Memory Loss Story: अरे अब इधर आ बता मेरा मोज़ा कहा रखा है। धोबी को प्रेस करने यूनिफॉर्म भेजा था या नहीं। या फ़िर भूल गई। भुल्लकड़ कहीं की। एक भी काम ढंग से नहीं करती। और ऊपर से ये भूलने की आदत। तुझे कुछ भी याद क्यों नहीं रहता है। ऐसा बोल कर दिनेश भी बड़बड़ाते हुए ऑफिस चला गया।
ये हर रोज़ का किस्सा हो गया था सुनीता के लिए।
सच में वह सब कुछ भूल जाती थी अब।
शायद अन्दर दबे अवसाद की वजह से वह हर समय अपने में खोई रहती थी इस लिए कही हुई बातों को ध्यान नही दे पाती थी। और कभी कभी तो काम की अधिकता की वजह से भी कुछ काम अधूरे रह ही जाते थे। एक अनार और सौ बीमार वाली बात थी।
उसके 6 लोगों वाले संयुक्त परिवार में हर काम के लिए उसे ही पुकारा जाता था। और भुलक्कड़ भी कहा जाता था।
अब इस समस्या से निजात पाने के लिए उसने डायरी लिखना शुरू किया। धीरे धीरे उसने महत्व पूर्ण कामों को पहले निपटाना शुरू किया । इस तरह डायरी लिखना उसके लिए बहुत उपयोगी साबित हुआ। साथ ही थोड़ा समय की भी बचत हुई तो वह अपने अवसाद को भी पन्नों पर उतारने लगी।
और उसे सब कुछ याद आने लगा। कैसे उसे कम दहेज़ के लिए प्रताड़ित किया गया था। कैसे उसे गर्भ में लड़की होने की बात पता चलने पर अबोर्शन के लिए दबाव बनाया गया था।
सब कुछ चलचित्र की भाती उसके आंखों के सामने से गुज़र रहा था।
उसे याद आया कि कैसे उसके विवाह के लिए उसके पिता कर्ज़ में डूब गए थे।
पिता के बारे में याद आते ही उसे अपना कॉलेज भी याद आया। तब वह एक मेधावी छात्रा के रूप में जानी जाती थी।
उसे अपनी शिक्षा याद आई। और जो बात उसे बरसों से भूली हुई थी वह याद आ गई की वह भी एक इंसान है। वह बस किसी की गुलाम नहीं है। जिसे सिर्फ हुकुम दिया जाता हैऔर इच्छा पूर्ति हेतु इस्तेमाल किया जाता है।
अब उसने एक स्कूल में अध्यापिका की नौकरी कर ली।
अब उसने अपने पति को बता दिया कि अब मैं भुलक्कड़ नही हूं। मुझे आप सब का बर्ताव याद आ गया है। मुझे यह भी याद आ गया है की मैं एक पढ़ी लिखी स्त्री हूं और सबसे बड़ी बात आप सब यह ना भूलें की मैं भी एक इंसान हूं कोई गुलाम या मशीन नही।
ऐसा बोल कर वह अपने स्कूल के लिए तैयार होने लगी।
और उसके पति और ससुराल के लोग सोच रहे थे इससे तो भुलक्कड़ ही ठीक थी…….