भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
इतवार की सुबह रेखा गार्डन में बैठकर मीठी-मीठी हवा का आनंद ले रही है। सामने बच्चे खेल रहे हैं मानो गार्डन में रंग-बिरंगी तितलियाँ इधर से उधर खेल रही हों। बीच-बीच में जब बच्चे रेखा को माँ की आवाज़ से पुकारते, तो रेखा की ममता समुद्र की लहरों की भांति उमड़ पड़ती और वह खुद को दुनिया की सबसे किस्मत वाली माँ समझती। वह विचारों का स्वेटर बुन ही रही थी, तभी संजू आया, बोला मैडम आपसे मिलने कलेक्टर साहब आये हैं।
रेखा कुछ कह पाती उससे पहले ही अतीत का जो दरवाज़ा उसने दस वर्ष से बंद किया था वह खटाक से खुल गया और वह उन दरवाजों के अंदर घुसती ही चली गई। रेखा चार बहनों मे सबसे छोटी पर पढ़ाई में खूब होशियार। उस दिन उसके एम. ए. का आखिरी पेपर था, माँ ने दही खिलाया और बोली, ‘आज तेरे पेपर खत्म अब शादी की तैयारी करनी है।’ रेखा ने कहा ‘ठीक है माँ’, हंसते हुए पेपर देने निकल गई। सोच रही थी, सच में अब एक माह ही बचा है माँ के पास रहने के लिए, एक माह बाद उसका विवाह जो होने वाला था। पेपर देकर कॉलेज से निकलते हुए सब सहेलियां हंसी-मजाक कर रहीं थी, रेखा भी उनको विवाह में आने का निमंत्रण दे रही थी। अचानक उसकी निगाह एक गाय के बच्चे पर पड़ी जिसका एक पैर रेल की पटरी में फसा हुआ था। उसका मन विचलित हो गया, उसकी मदद हेतु रेखा ने अपनी सहेलियों को बोला पर सभी अपनी ही मस्ती में आगे चली गईं। रेखा अकेले ही उस मासमू जानवर की मदद में जुट गई, बड़ी कोशिश के बाद उसको सफलता भी मिली, वह बड़ी खुश हुई कि वह किसी की मदद कर पाई और सोच रही थी जब माँ को इस घटना की जानकारी दूंगी तो माँ बहुत ही खुश होंगी। उसके बाद तो उसको होश तब आया जब उसका खुद का पैर कट गया। ट्रेन कब उसके सपनो की डोर को काट गई, उसको पता भी नहीं चला। उसकी माँ फूट-फूट कर रो रही है, आंसू रुकने का मानो नाम ही नहीं ले रहे हों। पिता के देहांत के बाद माँ ने बहुत मेहनत की थी। पिताजी के होते हुए दो बहनों की ही शादी हुई थी, मेरी शादी करके माँ अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्त होना चाह रही थी, यह मैंने क्या किया, मैं निर्दोष होते हुए भी खुद को दोषी मान रही थी। मैंने सोचा था, शादी के बाद माँ का सहारा बनूंगी पर मैं तो खुद ही बोझ बन गई हूँ। रेखा और उसका परिवार इस दुख से निकल भी नहीं पाए थे कि उनके ऊपर मानो एक और मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा, रमेश जो कि रेखा से ताउम्र साथ निभाने का वादा कर चुका था।
आज उसके अपाहिज होने के दस दिन बाद ही रिश्ता तोड़ दिया। रेखा अपने आंसू रोकने की कोशिश कर रही थी। पर रोक नहीं पा रही थी और उसके आँखों से आंसू बह उठे। माँ ने उसे गले लगा लिया और बोली, बेटी इन आंसुओं को बह जाने दो अगर इनको रोक लिया तो यह तुझे हमेशा कमजोर करेंगे। अपने आपको चट्टान बनाना है कमजोर नहीं। मैं तुम्हारे साथ हूं बेटी। रेखा और मां कितने घंटों तक एक-दूसरे के गले लग रोती रही। बस उस दिन सोच लिया था, वह कमजोर नहीं मजबूत ही बनेगी। पिताजी के जाने के बाद मां ने किस तरह अपनी ज़िम्मेदारी निभाई। मां चाहती तो दूसरी शादी भी कर सकती थी, अपनी ज़िन्दगी जी सकती थी पर उन्होंने पूरी ईमानदारी के साथ अपनी ज़िम्मेदारी निभाई। मेरे पैदा होते ही कई लोगों ने कहा चौथी बेटी है किसी को दे दो। मां ने यह स्वीकार नहीं किया। अब मेरी बारी थी मां के एहसान चुकाने की। रेखा समझ गई थी ज़िन्दगी अब रोकर नहीं, लड़ कर जीनी है। सिर झुका कर नहीं, इज्जत से जीनी है। शायद यह तूफान जो आया है मुझे उड़ाने नहीं मुझे मजबूत बनाने आया है। उस दिन मेरी मौत भी हो सकती थी परंतु अगर सांसे खुदा ने बख्शी हैं तो उसका कुछ तो मकसद है, बस मुझे अब वही मकसद तलाशना है।
रेखा सपनों के भवर में जैसे फंसती ही जा रही थी। उस भंवर से निकलने के लिए वह बिन पानी मछली की तरह छटपटा रही थी। तभी किसी ने जैसे किश्ती भेज दी हो, सामने से आवाज़ आई, “रेखा कैसी हो।” रेखा को एक पल तो कोई जवाब ही नहीं आया, जैसे होंठ सिल गए हो। और उसने अपने आप को मजबूत बनाते हुए जवाब दिया, बिलकुल ठीक आप सुनाइए और हंसते हुए बोली आप तो जिलाधीश हैं आप तो ठीक ही होंगे। यह जिला कलेक्टर कोई और नहीं रेखा के वही मंगेतर थे जिन्होंने रेखा के अपाहिज होते ही रिश्ता ठुकरा दिया था। जबकि रेखा अपने मंगेतर के साथ सपनों की बगिया सजा चुकी थी। फाइनल पेपर होते ही उसकी शादी होनी थी। पर यह क्या उसकी अपाहिज होते ही उसके सपनों की कलियों को जो खिली थी, उसको बेरहमी से जैसे नोच-नोच कर तोड़ा था। उस दर्द के निशान उसके हृदय में आज भी देखे जा सकते थे। हालांकि आज उसने खुद को बहुत मजबूत बना लिया था। मजबूती का ही असर था, उन निशानों को बाहर से कोई भी नहीं देख सकता था या कह सकते हैं कि उन निशानों को देखने की किसी को इजाजत नहीं थी। पर अंदर से उन निशानों को मिटाना इतना आसान भी नहीं था।
रेखा ने रमेश को बैठाया, रामू से कहा साहब के लिए पानी लेकर आओ। रेखा ने कहा कलेक्टर साहब अगर आप हमारे आशियाना में कोई मदद करने आए हैं तो हमें किसी भी मदद की ज़रूरत नहीं है। हम हिम्मत से ज़िन्दगी जी सकते हैं, किसी की दया की ज़रूरत नहीं है। रमेश ने कहा मैं जानता हूं, तुम बहुत ही हिम्मती हो, चट्टान की तरह मजबूत भी पर मैं बहुत कमजोर हूं। रेखा यकीन मानो तुम्हारी हिम्मत ने ही मुझे आज यहाँ तक पहुंचाया है। आज मैं तुम्हारी मदद करने नहीं, तुमसे मदद की भीख मांगने आया हूँ। रेखा आज मैं तुमसे माफी मांगने आया हूँ मुझे माफ कर दो हालांकि मेरी गलती माफ करने लायक नहीं है पर फिर भी तुमसे हाथ जोड़कर माफी मांगता हूं। रेखा हंसी और बोली, मैंने तो आपको उसी दिन माफ कर दिया था जिस दिन आपने मुझे ठुकराया था। शिकवे और शिकायत तो अपनों से होते हैं जब रिश्ता ही नहीं तो माफी की बात ही कहां होती है और मैं कौन होती हूं, आपको माफ करने वाली। रमेश हाथ जोड़कर बोला, क्या यह रिश्ता पुनः नहीं जुड़ सकता, मुझे एक मौका और नहीं मिल सकता। रेखा का मुंह गुस्से से लाल हो गया और बोली क्या आप मेरा मज़ाक उड़ाने आए हैं। आप अपने परिवार के साथ खुश हैं, मैं अपने परिवार के साथ खुश हूँ।
रमेश बोला, रेखा पर मेरा आधा परिवार मेरे पास है मेरे मां-बाप, पर आधा यहां है, यकीन मानो रेखा मैंने तुम्हें अपने दिल से कभी भी अलग नहीं किया। मैं तुम्हें दिल से अपना मान चुका था और कभी भी तुम्हें नहीं छोड़ा। हां मेरी मजबूरी जरूर थी, मेरी नाकामी कह सकती हो जो मैं अपने मां-बाप की सहमति लेने में असफल रहा। मेरे माता-पिता ने रिश्ता तोड़ा था, मैंने नहीं। मैंने उनको उस वक्त बहुत समझाने की कोशिश की पर जब वे नहीं माने तो मैं उस वक्त तुम्हारा साथ ना देने में मजबूर था। यह सच था कि मैं उनकी मर्जी के खिलाफ भी नहीं जा सकता था। खुद बताओ मेरे मां-बाप ने मेहनत मजदरी कर हम छः बहन भाइयों को पढाया था. मैं उनकी कुर्बानी को झुठला भी नहीं सकता था। पर उनके बार-बार यह कहने पर कि मैं शादी कर लूं, मैंने उनसे साफ कह दिया था, अगर आप रेखा से शादी नहीं चाहते तो यह मैं आपकी बात मान रहा हूं पर मैं किसी और से भी शादी नहीं कर सकता, यह आपको मेरी बात माननी ही होगी।
एक दिन मैंने अखबार में तुम्हारी इस संस्था का सुना, किस तरह तुमने अनाथ बीस लड़कियों को गोद लिया है, उनका लालन-पालन कर रही हो और शिक्षित भी कर रही हो। मुझे तुमसे बहुत प्रेरणा मिली। मैंने भी उसी दिन समाज सेवा को अपने जीवन का मकसद बना लिया और उसी रोज़ से सिविल सर्विस की तैयारी में जुट गया। आज जो तुम मुझे देख रही हो, वह तुम्हारी वजह से ही हूं, तुम ही मेरी प्रेरणा स्रोत हो। रेखा मुझे माफ कर दो। तुम मुझसे शादी करके मेरी हिम्मत मेरी ताकत बनो। मुझे तुम्हारी ज़रूरत है। रमेश घुटनों के बल रेखा के सामने जिलाधीश की तरह नहीं, बल्कि छोटे बच्चे की भांति ही रो रहा था। बोला, मेरी मां की तबियत अब ठीक नहीं रहती, उसे अब बहुत पछतावा है कि मैंने बहुत गलत किया तुम दोनों के साथ। बोल रही थी तुम जब विवाह के बंधन में बन जाओगे, तभी मैं खुद को माफ कर पाऊंगी। रेखा को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दें, तभी पीछे से रेखा की एक दस वर्ष की बिटिया लीला आ गई और बोली मां यह अंकल कौन है? यह इतने बड़े होकर रो क्यों रहे हैं। रेखा को कोई जवाब नहीं आ रहा था। तभी रमेश बोला. बेटा मैं आप सबका पिता हूं। इतने समय से ना आने के लिए मैं माफी मांग रहा हूं, मैं आप सबका अपराधी हूं। लीला दौड़कर सब बच्चों को बुलाने लगी, सुनो-सुनो हम सब के पापा आए हैं। रमेश ड्राइवर से बोला जो गाड़ी में मिठाइयां और फल है सभी बच्चों को बांट दो। रमेश बच्चों को मिठाइयां और फल दे रहा था बच्चे बहुत खुश थे, रमेश के साथ लग ही नहीं रहा था पहली बार उनसे मिल रहे हैं। रेखा खामोशी से सब देख रही थी, तभी पीछे से कब रेखा की मां आ गई, उसको पता ही नहीं चला। वह बोली बेटी तुम्हें नहीं लग रहा आज परिवार पूरा हो गया। बच्चे कितने खुश हैं मां। आज तुम्हें पति की जरूरत नहीं पर इन बच्चों से इनके पिता का हक मत छीनो। रेखा भी मानो खामोशी से मन ही मन सोचने लगी, सच में आज क्यों लग रहा है कि परिवार पूरा हो गया, कुछ खोया हुआ जो मिल गया। रेखा खामोश होकर मानो माँ की बात की सहमति दे रही हो कि मां आप सच कह रही हो।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’