Happiness Story: घड़ी देखी एक बजने को था जल्दी से गैस के तीनों बर्नर जला दाल-चावल व सब्जी एक साथ रख दिये, इधर आटा गूंथ सलाद भी सजा टेबल लगा दी| पुनीत के आने में 15-20 मिनट थे, इसलिए मायके फोन लगा भाभी से बात करने की सोची| खैर! इधर-उधर की बातों के बीच ही भाभी ने आवाज लगाई, “गरिमा बेटा जरा छोलों का मसाला भून लेना और हाँ! गैस पर पुलाव के लिए कुकर भी रख देना मैं अभी बुआ से बात कर आ रही हूँ, माँ बुआ को मेरी भी नमस्ते कहिये और जल्दी आने को बोलिये|” भाभी और गरिमा की बातें सुन इतना अच्छा लगा कि पल भर को भूल गयी फ़ोन पर भाभी के साथ हूँ अचानक आवाज से तंद्रा भंग हुई, अच्छा! दीदी फिर बात करती हूँ, गरिमा को आज पुलाव बनाना सिखाना है उसने गैस ऑन कर दी होगी| हाँ! कह मैंने भी फ़ोन रखा, दोनों के बीच दो प्यार भरे शब्द सुन बहुत सुकून मिल रहा था| गरिमा पढ़ी-लिखी लड़की थी, इसलिए शादी के 5-6 महीने बाद जॉब करने की बात कही तो ना भैया ना ही भाभी का मन था, किंतु गरिमा के साथ फिर गौरव का भी मन देख दोनों ने जॉब करने की हाँ कर दी| जहाँ गरिमा को जाना था घर से काफी दूर था, करीब डेढ़ से दो घंटे जाने और उतना ही आने में समय लगता| घर आकर इतना थक जाती कि किसी काम को मन से ना कर बस! निपटाने की सोचती| वीकेंड ज़रूर मिलता, तब या तो अपने रूम की साफ-सफाई या फिर कपड़ों की देखरेख में समय बीत जाता और जो बचता भी तो दोनों संग-संग बिताना चाहते, जो जरूरी भी है| ऐसा नहीं था गरिमा घर के लिए ना सोचती हो, मगर ऑफिस आने-जाने की वजह से इतना थक जाती कि जरूरी कार्य के अलावा बाकी सब निरर्थक लगने लगता, चाहकर भी परिवार के लिए कुछ अतिरिक्त करने के लिए स्वयं को असमर्थ महसूस करती| इधर भाभी को भी लगता गरिमा नौकरी ना कर उनके साथ घर में रहे, इन कुछ महीनों में साथ रहने की आदत जो हो गयी थी| सब कुछ यंत्रवत सा ही चल रहा था, मेरी अक्सर ही भाभी तो कभी गरिमा से बातें होती ही रहती किन्तु पहले जैसा अपनापन या लगाव ना झलकता, चाहकर भी बेवजह आई दूरी मिटाने में असहाय महसूस कर रही थी| सोचती भाभी को कहूँ, “गरिमा के साथ जैसे पहले रहा करतीं वैसे ही रहें, प्यार में कमी ना आने दें|”
उधर गरिमा से कहने की सोचती, “दो घड़ी बैठ उनके मन को जान उनकी सुनें” लेकिन कुछ कह अथवा समझा ना सकी| रात-दिन यही सोचती रहती कैसे गरिमा और भाभी फिर से पहले वाली माँ-बेटी बन जाएं? बस! इसी उधेड़बुन में लगी हुई थी कि अचानक देश में लॉकडाउन की स्थिति हो गयी, कुछ दिन तक तो समझ नहीं आया यह क्या हो गया? हर कोई अचंभित हो सोचता ही रह गया| खैर! धीरे धीरे इस नए जीवन को जीने में सभी अभ्यस्त होने लगे, एक नए ढर्रे पर ज़िन्दगी फिर गुजरने लगी|
गौरव और गरिमा भी कुछ दिन तक ऑफिस गए फिर कंपनी की तरफ से सबको घर से ही काम करने को कह दिया गया, यानी वर्क फ्रॉम होम| सोचते-सोचते ही खाने-पीने का काम निपट गया मालुम ही ना पड़ा| खैर! आज दिल बहुत खुश था, जो मैं अंतर्मन से चाह रही थी वही पूर्ववत माँ-बेटी का रिश्ता जीवंत हो उठा था| आज शाम से ही हल्की-हल्की बूंदाबांदी हो रही थी, कहते हैं ना यदि मन अच्छा तो सब चंगा यही कहावत मुझ पर चरितार्थ हो रही थी| पुनीत और बच्चों को अच्छा लगेगा, सोच फटाफट चाय के साथ आलू-प्याज़ के पकोड़े बना सबको आवाज़ लगाई| चाय पीकर प्याला रख डिनर के लिए क्या बनाऊं? सोच ही रही थी कि भाभी का फ़ोन बज उठा हैलो! कहते ही बोली, “पकोड़े खा रही होंगी तुम दोनों भाई-बहन एक जैसे ही हो अभी गरिमा ने पनीर व गोभी के पकोड़े बनाकर खिलाएं हैं| तुम्हारे भैया को बेटी के हाथ के कुछ ज्यादा ही अच्छे लगे, शगुन के 1100 रुपये हाथ पर रखते हुए बोले बिटिया मुझे रोज ही खिला दिया कर सच! खाकर मज़ा आ गया|” फिर हंसते हुए बोलीं यहां 30 साल हो गए तुम्हारे भैया को खिलाते-पिलाते पर आज तक ऐसे पैसे ना दिए वो तो खुश हो बेटी को ही दिए जाते हैं| “खैर! जब भी मायके बात होती मन खुश हो जाता|” इधर-उधर की बातों के बाद अखिर मैंने भाभी से पूछ ही लिया, आजकल गरिमा को तुम्हारे साथ रहने का टाइम कैसे मिल जाता है? घर के काम में हाथ भी बंटा देती है| भाभी एकदम से खुश हो बोली, “अरे वो लॉकडाउन के रहते ऑफिस तो बंद हैं परंतु कंपनी की तरफ से इन्हें वर्क फ्रॉम होम की परमीशन मिली हुई है तो अब कहीं आना-जाना नहीं पड़ता, इससे जो कई घंटे ऑफिस आने-जाने में निकल जाते थे वे बच जाते हैं|” वर्क फ्रॉम होम मुझे तो अच्छा लगा क्योंकि “घर तथा बाहर दोनों ही बखूबी संभाले जा सकते हैं, काम का समय सुबह 9 से 6 का होता है तो फिर शाम को जल्दी फ्री हो जाती है, इसके अलावा ब्रेकफास्ट व लंच टाइम में भी ऑफिस का काम कुछ देर के लिये बंद कर किचन में आ हेल्प कर देती है।
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