Hindi Love Story: “चाय बहुत अच्छी बनी है, आज सुबह की पहली चाय और यह बिस्कुट। पता है तुम्हें मुझे तुम्हारे साथ बालकनी में चाय पीना बहुत पसंद है , मेरे मन के हर कोने में ताजगी भर जाती है ” शिवम अपनी पत्नी अर्चना को यह सब कुछ बहुत ही प्यार से कह रहा था,क्योंकि कल शाम से ही उसके गुलाब के फूलों के जैसा चेहरा सर्दी के कोहरे के कारण उत्पन्न हुई ओस से बेजान हुए गुलाब के फूलों की पंखुड़ियों के जैसे हो गया था। शिवम ने उससे कई बार पूछा मगर हर बार उसका एक ही उत्तर था ,बस ऐसे ही मन नहीं लग रहा है, बस कुछ पलों के लिए अकेले रहना है। अर्चना से कोई प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं होने पर वह कुछ पलों बाद अपने दफ्तर के लिए घर से निकल जाता है। अर्चना शिवम को दरवाजे तक छोड़ कर वापस बालकनी में आ जाती है। अर्चना कल रात को कॉलोनी के पार्क में नियमित ही टहल रही थी,तभी उसे एक पेड़ के पीछे किसी के चिल्लाने और रोने की आवाजें सुनाई देती हैं, जिन्हें सुनकर वह पास जाकर देखती है, कि एक आदमी एक स्त्री को डांट रहा है, आपसी मामला जानकर अर्चना वहां से चली जाती है और अपने घर पर पहुंचकर बालकनी में किताब पढ़ने लग जाती है। तभी थोड़ी देर बाद वह दोनों उसके सामने वाले घर में चले जाते हैं वह स्त्री बहुत खुश नज़र आ रही थी। शिवम से अर्चना ने अपने सामने वाले घर के बारे में पूछा तो उसे पता चला, कि इस घर में एक दंपती रहता है, जो कि कॉलोनी का सबसे सफल दंपती कहलाता है, न कोई लड़ाई न कोई झगड़ा दंपती में बहुत तालमेल है। शिवम अर्चना को चिढ़ाते हुए कहता है – ” उसकी मांग में ” सिंदूर “बहुत बड़ा रहता है और एक तुम्हारा इतना – सा “सिंदूर” रहता है वह भी अदृश्य अवस्था में,मुझे तो अब जलन होने लगी है “।
अर्चना सोच में पड़ जाती है,क्या गुजरती होगी उस पर वह कुछ दिनों तक यह सब कुछ देखती है और फिर एक दिन उससे मित्रता कर लेती है,उसका परिचय पूछने पर वह अपना नाम मालती बताती है और अपने पति का नाम धीरज जो कि एक प्राइवेट बैंक में मैनेजर का काम करते हैं, अर्चना उसके दिल को ढूंढने की कोशिश करती है कि क्या कभी इस दिल में दर्द नहीं उठता ? क्या कभी उसका मन विरोध नहीं करता ? क्या वह इन सब चीजों से आजाद नहीं होना चाहती ? अर्चना उसे बहुत बार अपने घर पर बुलाती,कभी शाम की चाय ,तो कभी घर पर पूजा के लिए ,कभी बाज़ार जाने के लिए , मगर वह हर बार टाल देती कि उसके पति को अच्छा नहीं लगेगा, उन्होंने मना कर दिया है, उनसे पूछ कर बताती हूं। अर्चना जब भी मालती को देखती तो वह दुखी होने लग जाती और सोचने लग जाती कि वह मालती की मदद कैसे करे ? क्योंकि धीरज का व्यवहार भले ही कॉलोनी और दुनिया की नजरों में मालती के लिए अच्छा हो मगर वास्तविकता में घर के अंदर मालती सिर्फ उसकी गुलाम है,उसको जैसा उसके साथ व्यवहार सही लगता है वह करता है बिना कुछ सोचे समझे। मालती ख़ुद के लिए न स्वयं आवाज उठा रही थी और न ही दूसरों को आवाज़ उठाने दे रही थी और धीरज ” विवाह के पावन रिश्ते” का फायदा उठा रहा था। अर्चना अपनी तुलना मालती के साथ में करने लग जाती है। मालती भी विवाहित है , मैं भी हूं, आर्थिक स्थिति हम दोनों की मजबूत है,मगर एक चीज जो मालती के पास नहीं है वह है “सम्मान”।
अपने मन में आ रहे इन सभी सवालों के जवाब अभी अर्चना ढूंढ ही रही थी कि दरवाजे पर घंटी बजती है अर्चना दरवाजा खोलती है , उसे कॉलोनी के चौकीदार श्री निवास जी नमस्ते करते हैं और एक सूचना पत्र देते हैं, जिसको पढ़कर अर्चना समझ जाती है कि कॉलोनी में नवरात्रि के पावन अवसर पर ” सिंदूर खेला ” कार्यक्रम किया जा रहा है। अर्चना सूचना पत्र में मालती के दस्तखत को भी देखती है और एक मौक़ा समझकर अपने दस्तखत भी कर देती है। वह फिर इस पावन अवसर पर मालती की सहायता करने के लिए योजना बनाने लग जाती है, मगर तभी उसे कुछ आवाज़ें आना शुरु हो जाती हैं। जिसको सुनकर वह बालकनी में जाकर देखती है तो उसे समझने में देर नहीं लगती , कि यह रोने की आवाज किसी और की नहीं बल्कि मालती की है, तभी उसे बालकनी में धीरज कुछ पेपर्स पर दस्तख़त करता हुआ दिखाई देता है, कुछ ही पलों के बाद धीरज मालती से कहता है – ” इस नवरात्रि के बाद तुम्हारा और मेरा रिश्ता ख़त्म, और तुम्हें अब अपनी मांग में मेरे नाम का यह “सिंदूर “लगाने की भी अब कोई जरुरत नहीं है”। मालती धीरज के पांव में गिर जाती है और ऐसा नहीं करने की लिए कहती है,मगर धीरज उसे धक्का देकर चला जाता है,मालती वहीं जमीन पर गिरे हुए ही रोने लगती है।
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तीन दिन बाद नवरात्रि का पावन त्यौहार शुरू हो जाता है हर दिन कोई प्रतियोगिता , कोई नई रस्म का कार्यक्रम होने लगता है, फिर “सिंदूर खेला” कार्यक्रम होता है जिसमें पहले एक नाटक होता है जिसकी पूरी कहानी मालती और धीरज के दांपत्य जीवन पर केंद्रित होती है, मालती और धीरज दोनों यह देखकर डर जाते हैं, तभी अर्चना मंच पर मालती को एक प्यारा भाषण ” सिंदूर ” पर देने के लिए बुलाती है। मालती कुछ बोल नहीं पाती है, तभी अर्चना मालती के कंधे पर हाथ रखकर कहती है – “डरो मत”। मालती दो शब्द बोलने के बाद चुपचाप अपनी सीट पर जाकर बैठ जाती है। अर्चना समझ जाती है “समाज का डर और उसके पति की धमकियों के कारण उसके शब्दों ने अपनी ताकत खो दी है”।
अर्चना अपना भाषण देना शुरु कर देती है, ” नवरात्रि का यह पावन त्यौहार हमें माता के प्रति अपनी भक्ति दिखाने और स्वयं में उनका अंश मानने का एक सुनहरा अवसर प्रदान करता है, यह ” सिंदूर खेला ” का कार्यक्रम सिर्फ हमारे सजने का ही नहीं बल्कि यह याद रखने का भी है कि हमारी मांग की यह “सिंदूर रेखा ” हमारे दांपत्य जीवन और आत्म सम्मान की रेखा है,जब हमारे पति इसमें अपनी माता के आशीर्वाद का ” सिंदूर “अपने हाथों से भरते हैं तो यह समर्पण का प्रतीक होता है न केवल शारीरिक स्तर पर बल्कि आत्माओं के स्तर पर। हमारा आत्म सम्मान और स्वाभिमान अलग – अलग नहीं बल्कि एक हो जाता है। क्या विवाह एक बंधन होता है? क्या विवाह में सिर्फ नारी को ही त्याग करना होता है? क्या मांग में “सिंदूर ” भरने से नारी मानव नहीं एक वस्तु बन जाती है? क्या गले में मंगल सूत्र बांधने से नारी एक गुलाम बन जाती है? नहीं बिल्कुल नहीं। यह “सिंदूर ” सिर्फ एक रस्म या दिखावा नहीं होता है। यह हमारी आत्माओं का एक साथ होने का प्रमाण होता है”।
तभी कुछ ऐसा होने लग जाता है जिसका अर्चना ,मालती ,शिवम, एवम वहां उपस्थित किसी को भी विश्वास नहीं था, धीरज मालती को उसका हाथ पकड़कर माता की प्रतिमा के सामने लेकर आ जाता है और उसके सामने अपने घुटनों पर बैठकर अपने द्वारा किए गए उसके साथ बुरे व्यवहार की माफ़ी मांगने लग जाता है, धीरज की आँखों में आंसू आ जाते हैं। वह स्वयं को अपराधी मानकर अपनी गलतियों को सुधारने का एक मौका मालती से मांगने लग जाता है। मालती धीरज को अपने हाथों से उठाती है और रोने लग जाती है, दोनों फिर एक – दूसरे के गले लग जाते हैं, मालती धीरज को उसके द्वारा किए गए अपराध की माफ़ी दे देती है। यह सब कुछ वहां उपस्थित कोई भी समझ नहीं पाता मगर धीरज, मालती और अर्चना सब कुछ समझ जाते हैं, यह उनकी आँखों की चमक एवम उनके आंसू साफ – साफ बता रहे थे।
इससे पहले कोई और कुछ समझ पाता। अर्चना ने दोनों को नीचे आने का इशारा कर दिया। ” सिंदूर खेला ” कार्यक्रम में अब सभी पतियों को अपनी- अपनी पत्नियों की मांग में माता रानी के आशीर्वाद स्वरूप ” सिंदूर” को भरना था। इसलिए सभी ने यह रस्म बहुत अच्छे से निभाई। मालती की मांग का सिंदूर आज बहुत निखार ला रहा था क्योंकि आज पहली बार धीरज ने मालती की मांग में “सिंदूर” अपने पति ही नहीं बल्कि एक जीवन साथी और एक प्रेमी के रुप में लगाया था। मालती आज सच्चे और सही शब्दों में धीरज की प्रेमिका और जीवन साथी बनी थी। मालती आज अंदर से खुश थी। मालती को खुश देखकर अर्चना बहुत खुश होती है। वह माता रानी का धन्यवाद करती है कि उन्होंने उसे शक्ती दी, अपना साथ एवम आशीर्वाद दिया जिसके कारण उसने आज मालती की मांग का ” सिंदूर” बचा लिया , एक दांपत्य जीवन को टूटने से भी बचा लिया। उसे अपने नारी होने पर बहुत ही गर्व हो रहा था। तभी सिंदूर को हाथ में लिए शिवम आता है , अर्चना उसे अपनी मांग की ” सिंदूर रेखा ” में “सिंदूर” भरने की इजाजत दे देती है , शिवम अर्चना की मांग में “सिंदूर” भर देता है।
