आँख खुलने के साथ ही भूतनाथ को सामने देखकर जमना, सरस्वती और इन्दुमति चौंक पड़ी और घबराकर अपनी अवस्था की तरफ देखने लगीं। कपड़े से उन तीनों के हाथ-पैर बँधे हुए थे और कलम-दवात तथा कागज का एक सादा टुकड़ा जमना के सामने पड़ा हुआ था।
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भूतनाथ : (तीनों की तरफ देख के) बस मुझे, विशेष कहने की कोई जरूरत नहीं जितना ही तुम लोगों का मुलाहिजा किया गया उतना ही तुम लोग शेर होती गई, अस्तु अब तुम लोगों के साथ अन्तिम व्यवहार किया जाता है। यह कलम-दवात और कागज का टुकड़ा तुम लोगों के सामने पड़ा हुआ है, तुम तीनों में से कोई एक इस कागज पर जो कुछ मैं कहूँ सीधी तरह लिख दो तब तो तुम लोगों को छोड़ दूंगा नहीं तो खूब समझ रखना कि बेंत और कमचियों से मार-मार कर तुम लोगों की खाल उड़वा दूंगा और तड़वा कर तुम लोगों की आत्मा को उस तरफ रवाना कर दूंगा जहाँ को जाने वाला फिर इस सूरत में लौटकर नहीं आता…
जमना : बस-बस, अपना लंबा-चौड़ा व्याख्यान रहने दे, हम लोगों को तेरे हाथ से जान बचाने की अब कोई जरूरत नहीं।
सरस्वती : चाहे किसी तरह की मौत मिले हम लोगों को वह जरूर प्यारी होगी।
इन्दुमति : हम लोग इस दुनिया को छोड़ जाना ही पसन्द करती हैं, इस दुनिया से कूच कर जाएँगे मगर तुझे खुश करने के लिए पूरा सामान छोड़ जाएँगे।
जमना : इन लोगों के साथ वैसा ही सलूक कर जैसा कि तू बर्दाश्त कर सके, उतना ही मार जितना कि तेरा शरीर सह सके, और उसी जगह भेज जहाँ जाना तू पसन्द करे।
भूतनाथ : (क्रोध से दाँत पीस कर) मालूम होता है कि तुम लोगों का दिमाग खराब हो गया है, तुम लोगों को…
भूतनाथ और कुछ कहा ही चाहता था कि पीछे की तरफ से आवाज आई, “जरा ठहरना, जल्दी न करना।” भूतनाथ ने पीछे फिरकर देखा तो दारोगा साहब के प्यारे दोस्त जैपाल पर निगाह पड़ी। थोड़ी दूर आगे बढ़कर जैपाल सिंह रुक गया और उसने हाथ का इशारा करके भूतनाथ को अपने पास बुलाया।
भूतनाथ ने समझा कि वह कोई ऐसा संदेश कहने के लिए आया है जो जमना, सरस्वती और इन्दुमति के सुनने लायक नहीं और इसीलिए वह इन लोगों के पास से हटाकर मुझे अलग बुला रहा है, अस्तु वह तेजी के साथ जैपाल सिंह सिंह ‘ के पास चला गया और बोला, “कहो क्या बात है?”
जैपाल सिंह : मैं दारोगा साहब का भेजा आपके पास गया हूँ।
भूतनाथ : क्या उनके पास कोई आदमी उस वक्त न था जो उन्होंने आपको परेशान किया?
जैपाल: आदमी तो बहुत थे मगर मामला कैसा नाजुक है इसे भी तो सोचिए!
भूतनाथ : बेशक् इस मौके पर दूसरे आदमी का अपना अच्छा न होता। जमना, सरस्वती और इन्दुमति पर किसी की भी निगाह न पड़नी चाहिए।
जैपाल सिंह : आप समझते हैं तो फिर ऐसा सवाल क्यों करते हैं?
भूतनाथ : (मुसकुराता हुआ) बेशक् मेरी भूल थी जो मैंने ऐसा पूछा, अच्छा बताइए आपका आना किस लिए हुआ? क्या कोई पत्र लाए हैं?
जैपाल सिंह : नहीं, पत्र तो नहीं लाया हूँ परन्तु जुबानी सन्देश के साथ-साथ एक डिबिया है जिसके विषय में दारोगा साहब ने कहा है कि इसे खोल कर जमना, सरस्वती और इन्दुमति को दिखा देना और अगर इस पर भी वे तुम्हारी बात न मानें तो उन्हें अवश्य कत्ल कर डालना। इसके अतिरिक्त यह भी कहा है कि ‘संध्या समय मुझसे ‘बसन्त बाग’ में जरूर मिलना’।
इतना कहकर जैपाल सिंह ने अपनी कमर से चाँदी की एक डिबिया निकाली और भूतनाथ के हाथ में दी। डिबिया का ढकना बहुत सख्त बैठा हुआ था परन्तु भूतनाथ ने उसे जोर करके खोला, देखा कि उसके अन्दर मरहम की तरह जंगारी रंग का कोई जमाया हुआ पदार्थ है जिसके बीचोंबीच में रखा हुआ एक हीरे का टुकड़ा अपनी तड़प दिखा रहा है। यह मरहम निहायत ही खुशबूदार था। बिना नाक के साथ लगाए ही उसकी खुशबू से दिमाग मुअत्तर हो रहा था और खुशबू भी ऐसी प्यारी थी कि बिना सूंघे भूतनाथ से रहा न गया। उसने नाक के साथ डिबिया लगा कर उसको सूंघा और साथ ही चक्कर खाकर जमीन पर गिर के बेहोश हो गया।
भूतनाथ यदि नाक लगाकर उस मरहम को न भी सूंघता तो भी बेहोश हो जाता परन्तु कुछ समय के बाद, क्योंकि बेहोश करने वाली उस मरहम की खुशबू से उसका दिमाग मुअत्तर हो चुका था।
जमना, सरस्वती और इन्दुमति दूर से ही इस तमाशे को देख रही थी। बेहोश भूतनाथ को उसी जगह छोड़ जैपाल जमना, सरस्वती और इन्दुमति के पास गया और बोला, “मैं हूँ आदित्य मंडल!” यह अनूठा शब्द सुनते ही वे तीनों प्रसन्न हो गईं, उनकी आँखें डबडबा आईं और तीनों ने सर झुकाकर नकली जैपाल को प्रणाम किया। इस जैपाल ने फुरती के साथ उनके हाथ-पैर खोल दिये और तीनों को साथ लिए हुए घने जंगल में घुसकर बात-ही-बात में नजरों से गायब हो गया।
इस वारदात को दो घंटे गुजर गये, भूतनाथ अभी तक बेहोश पड़ा हुआ है, यद्यपि दोपहर की करारी धूप बड़ी ही दुखदायी हो रही थी परन्तु भूतनाथ एक घने पेड़ के नीचे है जहाँ और भी दो घंटे धूप के आने की उम्मीद नहीं, पाठक महाशय, देखिए एक बार पुन: जमना, सरस्वती और इन्दुमति उसी स्थान की तरफ आ रही मैं जहाँ उनकी बेहोशी दूर हुई थी जहाँ आँख खुलने के साथ ही उन्होंने अपने सामने भूतनाथ को मौजूद पाया था।
मगर ये जमना, सरस्वती और इन्दुमति अपनी खुशी से वहाँ नहीं आ रही हैं बल्कि जबरदस्ती के साथ लाई जा रही हैं। तीन आदमी मजबूती के साथ पकड़े हुए उन्हें उसी स्थान पर ले आये तथा पहिले की तरह मजबूती के साथ फिर उनके हाथ-पैर बाँध कर उसी तरह जमीन पर बैठा दिया। उसी समय एक चौथा आदमी भी आया जो अपनी पीठ पर बेहोश जैपाल को लादे हुए था। उसने भी भूतनाथ के पास पहुँचकर गठड़ी उतारी और जैपाल सिंह को जमीन पर सुला, जिधर से आया था उधर ही चला गया। ये तीनों आदमी भी जो जमना, सरस्वती और इन्दुमति को गिरफ्तार कर लाए वे अपना काम पूरा करके चले गये और फिर लौट कर न आये।
कुछ देर और बीतने के बाद भूतनाथ की बेहोशी दूर हुई, उसने करवट बदली और दो-चार दफे अंगड़ाई लेकर उठ खड़ा हुआ, थोड़ा विचार करते ही उसे विश्वास हो गया कि जरूर उसके साथ चालाकी खेली गई और जैपाल की सूरत बनकर जरूर कोई ऐयार आया जो उसको धोखा देकर बेहोश करने के बाद अपना काम कर गया, परन्तु उसी समय उसकी निगाह बेहोश जैपाल पर पड़ी और साथ ही इसके जमना, सरस्वती और इन्दुमति को भी उसने देखा जो हाथ-पैर बँधे रहने के कारण ज्यों-की-त्यों बैठी हुई लंबी साँसें ले रही थीं,अस्तु उसका विचार पलट गया और अब वह सोचने लगा कि ‘नहीं, जैपाल ने मुझे कोई धोखा नहीं दिया, अगर वह कोई ऐयार होता तो जरूर अपना काम कर यहाँ से चला जाता, मगर मैं देखता हूँ कि उसके साथ-साथ जमना, सरस्वती और इन्दुमति भी ज्यों-की-त्यों मौजूद हैं और मेरी अवस्था में भी किसी तरह का फर्क नहीं पड़ा है यहाँ तक कि ऐयारी का बटुवा भी कमर में मौजूद है, साथ ही इसके जैपाल सिंह भी इसी जगह बेहोश पड़ा हुआ है जिससे मालूम होता है कि जिस डिबिया को सूंघकर मैं बेहोश हो गया उसी खुशबू ने जैपाल को भी बेहोश कर दिया है। (कुछ सोचकर और चौंककर) मगर आश्चर्य की बात है कि वह डिबिया दिखाई नहीं देती। शायद जैपाल ने उठाकर अपने पास रख ली हो, अब इसे होश में लाया जाय तो पता लगे। इत्यादि बातें सोच कर भूतनाथ जैपाल के पास गया और अपने बटुए में से लखलखा निकाल कर उसे सुंघाने लगा मगर वह होश में न आया। भूतनाथ बोल उठा, “ओफ बड़ी कड़ी बेहोशी है! ईश्वर की ही कृपा थी कि मैं इतनी जल्दी होश में आ गया।”
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दो-तीन बार लखलखा सुंघाने पर भी जब जैपालहोश में न आया तो भूतनाथ ने उसे छोड़ दिया और जमना, सरस्वती और इन्दुमति के पास जाकर क्रोध-भरी निगाहों से उनकी तरफ देख के बोला, “बस अब मैं ज्यादा इंतजार नहीं कर सकता, साफ जवाब दो कि जो कुछ मैंने कहा था वह लिख देने के लिए तुम तैयार हो या नहीं।”
इसके जवाब में उन औरतों ने मुँह से कुछ नहीं कहा मगर हाथ से जरूर कुछ इशारा किया जिसे भूतनाथ कुछ समझ न सका। उसे विश्वास हो गया कि मेरे कहे मुताबिक ये औरतें कदापि न लिखेंगी। अस्तु उसने चिंता और क्रोध से व्याकुल होकर तलवार बैंच ली और यह कहकर कि, अच्छा फिर जो कुछ होगा देखा जाएगा, एक ही बार में जमना का सर अलग कर दिया, इतने पर भी भूतनाथ को सब्र न हुआ और लगे हाथ सरस्वती और इन्दुमति को भी मार कर अपने हिसाब से निश्चिन्त और बेफिक्र हो गया।
हाय हाय, भूतनाथ ने कैसी संगदिली का काम किया! कैसी बेदर्दी के साथ इन बेचारियों पर तलवार का वार किया! उसका कलेजा कैसा पत्थर का-सा था कि ऐसा अँधेर करते समय जरा न हिला और मामूली ढंग पर बकरी या भेड़ समझकर उसने उन्हें लापरवाही के साथ मार डाला। आह भूतनाथ, तूने यह काम अच्छा नहीं किया, नि:सन्देह इसका बहुत बुरा नतीजा तुझको भोगना पड़ेगा।
उस भयानक जंगल में इन लोगों को गाड़ने के लिए एक गड्ढ़ा भी भूतनाथ ने पहिले से ही तजवीज कर रखा था जो उस स्थान से थोड़ी ही दूर पड़ता था। तीनों लाशों को उसी गड्हे में फेंक कर भूतनाथ ने ऊपर से मिट्टी को कतवार वगैरह डाल कर अच्छी तरह ढंक दिया और अब जहाँ-जहाँ पर उनका खून गिरा था वहाँ की मिट्ठी रगड़ कर उसका निशान भी मिटा दिया।

इन सब बातों से निश्चिंत होकर भूतनाथ पुन: जैपालके पास आया। उसे उसी तरह बेहोश पाया, पुन: लखलखा सुँघाया मंगर कुछ भी फायदा न हुआ। नब्ज़ पर हाथ रख कर देखा तो नब्ज़ बहुत बारीक और सुस्त चल रही थी जिससे भूतनाथ को गुमान हुआ कि कहीं इस बेहोशी के कारण यह मर ही न जाय, मगर ऐसा नहीं हुआ और कुछ देर दो-चार करवटें बदलकर जैपाल उठ बैठा । अपने सामने भूतनाथ को देख उसने सलाम किया। भूतनाथ ने उससे मिज़ाज का हाल पूछा मगर उसने कुछ जवाब न दिया। भूतनाथ ने समझा कि अभी इसका मिज़ाज ठिकाने नहीं हुआ, कुछ देर और ठहर जाने पर यह इस लायक हो जाएगा कि मेरी बातों का जवाब दे, अस्तु कुछ समय और ठहर जाने के बाद पुन: उसने उसके मिज़ाज का हाल पूछा, इस बार वह कुछ इशारा करके उठ खड़ा हुआ और आश्चर्य के साथ चारों तरफ देखने लगा। उसी समय दूर से कई सवारों के आने की आहट मिली। कुछ ही देर बाद जिन्हें भूतनाथ ने भी देखा और तुरंत वहाँ से हट जाने का इरादा किया। जैपाल को इशारे में और जबानी भी यह कहकर कि ‘खैर तुम दारोगा साहब के पास लौट जाओ, मैं कल उनसे मिलूँगा’, भूतनाथ ने एक तरफ का रास्ता लिया और उसका इशारा समझ जैपाल भी वहाँ से कहीं हट गया।

