कल्पना जी की कल्पनाओं को पर तो उसी दिन लग गए थे जिस दिन उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी। तब से लेकर अब तक कल्पना जी की बस यही अभिलाषा है कि वह अपनी बहू से वो सारी सेवाएं करवाएंगी जो अब तक वे अपनी सास के लिए करती आई हैं।
ज ब भी बहू की बात चलती है कल्पना जी के चेहरे पर चमक दौड़ जाती है और कई तरह के सपने उनकी आंखों में तैरने लगते हैं। कभी वे स्वयं बहू को हुक्म देते हुए तन जाती हैं तो कभी बहू को सर झुकाए अपने समीप खड़ी पाती हैं। पच्चीस सालों से बस वह यही ख्वाब संजोए बैठी हैं कि कब उनकी बहू दहलीज़ पर पांव रखेगी और उनका ओहदा बढ़ेगा, वह बहू से सास बन जाएंगी और फिर वह भी दूसरी सासों की तरह अपनी बहू पर राज कर पाएंगी।
कल्पना जी जब भी किसी शादी-ब्याह या समारोह में जाती हैं, उनका बस एक ही लक्ष्य होता है अपने लिए एक ऐसी बहू की तलाश करना जो उनकी सेवा एक आदर्श बहू की भांति करे। दिन को अगर वो रात कहे तो रात कहे लेकिन कभी-कभी उनका मन व्याकुल तब हो जाता है जब किसी सास से बहू पुराण में सास की व्यथा सुन लेती हैं।
जब कोई सास यह कहती है कि आजकल की लड़कियां तो बस रंग-बिरंगी तितलियां बनी उड़ती फिरती हैं, सास को सास नहीं समझतीं, सास की एक बात नहीं सुनतीं। उस वक्त कल्पना जी को अपनी कल्पनाओं पर वज्रपात होता हुआ जान पड़ता है और इसी भय की वजह से उन्होंने अपने मोहल्ले में बनी सास यूनियन की आजीवन सदस्यता ग्रहण कर ली है और नियमित रूप से आयोजित होने वाली सभा की बैठक में शामिल होती हैं ताकि अनुभवी सासों से यह ज्ञान प्राप्त कर सके कि बहू से किस प्रकार सेवाएं ली जा सकती है।
बेटे की जब से सरकारी नौकरी लगी है तब से कल्पना जी फूली नहीं समा रहीं हैं। उनके पैर तो जैसे जमीन पर पड़ ही नहीं रहे हैं, क्योंकि सरकारी नौकरी वाला जंवाई कौन नहीं चाहता। हर कोई चाहता है उनकी बेटी का भविष्य सुरक्षित रहे और फिर सरकारी नौकरी से ज्यादा सुरक्षित और क्या हो सकता है, इतनी सुरक्षा की गारंटी तो आजकल कोई इंश्योरेन्स कंपनी भी नहीं देती। अपने दो सैकेंड के विज्ञापन में पहले ही क्लियर कर देते हैं कि आपका जीवन कितनी जोखिमों से भरा हुआ है।
इस बार के सास यूनियन की मासिक बैठक में कल्पना जी को एक ऐसी बाला के बारे पता चला जो पूर्ण रूप से उनकी बहू बनने के पैमाने पर खरी उतर रही थी। अभी वह होम साइंस ग्रेजुएशन के फाइनल इयर की छात्रा थी और घर के सभी कामकाज में पारंगत। वह ना तो दूसरी लड़कियों की तरह आधुनिक थी और ना ही करियर ओरिएंटेड। यूं समझ लीजिए कि पूरी तरह से बहू के पैकेज में फिट बैठती थी।
यह जानने के पश्चात कल्पना जी फौरन अपनी जुगत लगा कर जल्द से जल्द उस लड़की के परिवार वालों से मिलने और उनके घर जा कर रिश्ता पक्का करने की ठान ली और जब कल्पना जी अपने पति से इस बारे में बात की तो उन्होंने कहा, ‘श्रीमती जी, एक बार अपने बेटे की मर्जी तो जान लीजिए, जिसे उस लड़की के संग अपनी पूरी जिंदगी गुजारनी है। कहीं ऐसा ना हो कि बहू से सेवा सुख की चाह में आप अपने बेटे का सुख गंवा बैठो।’
कल्पना जी उस लड़की के घर जा कर शादी तय करने की योजना बनाने लगीं, उन्होंने अपनी प्योर सिल्क की वह साड़ी भी निकाल ली, जो खास मौके पर पहनने के लिए सहेज कर रखी थी। आखिरकार अब उन्हें अपना सपना साकार होता नजर आ रहा था।
निश्चित तिथि पर कल्पना जी घर के सारे काम निपटा, तैयार हो कर अपने पति और बेटे का इंतज़ार करने लगीं। सुबह से दोपहर हो गई लेकिन दोनों का कुछ पता नहीं था। अब तक दोनों घर नहीं लौटे थे और उनका मोबाइल भी स्विच ऑफ आ रहा था। कल्पना जी के सब्र का बांध टूटा जा रहा था और उनके क्रोध का तापमान बढ़ता जा रहा था, तभी डोर बेल बजा और कल्पना जी तमतमाती हुई दरवाजे की ओर बढ़ीं दरवाजा खोलते ही कल्पना जी के पैरों तले जमीन खिसक गई और उनकी आंखें फटी की फटी रह गई, सामने उनका बेटा और पति खड़े थे वह कुछ बोलती इससे पहले उनका बेटा बोला, ‘मम्मी ये आपकी बहू सपना, हम एक-दूसरे से प्यार करते हैं। ये मेरे ही दफ्तर में काम करती है। हमारा दूसरे शहर में ट्रांसफर हो गया है और वहां हम साथ रहना चाहते हैं इसलिए हमने पापा की उपस्थिति और आशीर्वाद से शादी कर ली। हमें आज ही निकलना है, हम आपका आशीर्वाद लेने आए हैं।’
ऐसा कह कर दोनों कल्पना जी के चरण स्पर्श कर उनसे आशीष ले कर चले गए और कल्पना जी उन्हें जाते हुए देखती रहीं, उनका वर्षों का सपना पलभर में टूट कर चूर-चूर हो गया, तभी दूर कहीं से गाने की आवाज सुनाई पड़ी, ‘सपना…मेरा टूट गया…।’ यह गाना सुनकर जब कल्पना जी ने अपने पतिदेव की ओर देखा तो पतिदेव मुस्करा रहे थे, यह देख कल्पना जी भी मुस्कुराती हुई बोली, ‘चलो, मैं चाय बना कर लाती हूं, झूले पर बैठ कर साथ में चाय का आनंद लेते हैं।’
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