो जाए तो मदद करने के बजाय गुस्सा होकर यूं ही बिना खाए चली जाती है। आखिर मेरा भी कुछ आत्मसम्मान है या नहीं ?? मैं तो उसके लिए बस कामवाली बन कर रह गई हूं । ,,
” मां ये तो बहुत गलत बात है …. आप भाई से साफ- साफ कह क्यों नहीं देतीं कि अपनी बीवी की लगाम खींच कर रखे …. आप मां हैं कोई नौकरानी नहीं । भाभी नौकरी करती है इसका मतलब ये नहीं कि आप पर हुकुम चलाएगी।,, गरजते हुए वंदना बोली।
” किस मुंह से कहुं बेटा?? पहले तो खुद मैंने ही आगे बढ़कर कुल्हाड़ी पर अपना पैर दे मारा फिर शिकायत किससे करूं!!!! ‌ तेरे पापा ने तो कहा भी था कि बहू को ज्यादा छूट दोगी तो बाद में पछताओगी …. लेकिन मैं ही बडाई की भूखी थी जो अपनी बहू को सर पर चढ़ा लिया । ……. एक बात कहू बेटा…. तूं चाहे अपनी सास को कुछ भी कह लेकिन समधन जी का ये फैसला सही था कि वो बहू को रोटियां बनाकर नहीं खिलाएंगी। एक बार वो सबकी नजरों में बुरी अक्खड़ सास तो बन गई लेकिन आगे के लिए कम से कम अपना आत्मसम्मान तो बचा लिया । अब ना तो तूं उन्हें कोई ताना दे सकती है और ना ही कोई रिश्तेदार ….. काश मैंने भी शुरू से ही ये घर- गृहस्थी की पूरी जिम्मेदारी अपने सिर पर लेने से इंकार कर दिया होता तो आज मेरा ये हाल ना होता । ,,
मां की बातें सुनकर वंदना निशब्द हो गई। भारी मन से उसने फोन रख दिया। बाहर हाॅल में आकर देखा तो सास ससुर आराम से बैठकर बातें कर रहे थे। बातें करते- करते उसकी सास अपने नाखूनों पर नेल पेंट लगा रही थीं जिसे देखकर ससुर जी उन्हें चिढ़ा रहे थे ,” अब बुढ़ापे में ये फैशन करके किसे दिखाओगी ?? मेरी तो नजर भी कमजोर हो गई है । ,,
” किसी को नहीं दिखाना मुझे … मैं तो अपनी खुशी के लिए लगाती हूं । सारी उम्र तो घर गृहस्थी में उलझी रही अब अवकाश का वक्त आया है तो अपने शौक तो पूरे कर लूं….. पता नहीं कब भगवान के घर से बुलावा आ जाए … ।,, वंदना की सास मुस्कुराते हुए बोली।

पता नहीं आज क्यों वंदना अपनी सास की बातें सुनकर चिढ़ नहीं रही थी बल्कि वो भी मुस्कुरा उठी ….” सही तो कह रही हैं मम्मी जी , एक गृहणी को अपने लिए वक्त ही कब मिलता है पहले अपने बच्चों को पाल पोस कर बड़ा करो फिर कामकाजी बहू आ जाए तो उसे और उसके बच्चों को संभालो …. काश मेरी मां ने भी मेरी सास की तरह पहले ही कह दिया होता कि बहू को रोटियां बनाकर नहीं खिला सकती …….