Vat Savitri Story: वह देखो कितनी सज धज के आ रही है वट सावित्री पूजा के लिए कैसा जमाना आ गया???? वट वृक्ष के नीचे बैठी कुछ बुजुर्ग महिलाएं ताना-बाना बुन रही थी एक दूसरी चाची ने उधर से जवाब दिया हां हां शर्म तो धो के पी गई पति का पता नहीं और व्रत रखती हैं ना जाने किसके लिए?????
इन महिलाओं का ताना मारना पुरानी बातें हो गई थी, अफसोस इस बात का कि इस 21वीं शताब्दी में भी परिवर्तन नहीं हुआ है औरत ही औरत की सबसे बड़ी दुश्मन है ।फिर भी शकुंतला ने व्रत करना नहीं छोड़ा क्योंकि उसे पूरा विश्वास था कि उसका पति एक दिन लौटेगा जरूर………..।
उसने बहुत ही नियम निष्ठा से बट सावित्री भगवान की पूजा की और पिछले वर्षों की तरह ईश्वर से मन्नत मांगी कि मेरे पति को मेरे जीवन में वापस ला दो, ईश्वर के घर देर है अंधेर नहीं यह उसका दसवां बट सावित्री व्रत था। ईश्वर को भी आखिर अपने भक्तों के निश्चल और सच्चे हृदय पर पिघलना पड़ता है ।एक नहीं दो नहीं पूरे 10 मा साल था,बगैर पति के ससुराल में गुजारना। लेकिन अपने कर्तव्यों में बंधी हुई थी इस वजह से उसने कभी इस परिवार और अपने पति के वापस लौटने के अलावा कुछ सोचा ही नहीं…….।
पूजा कर जब शकुंतला वापस लौट रही थी गांव के पगडंडियों से उस उड़ती धूल के साथ, अपनी जिंदगी में परे धूल को भी चलते-चलते साफ करने लगी। कितनी धूमधाम से शकुंतला का विवाह हुआ था माधव के साथ सब ने कितने आशीर्वाद दिए सुखी जीवन जीने के, लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था ससुराल तो आ गई सुहागन बनकर लेकिन इस दुल्हन का चेहरा उसके पति ने देखा ही नहीं, सुहागन से …. 24 घंटे भी नहीं बीते थे अपने पति के रौद्र रूप देखकर वह खुद को अभागन समझने लगी थी। परिवार के बाकी सभी सदस्य बहुत ही अच्छे थे आखिर माधव का रौद्र रूप का कारण क्या था। यह जानने के लिए शकुंतला ने अपनी सासू मां से एक सवाल पूछा आखिर माधव को ऐसा क्या हो गया???? मांजी ने कहा माधव एक लड़की से बहुत प्रेम करता है उसी से विवाह करना चाहता था। लेकिन तुम्हारे ससुर जी ने उसकी नहीं मानी मैं तो मान गई इकलौता बेटा है मैं किसके सहारे जिऊंगी। लेकिन उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा मान मर्यादा के चलते माधव की एक भी ना सुनी, क्योंकि वह लड़की छोटी जात से थी। धीरे-धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा बेटी थोड़ा धैर्य रखो मांजी ने भी कहा और पिता समान ससुर जी ने भी कहा।
लेकिन यह क्या ठीक होने की वजह सब कुछ और बिगड़ गया सुबह अपना बैग पैक कर माधव ने घर छोड़ने का फैसला ले लिया और घर छोड़ भी दिया। सब ने बहुत मिन्नतें की लेकिन उसने किसी की भी नहीं सुनी……….।
मैंने भी फैसला लिया कि मैं यहां नहीं रहूंगी । सास ससुर बहुत ही रोने लगे मेरे इस जीने का सहारा कौन बनेगा इस बुढ़ापे में वगैरा-वगैरा……। मेरे पैर इस फैसला लेने को इंकार कर गए वृद्ध माता-पिता को देखकर। मैं उन्हीं की सेवा में दिन-रात एक कर लगी रह गई। अपने बारे में कभी कुछ सोचा ही नहीं…..। यही सब सोचते सोचते वो घर पहुंच गई ,घर पहुंच कर देखती है माधव को क्योंकि उसने माधव को देख रखा था माधव ने उसकी शक्ल नहीं देखी थी।
मांजी माधव को कहती है देख तुम्हारी दुल्हनिया आ गई। बहुत ही सुंदर है शकुंतला माधव तो देखा तो देखते ही रह गया उसने ऐसी कल्पना भी नहीं की थी।
शकुंतला सीधे अपने कमरे में चली जाती है माधव पीछे से जाता है मुझे माफ कर दो… जब हमारा रिश्ता ही नहीं तो फिर माफी किस बात की, अगर यही गलती मैं आपके साथ करती तो क्या आप मेरा 10 साल इंतजार करते।
मैं इस घर में अब तक आपके कर्तव्यों का निर्वहन कर रही थी।अब मेरा यहां रहना कोई औचित्य नहीं, फिर तुमने यह व्रत क्यों किया??????? आपकी सलामती जिससे वृद्ध माता-पिता को उनके जीने का सहारा मिल जाए। माधव की आंखों से पश्चाताप के आंसू बह रहे थे इससे आगे एक शब्द भी नहीं बोला क्योंकि बात भी सही थी, वह किस हक से बोलता। मांजी और पापा जी ने मिलकर मुझे रोक लिया इस घर में । आज मुझे ईश्वर का इशारा मिला रास्ते के धूल भरी पगडंडियों के धूल के संग संग मेरे जीवन के भी धूल साफ होते नजर आ रहे थे……….
