Abhishap by rajvansh Best Hindi Novel | Grehlakshmi
Abhishap by rajvansh

निखिल की उंगलियों में सिगरेट सुलग रही थी। अपने कार्यालय में रिवॉल्विंग चेचर की पुश्त से सटा वह सामने वाली दीवार पर लगी एक पेंटिंग को देख रहा था।

एकाएक द्वार खुला और अधेड़ आयु के एक व्यक्ति ने कमरे में प्रवेश किया। निखिल के होंठों पर गर्वपूर्ण मुस्कुराहट फैल गई। उसने सिगरेट ऐश ट्रे में कुचल दी और चौंकने का अभिनय करते हुए उठकर बोला- ‘नमस्ते अंकल! आईए-आईए ना।’

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ये गोपीनाथ थे जो द्वार के निकट खड़े निखिल को यों देख रहे थे-मानो संसार के किसी बड़े आश्चर्य को देख रहे हों। निखिल उन्हें यों विचार मग्न देखकर फिर बोला- ‘अंकल! लगता है-आप मुझे भूल गए हैं। मैं निक्की हूं-निक्की यानी निखिल। बैंक चपरासी श्रीमान राजारामजी का बेटा।’

‘ओह!’ गोपीनाथ के होंठों से निकला। किन्तु आंखों में फैले आश्चर्य के भाव कम न हुए।

‘आप शायद यह देखकर हैरान हैं कि एक चपरासी का बेटा, जो किसी समय कॉलेज की फीस भी नहीं दे पाता था-एकाएक ‘शिल्पा फिल्म कंपनी’ का मालिक कैसे बन गया।’

गोपीनाथ कुछ भी न कह सके।

निखिल उनके समीप आया और फिर बोला- ‘बात आश्चर्यजनक तो है अंकल! किन्तु अनहोनी नहीं। अनहोनी इसलिए नहीं-क्योंकि भाग्य बदलते देर नहीं लगती। सब कुछ विधाता के हाथ में होता है। विधाता चाहता है तो राजा को एक ही पल में रंक और रंक को राजा बना देता है। असल में मेरे एक चाचा जी थे-वेणी प्रसाद। उनका हमारे परिवार से खून का रिश्ता न था। किन्तु जो रिश्ता था-वह खून के रिश्ते से भी बढ़कर था। इस शहर में वे वर्षों हमारे साथ रहे। उनका अपनों के नाम पर तो कोई था नहीं-अतः वे हमारे परिवार को ही अपना परिवार मानते थे। मुझसे विशेष मोह था उन्हें। बचपन में मैं उन्हीं के पास सोता था और उन्हीं के हाथ से खाना खाता था। फिर एक दिन पिताजी से उनका किसी बात पर झगड़ा हो गया और वे गुजरात चले गए। गुजरात में उनके मामा हीरों का व्यवसाय करते थे। समय का ऐसा चक्र चला कि मामा का देहांत हो गया और उनकी करोड़ों की संपत्ति उन्हें मिल गई। फिर एक दिन वेणी प्रसाद भी दुनिया से चले गए और मरने से पूर्व अपनी कुल चल-अचल संपत्ति मेरे नाम लिख गए। यूं समझिए कि विधाता ने मुझे छप्पर फाड़कर दिया और रंक से राजा बना दिया। लेकिन-लेकिन आप खड़े क्यों हैं? बैठिए न।’

गोपीनाथ बैठ गए।

निखिल ने बैठकर चपरासी से कोल्डड्रिंक लाने के लिए कहा और इसके उपरांत गोपीनाथ के चेहरे पर नजरें जमाते हुए वह बोला- ‘मैनेजर सक्सेना ने मुझसे आपके विषय में बताया था। यह जानकार खुशी हुई कि आप…।’

‘अब मेरा वैसा कोई इरादा नहीं।’

‘क्या मतलब?’

‘मैंने ठेके लेने का विचार त्याग दिया है।’

‘ऐसा क्यों अंकल? क्या आप ये सोचते हैं कि इस ठेके से आपको कोई लाभ न होगा?’

‘लाभ तो होगा-किन्तु मैं बीती बातों को दिमाग से न निकाल पाऊंगा। मुझे आज भी वो दिन याद है, जब तुमने मेरे सामने मनु से शादी करने की बात रखी थी।’ गोपीनाथ मन की बात कह गए।

‘और आपने मेरी प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया था।’ निखिल ने कहा- ‘आपने साफ-साफ लफ्जों में कह दिया कि तुम मनु के योग्य नहीं। इसके अतिरिक्त आपने मुझसे यह भी बता दिया था कि मेरी हैसियत क्या है। किन्तु विश्वास कीजिए-इसमें आपका कोई दोष न था। आपने तो मेरे सामने एक सच्चाई रखी थी। आपके स्थान पर कोई दूसरा व्यक्ति होता तो वह भी मेरी मांग को ठुकरा देता। वास्तव में यह दोष तो मेरा था। मुझे मनु के विषय में सोचना ही नहीं चाहिए था। मुझे यह देखना चाहिए था कि मेरी औकात क्या है-मेरी हैसियत क्या है। सच पूछिए तो आपसे मिलने के पश्चात् मुझे अपनी बात पर बेहद पश्चाताप हुआ था। कई बार यह भी सोचा था कि आपसे क्षमा मांग लूं, किन्तु साहस न जुटा सका था।’

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‘क्या-क्या तुम सच कह रहे हो निखिल बेटे!’ कांपती आवाज में गोपीनाथ बोले- ‘क्या तुम्हें मुझसे वास्तव में कोई शिकायत नहीं?’

‘विश्वास कीजिए अंकल! मुझे वास्तव में आपसे कोई शिकायत नहीं। और वैसे भी-आप तो मेरे पिता समान हैं-श्रद्धेय हैं। आपसे कैसी शिकायत?’ तभी चपरासी कोल्डड्रिंक ले आया।

निखिल बोला- ‘लीजिए, कोल्डड्रिंक लीजिए अंकल!’

बोतल अपनी ओर सरकाकर गोपीनाथ बोले- ‘मुझे अफसोस है कि मैंने तुम्हें समझने में भूल की।’

‘कभी-कभी ऐसा भी हो जाता है। भूल जाइए सब और अब सिर्फ एक वचन दीजिए।’

‘वह क्या?’

‘आप इस कंपनी को अपनी समझेंगे और इसके लिए काम करेंगे।’

‘अवश्य निखिल! अवश्य।’

निखिल कोल्डड्रिंक के घूंट भरने लगा। कुछ क्षणोपरांत वह बोला- ‘सुना है-ठीक एक सप्ताह बाद मनु की शादी है?’

‘हां।’ गोपीनाथ धीरे से बोले। मानो कहते हुए भय लगा हो। फिर एक पल रुककर उन्होंने कहा- ‘किन्तु मुझे अफसोस है कि…।’

‘अंकल! आज जो कुछ कहना चाहते हैं, उसे मैं समझ रहा हूं। किन्तु आप इस संबंध में कुछ न सोचें। मनु का विवाह हो रहा है-इस समाचार से मुझे दुःख नहीं बल्कि प्रसन्नता हुई है। मैं तो केवल यह कहना चाह रहा था कि अभी तो आप शादी के कारण व्यस्त रहेंगे।’

‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं। मैं अपना काम कल से ही आरंभ कर दूंगा।’

‘यह तो और भी अच्छी बात है।’ इतना कहकर निखिल ने इंटरकॉम का रिसीवर उठाया, अपने मैनेजर सक्सेना से कहा- ‘सक्सेना जी! आप गोपीनाथ जी को आधे पेमेंट का चैक आज ही दे दें।’

‘लेकिन सर!’

‘मिस्टर सक्सेना! जो कहा है, वही कीजिए। और हां-इस बात का भी ध्यान रखिए कि इन्हें भविष्य में भी कोई परेशानी न हो।’

‘ओ-के- सर!’ दूसरी ओर से सक्सेना की आवाज आई।

निखिल ने रिसीवर रख दिया।

बोतल हाथ में लिए गोपीनाथ उसे यों देख रहे थे-मानो उन्हें अनजाने में कोई फरिश्ता मिल गया हो।

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