डस्टबिन-गृहलक्ष्मी की कहानी
Dustbin

Hindi Kahani: ‘सब सही लग रहा है न, कहीं कुछ कमी तो नहीं दिखाई दे रही?’ कुर्सी पर बैठी अपनी सास से प्रगति ने एक बार फिर से घर का मुआयना करते हुए पूछा।
‘प्रगति, यह तीसरी बार पूछ रही हो तुम मुझसे। सब तो अच्छा है। अब तुम तैयार हो जाओ। उसके बाद बाकी काम देखना, सुबह से काम में लगी हुई हो।’ प्रगति की सास ने मुस्कुराते हुए कहा।
‘अरे मां, आजकल लड़की वाले सब कुछ देख कर, तसल्ली करके ही रिश्ता जोड़ते हैं। पहले वाली बात थोड़े रह गई कि केवल घर-परिवार-जमीन आदि देखकर संबंध कर लें। अब तो घर के रहन-सहन का स्तर भी देखा जाने लगा है।’ प्रगति ने पहले से सही बिछी दीवान की चादर को खींचकर और ठीक करने की कोशिश करते हुए कहा। तभी उसकी नजर बरामदे में रखे गमलों पर गई।
‘आयुष, अभी तक ये गमले हटाए नहीं यहां से! मैंने कहा था न कि इनको दीवार के किनारे कर दो ताकि जगह दिखाई दे।’ झुंझलाती हुई प्रगति खुद ही गमले खिसकाने लगी।
‘मम्मी, थोड़ा सा तो सब्र किया करो। आ तो रहा था मैं। पापा कोई दूसरा काम बता देते हैं तो कभी दादू बगीचे में पानी देने की कहने लगते हैं और नितीश भाई के तो हाल ही मत पूछो, अभी से दूल्हा बनने की प्रैक्टिस करते हुए अपने सब काम मुझसे करवा रहे हैं। मैं अकेली जान, क्या-क्या करूं?’ आयुष नाटकीयता से बोला।
‘हां रे, तू तो बहुत काम करता है! तू न हो तो इस घर का भगवान ही मालिक है!’ प्रगति की सास ने मीठी सी झिड़की देते हुए कहा। तब तक आयुष, प्रगति को हटा कर खुद गमले किनारे कर चुका था।
कमर में खोंसे पल्लू को निकाल कर अपना माथा पोंछती हुई प्रगति दादी-पोते की नोकझौंक सुनकर मुस्कुरा रही थी।
‘अब सब लोग तैयार हो जाओ, लड़की वालों के आने में थोड़ा ही समय बचा है और बहू तुम ये रसमलाई फ्रिज में रख दो। कुंजीलाल से लेकर आया हूं।’ प्रगति के ससुर ने हाथ में पकड़ा थैला उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा।
‘मैं मंगवाने की सोच ही रही थी और आप ले भी आए लेकिन बाबू जी, आप इतनी दूर क्यों गए? आयुष या नितीश ले आते।’ प्रगति ने थैला पकड़ते हुए कहा।
‘नितीश के साथ स्कूटर पर गया था, कौन सा पैदल था। इसके भविष्य के होने वाले सास-ससुर की खातिरदारी तो करनी ही पड़ेगी।’
‘क्या दादू, अभी कोई पक्की बात थोड़े ही हुई है।’ नितीश झेंप गया।
‘क्यों नहीं होगी? मेरे पोते में कोई कमी है क्या! लड़की भी हम लोगों को फोटो में तो पसंद आ गई थी और आज वह साथ में आ भी रही है। वैसे भी तेरे पापा के पक्के दोस्त साहनी ने इस रिश्ते की बात चलाई है, सब देख-समझ कर ही वे उन लोगों को हमसे मिलवाने ला रहे हैं। मेरा दिल तो कह रहा है कि बात पक्की ही है।’ दादू ने कहा। ‘अब देर मत करो, तैयार हो जाओ सब। साहनी लड़की वालों को लेकर आने ही वाला है।’ कुछ देर में ही लड़की वाले आ गए।
‘यह राजीव जी यानी भव्या के पापा, उसकी मम्मी, ये हैं भव्या के चाचाजी और यह, आप समझ ही गए होंगे, भव्या है। अब इनका परिचय भी दे दूं, ये विकास जी, उनकी पत्नी, उनके पिताजी, छोटा बेटा आयुष और यह जनाब हैं नितीश!’ साहनी जी ने मुस्कुराते हुए लड़की वालों का परिचय करवाया।
उनके इस अंदाज ने भव्या और नितीश को मुस्कुराने पर मजबूर कर दिया। दोनों ने एक-दूसरे को चोरी से देखा और फिर नजरें हटा लीं।
हकीकत में भव्या फोटो से भी अधिक सुंदर लग रही थी। प्रगति ने नितीश की ओर देखा। उसका खिला-खिला चेहरा बता रहा था कि भव्या उसे भी पसंद आई है। उनको बैठक में बिठा कर प्रगति पानी लेने के लिए रसोई में गई तो देखा उसकी सास पहले से ही वहां मौजूद थी।
‘बहू तू बाहर बैठकर उन लोगों से बात कर, मैं कामवाली के साथ चाय-नाश्ता लगवा देती हूं।’
‘मांजी, आप बाहर चलिए न, यहां का मैं देख रही हूं। यह रिश्ते-नाते की बातें आप ज्यादा अच्छी तरह कर पाएंगी।’ प्रगति ने प्रतिवाद करते हुए कहा।
‘मैं भी आती हूं लेकिन पहले तू बाहर जा, लड़के की मां है तू, थोड़ा तो समझ और आजकल के चाल-चलन क्या हैं, यह सब तुम लोग ज्यादा बेहतर जानते हो। अब सास बनने वाली हो तुम, चलो जाओ बाहर।’ सास के जोर देने पर प्रगति भी ड्राइंग रूम में आकर बैठ गई।
थोड़ी बात करने के बाद उन लोगों ने नितीश को भव्या के साथ बगीचा देखने के बहाने बातचीत का अवसर देने के लिए बाहर भेज दिया।
‘चलिए, बच्चे अब आपस में एक-दूसरे को समझ लें तो बात आगे बढ़े।’ नितीश के पापा ने मुस्कुराते हुए कहा तो सभी ने हामी भर दी।
‘आप लोग बात करिए, मेरी दवाई का समय हो गया है, मैं थोड़ी देर में आता हूं।’ नितीश के दादाजी अपनी छड़ी के सहारे अपने कमरे में चले गए। भव्या के पिताजी उनको जाते हुए ध्यान से देख रहे थे।
बिजनेस-घर आदि की बात करते हुए अचानक भव्या के पिता ने खंखारते हुए गला साफ किया। ‘वैसे त› साहनी जी ने लड़के और आप लोगों की बहुत तारीफ की है लेकिन हम लोग आज पहली बार मिले हैं और बात कर रहे हैं। मुझे एक सवाल करना था आपसे।’
‘बिलकुल पूछिए, आपको सब जानना चाहिए ताकि आगे कोई संदेह न रहे।’ नितीश के पापा ने कहा और प्रश्नवाचक नजरों से उनको देखने लगे।
‘आपके घर में डस्टबिन कितने हैं?’
उनके इस प्रश्न पर प्रगति और उसके पति दोनों अचकचा गए। ‘यह कैसा सवाल है?’ एक-दूसरे को देखते हुए उन्होंने मन ही मन सोचा। नितीश के पापा ने साहनी की ओर देखा तो वह भी इस सवाल से हैरान था।
प्रगति ने मन ही मन हिसाब लगाया, ‘तीनों बाथरूम में, एक किचिन में, दो घर के बाहर सूखे और गीले कचरे के लिए।’
लड़की वाले उनके उत्तर की प्रतीक्षा में थे।
‘कुल छह डस्टबिन हैं हमारे घर में पर हम समझ नहीं पा रहे कि आप डस्टबिन के बारे में क्यों पूछ रहे हैं?’ प्रगति के चेहरे पर ढेर सारा असमंजस था।
लड़की वाले अब हल्की सी उलझन में दिखे। ‘मुझे लगता है बहन जी, आप हमारे प्रश्न का अर्थ नहीं समझ पाईं।’भव्या की मम्मी ने कहा तो प्रगति के साथ ही बाकी लोगों की नजरें भी उनकी ओर उठ गई।
अभी तक मोबाइल देख रहा आयुष भी हतप्रभ था और उसने मोबाइल साइड में रख दिया था।
‘मैं सच में नहीं समझ पा रही।’
‘हमारे पूछने का अर्थ है कि आपके घर में कांच की बरनी कितनी हैं?’ भव्या की मम्मी के पूछने पर प्रगति का दिमाग और भी अधिक चकरा गया।
‘कभी गिनी नहीं हमने और आजकल तो किचन में कांच के बर्तन और बरनी रखने का फिर से फैशन आ गया है।’ प्रगति ने कहा।
‘हां, यह सेहत के लिए भी अच्छा है। प्लास्टिक का कम से कम उपयोग करना ही सही है। क्या भव्या जी के हाथ से सामान छूट जाता है?’ आयुष ने पूछ लिया। भव्या को अभी से भाभी कहना उसे सही नहीं लगा क्योंकि अभी तो रिश्ता पक्का भी नहीं हुआ था।
भव्या के घरवाले मुस्कुराने लगे।
‘हां बेटा, आप सही कह रहे हो लेकिन हमारे पूछने का अभिप्राय यह नहीं है।’ इस बार भव्या के चाचा जी बोले।
‘आप स्पष्ट बताइए कि क्या पूछना चाहते हैं। हम लोग आपकी बात नहीं समझ पा रहे।’ नीतिश के पापा ने गंभीर होकर कहा।
‘हमारा मतलब था जैसे पुराने विचार आजकल कचरा माने जाते हैं और कचरा रखने वाले डस्टबिन घर के एक कोने में, वैसे ही पुराने ख्याल वाले बूढ़े लोग आपके घर में कितने हैं।’ भव्या के चाचाजी ने समझाने के लहजे में धीरे से कहा। ‘वो क्या है कि डायरेक्ट पूछना अच्छा नहीं लगता इसलिए आजकल इसी तरह पूछा जाता है।’ भव्या की मम्मी ने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा। ‘कांच की बरनी का अर्थ भी आप अब समझ ही गई होंगी, कांच की उम्र ज्यादा नहीं होती है।’
प्रगति का चेहरा लाल हो गया। विकास जी और आयुष के साथ साहनी जी भी सन्न थे।
वे कुछ बोलते इसके पहले ही नितीश की तेज आवाज गूंजी, ‘शर्म नहीं आई आपको इस तरह बोलने से पहले? घर के बुजुर्ग डस्टबिन होते हैं क्या?’
‘रुको नितीश।’ भव्या जोर से बोली। ‘पापा आप लोग कैसी बात कर रहे थे? चाचा जी आपके बेटे की भी शादी होगी तब वे लोग भी यही सवाल करेंगे तो आपको कैसा लगेगा?’
‘भव्या, नाराज मत हो, हम तो तुम्हारे भले के लिए ही जानकारी ले रहे थे।’
‘यह कैसा तरीका है चाचाजी, जहां रिश्ता जुड़ने के पहले ही रिश्तों की इज्जत उतार दी जाए! रिश्ता केवल लड़के-लड़की का नहीं जुड़ता है बल्कि दो परिवारों का भी जुड़ता है।’ भव्या के चेहरे पर दु:ख और शॄमदगी के भाव थे। ‘आंटी जी, अंकल जी, हो सके तो हमें माफ कर दीजिएगा। अब हमें इजाजत दीजिए।’
‘राजीव जी आपकी बेटी बहुत समझदार और प्यारी है पर आपकी सोच का खामियाजा उसे उठाना पड़ रहा है। हो सके तो अपने विचार बदल कर देखिएगा। बुजुर्ग डस्टबिन नहीं होते बल्कि वे हमारे लिए बरगद की छांव होते हैं। नमस्कार!’ विकास जी ने देखा परदे के पीछे खड़े दादू और दादी को नितीश और आयुष हाथ पकड़ कर बैठक में ला रहे थे और प्रगति अपने आंचल से आंसू पोंछ रही थी।

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