प्रगति मैदान दिल्ली में लगातार क्रम से कई स्टॉल्स लगे थे।
ये सारे स्टॉल्स कॉलेज की तरफ से एक एक्टिविटी प्रोजेक्ट के लिए था ।
टीचर्स ने हम बच्चों को चार ग्रुप्स में बांटा था।
चारों ग्रुप में कंपटीशन थे।
जिनके स्टॉल की सबसे ज्यादा बिक्री होगी,वह विनर टीम बनेगी।
मैं, कविता ,भावना और सुमन चारो एक ग्रुप में थे।
हमारे प्रोजेक्ट का विषय था–एन्वायरमेंटल ग्रीन।
जिसके लिए हमने कई नर्सरियों से हरे पौधे, फूलों के पौधे ,बीज, फूलों के डालियां और कई तरह के डेकोरेशन के सामान इकट्ठे किए थे ।जिन्हें बेच रहे थे।
साथ ही सभी को बता भी रहे थे एनवायरमेंटल ग्रीन के फायदे।
प्रगति मैदान में लोगों का आना जाना लगा हुआ था।
कई लोग उत्सुकतावश हमारे स्टॉल में आकर खड़े हो जाते और पूछने लगते थे।
“तुम तानिया हो ना ?”एक लंबा सा लड़का मेरे पास आकर पूछा।
मैं महसूस कर रही थी कि वह मुझे काफी देर से घूर रहा था ।
“हां!” मैं पलभर के लिए असमंजस में रही कि यह मुझे कैसे जानता है ?
उसके चेहरे को ध्यान से देखती रही फिर मुझे अचानक याद आया
अरे ,यह तो अविनाश है!
” अरे तुम अविनाश हो ना। मैं ने पूछा।
“हाँ! “उसने कहा।
“तुम इतने लंबे कैसे हो गए अविनाश?”मैं हैरानी से बोली।
” हा हा हा ,हमेशा की तरह हंसते हुए उसने कहा जैसे तुम्हारे बाल लंबे हो गए वैसे ही मैं भी लंबा हो गया ।”
” इधर अचानक कैसे?”मैंने पूछा।
“यही तो मैं भी जानना चाहता हूं तुम यहां कैसे?”
“मेरे पापा का अचानक ही ट्रांसफर हो गया था तो हम अचानक ही दिल्ली आ गए ।”
अविनाश ने मेरी आंखों में झांकते हुए कहा
” काफी एन्वायरमेंटल हो गई हो !”
मैं मुस्कुरा दी।
वह मेरे दोस्तों से स्टॉल में रखे सामानों के बारे में पूछताछ करने लगा।
कुछ पुरानी यादें ताजा हो गईं।
जब हम सब कानपुर में रहते थे ।उस समय मैं और अविनाश दोनों एक ही स्कूल में पढ़ते थे।
धीरे-धीरे अब हम दोनों परिपक्व हो रहे थे तो हमारी दोस्ती की दायरे भी बदल रहे थे।
एक दूसरे को इशारों से देख कर मुस्कुराना, बेवजह नोट्स का आदान प्रदान करना ,यह सब हमारे रूटीन में शामिल हो चुका था।
मैं अविनाश को लेकर बहुत अच्छा महसूस करती थी ।
मेरा प्रेम परवान चढ़ता उससे पहले ही पापा का ट्रांसफर दिल्ली हो गया और हम सब दिल्ली आ गए ।
बचपन की बातें वहीं छूट गईं।
कई बार अविनाश की याद आई लेकिन उससे बातें करने के लिए ना तो उसका फोन नंबर मेरे पास था और नहीं उसके बारे में कोई और जानकारी वह मेरा सिर्फ क्लास मेट था।
धीरे-धीरे पढ़ाई का बोझ बढ़ा तो अविनाश की यादें भी मन के कोनों में दब गईं।
आज 4 साल बाद अविनाश को देखकर सूनी पड़ी हुई प्रेम की बीजें अंकुरण लेने लगीं।
” मैं नहीं चाहता कि तुम मुझे भूल जाओ !अब मैं तुम्हें नहीं भागने दूंगा।
मुझे तुम्हारा फोन नंबर चाहिए।”
अविनाश ने मुझसे कहा।
जब उसने मुझे संबोधित किया तब मैं अपने ख्यालों से बाहर आई।
मैंने उसे अपना फोन नंबर दे दिया ।उसने भी अपना नंबर दिया।
मैंने उससे हजारों सवाल कर डाले।
दिल्ली में कैसे आया? कहां रहता है?
और भी कई बातें।
इसके साथ ही मैंने उसे घर चलने के लिए भी कहा।
अविनाश ने कहा
“तानिया, आज रात मैं नागपुर जा रहा हूं ।वहीं से मैं इंजीनियरिंग कर रहा हूं ।
आज तो मैं नहीं आ सकता लेकिन यह वादा है कि दिल्ली आया तो तुमसे जरूर मिलूंगा।”
मेरी आंखें नम तो हो गई ।
एक बार फिर से अविनाश को मैं खोने जा रही थी!
अगली सुबह मोबाइल पर व्हाट्सएप की टिक टिक करते मैसेज से मेरी आँख खुली।
अविनाश ने गुड मॉर्निंग की इमोजी भेजी थी।
उसने लिखा था
“एक कोरियर तुम्हारे नाम पर भेज रहा हूं प्लीज एक्सेप्ट कर लेना।”
मैं अभी फ्रेश ही हुई थी कि मम्मी की आवाज आई
“तानिया, तेरा कोरियर आया है! ले ले।”
मैं दौड़ती हुई नीचे उतरी।
एक बड़ा पैकेट था । मैं उसे लेकर अपने कमरे में आ गई।
उस पैकेट को खोला ।उसके अंदर एक छोटे से डिजाइनर गमले में एक गुलाब का पौधा था, जिसमें खिले छोटे छोटे सुर्ख गुलाबों की अधखिली कलियां भरी पड़ीं थीं।
उस पर एक कार्ड चिपका हुआ था।
अविनाश ने अपनी हैंडराइटिंग से एक दिल का शेप बना कर लिखा था “अविनाश।”
तभी व्हाट्सएप पर अविनाश का मैसेज आया
“लव यू सदाबहार..!”
पूरा कमरा गुलाब की खुशबू से महक उठा था।