शहर पढ़ने भेजने के लिए पिताजी की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी जिससे वह मुझे आगे पढ़ा सकें। संगीता सुबह का सारा काम निबटा कर बैठी थी कि रात की पार्टी की सारी बातें अपने मन से निकाल ही नहीं पा रही थी। मन ही मन सोच रही थी क्या हाउसवाइफ का कोई मूल्य नहीं है। क्या एक औरत का मूल्य तभी होता है जब वह आर्थिक रूप से सम्पन्न हो।
हाउसवाइफ भी तो सारा दिन काम करती है । घर के सदस्यों का ध्यान रखती है। इतनी सारी जिम्मेदारी बिना किसी छुट्टी के निभाती है। सुबह का नाश्ता, घर के हर सदस्य की देखभाल, कपड़े, खाना बनाना और भी पता नहीं क्या-क्या फिर हाउसवाइफ को कमतर आंका जाता है। क्योंकि उसे उन सब कामों के लिए कोई वेतन नहीं मिलता है। लोगों के मज़ाक का इतना बुरा भी न लगता। पर उसके पति राकेश को तो कुछ कहना चाहिए था उसकी ओर से। वह भी अपने मित्रों के साथ मेरा मज़ाक बनाने में लगे थे। राकेश भी उसका कोई सम्मान नहीं करते।
थोड़ी देर में अचानक सासू मां ने आवाज़ लगाई। बहू एक कप चाय बना दे। सासू माॅं की आवाज से वह अपने मन के विचारों से बाहर आयी और चाय बनाने में लग गयी। पर मन तो अब भी वहीं उलझा था और शरीर घर के कामों में। राकेश तो उसे जब भी मौका मिलता ताना ही देते रहते थे। कि तुम्हें काम ही क्या है। तुम्हें कौन सा आॅफिस जाना है। या कुछ करना है। मिस्सेज़ शर्मा को देखो कैसे घर व आॅफिस संभालती हैं। कभी मिसेज़ शर्मा से तुलना करते तो कभी अपनी आॅफिस की कलिग्स से। मैं भी जब कभी – कभी सुनते-सुनते थक जाती तो कह देती। क्यों कर ली मुझसे शादी। किसी ज्यादा पढ़ी लिखी से कर लेते।
मैं, राकेश, सासू मां शाम का नाश्ता कर रहे थे तब सासू मां ने कहा। पूजा की पढ़ाई पूरी हो गई है। हमें अब उसके विवाह के बारे में सोचना चाहिए। वैसे भी अभी लड़का देखना शुरू करेंगे। तो शादी होते होते एक दो साल लग ही जाएंगे। सासू मां ने बताया किकल पड़ोस के मेहरा जी अपनी पूजा के लिए रिश्ता बता रहे थे। उनकी बहन का बेटा है। कह रहे थे किसी मल्टीनेशनल कम्पनी में जाॅब करता है। सैलरी भी अच्छी है। और घर वाले ही बहुत ही अच्छे। मेरी बहन ने आपकी बेटी पूजा को देखा है। उन्हें तो पूजा बहुत पसंद है। मैंने मेहरा जी से कहा है कि मैं अपने बेटे व बहु से पूछ कर आपको बताती हूं।
रविवार को सासू मां, राकेश और मैं पूजा के लिए लड़का देखने गए। सबको लड़का पसंद आ गया और लड़के वाले भी। पूजा का विवाह सुमित से पक्का हो गया। पंडित जी ने 8 दिन बाद सगाई का मुहूर्त निकाला और दो माह बाद विवाह का। विवाह का दूसरा शुभ मुहुर्त एक साल बाद था। पर लड़के वालों को विवाह की बहुत जल्दी थी।इसलिए दो माह बाद ही विवाह होना पक्का हो गया। पर सासू माॅं तो बहुत घबरा रही थी। कैसे होगी इतनी जल्दी शादी की तैयारी? शादी है कोई खेल नहीं है। सुमित के घर वालों ने कहा किसी ईवेंट मैनेजर को हायर कर लो। हमारी भी तो सारी तैयारी ईवेंट मैनेजर ही करेगा। पर राकेश की इतनी आय नहीं थी किसी ईवेंट मैनेजर को हायर करें। सारी तैयारी राकेश को ही करनी थी। राकेश बहुत चिंतित दिख रहे थे। राकेश को चितिंत देखकर मैंने राकेश और सासू माॅं से कहा। मुझे तो यह सब तैयारी करना अच्छा लगता है। मैं ही सारी तैयारी कर लूंगी। सब हो जाएगा। इतनी जल्दी सारी तैयारी नहीं कर पाओगी और वह भी तुम, पर मैंनें भी सोच लिया अब तो मैं ही करके दिखाऊंगी। वह भी एक दम परफेक्ट।
मैंने सगाई की तैयारी शुरू कर दी। मैं सुबह 5 बजे उठ जाती और घर का सारा काम 9 बजे तक निबटा कर सगाई की तैयारी करती। 6 दिन के अन्दर तैयारी हो गई थी। सगाई अच्छे से हो गई। अब बारी थी विवाह की तैयारी की। सगाई के दूसरे दिन से ही मैंने शादी की तैयारी की लिस्ट बनाई। कपड़े, शादी हाॅल, गिफ्ट, गहने, केटरर, घर की सजावट वाले को मैने बुक कर लिया था। इसके बाद मैं पूजा को बाजार लेकर गई। उसकी भी तैयारी 5-6 दिन में लगभग आधी हो गई। जितनी रह गई वह पूजा ने अपनी सहेलियों के साथ जाकर की। कुछ कामों के लिए मैंनें पड़ोस की औरतों से सहायता ली। जिससे काम और जल्दी हो जाए। पचास दिन हो चुके थे। तैयारी लगभग पूर्ण थी। अब मैंने लिस्ट चैक की। जो काम रह गया था वह भी इन दस दिनों में हो गया। विवाह का दिन भी आ गया। घर की सजावट की तो लोगों ने खूब प्रशंसा की। पूजा की ओर से तो लोगों की नजरें नहीं हट रही थीं। पूजा के लंहगे व गहनों की सब बहुत तारीफ कर रहे थे। जो भी पूजा की प्रशंसा करता वह कहती यह सब भाभी ने किया है तो मन ही मन मुझे बहुत खुशी मिलती। घर को तो सब मेहमान यही कह रहे थे कि किसी ईवेंट मैनेजर से डेकोरेट करवाया है । शाम सात बजे तक बारात आ चुकी थी।
मैं नर्वस भी हो रही थी। कि कहीं लड़के वालों के लिए कोई कमी न रह जाए। पर खैर विवाह भी अच्छे से सम्पन्न हो गया। मैं आज बहुत खुश थी। मुझे खुद पर गर्व हो रहा था।शादी के कुछ दिन बाद मैं सुमित की बहन नीता से मिली। वह तो अब भी बहुत प्रशंसा कर रही थी मेरी। मुझसे कहने लगी। भाभी आप ईवेंट मैंनेजर का बिजनेस शुरू क्यों नहीं करती। आजकल बहुत डिमांड भी है ईवेंट मैनेजर की। मैनें कहा यह तो घर की तैयारी थी पर किसी और के घर की। कहीं कुछ कमी रह गई तो… पर नीता ने मेरा हौंसला बढ़ाया । और कहा तो आप छह महीने का डिप्लोमा कर लो। कोर्स से आप और ज्यादा निपुण हो जाओगी। मैंने कहा ठीक है। पर मेरे दिमाग में चल रहा था कि राकेश तो मना ही कर देंगे। पर फिर भी बहुत हिम्मत करके मैनें उनसे बात की। और राकेश को बहुत मुश्किल से राजी किया। क्योंकि उनको तो मेरे ऊपर अब भी विश्वास नहीं था। इस कोर्स को करना वह पैसे की बर्बादी समझ रहे थे। पर जैसे-जैसे वह राजी हो गये। माना जैसे मैंने आधी जंग जीत ली है।
मैं रात में ही सुबह का आधा काम निबटा देती जिससे मेरी सास मुझे कुछ न कहें। मेरी सास ने भी मुझे जाने की आज्ञा दे दी।बस फिर अगले दिन से मैंने जाना शुरू कर दिया था। छह महीने पूरे होने को थे। मेरा आत्मविश्वास बढ़ चुका था। मन में एक संतुष्टि थी कि मैं भी अब कुछ करूॅंगी। मेरी भी अपनी पहचान होगी। छह महीने पूरे होते ही मैंने ईवेंट मैनेजमेंट का बिजनेस शुरू कर दिया। मेरे पास बहुत से आॅफर आने लगे थे। राकेश के ताने व मज़ाक भी बंद हो गए थे। वह भी अब मुझे सम्मान देने लगे थे। अब मुझे अपने कम पढ़े लिखे होने का कोई अफसोस नहीं था। खास बात यह कि मैंने अपनी एक अलग पहचान बना ली थी।
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