Hindi Kahani: दो लड़की तो हो गई तेरे और कितनी छोरी जनेगी। अबकी बार मैं कोई गलती ना करूंगी, जांच करवा कर ही रहूंगी। खूब टेस्ट होते हैं दुपका चोरी। जिसे पता पड़ जाता है की लड़का होगा या लड़की।
कब तक मेरा लड़का घिरा रहेगा। एक लड़का सा हो जाए तो उसके जी में भी कुछ तसल्ली हो जाए।
और तेरी दादी सास तो कब से इंतजार कर रही हैं, सोने की सीढ़ी चढ़ने का। पड़पोता देख लेंगी तो चैन से मर सकेंगी स्वर्ग की सीढ़ी जो चढ़ जाएंगी।
दादी अम्मा भी बैठी बैठी हाँ में हाँ करने लगी।
निहारिका की सास उसके गर्भ में पल रहे बच्चे की लिंग की जांच करवाने पर जोर दे रही थी। उसका पति भी तो चुप था। खास विरोध भी तो नहीं कर रहा था उनका। लेकिन वह डटकर खड़ी थी। उसने सख्त़ाई से मना कर दिया।
पर अकेली कब तक जूझतीं। घर वालों के बिछाए गए जाल में उसको आखिर घेर ही लिया गया।
दूसरे शहर में सुनसान इलाके में कोई छोटा सा अस्पताल चल रहा था जिसमें यह काम किया जा रहा था। उसकी सास करुणा जी की एक सहेली ने वहां की सारी जानकारी उन्हें दे दी थी।
चौथा महीना भी लग चुका था। उसके लिए बहुत रिस्की था पर औरत जात मरने से कब डरती है। सर पर कफन बांधकर ही तो बच्चों को जनती है।
नवरात्रि के दिन चल रहे थे। घर में सबका व्रत था क्योंकि माता के दिन बहुत पूज्यनीय होते हैं।
अस्पताल में टेस्ट हुआ। उसके गर्भ में एक कन्या पल रही थी। सबको मानो सांप सूंघ गया। सुनते ही उसकी दकियानुसी सास को ऐसा लगा जैसे कोई बहुत बड़ा दुख आ पड़ा हो।
उन्होंने वहीं पर निहारिका का गर्भपात करने का फैसला कर लिया। कहीं ऐसा ना हो उनके शहर में ज्यादा समय का गर्भपात ना हो इसलिए यहीं पर करवा लेंगे।
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वहां भी डॉक्टरों ने सलाह दी कि बच्चा अधिक समय का हो गया है गर्भपात करने में कठिनाई आएगी। लेकिन उसकी सास करुणा जी अड़ी रही और उसका पति मौन। जैसे जवान ही ना हो उसके मुंह में। सब काम माँ से पूछ कर ही करता हो जैसे।
निहारिका को अंदर ले जाते हैं। डॉक्टर और नर्स सलाह कर के कहती हैं डिलीवरी ही करनी पड़ेगी। भ्रूण बड़ा हो चुका है काट पीट कर नहीं निकलेगा।
निहारिका की डिलीवरी कर दी जाती है। आंखों से अश्रु जल अपने अजन्मे बच्चे की पीड़ा को लेकर लगातार उसकी आंखों से बह रहा था।
थोड़ी देर बाद शांति हो जाती है। नर्स पॉलिथीन में में रखकर उस भ्रूण को लाकर उसके पति मनोज के हाथ में दे देती है। नर्स उससे कहती है,”यहां तो कुत्ते ही नोंच नोंच कर खाएंगे। इससे अच्छा होगा कहीं गड्ढे में दबा दो। है तो आखिर तुम्हारा ही खून। हो सके तो जरा सा कपड़ा भी लपेट देना कफन हो जाएगा।”
मनोज ने जैसे ही पिन्नी खोल कर देखा उसकी आंखें फटी की फटी रह गई। पूरा पाटा बालक था। यह तो हत्या हुई अपनी ही संतान की, अपने ही हाथों।
उसे तो चक्कर सा ही आ गया।
कांपते हाथों से उसे गड्ढे में दबा तो आया लेकिन उस अपराधबोध से कभी मुक्त ना हो सका।
कन्या भ्रूण हत्या सुनने में साधारण लगता है लेकिन यह हत्या होती है एक शिशु की जो जन्म लेने वाला होता है। मां के गर्भ में सांस लेने वाला शिशु जो कुछ समय पश्चात धरती पर आता उससे पहले ही उसे धरती की गोद में दफन कर दिया जाता है या निवाला बनता है गली के कुत्तों का या सड़क किनारे पड़े हुए कूड़े के ढेर में सजा हुआ मिलता है।
विचार अवश्य कीजियेगा।
माँ की कोख में पलती है
अपने अस्तित्व के लिए लड़ती है।
फिर भी कितनी अभागिन बेटियां,
भ्रूण में ही मरती हैं।
