मां का वजूद-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Maa ka Vajud
Maa ka Vajud

Maa ka Vajud: घर में छोटी सी पार्टी रखी थी, प्राची की बेटी अवनि और बेटा आकाश दोनों ही अपनी पढ़ाई करके कामयाबी की सीढ़ी पर कदम रख चुके थे । पर प्राची का मन पार्टी के दौरान भी थोड़ा उदास और मन खिन्न था ‌रह-रह कर उसके पति अनुज की मजाक में की हुई बात उसके दिल पर चोट कर रही थी। प्राची ने क्या नहीं किया परिवार के लिए, अपनों के सपनों के लिए वो खुद अपने सपने भूल चुकी थी, घर परिवार के लिए अपना वजूद खो चुकी थी, भूल चुकी थी कि उसका स्वयं का भी कोई व्यक्तित्व है!

अभी उसके पति के दोस्त आलोक ने कहा कि भाभी जी यह सब आपके त्याग और तपस्या का फल है जो आज दोनों बच्चे कामयाब हो चुके हैं, अनुज अपने मित्र आलोक की बात बीच में ही काटते हुए बोला, मैं नहीं मानता कि प्राची का इन बच्चों को रोटी देने के अलावा कोई योगदान है और ऐसा तो हर औरत घर और बच्चों के लिए करती ही है।

 बच्चों को महंगे स्कूल में मैंने पढ़ाया, इनके भविष्य की दिशा मैंने निर्धारित की, मैंने ही इनकी पढ़ाई में पैसा पानी की तरह खर्च किया, जिससे इनकी सफलता का क्रेडिट सिर्फ और सिर्फ मुझे जाता है, कहकर अनुज जोर से हंस पड़ा।

बात मजाक में थी, पर प्राची के दिल पर जैसे वज्र सी चोट कर गई, उससे वहां बैठा नहीं गया, वो नाश्ते की ट्रे उठाकर रसोई में आ ग‌ई, और सबसे नजर बचाकर रोने लगी, सोचने लगी क्या मैंने जिंदगी भर सिर्फ रोटी बनाने का ही काम किया है, मेरा बस इतना ही वजूद है इस घर में, या बच्चों की कामयाबी में?

अवनि अपने अतीत में पहुंच गई जहांँ से उसकी गृहस्थी की शुरुआत होती है। उसे आज भी याद है जब वह बहू बनकर इस घर में आई थी। आंखों में हजारों सपने लिए उसने अपने जीवन की शुरुआत की थी। लेकिन‌ अनुज के व्यवहार ने उसे कदम दर कदम तोड़ा। सम्मान देना तो दूर की बात रही,कभी भी किसी के सामने उसका अपमान कर देता, और शायद उसे एहसास भी नहीं होता कि उसने प्राची का कितना दिल तोड़ा है। अब नहीं अपने दोनों बच्चों के लिए अपने घर संसार के लिए हर अपमान का घूंट हर कदम पी जाती।।

दोनों बच्चों के जन्म के बाद प्राची सिर्फ बच्चों के लिए जीती रही। उसकी आंखों में सिर्फ एक सपना पल रहा था कि उसके दोनों बच्चे सफलता की सीढ़ियों चढ़े और अपना एक मुकाम हासिल करें। प्राची ने दोनों बच्चों को जन्म से ही अच्छे संस्कार दिए, बच्चों को समझाया कि सभी का सम्मान करना चाहिए चाहे फिर वो छोटा हो या बड़ा। कभी भी किसी का अपमान नहीं करना चाहिए। प्राची के संस्कार ही थे जिसने दोनों बच्चों को सफलता का मार्ग दिखाया। और आज फिर से अनुुज  ने इतनी बड़ी खुशी के बाद भी आखिर उसका अपमान कर ही दिया, उसकी जिंदगी भर की मेहनत पर पानी फेर दिया। सोच कर प्राची मन ही मन सुबक उठी, उसे डर था कि आज उसकी आंखों में कोई आंँसू न देख ले…..

तभी अवनि आकर अपनी मां का हाथ पकड़कर हॉल में ले जाती है, और आलोक से कहती हैं, हां अंकल हमारी कामयाबी का क्रेडिट सिर्फ हमारे पापा को जाता है, जिन्होंने आज तक हमारी कोई भी स्कूल पीटीएम शायद ही अटेंड की हो, हमारे बचपन में उन्हे शायद इतना भी याद नहीं रहता होगा कि हम कौन सी क्लास में कौन से सेक्शन में है?

हम किस सब्जेक्ट में कमजोर है और कौन सा सब्जेक्ट हमारा फेवरेट है। हमें अपने भविष्य में क्या बनना है क्या करना है,कभी पापा ने हमसे बात नहीं की। कौन सा स्कूल प्रोजेक्ट कब जमा करना है, क्या सामान लाना है सब कुछ मम्मी कराती रही। घर के हजारों काम होने के बावजूद माँ ने हमें पूरा समय दिया।

 किस से ट्यूशन लेना है,किस सब्जेक्ट में हम कमजोर है, कब तक फीस जमा करनी है, बीमार होने पर बीच स्कूल से माँ ही लेने जाती,डॉक्टर को दिखाती,रात रात भर जागती, फिर सुबह जब सब सो रहे होते तो जल्दी उठकर काम में लग जाती, होलीडे होमवर्क कराती, सारे काम माँ ही तो कराती रही।

माँ को म्यूजिक सुनने का बहुत शौक रहा है पर हमारी पढ़ाई डिस्टर्ब न हो या पापा की नींद खराब न हो जाए, मां अपना इतना छोटा सा शौक भी पूरा न कर पाई। माँ अपने जमाने में एक अच्छी कत्थक डांसर रही, पर घर परिवार के आगे उन्होंने अपने सपने को भुला दिया। सपना क्या इसे उनका वजूद ही कहूंगी, जिसे माँ ने कदम कदम पर हम सब की खुशियों के लिए भुला दिया।

  हमें अपने पापा के व्यवहार से ही ये एहसास हुआ कि हमें अपनी मां की मेहनत का को रंग देना है,उनका खोया वजूद वापस लाना है, देखा जाए तो इनडायरेक्टली पापा को ही हमारी सफलता का क्रेडिट जाता है। है ना माँ ….कहकर अवनि अपनी मां की तरफ देखकर मुस्कुरा दी।

अपनी बेटी अवनि की बात सुनकर अनुज का चेहरा उतर गया, उसे अपने व्यवहार पर आज बहुत पछतावा हो रहा था। उससे कुछ कहते नहीं बना, वो अपने दोस्त आलोक से बोला चल ना यार चल ऊपर चल पार्टी इंजोए करते हैं, कहां फिजूल की बातों में बैठ गये।