भूतनाथ ने क्रोध में आकर जमना, सरस्वती और इन्दुमति पर हमला तो किया मगर कुछ कर न सका क्योंकि वह बाग, मकान और चबूतरा तिलिस्म से संबंध रखता था और इन्द्रदेव के कब्जे में था, अतएव कोई अनजान आदमी लापरवाही के साथ उस बाग और इमारत की सैर पूरी तरह से नहीं कर सकता था और न उस चबूतरे पर ही जा सकता था जिस पर जमना, सरस्वती और इन्दुमति बैठी हुई थीं,
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अस्तु नतीजा यह निकला कि भूतनाथ उस चबूतरे पर चढ़ने के साथ ही पछाड़ खाकर पीछे की तरफ जमीन पर गिर पड़ा और कुछ देर के लिए बेहोश हो गया। जब होश में आया तो उसने आश्चर्य के साथ उस चबूतरे की तरफ देखा परन्तु वे औरतें दिखाई न पड़ी क्योंकि भूतनाथ ने बेहोशी दूर होने के पहिले ही वे सब वहाँ से कहीं चली गई थीं।
भूतनाथ पुन: उस चबूतरे पर जाने की हिम्मत न कर सका और कुछ सोचता-विचारता बाग के उस हिस्से की तरफ रवाना हुआ जिधर इमारत थी और दो-चार आदमी भी टहलते दिखाई दे रहे थे। भूतनाथ घड़ी-घड़ी आश्चर्य के साथ यह सोचता था कि जमना ने यह क्यों कर कहा कि भैया राजा ने तुम्हारे ऐयारी के बटुए पर कब्जा कर लिया था और अब वह मेरे पास मौजूद है। यह क्यों कर संभव हो सकता है कि वह बटुआ मेरे शागिर्द के हाथ में भैया राजा के कब्जे में चला गया हो! बेशक् जमना ने मुझे धोखा देने के लिए ऐसा कहा होगा।
धीरे-धीरे भूतनाथ उस इमारत के पास जा पहुँचा और वहाँ उसने देखा कि इमारत के आगे बहुत बड़ा सहन है जिस पर भैया राजा धीरे-धीरे टहल रहे हैं और हाथ में नंगी तलवारें लिए सात-आठ आदमी उसके पीछे-पीछे हैं। भूतनाथ पर निगाह पड़ते ही भैया राजा ने मुस्कुराकर कहा, “भूतनाथ, अब तुम्हारा क्या इरादा है? मुझे इस बत का बहुत ही दु:ख है कि तुम्हारी कसम सच्ची नहीं निकली।”
भूतनाथ : सो क्या? आपको कैसे मालूम हुआ कि मेरी कसम सच्ची नहीं निकली?”
भैया राजा : यही आजमाने के लिए तो जमना, सरस्वती और इन्दुमति तुम्हारे सामने बैठाई गई थीं। आखिर तुमने उन पर हमला किया ही तो? यह न सोचा कि मैं कहाँ और किसके कब्जे में हूँ। जब मेरे बाग में रह कर तुमने ऐसा किया तो यदि किसी दूसरी जगह वे दोनों तुम्हें मिल जाती तो तुम उन्हें कब जीता छोड़ते!
भूतनाथ ने भैया राजा की इस बात का कुछ भी जवाब न दिया और शर्म से सर नीचा करके कुछ सोचने लगा। भैया राजा ने पुन: कहा, “गदाधरसिंह, शायद तुमको यह मालूम नहीं कि इस बाग में पहुँचने के पहिले जिसने तुम्हारे कसम खाने पर तुम्हें ताड़ना की थी वह मैं ही हूँ, और जिसने अपनी ताड़ना पर तुम्हारे मुँह से ये शब्द निकलते हुए सुने थे कि-‘नहीं, मैंने जो कुछ कहा है उसकी सच्चाई में किसी तरह भी फर्क नहीं पड़ सकता, मैं यहाँ तैयार हो चुका हूँ कि अपने ऐयारी के फन को भी तिलांजलि दे दूंगा और दुनिया से एकदम किनारे हो जाऊँगा’-वह भी मैं ही हूँ।”
भूतनाथ : (आश्चर्य से भैया राजा का मुँह देखकर) और वह त्रिशूल तथा डमरूधारी शिवरूपी महात्मा भी आप ही थे जिन्होंने मेरे बदन से त्रिशूल छुआ कर मुझे बेहोश कर दिया था?
भैया राजा : नहीं।
भूतनाथ : वह कौन था?
भैया राजा : यह मैं नहीं कर सकता।
भूतनाथ : और यह बाग किसका है?
भैया राजा : इसका भी जवाब तुम नहीं पा सकते।
भूतनाथ : (सिर झुका कर देर तक कुछ सोचने के बाद दोनों घुटने जमीन पर टेक कर और हाथ जोड़ कर) नि:सन्देह मैं अपराधी हूँ! मेरे पापों का कोई प्रायश्चित नहीं। अपनी चादर का एक धब्बा मिटाने की कोशिश करते हुए मैंने अपनी तमाम चादर को गंदला कर डाला जिसका साफ होना अब बहुत कठिन है। मैं जानता हूँ कि मेरे प्यारे दोस्त और मुझ पर अत्यंत अनुग्रह करने वाले इन्द्रदेव से और आपसे दोस्ती हैं, नहीं-नहीं, आप दोनों अंतरंग मित्र है, और मुझे विश्वास है कि इन्द्रदेव ने जिस तरह मेरे अपराधों की क्षमा किया है और अपनी आँखों से मेरे कठोर प्रायश्चित्त को देखते हुए भी मुँह फेर लिया है तथा मेरे सब अपराधों पर मिट्टी डाल कर भी मुझे ठीक रास्ते पर चलाने की नीयत रखते हैं उसका नमूना दिखलाने वाला दुनिया में कोई भी नहीं होगा। हाँ, मुझ अभागे को इन्द्रदेव ने कई दफे समझाया कि ‘दयाराम का कलंक तेरे सिर से दूर कर दूंगा’ मगर मैंने इसका कुछ भी खयाल न किया। हाँ खेद, अब मैं इस दुनिया में मुँह दिखाने योग्य न रहा, जो कुछ मैं अब कह रहा हूँ यह भी मेरी बेहयाई है। (अपनी डबडबाई हुई आँखों को पोंछकर) मैं इस योग्य नहीं कि आपसे क्षमा माँगूं परन्तु आप इस योग्य हैं कि मुझे क्षमा करें और क्षमा करने के लिए इन्द्रदेव से भी मेरी सिफारिश करें।
इतना कह भूतनाथ भैया राजा के पैरों पर गिर पड़ा और उसकी आँखों से आँसू की धारा बह चली। भैया राजा ने उसे जल्दी से उठा कर छाती से लगा लिया परन्तु भूतनाथ ने जोर करके अपने को छुड़ा लिया और हाथ जोड़कर कहा, “हाँ खेद, मैं इस योग्य नहीं हूँ कि आप मुझे भाई की तरह छाती से लगावें और दया करें, बल्कि मैं इस योग्य हूँ कि आप मुझे अपने जूते के तले रौंदे और हजार लानत करें।”
भैया राजा : नहीं-नहीं गदाधरसिंह, तुम ऐसा खयाल मत करो। इन्द्रदेव की तरह मैं भी तुम्हें माफ करता हूँ। तुम्हारी इस समय की अवस्था देख कर मुझे विश्वास होता है कि अब तुमसे कोई अपराध न होगा। ईश्वर तुम्हारा दिल सदैव के लिए नेक करें। अच्छा मैं तुम्हें इस समय एक दवा पिलाना चाहता हूँ। पिओगे?
भूतनाथ : आप मुझे जब जहर हलाहल भी देंगे तो खुशी से पी लूँगा क्योंकि मैं इसी के योग्य हूँ और दुनिया में मुँह दिखलाने की इच्छा नहीं रखता।
भैया राजा : ईश्वर तुम्हें नेकी दी। मैं तुम्हारे साथ कदापि बुराई नहीं कर सकता परन्तु हाँ इस समय जो दवा मैं तुम्हें पिलाऊँगा उससे तुम बेहोश जरूर हो जाओगे।
इतना कहकर भैया राजा ने अपने एक आदमी की तरफ देखकर कुछ इशारा किया।
भूतनाथ : मुझे इसकी कोई भी परवाह नहीं है कि मैं आपकी दी हुई दवा पीकर बेहोश हो जाऊँगा या मर जाऊँगा और न मैं इसके विषय में आपसे कुछ पूछने की ही इच्छा रखता हूँ।
भैया राजा का इशारा पाकर वह आदमी किसी प्रकार की दवा से भरी हुई एक बोतल और चाँदी का छोटा-सा कटोरा ले आया और भैया राजा के हाथ में दिया, भैया राजा ने उस बोतल की दवा से कटोरा भरा और भूतनाथ के हाथ में दिया, भूतनाथ ने खुशी-खुशी कटोरा मुँह से लगाया और दवा पीकर पुन: वह कटोरा इस विचार से भैया राजा की तरफ बढ़ाया कि और दवा दीजिए मैं पीने के लिए तैयार हूँ, मगर भैया राजा ने यह कह कर कि ‘बस अब और पीने की कोई जरूरत नहीं’ कटोरा वापस लेने के लिए भूतनाथ की तरफ हाथ बढ़ाया। भूतनाथ ने उनके हाथ में जूठा कटोरा देना उचित न जान कर उनके आदमी के हाथ में दिया और पुन: हाथ जोड़ कर कहा, “मुझे क्षमा कीजिए और गुप्त हो जाने की आज्ञा दीजिए।”

भैया राजा : मैं यह नहीं चाहता कि तम गायब हो जाओ, यह तुम्हारे लिए उचित नहीं है। मैं सच्चे दिल से तुम्हें सलाह देता हूँ कि तुम लोगों में मिले-जुले रहकर सभों का उपकार करो जिसमें ईश्वर तुम्हारे अपराधों को क्षमा कर दे।
भूतनाथ : जो आज्ञा।
इतना कहते-कहते भूतनाथ की आँखें बंद हो गईं और वह बेहोश हो जमीन पर लेट गया। जब उसकी आँखें खुली तो उसने अपने को उसी कोठरी में पाया जिसमें त्रिशूल के छू जाने से बेहोश होकर इस बाग में आया था। कोठरी से बाहर निकलने पर उसने अपने ऐयारी के बटुए के सहित कई शागिर्दों को पाया जो उसके लिए चिंतित और उदास उससे मिलने का इंतजार कर रहे थे।

