Short Story in Hindi: शिवम रोज ऑफिस जाने के लिए ब्लू लाइन मेट्रो पकड़ता था। उसकी आदत थी, मेट्रो में घुसते ही सबसे पहले अपनी जगह पक्की करना और फिर मोबाइल पर इंस्टाग्राम खोलकर रील्स स्क्रॉल करना।
उसी मेट्रो में रोज एक लड़की आती थी — काव्या। बड़े-बड़े चश्मे, हाथ में किताब, और चेहरे पर इतनी सीरियसनेस जैसे पूरे देश की जिम्मेदारी उसी पर हो।
शिवम ने उसे पहले दिन देखा तो दिल में हल्की-सी घंटी बजी। अगले दिन फिर देखा— घंटी थोड़ी तेज़ हुई। तीसरे दिन तो घंटा ही बजने लगा।
अब शिवम ने ठान लिया — बात करनी ही करनी है।
पर दिक्कत ये थी कि काव्या हमेशा किताब में घुसी रहती। एक दिन मेट्रो इतनी भीड़ से भरी कि काव्या को संभलने में दिक्कत हुई। उसकी किताब हाथ से गिर पड़ी। शिवम ने झट से किताब उठाई और बोला:
“लो मैडम! आजकल के टाइम में किताबें कौन पढ़ता है, आप ही हो सच्ची विदुषी!”
काव्या ने चश्मे के पीछे से उसे घूरा। फिर बोली, “मुझे किताबों से प्यार है। तुम क्यों घुस रहे हो बीच में?”
शिवम बुरी तरह झेंप गया। पर हार मानने वाला कहाँ था!
दूसरे दिन, उसने मेट्रो में चॉकलेट का पैकेट निकाला और काव्या की ओर बढ़ाया। काव्या ने पहले तो घूरा, फिर बोली:
“डायबिटिक हूँ मैं।”
शिवम ने सोचा, अबे ये लड़की है या एंटिवायरस? सब कुछ ब्लॉक कर रही है!
तीसरे दिन शिवम ने आखिरी चाल चली। उसने अपने मोबाइल पर काव्या की पसंदीदा किताब की e-book खोल रखी थी। जैसे ही काव्या पास आई, उसने स्क्रीन उसकी तरफ कर दी और बोला, “देखो! मुझे भी किताबों से प्यार हो गया है… शायद तुम्हारी वजह से।”
काव्या का चेहरा पहले तो हैरान हुआ, फिर मुस्कुराया। बोली, “प्यार किताबों से या मुझसे?”
शिवम बोल पड़ा, “सच बोलूं? दोनों से।”
काव्या हंस पड़ी। बोली, “चलो अच्छा है, वरना मैं सोच रही थी कि तुम कोई स्टॉकर टाइप हो!”
शिवम ने राहत की सांस ली। बोला, “स्टॉकर नहीं, बस लव-राइडर।”
उस दिन दोनों साथ मेट्रो से उतरे। स्टेशन पर शिवम ने कहा, “कल फिर यहीं मिलेंगे ना?”
काव्या ने शरारती अंदाज़ में जवाब दिया, “हाँ, पर एक शर्त पर — कल तुम मेरी पसंदीदा कविता सुनाओगे।”
शिवम ने सिर झुकाया, “तुम कहो तो पूरी मेट्रो में माइक पकड़ के सुना दूं!”
काव्या फिर खिलखिलाई। और इस तरह मेट्रो की भीड़ में, धक्कों के बीच, एक नई लव-स्टोरी शुरू हो गई।
क्योंकि मेट्रो में ना सिर्फ लोग सफर करते हैं — कभी-कभी दिल भी सवारी कर जाते हैं।
