Romantic Story in Hindi: बात उन दिनों की है जब मैं कॉलेज मेट्रो से आया-जाया करती थी। एक जैसा रूटीन, सुबह मेट्रो पकड़ कर पहला लेक्चर अटेंड करना और फिर शाम को थके हारे वापिस वहीं खिचपिच मेट्रो में दबे दबे, कभी खड़े होकर घर पहुँचना। एक दिन अचानक मैंने महसूस किया कि एक लड़का मेरी ही उम्र का लगभग उसी सीट पर बैठता जिस पर वो ज्यादातर बैठा करता था।
वो एक किताब पर नज़रें टिकाए रहता था, जिसका टाइटल था ‘तलाश’। मुझे बस किताब का टाइटल दिखता था क्योंकि ज्यादातर समय उसका चेहरा किताब से ढका रहता था! कभी-कभी जब मेट्रो का ब्रेक लगता, उसका चेहरा नजर आ जाता, और फिर से किताब से ढक जाता। मुझे उसका साधारण सा व्यक्तित्व, गंभीर स्वभाव मन ही मन भाने लगा। वो किताब पढ़ता और मैं उसे ही पढ़ती रहती।लेकिन उसने कभी मेरी तरफ गौर से नहीं देखा। देखता तो “वो” शायद पाता कि मैं कितना खो गई थी उसमें! उससे बात करने का मन बनाने लगी! मेरा सफर थकने वाला नहीं बल्कि मनोरंजक लगने लगा। धीरे-धीरे मैं स्वतः ही उसके इतने करीब आ गई थी कि हर समय उसे ही देखने की इच्छा जगने लगी, लेकिन वो था कि नजरें ही न मिलाता था!उस दिन मेट्रो में चढ़ी, वो वहीं बैठा मिला। मैंने सोचा आज मैं कॉलेज के लिए नहींउतरूँगी। ये जहाँ तक जाएगा वहाँ तक साथ जाऊँगी, देखूँ कहाँ उतरता है? फ़िर वहीं उसे अपने दिल की बात कर लूँगी। वो रोजाना की तरह किताब का आखिरी पन्ना पढ़ने में लगा था। मेरा ध्यान मेरे मोबाइल पर गया, फिर मेरी नजर उधर गई, देखा कि सीट से वो अचानक गायब हो गया।
मैंने खड़े होने की कोशिश की, तो देखा वो सीट पर अपनी किताब ‘तलाश’ भूल गया है! मैंने लपक कर किताब सीने से लगा ली और अगले स्टेशन पर उतर गई। किताब के अंतिम पृष्ठ पर एक सुंदर सी लेखनी में कुछ लिखा था जिसे मैंने चुपचाप सबकी नजर से बचाकर पढ़ा –
‘प्रिय पाठकों, जो भी इस पुस्तक को ले जाए वो इसे मेट्रो में बैठकर ही पढ़े और जिस जिंदगी का वर्णन इस किताब में है वो मैंने इस भीड़भाड़ वाली मेट्रो में जीवंत महसूस किया है। वाकई मेरी तलाश पूरी हुई। आपका अपना एक हमसफर।’
बस मैं तब ये ही जान पाई की वो वाकई एक फरिश्ता था। इस जवानी में जिसे किसी और चीज की तलाश होनी चाहिए थी, उसे छोड़ हकीकत तलाश रहा था! उसकी तलाश पूरी हो गई थी, लेकिन मेरी तलाश अभी भी जारी थी। मैं सोचने लगी कि क्या प्यार से परे भी कोई तलाश हो सकती है?
तलाश—गृहलक्ष्मी की लघु कहानी
