क्या आप जानती हैं 'सुपरवुमन सिंड्रोम' के बारे में, अगर नहीं तो जान लीजिए: Superwoman Syndrome
Superwoman Syndrome

Superwoman Syndrome: इसमें कोई शक की बात नहीं है कि आज की हर महिला सुपर वुमन है। वो घर की जिम्मेदारियां भी निभाती हैं तो ऑफिस में अपनी जगह भी बनाती हैं। वे बच्चों के साथ खेलती हैं, तो बुजुर्गों का दुख दर्द भी समझती हैं। वो घर की फाइनेंशियल मैटर्स का ध्यान रखती हैं तो आउटिंग के प्लान भी बनाती हैं। कुल मिलाकर हर महिला अपना हर कर्तव्य पूरी निष्ठा से निभाती है। लेकिन कहीं ऐसा तो नहीं है कि इस परफेक्शन के चक्कर में आप खुद को कहीं पीछे छोड़ आई हो। 

खुद की बनाई उलझन है सुपरवुमन सिंड्रोम 

Superwoman Syndrome
Due to proving themselves better in every field, women often fall prey to superwoman syndrome.

हर क्षेत्र में खुद को बेहतर साबित करने की दौड़ के कारण अक्सर महिलाएं सुपरवुमन सिंड्रोम की शिकार हो जाती हैं। ऐसे में अकसर उनके पास खुद के समय नहीं होता, न ही एनर्जी होती है। धीरे-धीरे वे इतना थक जाती हैं कि किसी का भी ध्यान नहीं रख पातीं। इस सिंड्रोम का सबसे ज्यादा शिकार होती हैं वर्किंग वुमन। वे दोहरी जिम्मेदारी संभालती हैं। वे हर क्षेत्र में खुद को साबित करना चाहती हैं और ऐसे में जाने अनजाने इस सिंड्रोम की शिकार हो जाती हैं। यह एक तरह का डिप्रेशन है। जिसमें महिलाएं कोई काम ठीक से न कर पाने पर आत्मग्लानि महसूस करने लगती हैं। यह शब्द सबसे पहले 1984 में सामने आया। जब महिलाएं सबको खुश रखने के चक्कर में अपनी खुशियां भूल बैठीं। वे अपने पर ध्यान ही नहीं देती थीं। 

किसी भी पायदान पर फिसलने का डर

भारतीय समाज की रचना इस प्रकार हुई है कि यहां महिलाएं खुद पर एक पियर प्रेशर फील करती हैं।
Indian society is structured in such a way that women here feel peer pressure on themselves.

विभिन्न शोध बताते हैं कि भारतीय समाज की रचना इस प्रकार हुई है कि यहां महिलाएं खुद पर एक पियर प्रेशर फील करती हैं। ऐसे में सुपरवुमन बनना महिलाओं की मजबूरी हो जाती है। समाज और परिवार भले ही यह चाहे कि महिला अपना करियर बनाए, लेकिन वह ये भी चाहते हैं कि महिला घर की हर जिम्मेदारी भी पूरी निष्ठा से निभाए। वो अच्छी बहू बने, अच्छी पत्नी बने, अच्छी मां बने और बाकी रिश्तों को भी पूरी अहमियत दे। किसी एक भी पायदान पर फिसलने पर उसे ही इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है। ऐसे में महिलाएं कहीं न कहीं इस सिंड्रोम का शिकार हो जाती हैं।   

ये हैं सुपरवुमन सिंड्रोम के संकेत 

Superwoman Syndrome Symptoms
There are many signs of superwoman syndrome, but women often don’t recognize them

सुपरवुमन सिंड्रोम के कई संकेत हैं, लेकिन अक्सर महिलाएं उन्हें पहचान नहीं पाती हैं। अगर आप हमेशा बहुत ज्यादा थकान महसूस करती हैं। तो ये इस सिंड्रोम के संकेत हो सकते हैं। इसी के साथ दिनभर की थकान के बाद भी नींद न आना, बार-बार सिरदर्द या माइग्रेन होना, हमेशा चिंताग्रस्त रहना, कोई भी हैंसला लेना में परेशानी होना या फिर किसी भी काम पर पूरा ध्यान न लगा पाना इस सिंड्रोम के संकेत हैं। इसी के साथ कई बार महिलाएं खाली समय में भी एंजॉय नहीं कर पातीं, अपनी देखभाल पर ध्यान नहीं देती, ये भी इसी के लक्षण हो सकते हैं।  

सुपरवुमन सिंड्रोम से निपटने के तरीके

हर महिला एक फाइटर होती है। वह हर परिस्थिति को हैंडल करने की ताकत रखती है।
Every woman is a fighter. She has the power to handle every situation.

हर महिला एक फाइटर होती है। वह हर परिस्थिति को हैंडल करने की ताकत रखती है। ऐसे में ये जाहिर है कि वह इस सिंड्रोम से लड़ने में ही नहीं इससे छुटकारा पाने में भी समर्थ है। बस जरूरत है सही समय पर कदम उठाने की। 

अपनी प्राथमिकताएं तय करें

सबसे पहले आप लाइफ के उन क्षेत्रों को पहचानें जो आपके लिए सबसे इंपोर्टेंट हैं। आपको यह बात स्वीकारनी होगी कि आप हर क्षेत्र में परफेक्ट नहीं हो सकती हैं। न ही हर किसी को संतुष्ठ करना संभव है। अगर आप खुद खुश रहना चाहती हैं तो आपको अपनी उन जिम्मेदारियों को छोड़ना होगा, जो कम जरूरी हैं। अगर कोई काम पूरा भी नहीं होता है तो उसके लिए आप खुद को जिम्मेदार न मानें।  

प्रगति पर दें ध्यान 

आप पूर्णता की जगह प्रगति पर ध्यान दें। वो काम भी करें जिससे आपके स्किल डेवलप हों। इस बात को स्वीकार करें कि गलतियां जीवन का एक सामान्य हिस्सा है। कोई भी परफेक्ट नहीं होता। इसलिए आप भी परफेक्ट होने की कोशिश में खुद को परेशान न करें।  

‘ना’ कहना सीखें

आप मुखर रहें और जब जरूरत हो तो ना कहना सीखें।
Be assertive and learn to say no when it is necessary.

आप हर किसी की इच्छाओं या मांगों को पूरा नहीं कर सकती हैं। मुखर रहें और जब जरूरत हो तो ना कहना सीखें। यह आपके वर्क लोड और टेंशन के स्तर को कम करने में मदद करेगा। आप रिलेक्स फील करेंगी।

अकेले काम में न जुटे, काम बांटे

अकेले काम पूरा करने की कोशिश में आप खुद भी परेशान रहेंगे और काम भी पूरा नहीं हो पाएगा। इसलिए आप काम को बांटना सीखें। न कि सभी कार्यों को स्वयं पूरा करने का बोझ उठाएं। परिवार, फ्रेंड्स और अपने ऑफिस के साथियों को सपोर्ट सिस्टम के रूप में काम सौंपें। इससे काम जल्दी होगा, आसानी से होगा और आप परेशान भी नहीं होंगी।  

खुद से प्यार करना सीखें 

आप अगर खुश रहना चाहती हैं तो सबसे पहले खुद से प्यार करना सीखें। मुश्किल समय में नेगेविट न सोचें, बल्कि पॉजिटिव रहकर उनका सामना करें। खुद की शारीरिक, मानसिक और इमोशनल हेल्थ पर ध्यान दें। ऐसी एक्टिविटी करें, जिससे आपको खुशियां मिलती हैं। खुद को आराम देने की कोशिश करें। अपनी हॉबी को पहचानें, फैमिली के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड करें, छोटी-छोटी ट्रिप्स प्लान करें। इन कोशिशों को असर आपको जरूर दिखेगा। 

अपनी बाउंड्री सेट करें 

अपनी सुपरवुमन बनने की बाउंड्री तय करें, ये काम आप खुद करें, दूसरों को ये तय करने की इजाजत न दें। बस अब इसी सीमा तक आप काम करें। आप जितना काम अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार कर सकती हैं, उतना ही करें। बस इन कामों की प्राथमिकताएं तय जरूर करें।  

खुशियों के लिए न रहें किसी पर निर्भर

अपनी खुशियां आप दूसरों को खुश करने में खोजना छोड़ दें।
Stop finding your happiness in making others happy.

अगर आप अपनी खुशियों के लिए दूसरों पर निर्भर हैं तो आप परेशानी में पड़ सकती हैं। अपनी खुशियां आप दूसरों को खुश करने में खोजना छोड़ दें। आप अपनी खुशियां खुद पाना सीखें। वो ही काम करें जिससे आप खुश हैं। ध्यान रखिए जब आप खुद अंदर से अच्छा फील करेंगी, तब ही दूसरों की मदद कर पाएंगी। 

खुद को परिपूर्ण न समझें

सुपरवुमन सिंड्रोम हमारा अपना बनाया हुआ है। आपको ये बात समझनी ही होगी कि कोई भी परफेक्टर नहीं होता, आप भी नहीं हैं। न ही आप हमेशा सबके तय मानदंड़ों पर खरी उतर सकती हैं। इसलिए आप ऐसी गलती न करें क्योंकि इसके भंवर में आप खुद ही फंस जाएंगी। 

मैं अंकिता शर्मा। मुझे मीडिया के तीनों माध्यम प्रिंट, डिजिटल और टीवी का करीब 18 साल का लंबा अनुभव है। मैंने राजस्थान के प्रतिष्ठित पत्रकारिता संस्थानों के साथ काम किया है। इसी के साथ मैं कई प्रतियोगी परीक्षाओं की किताबों की एडिटर भी...

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