इंसान की कीमत—गृहलक्ष्मी की लघु कहानी
Insaan ki Kimat

इंसान की कीमत-दीनू के बेटे की तबीयत खराब थी । सरकारी अस्पताल में इलाज कराकर वह थक चुका  था । काफी रुपये खर्च कर चुका था । इसके बावजूद उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा था । काफी जांच के बाद पता चला कि उसके बेटे का एकमात्र इलाज ऑपरेशन है । ऑपरेशन  में एक लाख रुपये खर्च होने का अनुमान था । गरीब दीनू इतने रुपये कहां से लाता ? उसके इलाज में तो पहले ही जो थोड़ी -बहुत जमीन थी वह भी बिक गयी थी । घर भी गिरवी रख दिया था । वह सरकारी अस्पताल के डॉक्टर से आरजू मिन्नत करने लगा । लेकिन सरकारी अस्पताल के डॉक्टर ने उसे समझाते हुए कहा -” दीनू ! मैं सब समझता हूं । मैं विवश हूं । मैं कुछ नहीं कर सकता । तुम “शहर के किसी बड़े अस्पताल में जाओ । वहीं इसका इलाज संभव है । मैं कुछ नहीं कर सकता ।“

दीनू रुपयों के जुगाड़ में लग गया । लेकिन गरीब -फटेहाल को रुपया कौन देता ? वह थक -हारकर बैठ गया । अंतत: घर भी बेच दिया । मजबूरी का लाभ उठाया घर खरीदने वाले ने । इधर उसके बेटे की तबियत और अधिक खराब हो गयी । वह बचे -खुचे पैसे को लेकर शहर के बड़े अस्पताल में गया । फीस के नाम पर ही मोटी रकम वसूल ली ।
डॉक्टर ने देखते ही कहा – ” इसकी हालत बहुत खराब है  । जल्द ऑपरेशन करना होगा । अन्यथा इसको बचाना मुश्किल हो जाएगा। “शीघ्र रुपये की व्यवस्था करो । “

यह सुनते ही दीनू और उसकी पत्नी सन्न रह गये । दोनों बच्चे को जमीन पर लिटाकर डॉक्टर के पैरों पर गिर गये । आंसू बहाते हुए कहने लगे -” डॉक्टर साहब ! इसके इलाज में पहले ही घर -द्वार बिक गए । गरीब को कौन कर्ज देगा । मेरे बच्चे को बचा लीजिए बाबू जी ! मेरे पास तो अब फूटी- कौड़ी भी नहीं है । अब आप ही सहारा हैं । इस असहाय गरीब के बच्चे को नया जीवन दे दीजिए । मुझसे अब रुपयों का इंतजाम नहीं हो पायेगा । “
यह सुनते ही डॉक्टर भड़क गया और बोला – ” यह बिना पैसे का इलाज संभव नहीं है । यहां खैरात नहीं बंटता है । तुम जैसे लोगों के लिए सरकारी अस्पताल खुला है । बच्चे को उठाओ और यहां से दफा हो जाओ । “
दीनू और उसकी पत्नी बच्चे को उठाकर बाहर जाने लगे । दीनू बच्चे को एकटक निहार रहा था और बच्चे ने सदा के लिए अपनी आंखें मूंद ली । उसकी पत्नी दहाड़ मारकर रोने लगी ।
दीनू पत्थर की बुत बना सोच रहा था -” क्या मानवता मर गयी ? क्या धरती के भगवान इतने निर्दयी होते हैं ? इंसान की जिंदगी की कीमत रुपयों से आंकी जाती है या फिर गरीब के बच्चे को जीने का हक नहीं ! “ वह अपने आपको कोसते हुए ईश्वर से कह रहा था -” कैसा है तेरा यह संसार भगवान ! “

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