सुबह होने में अभी दो घंटे की देर है। कृष्णपक्ष की दशमी है इसलिए अँधेरी रात का दौर बीत गया है और इस समय मंद रोशनी फैलाते हुए चन्द्रमा आसमान पर दिखाई दे रहे हैं। काशी से तीन कोस की दूरी पर सारनथ नाम का एक स्थान है और वहाँ से दो-ढाई सौ घरों की एक खासी बस्ती है। बस्ती के दाहिने किनारे एक साफ-सुथरी सड़क है
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जो कि पटने से होती हुई बराबर काशी तक चली गई है। इसी सड़क पर से एक रथ, जिसमें सुन्दर बैलों की जोड़ी लगी हुई है, धीरे-धीरे काशी की तरफ चला जा रहा है। मालूम होता है कि रथ बहुत दूर से आ रहा है क्योंकि इसका हाँकने वाला और इसके सवार सभी मीठी-मीठी नींद में मस्त हो रहे हैं, यद्यपि आदत और नियम के अनुसार बैल बेचारे सीधी राह चले जा रहे हैं मगर हाँकने वाले से इस बात की कुछ भी खबर नहीं है कि सवारी अब कहाँ आ पहुँची है और जिस मुकाम पर हम जाने वाले हैं वह कितनी दूर रह गया है।
रथ हाँकने वाले की उम्र कम-से-कम चालीस वर्ष की होगी। वह कद्दावर और हृष्ट-पुष्ट आदमी था, घनी दाढ़ी ऊपर की तरफ चढ़ी हुई थी और स्याह मूंछों ने उसका चेहरा रोआबदार बना रखा था। मोटा गज्जी का चेहरा अंगरचखा और चुस्त पायजामा पहिने हुए था जिसके ऊपर सुर्ख कपड़े का कमरबंद कसा हुआ था और उसमें एक वजनी तथा चौड़े पाड़ का तेगा लटक रहा था।
जब यह रथ सारनाथ की बस्ती के पास पहुंचा तो एक चौकीदार ने हाँकने वाले को आवाज देकर रोका और कहा, “ठहरो-ठहरो, बताओ यह रथ कहाँ से आता है और कहाँ जाएगा?”
हाँकने वाले की पिनिक टूटी और उसने बैलों की रास खींच कर कहा, “भाई, यह रथ काशी जाएगा। तुम कौन हो (चारों तरफ देखकर) और इस बस्ती का क्या नाम है?”
चौकीदार : इस बस्ती का नाम सारनाथ है और हम यहाँ के चौकीदार हैं।
हाँकने वाला : (चौंक कर) वाह-वाह, तो हम सारनाथ पहुँच गए! तो अब काशी यहाँ से थोड़ी ही दूर होगी?
चौकीदार : बस तीन ही कोस तो।
हाँकने वाला : (चन्द्रमा की तरफ देखकर) रात भी थोड़ी ही रह गई है, अच्छा अब हम तेज हाँकते हैं जिसमें सवेरा होने के पहिले ही ठिकाने पहुँच जाएँ।
इतना कह कर उसने रथ हाँकने की चेष्टा की मगर चौकीदार ने रोका और कहा-
चौकीदार : ठहरो, पहिले यह बता दो कि इसमें सवार कौन कहाँ के रहने वाले और किस घराने के आदमी हैं?
हाँकने वाला : इससे तुम्हें क्या मतलब?
चौकीदार : मतलब नहीं तो पूछते क्यों हैं!
हाँकने वाला : हम यह नहीं बात सकते कि इसमें कौन है।
चौकीदार : (जोर से जफील बजा कर और कुछ ठहर कर) बिना बताए तुम यहाँ से कदापि आगे जाने न पाओगे।
हाँकने वाला : आखिर रोकने का कुछ सबब भी बताओगे या यों-ही जबर्दस्ती करोगे।
चौकीदार : सबब तो हम नहीं कह सकते मगर इतना जरूर बता देंगे कि इस गाँव के मालिक की यही आज्ञा है कि रात के समय बिना जाँच किये कोई सवारी यहाँ से आगे न जाने पावे।
हाँकने वाला : इसमें जनानी सवारी है, इसलिए हम इसकी जाँच नहीं करने देंगे।
इतना कह हाँकने वाले ने बैलों का चाबुक मारा और वहाँ से निकाल ले जाने की इच्छा थी, मगर इस बीच चौकीदार की बजाई जफील की आवाज सुन कई आदमियों ने आकर उस रथ को घेर लिया था। इनमें आगे के लोग तो यद्यपि बैलों के खौफ से हट गये परन्तु सभों ने मिलकर बैल और हाँकने वाले पर हमला किया और जोर-जोर से चिल्ला-चिल्ला कर लट्ठ चलाने लगे। हॉकने वाले ने मजबूर होकर रथ को रोक लिया और हाथ में तेगा लेकर रथ के नीचे कद दुश्मनों का मुकाबला बड़ी दिलावरी और बहादुरी के साथ करने लगा। थोड़ी ही देर में उन लोगों को मालूम हो गया कि रथ हाँकने वाला मामूली आदमी नहीं है क्योंकि बात-की-बात में उसने कइयों के हाथ का लट्ठ बेकार कर दिया, कइयों की कलाई काट डाली, और कईयों को ऐसा जख्मी किया कि उनमें उठने की शक्ति न रही। परन्तु वह पहलवान भी बेतरह चुटीला हो गया, उसकी बाईं कलाई लट्ठ की चोट से बेकार हो गई, उसके मोढ़े जख्मी हो गये, और उसके सिर पर एक लट्ठ पर ऐसा बैठा कि सिर फट जाने के कारण खून का तरारा बह चला। इतने पर भी वह हिम्मत न हारता मगर दुश्मनों के चिल्लाने से वहाँ और भी कई आदमी लाठी लेकर आ पहुँचे और चौकीदार तथा उसके पक्षपातियों की मदद करने लगे, जिसे देख पहलवान हताश हो गया। वह पैंतरा बदलता हुआ एक किनारे हो गया और तब लोगों को ऊँची आवाज में पुकार कर लड़ाई बंद करने के लिए कहा, परन्तु वहाँ पर कुछ ऐसा हुल्लड़ मच गया था कि उसकी आवाज बड़ी मुश्किल से लोगों ने सुनी और तब लड़ाई बंद हुई, इस बीच वह इधर-उधर चक्कर काटता हुआ अपने को बचाता रहा।
लड़ाई बंद हो जाने पर एक आदमी ने कुछ आगे बढ़कर रथ हाँकने वाले से कहा, “तुमने हमारे कई आदमियों का व्यर्थ जख्मी कर दिया है, तिस पर भी हम तुम्हारा कसूर माफ कर देंगे यदि अब भी तुम अपना और अपनी सवारी का ठीक-ठीक परिचय दे दो!”
हाँकने वाला : इस रथ पर औरतें सवार हैं इसलिए हम इनका नाम बताने से हिचकते हैं।
आदमी : आखिर इन औरतों का कोई मर्द तो होगा! तुम उन्हीं का नाम बताओ और मकान का पता दो तथा यह कहो कि रात के समय सफर करने का क्या कारण है?
हाँकने वाला : पटने के रईस सेठ ताराचन्द की स्त्री और लड़की इस रथ पर सवार हैं, कई कारणों से उन्होंने इन औरतों को अपने भाई के पास काशी भेजा है।
आदमी : इतने बड़े रईस की औरतों को इस तरह अकेले सफर करते देख कर हम लोगों को आश्चर्य मालूम होता है तथापि थोड़ी देर के लिए हम तुम्हारी बात सच मानते हैं। परन्तु जब तक सूर्य उदय न हो ले तब तक के लिए तुम्हें यहाँ रुके रहना पड़ेगा।
हाँकने वाला : ऐसा क्यों?
आदमी : यहाँ का यही नियम है।
हाँकने वाला : यहाँ रुकने से तो हमारा बड़ा हर्ज होगा और ऊपर से हमारे दुश्मन सर पर आ जाएँगे जो हमारा पीछा कर रहे हैं और जिनके खौफ से हम रातों रात भागे जा रहे हैं।
चौकीदार : (आगे बढ़कर) इनकी यह बात मानने के लायक नहीं है, क्योंकि अगर इनको पीछा करने वाले दुश्मनों का खौफ होता तो ये बड़ी होशियारी और तेजी के साथ रथ को भगा कर लिए जाते मगर मैंने अच्छी तरह देखा है कि रथ बहुत धीरे-धीरे जा रहा था और ये (हाँकने वाले) मीठी नींद सो रहे थे, या यों कह सकते हैं कि पिनिक ले रहे थे।
आदमी : (चौकीदार को बोलने से रोक कर) खैर जाने दो, हम इस समय इन्हीं की बात मान लेते हैं और जवाब में यह कहते हैं कि अगर तुम्हारे दुश्मन पीछा करते हुए यहाँ आ जाएँगे तो हम लोग तुम्हारी मदद करेंगे और उनसे लड़ेंगे, परन्तु सवेरा होने के पहिले तुम्हें यहाँ से आगे न जाने देंगे।
हाँकने वाला : खैर, जब तुम ऐसा कहते हो तो हम रुक जाते हैं, मगर यह तो बताओ कि हमें रोक लेने से तुम्हें क्या फायदा होगा?
आदमी : सो तुम्हें पीछे मालूम हो जाएगा? इस समय हम इस बात का जवाब नहीं दे सकते।
हाँकने वाला : यह तो खासी जबर्दस्ती है!
आदमी : जो समझो।
मजबूर होकर रथ रोक लेना पड़ा मगर बहुत कहने पर भी हाँकने वाले ने रथ को नीचे नहीं उतारा, सड़क ही. पर एक किनारे खड़ा कर दिया और बैलों का भी रथ से अलग नहीं किया, उधर गाँव वालों ने (जो लड़े थे) धीरे-धीरे अपने आदमियों को सम्हालना शुरू किया अर्थात् चुटीले और जख्मी आदमियों को जिस तरह बन पड़ा उठा-उठा कर ले जाने लगे। इस बीच में रथ हाँकने वालों ने रथ के परदे के अन्दर सिर ले जाकर इसमें बैठी हुई सवारी से कुछ बातें कीं। वास्तव में रथ के अन्दर तीन औरतें बैठी हुई थीं जिनमें से दो के हाथों में इस समय एक दोनाली तमंचा भरा हुआ मौजूद था तथा वे इसलिए तैयार बैठी थी कि अगर कोई जबर्दस्ती रथ का पर्दा हटावेगा तो उसे गोली मार देंगे।
बातचीत करने के बाद हाँकने वाला पुन: रथ के ऊपर अपने स्थान पर जा बैठा। यह बात उसके विपक्षियों को बहुत बुरी मालूम हुई अतएव उन्होंने उसे रोका और कहा, “जबकि तुमने इस बात का निश्चय कर लिया कि सवेरा होने तक रथ इसी जगह रुका रहेगा तब हाँकने वाली गद्दी पर जाकर बैठने की तुम्हें क्या जरूरत थी? मुनासिब तो यही था कि बैल खोल दिए जाते और तुम जमीन पर ही कंबल बिछाकर बैठते पर तुमने ऐसा नहीं किया खैर हमने भी जोर नहीं दिया, मगर तुम्हारा अपनी जगह पर बैठना हमें शक दिलाता है कि तुम वादे के खिलाफ बेईमानी पर कमर बाँधे हो और भागने के लिए तैयार होकर मौके का इंतजार कर रहे हो।”
हाँकने वाला : नहीं-नहीं। मेरा ऐसा इरादा नहीं है, यहाँ पर बैठने से मुझे आराम मिलेगा और अफीम घोल कर पीने में सुभीता होगा, यही सोच कर मैं यहाँ आ बैठा हूँ।
इस समय विपक्षियों के कई आदमी अपने जख्मी साथियों को सम्हालने के फेर में पड़ गये थे और रथ का सामान खाली हो गया था, सिर्फ रुकावट के लिए दो-चार आदमी रथ के पास खड़े थे। यकायक रथ का पर्दा उठा और तमंचा छटने की आवाज आई, एक आदमी जख्मी होकर जमीन पर गिर पड़ा और बाकी में खलबली पड़ गई तथा डर के मारे सभी इधर-उधर हट गये। उसी समय मौका देख कर पहलवान ने बैलों को चाबुक मारा और रथ को तेजी के साथ भगा ले चला। इसी समय तमंचे की पुन: आवाज आई और विपक्षियों का दूसरा आदमी जमीन पर लुढ़क गया। ऐसी अवस्था में उन लोगों के लिए रथ का पीछा करना मुश्किल हो गया और रथ तेजी के साथ कुछ दूर निकल गया, मगर इस बात की खबर रथ हाँकने वाले को तथा उसकी सवारी को कुछ भी नहीं है कि एक चालाक आदमी रथ के पीछे रस्सा थाम कर लटक गया है और बड़ी आसानी से रथ के साथ-साथ चला जा रहा है। हाँकने वाले ने कई दफे पीछे फिर कर देखा मगर किसी को पीछा करते न पा निश्चिन्त हो रहा। सवेरा होने के पहिले ही रथ काशी जा पहुँचा और तब हाँकने वाले ने रथ की तेजी कम कर दी। धीरे-धीरे चलकर रथ त्रिलोचन महादेव के पास पहुँचा और एक बड़े फाटक के अन्दर चला गया जो इस समय खुला हुआ था। पीछे की तरफ जो आदमी लटका हुआ था वह भी उसके साथ ही फाटक के अन्दर चला गया।
फाटक के अन्दर छोटा-सा अस्तबल था जहाँ कई रथों के अतिरिक्त घोड़े और बैल भी बँधे हुए थे। जिस समय रथ फाटक के अन्दर पहुँचा उस वक्त अस्तबल में कई आदमी इधर-उधर टहल रहे थे। उस समय सुबह की सफेदी आसमान पर फैल चुकी थी और आदमियों की सूरत साफ-साफ पहिचानी जाती थी।
अस्तबल के अन्दर वाले आदमियों ने रथ के पीछे लटकते हुए आदमी को देखकर हल्ला मचाया और उसके विषय में पहलवान से पूछना और पकड़ना चाहा जिससे वह आदमी चैतन्य हो गया और रथ का रस्सा छोड़ अस्तबल के बाहर भागा। दो आदमियों ने उसका पीछा किया मगर उसे पकड़ न सके और वह दोनों को धोखा देता हुआ बड़ी तेजी के साथ बाहर निकल कर नजरों से ओझल हो गया।
उस आदमी के भाग जाने से जो कुछ खलबली पड़ गई थी उस पर खयाल न करके रथ हाँकने वाले ने परदा उठाया और सवारी के उतरने के लिए कहा। एक-एक करके तीन औरतें रथ के नीचे उतरीं जिनमें से दो सरदार और एक मजदूरनी थी। रथ से नीचे उतरने के बाद मजदूरनी ने एक छोटी-सी गठरी और एक पीतल का डिब्बा जिसमें ताला लगा हुआ था रथ पर से उतारा और तब तीनों औरतें अस्तबल के पूरब और उत्तर कोने की तरफ रवाना हुईं। उस कोने में एक छोटा-सा मगर मजबूत दरवाजा था जिसके अन्दर वे तीनों गईं और अन्दर से दरवाजा बंद कर लिया।
उस दरवाजे के अन्दर जाकर वे तीनों औरतें एक छोटी-सी गली में पहुँची जिसकी चौड़ाई दो हाथ और लंबाई दस-बारह हाथ से ज्यादा न होगी। सामने ही एक रंगीन मकान का दरवाजा था जो इस समय भीतर से बंद था। बाहर लोहे की एक कड़ी लगी हुई थी जिसके खटकाने से दरवाजा खुल गया और वे तीनों औरतें उस मकान के अन्दर चली गईं, दरवाजा पुन: बंद हो गया।
यह मकान यद्यपि छोटा-सा मगर मजबूत और अन्दर से खूबसूरत बना हुआ था। इसके अन्दर कई दालान, कोठरियाँ और सजे कमरे थे तथा कुर्सी, पलंग इत्यादि के अतिरिक्त हर तरह के आराम की चीजें वहाँ मौजूद थीं।
जब वे तीनों औरतें मकान के अन्दर चली गईं और दरवाजा बंद हो गया तब सामने पन्द्रह या सोलह वर्ष का एक लड़का दिखाई दिया जिसने झुककर एक औरत को सलाम किया और पूछा, “मौसीजी, तुम्हारे आने में इतना अरसा क्यों लगा?” इसके जवाब में उस औरत ने कहा, “आराम से बैलूंगी तो सब हाल कहूँगी, बड़ी मुसीबत में फंस गई थी।”
इतना कहकर वह औरत दोनों को साथ लिए हुए सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर की मंजिल में चली गई और एक दालान में पहुँचकर, जिसमें साफ फर्श बिछा हुआ था और कई आराम कुर्सियाँ रखी हुई थीं, एक कुर्सी पर बैठ गई। दूसरी कुर्सी पर दूसरी औरत बैठ गई और मजदूरनी ने हाथ का असबाब उन दोनों के सामने रखकर दूसरी तरफ का रास्ता लिया। वह लड़का भी इशारा पाकर एक कुर्सी पर बैठ गया और बातें होने लगीं।
उन दोनों सरदार औरतों में से एक की उम्र बीस वर्ष की होगी जिसे उस लड़के ने मौसी कहकर संबोधन किया था और दूसरी की उम्र तीस वर्ष से ज्यादा की होगी। देखने में दोनों ही औरतें खूबसूरत और भले घर की मालूम होती थीं। यद्यपि इस समय उन दोनों का बदन जेवरों से खाली था मगर देखने वाला कदापि यह न कहेगा कि इनके पास जेवर नहीं है या इन्हें जेवर पहिरने की आदत नहीं है क्योंकि बदन पर मौके-मौके से जेवरों के निशान मालूम पड़ते थे। कम उम्र औरत ने आरामकुर्सी पर बैठकर एक लंबी साँस ली और तब लड़के की तरफ देखकर कहा, “कैसी मुसीबतों को सहकर मैंने अपना काम निकाला, मगर सारनाथ पर आकर हम लोग बेतरह फँस गये!”
लड़का : सो क्या?
औरत : रथ धीरे-धीरे आ रहा था, हम लोग नींद में मस्त हो रहे थे, हाँकने वाला तेगासिंह भी बैठे-बैठे सो रहा था और बैल धीरे-धीरे सीधी सड़क पर चल रहे थे कि यकायक सारनाथ आ पहुँचे। अगर हम लोग नींद में गाफिल न होते और इस बात का ज्ञान होता कि अब सारनाथ पहुँचा चाहते हैं तो तेजी के साथ रथ हाँक कर वहाँ से निकल जाते और किसी के हाथ न लगते मगर नींद के झपेटों ने ऐसा न करने दिया। अस्तु जब वहाँ पहुँचे तो चौकीदार ने रोका और सीटी बजाकर बहुत-से आदमियों को इकट्ठा कर लिया। मैंने आवाज से पहिचान लिया कि तुम्हारा ‘मोहना’ भी उन्हीं लोगों में शरीक है जिसका सबसे ज्यादा अंदेशा मुझे था।
लड़का : (घबड़ाना-सा होकर) फिर क्या हुआ?
औरत : (जो कुछ सारनथ पर हुआ था उसे बयान करके) जब हम लोग वहाँ से निकल भागे और इस अस्तबल में आ पहुँचे तब मालूम हुआ कि दुश्मनों का एक आदमी रथ के पीछे लकड़ी या रस्सी थाम कर लटक गया था जो कि यहाँ अस्तबल के अन्दर तक चला आया और जब लोगों ने देखा तो भाग निकला, कोई उसे पकड़ न सका।
लड़का : यह तो बहुत बुरा हुआ! जब वह दुष्ट सारनाथ में जाकर यह बयान करेगा कि रथ फलानी जगह गया है, तब वे लोग पता लगाने के लिए जरूर निकलेंगे और तब उन्हें इस बात का भी गुमान हो जाएगा कि इस रथ में तुम ही सवार थीं।
औरत : बेशक् ऐसा होगा, और मुझे भी इसी बात का खुटका लगा हुआ है इसी से तो सफर की सब मुसीबतों से बढ़कर मैंने इसे समझा और सबसे पहिले यही हाल तुमने बयान किया। तुम बुद्धिमान, होशियार और होनहार हो, अतएव सोच कर बताओ कि अब हम लोगों को क्या करना चाहिए।
लड़का: आपकी बुद्धि के मुकाबिले से मैं अपने को कुछ भी नहीं समझता तथापि सोच कर कुछ देर बाद मैं कहूँगा कि अब क्या करना ठीक रहेगा, अच्छा मुझे दिखाइए तो सही कि आप वहाँ से क्या-क्या चीजें लाई हैं?
औरत : हाँ-हाँ, तुम्हें अभी दिखाती हूँ, देखो।
यह कह कर उस औरत ने झुक के पीतल वाला डिब्बा उठाया और कमर में से ताली निकाल कर उसे खोला। लड़के ने झाँक कर अन्दर देखा और झिझक कर पीछे हट गया।
औरत : (मुस्कुराकर) वाह-वाह, तुम इतना डर गये? अगर तुमको अपने हाथ से यह काम करना पड़ता तो मालूम होता है कि मौका मिलने पर भी तुम न कर सकते।
लड़का : सो बात तो नहीं है, मुझे अगर यह काम करना पड़ता तो मैं कदापि संकोच न करता और न किसी तरह डरता ही। हाँ इस तरह बिगड़ी हुई खोपड़ी को डिब्बे के अन्दर बंद करके ले जाना मेरे लिए बहुत कठिन था। इस काम से घृणा होती है और इसकी बिगड़ी हुई सूरत देखकर डर भी लगता है, बसे इसे निकालो और फेंको।
औरत : (हँसकर) सिर्फ तुम्हें विश्वास दिलाने के लिए यह खोपड़ी ले आई हूँ। तुममें अभी लड़कपन का अंश मौजूद है इसलिए तुम डरते हो, मगर ध्यान रहे कि इस किस्म का काम बहुत जल्द तुम्हें करना भी पड़ेगा।
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लड़का : (जोश दिखाता हुआ) एक नहीं दस दफे मैं ऐसा काम करने के लिए तैयार हूँ!
औरत : (पीठ ठोंक कर) शाबाश, इसकी आज़माइश दो ही चार दिन के अन्दर कर ली जाएगी। खैर देखो इस डिब्बे में और क्या चीजें हैं।
इतना कहकर उस औरत ने डिब्बे के अन्दर से एक कटा हुआ सर निकाल कर बाहर रखा जो कई तह किये हुए कपड़े के ऊपर रखा हुआ था जो खून से तरबतर हो रहा था। इसके बाद उसने कपड़े पर लिखी और तह की हुई एक तस्वीर निकाली और खोल कर लड़के को दिखाने तथा भेदों को समझाने लगी।
औरत : देखो, इस तस्वीर को देखकर किसी के भी दिल में शक न रह जाएगा कि दयाराम के विषय में दलीपशाह और भूतनाथ दोनों ही ने धोखा खाया और वास्तव में वह आदमी दयाराम था ही नहीं जो भूतनाथ के हाथ से मारा गया। जिसने दयाराम को गिरफ्तार किया था उसे जरूर भूतनाथ ने मार डाला मगर उसके बदले उसका लड़का वह काम कर गुजरा जो उसका बाप किया चाहता था। भूतनाथ ने जो खून किया उसमें भी उसको धोखा हुआ, एक नहीं बल्कि दो दफे धोखा हुआ और उसके साथ-साथ इन्द्रदेव के आदमियों को भी धोखा हुआ जो किसी दूसरे ही को दयाराम समझकर उठा ले गये। पहिले पहिल भूतनाथ ने यह नहीं समझा था कि वह दयाराम को ही मारा। मगर अफसोस, दयाराम बेचारा अभी तक कैद में है और न तो भूतनाथ तथा इन्द्रदेव और न उसकी दोनों औरतों को ही इस बात की कुछ खबर है। (तस्वीर पर उँगली रखकर) यह देखो उस कोठरी में दयाराम कैद है और दलीपशाह का धावा उस कोठरी पर हुआ जिसमें रामसिंह का भतीजा मुद्दत से बीमार पड़ा हुआ था, और देखो यह दरवाजे पर रामसिंह सो रहा है, इसी जगह से इन दोनों को इन्द्रदेव के ऐयारों ने कैद कर लिया था, और यह देखो राजसिंह का लड़का अपने कमरे में बैठा न मालूम क्या लिख रहा है….
लड़का : (बात काटकर) मोसी, यह तो बताओ कि तस्वीर किसके बनाई हुई है और तुमने कहाँ पाई?
औरत : (तस्वीर के नीचे की तरफ उँगली का इशारा करके) यह देखो इस तस्वीर के नीचे राजसिंह के लड़के ध्यानसिंह का हस्ताक्षर है और यह तस्वीर उसी की बनाई हुई है, उसी के घर से मुझे यह मिली भी है।
लड़का : ध्यानसिंह को इस तस्वीर के बनाने की क्या जरूरत पड़ी?
औरत : सो अभी ठीक-ठीक समझ में नहीं आया मगर देखो तो तस्वीर के नीचे की तरफ (उँगली से बताकर) इन तीन सतरों को पढ़ने से क्या मालूम होता है?
लड़का : (पढ़कर) इसमें लिखा है- “बेशक् मेरे बाप ने दयाराम को पकड़ा था मगर वह अपनी सजा को पहुँच गया। भूतनाथ और दलीपशाह ने धोखा खाया। असल में दयाराम को जमानिया के दारोगा ने गिरफ्तार कर लिया। दयाराम अभी तक जीते हैं और जीते रहेंगे। दयाराम को अपने कब्जे में रखकर दारोगा अपना मतलब भूतनाथ से निकालने की इच्छा रखता है। भूतनाथ, सम्हलो और इस भेद को जानो। इस खबर के बदले में मैं तुमसे मित्रता की भिक्षा माँगता हूँ।”
औरत : समझ गये! इससे राजसिंह का मतलब कुछ गूढ़ मालूम होता है। यह तस्वीर इसी आदमी के हाथ वह भूतनाथ के पास भेज चुका था जिसका सर मैं काट लाई हूँ। अगर यह भूतनाथ के पास पहुँच जाती तो फिर मेरा काम कुछ भी न बनता पर अब देखो मैं कैसा रंग लाती हूँ।
लड़का : तो यह तस्वीर तुम जमना, सरस्वती को दोगी या इन्द्रदेव को?
औरत : दोनों में से किसी को भी नहीं, जो कुछ करना होगा मैं स्वयं करूँगी और अपने हाथ से दयाराम का उद्धार करूँगी। जमना और सरस्वती को इस दुनिया से उठा दूँगी, भूतनाथ को कब्जे में करूँगी और स्वयं जमना बनूँगी।
लड़का : समस्या कठिन है, कार्रवाई मुश्किल है, मगर आपकी हिम्मत बहुत बड़ी है।
औरत : सारनाथ वाले मेरे काम में बाधक और दुश्मन हो रहे हैं, उनके हाथ से अगर बच गई तो मैं सब कुछ कर सकूँगी।
लड़का : उनका बंदोबस्त मेरे जिम्मे, उन लोगों को मैं ठीक करूँगा, मगर आपका इस मकान में रहना ठीक नहीं है।
औरत : मेरा भी यही खयाल है, आज ही मैं इस मकान को छोड़ दूंगी, और तुम क्या करोगे?
लड़का : मैं अभी इसी मकान में रहूँगा और सारनाथ वाले आपको खोजते हुए जब यहाँ पहुँचेंगे तो उन्हें गिरफ्तार करूँगा, अच्छा यह बताइए कि इस डिब्बे में और क्या चीजें हैं?
औरत : (डिब्बे में से कागज का यह मट्ठा निकाल कर और लड़के के हाथ में देकर) भूतनाथ के हाथ की लिखी हुई कई चिट्ठियाँ हैं जो कि नागर से मँगनी माँग लाई हूँ, इन्हें बहुत जल्द वापस करना होगा, और यह सब कुछ करते हुए भी दारोगा से भले बने रहना पड़ेगा।
लड़का : यह बहुत कठिन होगा।
औरत : कुछ भी कठिन नहीं है।
इसके बाद लड़का भूतनाथ के हाथ की लिखी हुई चिट्ठियाँ देखने और पढ़ने लगा। जब वह सब चिट्ठियों को पढ़ चुका तब बोला, “बेशक् अब तो मैं कह सकता हूँ कि आप भूतनाथ पर कब्जा कर लेंगी और इसके अतिरिक्त जो कुछ आपने सोचा है वह काम भी आपका हो जाएगा। अच्छा यह बताइए कि इस कटे हुए सर के लिये अब क्या करना चाहिए?”
औरत : थोड़े दिन तक तो इस सर को मैं इसी तरह कायम रखना चाहती हूँ क्योंकि मौका पड़ने पर शायद इसे दारोगा साहब को दिखाना पड़े, इसलिए इसे मसाले में लपेट कर तुम तहखाने में हिफाजत से रख दो।
लड़का : बहुत अच्छा।
औरत : अब तुम जाकर पहिले इस काम से छुट्टी पाओ तब निश्चिंत होकर बातचीत करूँगी। (दूसरी औरत की तरफ देखकर) बहिन, अब तुम भी नहा-धोकर कुछ खाने-पीने का बंदोबस्त करो और मैं भी जरूरी कामों से निपटने के लिए जाती हूँ।
इतना कहकर वह औरत उठ कर खड़ी हो गई। लड़के ने वह कटा हुआ सर उठाया और एक तरफ का रास्ता लिया तथा वह दूसरी औरत खाने-पीने का बंदोबस्त करने कहीं चली गई।
पाठक, हम अभी नहीं कह सकते कि यह औरत कौन है और इसका नाम क्या है, अथवा इस दूसरी औरत और उदस लड़के से इसका क्या संबंध है, हाँ इस समय काम चलाने के लिए इसका कुछ नाम जरूर रखना चाहिए, अस्तु जब “निरंजनी” रखे देते हैं।
दूसरी औरत और लड़के के चले जाने के बाद निरंजनी वह डिब्बा लिए हुए पास वाले कमरे में चली गई और भीतर से उसका दरवाजा बंद कर लिया। इस कमरे के अन्दर दाहिनी तरफ एक दरवाजा और था जिसमें एक बहुत बड़ा मजबूत ताला लगा हुआ था, देखने वाला यही समझेगा कि यह कोई कोठरी है मगर नहीं, वास्तव में यह एक कैदखाने का रास्ता है।

निरंजनी ने कमरे में से ताली निकाल कर ताला खोला तब उस दरवाजे के अन्दर जाकर एक दूसरे कमरे में पहुँची जो पहिले कमरे से बड़ा था और कई रोशनदानों की बदौलत इसमें रोशनी भी ज्यादा थी। इस कमरे के बीचोंबीच में लोहे के मजबूत और मोटे छड़ों से एक कोठरी बनी हुई थी जिसमें तीन-तीन अंगुल के फासले पर छड़ लगे हुए थे और बीच में दो बंद चौड़े लोहे के लगे थे जिससे कि वे छड़ किसी तरह झुकाने से झफक नहीं सकते थे। छड़ों का एक सिरा ऊपर छत में घुसा हुआ था और दूसरा नीचे जमीन के अन्दर। यह कोठरी इतनी बड़ी थी कि इसके अन्दर दस-बारह आदमियों का बिस्तर (बिछौना) लग सकता था मगर इस समय हम इसके अन्दर सिर्फ एक कमसिन औरत को देख रहे हैं जिसकी उम्र ज्यादा-से-ज्यादा पंद्रह वर्ष की होगी। यह औरत यद्यपि खूबसूरत कहने योग्य नहीं है परन्तु बदसूरत भी नहीं कही जा सकती। इसका रंग पक्का, चेहरा आदमी और भोला है, आँखें बड़ी-बड़ी मगर नाक मोटी है। इसके अंग हाथ-पैर वगैरह सुडौल तो हैं मगर रूखे से हो रहे हैं. इसी तरह चेहरा भी इसका उदास और मैला दिखाई देता है, मालूम होता है कि इसको महीनों से नहाने-धोने का मौका नहीं मिला है, इसकी धोती बहुत गंदी हो रही है और सर के बाल मैले तथा खुले हुए हैं।
इस लोहे के सलाखों वाली कोठरी में जिसमें वह औरत कैद है एक तरफ पीतल के घड़े में पानी रखा हुआ है, पास में एक लोटा और गिलास है, तथा बाँस की टोकरी में कुछ फल और खाने की दूसरी चीजें भी रक्खी हुई हैं। इन सब चीजों के अतिरिक्त दो कंबल भी जमीन पर पड़े हुए दिखाई देते हैं। इसच कोठरी में एक छोटा-सा दरवाजा भी बना हुआ है जिसमें बहुत बड़ा ताला लगा है और उस दरवाजे के आगे एक सुन्दर कुर्सी रखी हुई है। निरंजनी उसी कुर्सी के ऊपर जाकर बैठ गई और उस कैदी औरत की तरफ देख कर बोली, “मेरी प्यारी बहिन, कहो अच्छी तो हो?”
कैदी औरत : जी मैं बहुत अच्छी तरह हूँ और आपकी मेहरबानियों का शुक्रिया अदा करती हूँ।
निरंजनी : मुझे तुम्हारे कैद होने का बड़ा ही अफसोस है।
कैदी औरत : (मुस्कुराती हुई) मेरा भी यही खयाल है।
निरंजनी : (कुछ शरमा कर) क्या तुम इस कैदखाने से बाहर निकलना नहीं चाहती?
कैदी औरत : जी नहीं, मुझे इसमें बड़ा आराम है और मैं तुम्हें दरवाजा खोलने की तकलीफ नहीं दिया चाहती।
निरंजनी : मैं तो इस समय भी दरवाजा खोलने के लिए तैयार हूँ, (एक ताली दिखाकर) देखो यह ताली भी मौजूद है, मगर क्या करूँ वह तुम्हें स्वतंत्र करने की आज्ञा नहीं देती और तुम जानती हो कि मैं उनके वश में हूँ।
कैदी औरत : बेशक् ऐसा ही है, मगर तुम उसकी खुशामद क्यों करती हो, ताला खोल देने पर भी मैं इस कोठरी के बाहर नहीं निकलूँगी।
निरंजनी : सो क्यों?
कैदी औरत : इसलिए कि मैं आजकल पागल हो रही हूँ और विश्वास करती हूँ कि तुम लोगों की मदद के बिना ही स्वतंत्र हो जाऊँगी और तब वे मेरी प्यारी बहिन, सब से पहिले मैं तुम्हीं से बदला लूँगी और जमना बनने का तुम्हारा शौक पूरा कर दूँगी।
निरंजनी : (चौंक कर) तुम्हें किसने कह दिया है कि मुझे जमना बनने का शौक है?
कैदी औरत : मेरे एक दोस्त ने यह भेद की बात मुझसे कही है जो अकसर इस कैदखाने में मेरे पास पहुँचा करता है।
निरंजनी : तुम तो पागलपने की बातें करती हो।
कैदी औरत : यह तो मैं खुद ही कह चुकी हूँ कि मैं आजकल पागल हो गई हूँ, तुमने यह कौन-सी नयी बात कहीं?
निरंजनी : (कुछ गुस्से के ढंग पर) तुम हद्द दर्जे की ढीठ हो गई हो।
कैदी औरत : सिर्फ इस खयाल से कि तुम मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकतीं, मेरा दोस्त मेरी मदद करेगा और बहुत जल्द मुझे इस कैद से छुड़ावेगा।
निरंजनी : अरे बेवकूफ, यहाँ पर तो एक चींटी भी नहीं आ सकती।
कैदी औरत : यह तुम्हारी भूल है, देखो मैं तुम्हें दिखाती हूँ।
इतना कह कर उस कैदी औरत ने वह कंबल उठाया जो जमीन पर पड़ा हुआ था। उसके नीचे एक आदमी का चेहरा दिखाई दिया और वह धीरे-धीरे जमीन के अन्दर से ऊपर निकलने लगा। मोढ़ा निकला, छाती निकली, पेट बाहर हुआ, कमर दिखाई देने लगी, रान, घटना और अंत में पैर भी बाहर निकल आए, और कुछ ही देर बाद एक पूरा नौजवान आदमी कैदी औरत के पास खड़ा दिखाई देने लगा। निरंजनी के तो होश उड़ गए और वह घबराकर उन दोनों की तरफ देखने लगी।

