Grehalkshmi Kahani: “सब इंस्पेक्टर कुलकर्णी कब तक आयेंगे?”
“बस आते ही होंगे! आपको बैठने के लिए कहा है। ” और वह बैठा रहा। बैठे – बैठे दो कप चाय पी डाले तो आखिर रहा न गया तो उसने मोबाइल पर फोन मिला दिया।
“सर! और कितनी देर लगेगी? आप कहें तो मैं बाद में आ जाऊं?”
“वेट! मिस्टर राम! एक सड़क हादसे में हूं! अस्पताल की कार्यवाही निपटा कर आता हूं।”
क्या करता? उसकी भी मजबूरी थी। वो कहते हैं न कि पुलिस,वकील और डॉक्टर से दुश्मनी महंगी पड़ती है। शांति से बैठा तो बचपन की यादें मन में घुमड़ने लगीं। परिवार के नाम पर जो भूली-बिसरी यादें थीं,उसके जेहन में आने लगीं। बचपन से किए गए सारे संघर्ष आंखों के आगे घूम गए। उसे उसकी अच्छाइयों का ये सिला मिला। ऐसा क्यों हुआ उसके साथ?
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उसे तो वंश की चाहत थी। इसलिए ही उसने विवाह किया था। बचपन में ही एक हादसे में माता- पिता का साथ छूट गया। राम- लखन दोनो भाई अनाथ हो गए। ऐसे में दिल्ली वाली मौसी ने बड़ी दिलेरी दिखाई और पांच वर्षीय लखन को गोद लेकर दिल्ली चली गईं। छोटे भाई लखन को सुरक्षित हाथों में देख राम को थोड़ी तसल्ली हुई। उसकी उम्र ही क्या थी। वह स्वयं मात्र बारह वर्ष का था जब विधि का लिखा उसे देखना और भोगना पड़ा। ऐसे में भला भाई को कैसे खिलाता-पिलाता, कैसे पढ़ाता। भाई के मौसी के साथ निकलते ही वह चुपचाप गोवा चला आया। ट्रेन से उतरते ही जो होटल सामने दिखा वहीं नौकरी कर ली। जूठे बर्तन धोकर भी खाना तो मिल रहा था। जीवन का सफ़र कटने लगा था।
धीरे- धीरे जब वह बड़ा होने लगा तो उसे अपने भविष्य की चिंता सताने लगी। ऐसे में एक दिन किस्मत ने दरवाजा खटखटाया। एक बड़े सेठ ने उसे अपने होटल में काम पर रख लिया। बड़ा होटल, बड़ी जिम्मेदारी और पैसा भी बड़ा मिलने लगा तो दिमाग भी चलने लगा। उसने प्राइवेट से पढ़ाई भी शुरू कर दी। हाउस कीपिंग का काम करते हुए तरह- तरह के लोग मिलते और तरह- तरह के टिप्स भी। याद है उसे जब उसने पहली बार डॉलर देखा तो आंखें दिन में ही सपने सजाने लगीं।
एक दिन उसका भी अपना परिवार होगा। जिनके साथ वह भी देश- विदेश घूमेगा फिरेगा। परिवार की बात सोचते ही मां की याद आ गई।
जैसे वह बाबा से कह रही हों,
“अजी सुनते हो..आम लेते आना मेरे राम को पसंद है…”
“बस अपने राम की चिंता है तुम्हें..मेरे लखन की नहीं?”
“मुझे मालूम है आप लखन के लिए गुलाब जामुन लाना नहीं भूलोगे..!”
इस तरह वे दोनो अपने दोनो बालकों की फ़िक्र किया करते और बच्चे मां – बाबा के स्नेह के हिंडोले में झूला करते थे। उसके दिल की यही एक तमन्ना थी कि जब वह बड़ा होगा तो अपने बाबा की तरह एक घर खरीदेगा। शादी करेगा और अपना प्यारा सा परिवार बनाएगा। अपने बच्चों के बचपन में अपना अधूरा बचपन जिएगा। उसने तो नाम तक सोच रखा था। उसके बेटों का नाम लव-कुश होगा। वह भी बाबा की तरह ही अपनी पत्नी को छेड़ेगा,
“क्यों बस लव की चिंता है तुम्हें मेरे कुश की नहीं…”
और वो कहेगी,”मुझे पता है मेरे राम! आप अपने कुश की चिंता करते है तभी तो मैं अपने बड़े बेटे के लिए आपको याद दिलाती हूं..!”
ये सोचते हुए उसे मां की खूब याद आती और वह तकिया भिगोता कब सो जाता उसे खुद भी याद न रहता। यह सब वह जानते- बूझते थोड़े ही करता था। दिन में यथासंभव खूब मेहनत करता। स्वयं को काम में व्यस्त रखता था पर सोते वक्त आंखों में अक्सर एक हंसता- खेलता परिवार घूम जाया करता,उसका अपना परिवार।
युवा होने पर एक दिन जब उसने यह बात अपने सेठ से बताई तो उन्होंने कहा,”इसमें कोई बड़ी बात नहीं! शादी तो करनी ही चाहिए। तुम लड़की ढूंढों!” और राम ने साइबर कैफे में जाकर अपना रिज्यूमे मैट्रेमोनल में डाल दिया। दो दिन के अंदर जवाब भी आ गया।
वह बहुत खुश था। लड़की भी गोवा की थी। मिलने की तारीख तय हुई मन मयूर खुशी से झूम उठा। ऐसा लगा जैसे उसके बचपन की मुराद पूरी हो गई हो। दिखने में सुंदर मोना स्कूल में पढ़ाती थी। इस बात से वह और भी खुश था। आखिरकार उसके हंसते- खेलते परिवार की परिकल्पना सच होने जा रही थी। कष्ट के दिन ख़त्म होने का वक्त आ गया था।
उसके बच्चों की मां का पढ़ा-लिखा होना बेहद जरूरी था। उसे आभास होने लगा कि यही वह लड़की है जिसके साथ उसे घर बसाना है। वह मोना को प्रभावित करना चाहता था। उसने अपना सबसे अच्छा शर्ट निकाला। गर्मियों की शाम में आसमानी रंग खूब खिलता है तो वह पहनकर तैयार हो गया। दोनो ने समुद्र किनारे मिलने का फैसला किया था। वे समय पर पहुंच भी गए। मोना सचमुच बहुत प्यारी थी। उसके बातचीत करने का सलीका राम को खूब रास आया। जब राम और मोना की रजामंदी हुई तो मोना के परिवार वालों ने ब्याह की खूब जल्दी मचाई।
जबकि राम को कोई जल्दी नहीं थी। उसने शादी तय होने के बाद पूरे छः महीने का समय लिया। वह इत्मीनान से शादी करना चाहता था। सबसे पहले उसने अपना बैंक बैलेंस चेक किया। फिर उसने एक कमरे का फ्लैट भी ले लिया। वह नहीं चाहता था कि शादी के बाद मोना को किसी किस्म का अभाव महसूस हो। उसे अपने शौक भी पूरे करने थे। मोना के पसंद के कपड़े गहने सब खरीदने के बाद भी उसने कुछ जमा-पूंजी बचा ली थी। मोना को लेकर हनीमून पर भी तो जाना था।
होटल के मालिक उसके लिए पिता समान थे। उनकी विशेष कृपा के कारण उसकी शादी शानदार तरीके से होटल से ही हुई। उन्होंने बिन मां-बाप के बच्चे को जिस तरह सहारा दिया था उस वज़ह से राम के प्रति मोह का पनपना स्वाभाविक ही था। कुछ राम के मेहनत और लगन ने भी उनका दिल जीत लिया था। विवाह की रात ही उन्होंने घोषणा की कि आज के बाद राम होटल का असिस्टेंट मैनेजर है। उसके एक से दो होने की खुशी में उसकी तनख्वाह भी बढ़ा दी।
सब कुछ वैसे ही हो रहा था जैसा उसने सोचा था। शादी के तुरंत बाद हनीमून पर जाने की योजना थी। पहले पहल तो मोना भी इसके लिए राज़ी थी पर शादी होते ही उसमें कुछ बदलाव नज़र आने लगे। वह अपने आपको काम में व्यस्त करने लगी जबकि राम उससे नजदीकी बनाने के लिए व्याकुल हो रहा था पर मोना न जाने क्यों उससे दूरियां बना रही थी।
राम ने इतनी सुंदर व पढ़ी- लिखी पत्नी पाने की कल्पना तक न की थी। उसे पाकर वह अपने भाग्य पर इतरा रहा था। अपनी संगिनी के आकर्षण में आकंठ डूबा था। उसने कई बार प्रेम का मनुहार भी किया पर मोना पहले पहल विवाह की थकान,फिर पूजा पाठ और अब माहवारी की बात बताकर उससे पीछा छुड़ा रही थी। ऐसा करते हुए जब पूरे बीस दिन निकल गए तो एक दिन राम के धैर्य का बांध टूट ही गया। मर्द जात आखिर कब तलक प्रतीक्षा करता।
उसने मोना के साथ जोर जबरदस्ती करने की कोशिश की तो मामला कुछ और ही निकला।
“मैं स्त्री नहीं हूं!”
“क्या…?”
“ये क्या बोल रही है तू?”
“यही सच है कि मैं न तो स्त्री हूं और न…..”
“छी…इतना बड़ा धोखा वह भी मेरे साथ ….! तुमसे ये सब कैसे किया गया मोना…तुमने ये किया कैसे? अभी तुम्हारे मां बाप से पूछता हूं। ये नाम ही क्यों रखा तुम्हारा… ..क्या सोचकर उन्होंने मोना बोलकर मनीष पकड़ा दिया मुझे..?”
“नहीं! मैं आपका पांव पड़ती हूं। मेरी मां को कुछ न कहें। वह बीमार रहती है। इस सदमे से मर जायेगी।”
“क्या बकवास है..मेरे साथ बेईमानी करके मुझसे इंसानियत की उम्मीद रखते हो तुमलोग..आखिर क्या सोचकर ये सब किया और शादी की क्या जरूरत आन पड़ी तुम्हें?”
राम का गुस्सा सातवें आसमान पर था। उसके घरवालों को बुलाकर मोना को विदा कर दिया साथ ही पुलिस में धोखाधड़ी की रिपोर्ट लिखा दी। आखिर इस विवाह से उसे क्या मिलता। उसके वंश की उम्मीद तो पूरी नहीं होती। जब उसके कुछ समझ में न आया तो उसने इस विवाह से बाहर निकलने की बात सोची। अगर यही बात मोना ने स्वयं उससे विवाह के बाद भी बताया होता तो वह उसके साथ रह लेता मगर छुपाने की वजह से वह उससे बेहद नाराज़ था। एक छत के नीचे ऐसे इंसान के साथ रहना संभव नहीं था जो सिर से पांव तक झूठ और छलावा था।
आज उसी सिलसिले में उसे पुलिस स्टेशन आना था। सुबह से सारे काम निपटा कर वह गणपत हवलदार के आगे बैठ गया था मगर स्टेशन ऑफिसर इंस्पेक्टर कुलकर्णी किसी और केस में उलझे थे। वह उनके इंतजार में था कि तभी वह अचानक हाजिर हुए। उनके साथ एक महिला कांस्टेबल और दो छोटे बालक भी थे। बच्चों की उम्र कुछ चार पांच साल के आसपास की होगी।
“सॉरी राम! तुम्हें काफी देर बैठना पड़ा। सुबह सुबह एक सड़क हादसे में इनके माता-पिता की मृत्यु हो गई। ये बच्चे कार की पिछली सीट पर होने के कारण सुरक्षित बच गए। अब बिन मां- बाप के क्या करेंगे बेचारे!”
फिर महिला हवलदार की ओर मुखातिब होकर बोले,”आप नजदीक के अनाथालय में इन बच्चों भिजवा दें।”
“नहीं …नहीं…ये अनाथालय नहीं जायेंगे ..मेरे बच्चों के साथ ऐसा मत करो..!”
राम की फटी फटी आंखों से अश्रुधारा बह रही थी और वह बच्चों को ओर तेजी से लपका और उन्हें सीने से चिपका लिया। उनमें उसे अपना और लखन का बचपन दिख रहा था। धर्म, जाति और खून से परे एक रिश्ता कायम हो गया हो जैसे। हां! उसे उसका लव- कुश मिल गया था। बच्चों को संभालने की उत्कंठा व उसके सामर्थ्य को देखते हुए इंस्पेक्टर कुलकर्णी ने गोद लेने की कागजी सरकारी कार्रवाई शुरू करा दी।
