Vat Savitri Story: सुनी सुनाई कथा है, पर अपने यहां तो कहानीयां सुनाने की प्रथा है । उसपे भी मिल जाए अगर कहानी राजा रानी की तो फिर बात ही क्या है । ऐसी ही एक कहानी है सावित्री और सत्यवान की
पूर्व काल में अश्वपति नाम के राजा हुआ करते थे।
राजा बड़े ही प्रतापी थे। सुख सुविधाओं की कोई कमी भी ना थी पर एक कमी उनकी जीवन में हमेशा ही खलती थी। उनकी कोई संतान जो नहीं थी ।बहुत जप -तप और यज्ञ के फल स्वरूप एक तेजस्वी कन्या का जन्म उनके घर में हुआ। कन्या का नाम उन्होनें सावित्री रखा । सावित्री रुप के साथ -साथ गुणों की भी धनी थी ।उसकी सुंदरता और गुनवता की प्रशंसा चारों दिशाओ में फैल चुकी थी ।समय यूं ही बीतता चला गया ।और वो वक्त भी जल्द ही आ गया ।जब कन्या विवाह योग्य हो गई । एक दिन राजा सारी पृथवी घूम आए पर उन्हें अपनी बेटी के योग्य वर कहीं ना मिला ।राजा चिंतित हो गए । और अपनी बेटी को सारी बात बता कर कहां बेटी तुम अब विवाह योग्य हो गई हो ।तुम अपने लिए स्वयं ही वर का चुनाव करों ।
सावित्री ने जी पिता श्री कह कर तुरंत ही वहां से वर की खोज में निकल पड़ी। सावित्री अपने मेंत्रियों के साथ जंगल -जंगल ऋषियों के आश्रम में जा जा कर वर की खोज करने लगी ।बहुत सारी जगह घूमने के बाद वो राजमहल वापस लौट आई ।आकर अपने पिता को प्रणाम किया और देव ऋषि नारद को भी जो राजा अश्वपति से मिलने किसी कारण बस आए थे । दोनों ने सावित्री को आशीर्वाद दिया । फिर पिता श्री ने पूछा बेटी यात्रा कैसी रही और योग्य वर मिला या नही ।इस पर सावित्री ने कहीं जी पिता श्री ! हमारी यात्रा सुखद और सफल दोनों रही । फिर सावित्री ने बताया की उस जंगल में सत्यवान अपने माता -पिता के साथ रहते हैं ।
पिता श्री मैंने उन्हें अपने मनसे अपना वर मान लिया है अब मैं उन्हीं से विवाह करूंगी ।इतना सुनते ही नारद ऋषि ने कहा महाराज अश्वपति मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ सावित्री ने जिस युवक को अपना वर चुना है वह बालक अल्पायु का है। उसकी मृत्यु बारह वर्ष की आयु में हो जाएगी और उसके माता-पिता भी अंधे हैं अपने राज से विहीन भी हैं।
उनके शत्रुओं ने उन से उनका राज पाठ सब छीन लिया है इतना सुनते ही राजा अश्वपति ने कहा बेटी तुम किसी और को अपना वर चुन लो ऐसा घोर अनर्थ ना करो !सावित्री ने कहा पिताश्री मैं एक आर्य कन्या हूं और आर्य कन्या अपना वर सिर्फ एक ही बार चुनती है और वह मैंने चुन लिया है ।मैं मन से कर्म से उन्हें अपना पति मान चुकी हूँ। मैं उनसे ही विवाह करूंगी सावित्री के जिद के आगे राजा अश्वपति विवश हो गए और उन्होंने विधि विधान के अनुसार सावित्री और सत्यवान का विवाह संपन्न करवाया ।
सावित्री सत्यवान और उनके अंधे माता पिता के साथ जंगल में रहने लगी कुछ दिन व्यतीत होने के बाद सावित्री को यह भय सताने लगा कि अब उसके पति की मृत्यु नजदीक आ गई है एक दिन सत्यवान लकड़ी काटने के लिए जंगल जाने लगा तो सावित्री ने कहा स्वामी मैं भी आपके साथ चलूंगी सत्यवान ने कहा तुम जंगल में क्या करोगी तुम्हारा यह कोमल बदन सूरज की तेज किरणों को बर्दाश्त नहीं कर सकेगा पर सावित्री ने अपने सास-ससुर की आज्ञा लेकर अपने पति के साथ जंगल को निकल पड़ी जंगल पहुंचकर सत्यवान एक पेड़ पर चढ़ गया लकड़ी काटने के लिए और सावित्री नीचे वही खड़ी रही कुछ क्षणों में ही सत्यवान का सर दर्द से फटने लगा और वह नीचे आ गया पेड़ के नीचे सावित्री बैठ गई और अपने पालथी पर सत्यवान का सर रखकर उसे धीरे-धीरे दबाने लगी।
वह समझ गई की अब सत्यवान का अंत निकट है कुछ ही देर में सावित्री को लाल वस्त्र पहने दक्षिण दिशा से एक भयानक पुरुष आते हुए दिखाई दिए सावित्री ने पूछा आप कौन हैं और यहां क्यों आए हैं ?उस पुरुष ने कहा मैं यमराज हूँ और यहां तुम्हारे पति का प्राण लेने आया हूँ। फिर सावित्री ने कहा हमेशा तो आपके दूत सब के प्राण लेने आते हैं पर आज आप क्यों आए हैं ।यमराज ने कहा सत्यवान एक महान और धर्मात्मा पुरुष है इसलिए मैं स्वयं उसे लेने आया हूं ।मेरे दूत इनके प्राण लेने के काबिल नहीं फिर यमराज ने सत्यवान के शरीर से एक दिए जैसा प्रकाश का निकाल कर अपने साथ ले जाने लगे सावित्री भी यमराज के पीछे पीछे चलने लगी थोड़ी दूर जाने के बाद यमराज ने पीछे मुड़कर देखा और कहा सावित्री तू मेरे पीछे पीछे क्यों आ रही हो तुम मुझसे कोई वर मांग लो और अपने घर को लौट जाओ सावित्री ने कहा आप मेरे अंधे सास-ससुर को उनकी आंखें वापस कर दे ।
यमराज ने तथास्तु कहकर अपनी सहमति दे दी फिर आगे बढ़े सावित्री फिर उनके पीछे पीछे चलने लगी तो यमराज ने कहां एक और वर मांग लो मुझसे सावित्री और अपने घर को लौट जाओ सावित्री ने कहा मेरे सास ससुर का राजपाट उन्हें वापस मिल जाए ।यमराज बोले तथास्तु और आगे बढ़ गए थोड़ी देर बाद यमराज ने फिर पीछे मुड़कर देखा तो सावित्री फिर उनके पीछे पीछे चल रही थी यमराज रुक कर बोले हे सावित्री तुम एक और वर मुझ से मांग लो और कृप्या अपने नगर को लौट जाओ शरीर के साथ कोई भी यमपुरी नहीं जा सकता है फिर सावित्री ने कहा यमदेव आप मुझे सौ पुत्रों का आशीर्वाद दें यमराज ने कहा तथास्तु पुत्रवती भव:तुम्हें सत्यवान से सौ पुत्रों की प्राप्ति होगी और आगे बढ़ गए थोड़ी देर चलने के बाद यमराज ने पीछे मुड़कर देखा तो सावित्री को अपने पीछे से आते हुए पाया यमराज ने रुक कर कहा सावित्री जिद मत करो वापस लौट जाओ तुम चाहो तो एक और वर मुझसे मांग सकती हो सावित्री ने कहा मुझे मेरा सुहाग लौटा दीजिए यमराज ने कहा तथास्तु सौभाग्यवती भव:और फिर आगे बढ़ने लगे फिर सावित्री ने कहा अगर आप मेरे सुहाग को लेकर चले जाएंगे तो फिर मुझे पुत्र प्राप्ति कहां से होगी फिर यमराज ने कहा सावित्री तुम धन्य हो तुमने अपने बातों से आज मुझे अचंभित कर दिया है जाओ मैं तुम्हें तुम्हारे पति के प्राण वापस करता हूँ वह फिर से जी उठेंगे फिर यमराज ने सत्यवान के प्राण वापस उनके शरीर में डाल दिया और सत्यवान राम राम कहते हुए उठ खड़ें हुए!
ये व्रत जेठ मास के अमावस्या के दिन मनाई जाती है ।सुहागिने इस व्रत को अपने पति की लंबी आयु और अखंड सौभाग्य के लिए करती है।
आज हम आपको बताने जा रहें हैं।
बट सावित्री व्रत में बरगद की पूजा क्यों जरूरी होती हैं.!
बट वृक्ष को ही बरगद.. अक्षय वृक्ष और देव वृक्ष भी कहते हैं।
इसी वृक्ष के नीचे माता सावित्री अपने पति को वापस पाने
की जिद्द पकड़ कर बैठ गई थी ।
वट सावित्री पूजा हमें स्त्री शक्ती ,पर्यावरण की रक्षा
और प्रकृति के करीब रहने की सीख देती हैं।
वट वृक्ष में त्रिदेवों का वास होता हैं और
इस वृक्ष की पूजा करने से मनवांच्छित फल की प्राप्ती भी होती हैं।
इसके जड़ में भगवान ब्रह्मा का तथा तने में भगवान विष्णु
और पत्तियों में भगवान शिव का वास स्थान हैं ।
इसी वट वृक्ष के पत्तों पर भगवान कृष्ण ने मार्कन्डेय जी को भी दर्शन दियें थें ।
इस वृक्ष की लटकी हुई शाखाएँ देवी सावित्री का रूप हैं।
जो अपने पति के प्राण वापस पाने के लिये,
यमराज तक से लड़ गई…..!
बट वृक्ष की उम्र लगभग 150 बर्ष से भी अधिक होती हैं।
जहाँ ये वृक्ष पाये जाते हैं वहाँ का वातावरण शुद्ध रहता हैं।
और प्रदुषण की मात्रा कम हो जाती हैं।
बरगद के जड़ से लेकर पत्तियों तक से कई प्रकार की औषधि बनाई जाती हैं।और इसके फल पंछियों का सर्वोतम आहार होता हैं।पर्यावरण पंडितों के अनुसार बरगद वायुमंडल के लिये बहुत उपयोगी हैंं।
इसकी घनी छाया हमें शीतलता प्रदान करती हैं ।
आने-जाने वाले बटोही वट वृक्ष की शरण ले सुखद अनुभूति की प्रप्ती करते हैं और चिलचिलाती गर्मी से राहत पाते हैं…!
सिर्फ बड़गद ही नहीं बल्कि हमें हर एक वृक्ष की रक्षा करनी चाहिये परंतु आज का दिन तो समर्पित हैं वट वृक्ष जी को …
मिथिलांचल का एक और अप्रतिम और अद्भुत त्योहार।
महिलाएं करती है जिस दिन का बहुत बेसब्री से इंतज़ार ।।
इस साल वट सावित्री की पूजा और व्रत 19 मई (2023)दिन शुक्रवार को रखा जाएगा।
वट सावित्री व्रत करने के लिए कुछ आवश्यक बातों का ध्यान अवश्य रखें।जैसे कि पूजा से एक दिन पहले शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण करें।हो सके तो रात्रि का भोजन संध्या वंदन से पहले करें। दूसरे दिन अर्थात वट सावित्री पूजा के दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्नानादि करके ससुराल से भेजे गए नव वस्त्र धारण कर आभूषणों सहित सोलह शृंगार अवश्य करें। श्रृंगार में मुख्य रूप से लाख की चूड़ी बिंदी सिंदूर आलता और मेहंदी अवश्य लगाएं
गहनों में नाक की नथ से लेकर पांव की बिछिया तक जरूर पहनें। मांग टीका मंगलसूत्र कंगन अंगूठी कमरबंद हथ शंकर इत्यादि.…..! से सुसज्जित होकर सभी पूजा सामग्री लेकर और सखी सहेलियों के संग वट वृक्ष का पूजन करें ।इस पूजन को करने से मां सावित्री और त्रिदेव प्रसन्न होते हैं और सुहाग की लंबी उम्र का वरदान देते हैं। इस व्रत के करने का मुख्य उद्देश्य सुहाग की लंबी उम्र और गृहस्थ जीवन को सुख शांति पूर्वक जीवन व्यतीत करना है। महिलाएं इस व्रत को बहुत ही हर्षोल्लास के साथ करती है।एक अजीब सी रौनक आज उनके चेहरे पर देखने को मिलती हैं।ऐसा लगता है जैसे भक्ति और शक्ति उनके चेहरे से झलक रही है।
वट सावित्री पूजा एक अनोखी पूजा है जिसमें नवविवाहिता कन्याएं पांव में सैंडिल पहन कर और सर पे मिट्टी के पात्र में जल भर कर रख कर एक हाथ से उसे पकड़े हुए और दूसरे हाथ में छाता को जकड़ कर
पूजा की सारी सामग्री लेकर वट वृक्ष तक चल कर जाती है।
वहां जाकर वट वृक्ष के पत्तों से गहनें बना कर पहनती है तत्पश्चात पूजा आरंभ करती है।
सबसे पहले वट वृक्ष के नीचे गंगाजल का छिड़काव करती है।
उसके बाद वट वृक्ष और उनके पत्तों में सिंदूर लगाती है फिर
फूल,अक्षत,विल्व पत्र, धूप-दीप,नवेद्य अर्पण कर तीन बार वट वृक्ष की परिक्रमा करते हुए मौली (धागा) लपेटे और फिर एक आम को वट वृक्ष के नीचे रख कर उस पे जल चढ़ाएं, सिंदूर लगाए और भींगा हुआ कच्चा चना और गुड़ अर्पन कर भोग लगाएं।भोग में आम,केला,लीची,नारियल और सुखे मेवे अवश्य रखें।
तत्पश्चात गौड़ी पूजन करें और सावित्री सत्यवान की कथा अवश्य सुनें और औरों को भी सुनाएं।इसके बाद वट वृक्ष से तीन बार गले मिले और मन ही मन कहे मर लिअ और वर दिअ इसके बाद बास का पंखा वट वृक्ष को झले और मन से उन्हें प्रमाण करके अपने सुहाग की (अर्थात पति की)लम्बी उम्र की कामना करें।इन सब के बाद कपड़े से बने गुड्डे-गुड़ियों का ब्याह रचाए और अपनी किसी नव विवाहिता सहेली से भैया लगाएं (अर्थात उनके साथ अपना पूजा किया हुआ आम बदल कर एक संकल्प लें कि अभी से आप उन्हें उनके नाम से नहीं बल्कि भैया कह कर संबोधित करेंगे। उसके बाद अपने से बड़ों का चरम स्पर्श करके उनका आशीर्वाद लें और सुहागिनों को प्रसाद में चना और खीर अवश्य दें। और बाद में अपनी इच्छा अनुसार मिठाई फल इत्यादि….भी दे सकते हैं.!!
इन सब के बाद ही संध्या होने से पूर्व आप स्वयं भी भोजन ग्रहण कर लें। क्यों कि आज के दिन व्रतियों को रात्रि में भोजन ग्रहण वर्जित माना गया है।इन सब से बढ़ कर आज के दिन अपने पति परमेश्वर का चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद अवश्य लें। जब तक पूजा संपन्न नहीं हो जाती तब तक पानी की एक बूंद तक अपने गले से नीचे ना उतारे और ना ही अन्न का एक दाना ही खाएं। पूजा संपन्न होने के पश्चात सुहागिनों को प्रसाद वितरित करने के पश्चात ही भोजन ग्रहण करें आज के दिन भोजन में नमक का इस्तेमाल बिल्कुल भी ना करें !भोजन में मुख्य रूप से चावल का खीर और मौसमी फल का इस्तेमाल करें जैसे आम लीची इत्यादि। आज के दिन व्रत करने वाली नवविवाहिता कन्याओं को चना बिल्कुल भी नहीं खाना चाहिए..!!
