Abhishap by rajvansh Best Hindi Novel | Grehlakshmi
Abhishap by rajvansh

निखिल ने इतनी अधिक पी थी कि उठने की शक्ति न रही। उसने उठने का प्रयास किया तो चकराकर सोफे पर गिर पड़ा। पाशा ने उसे शीघ्रता से संभाला और बोला- ‘आपको इतनी अधिक न पीनी चाहिए थी सर!’

अभिशाप नॉवेल भाग एक से बढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें- भाग-1

‘पाशा!’ लंबी-लंबी सांसें लेते हुए निखिल ने कहा- ‘आज हमारा अपमान हुआ है। जीवन में आज किसी ने पहली बार निखिल वर्मा का अपमान किया है मिस्टर पाशा! और जानते हो-वह कौन है?’

पाशा शायद जानता था, इसलिए चुप खड़ा रहा।

‘शिल्पा!’ निखिल ने अपनी बात पूरी की- ‘एक दो टके की छोकरी! एक ऐसी बाजारू लड़की, जिसे हम कभी भी खरीद सकते थे। एक ऐसी वेश्या-जिसने एक-दो बार नहीं-पचासों बार हमारी रातों को रंगीन बनाया है। मिस्टर पाशा! उसने हमारा अपमान किया है।’

‘मुझसे तो सिर्फ यह बताइए कि मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं?’

‘हमें अपने अपमान का बदला चाहिए पाशा! साथ ही हम ये भी चाहते हैं कि वह जिंदगी में कभी किसी की दुल्हन न बन सके। हम-हम उसकी सुंदरता, उसके अभिमान को चूर-चूर करना चाहते हैं। तुम्हारी नजरों में ऐसा कोई आदमी है-जो उस हरामजादी को यहां लाकर हमारे कदमों में डाल सके?’

‘यह तो मामूली-सी बात है सर! मैं सलीम को फोन कर दूंगा। उसके आदमी शिल्पा को यहां ले आएंगे।’

‘गुड! सलीम को फोन करो और इस काम के बदले में जितनी रकम मांगे-उसे दे दो। हम यह चाहते हैं कि यह काम सुबह से पहले हो जाना चाहिए।’

‘सर! सलीम के आदमी चुटकियों में काम करते हैं। मुझे उम्मीद है कि शिल्पा आधी रात से पहले आपके पास आ जाएगी।’ इतना कहकर पाशा बाहर चला गया।

अत्यधिक नशे की वजह से निखिल इस संबंध में कुछ अधिक न सोच सका और उसे नींद आ गई।

उसे किसी ने ठीक तीन घंटे बाद जगाया। जगाने वाला पाशा था। निखिल ने उठकर इधर-उधर देखा तो पाशा उससे बोला- ‘शिल्पा आ गई सर!’

‘क-क्या?’ निखिल एकाएक विश्वास न कर सका।

‘यस सर!’

‘लेकिन कैसे?’

‘सर! उस समय तक शिल्पा के घर में कोई सोया न था। सलीम के गुंडों ने वहां पहुंचकर घर का द्वार खुलवाया और शिल्पा को दबोच लिया।’

‘और-उसके मम्मी-पापा?’

‘उन्हें बांधकर डाल दिया सर! किन्तु इस कार्य में दस हजार रुपए खर्च हो गए।’

‘कोई बात नहीं मिस्टर पाशा!’ निखिल ने उठकर सिगरेट सुलगाई और कड़ुवाहट से बोला- ‘यदि बीस हजार भी खर्च होते तब भी कोई चिंता न थी। कहां है वह?’

‘बेसमेंट में।’

‘यानी जिस हॉल में शूटिंग होती है?’

‘नो सर! बराबर वाले कमरे में। मैंने सोचा-यहां शोर हो सकता है इसलिए उसे नीचे ले गया।’

‘बेहोश तो नहीं?’ निखिल ने पूछा।

‘नो सर! बेहोश नहीं है। सावधानी के लिए मुंह पर टेप चिपका दिया है और हाथ-पांव बंधे हैं।’ पाशा ने बताया।

‘सलीम के गुंडे?’

‘वे जा चुके हैं।’

‘रकम?’

‘मैं दे चुका हूं।’

‘ठीक है-अब आप आराम कर सकते हैं। बाहर गनमैन तो होगा?’

‘यस सर! गनमैन कभी है और द्वार भी बंद है।’ इतना कहकर पाशा वहां से चला गया।

पाशा के चले जाने पर निखिल ने वॉल क्लॉक में समय देखा-रात्रि के बारह बजे थे। चलकर वह बाथरूम में गया और फ्रैश होकर लौट आया। पीने का सामान मेज पर अभी भी रखा था। उसका मन था कि एक-दो घूंट गले से उतार ले, किन्तु फिर कुछ सोचकर उसने ऐसा न किया और चलकर शिल्पा वाले कमरे में आ गया।

शिल्पा को देखकर निखिल के होंठों पर गर्वपूर्ण मुस्कुराहट फैल गई। वह इस समय कालीन पर पड़ी थी। हाथ-पांव बंधे थे-मुंह पर टेप चिपका था और आंखों से आंसू बह रहे थे।

निखिल उसे ध्यान से देखने लगा।

शिल्पा को देर तक देखने के पश्चात् फिर वह नीचे झुका और उसने एक झटके से शिल्पा के मुंह पर चिपटा टेप खींच दिया।

टेप हटते ही मानो शिल्पा के अंदर धधकता ज्वालामुखी फूट पड़ा। निखिल को क्रोधित नेत्रों से देखते हुए वह घृणा से दांत पीसकर गुर्रायी- ‘नीच! कमीने-शैतान। तो-यह है तेरा असली रूप। तेरी असली वास्तविकता। नीचता की सीमा लांघ गया तू। तूने इस नीचतापूर्ण कारनामे से सिद्ध कर दिया है कि इंसान अपने स्वार्थ के लिए किस सीमा तक गिर सकता है। तू भेड़िया है निखिल! इंसानी खाल में छुपा भेड़िया।’

‘बहुत खूब शिल्पा रानी! बहुत खूब।’ धीरे से हंसकर निखिल बोला- ‘जवाब नहीं तुम्हारे संवादों का। क्या शानदार रोल किया है तुमने। दिल करता है-तुम्हें अपनी नई फिल्म की हीरोइन बना दूं। वैसे एक बात सच है और वह यह है कि तुम गुस्से में और भी सुंदर लगती हो।’

‘मेरी यह सुंदरता तुझे नागिन बनकर डस जाएगी कुत्ते।’

‘वह तो तुम मुझे आज भी डस रही हो। बल्कि मुझे ही नहीं-मेरे खानदान को भी। पहले तुमने मुझ पर जादू चलाया और फिर अखिल को वश में कर लिया। पता नहीं अभी और कितने घर जलाओगी तुम।’

‘किसी और का घर जले न जले-किन्तु मैं तेरा घर अवश्य ही जलाकर राख करूंगी कमीने।’

‘यह तो आज भी हो रहा है। जल रहा है मेरा घर-बहुत अच्छे ढंग से आग लगाई है तुमने। मगर अब नहीं शिल्पा रानी! आज के पश्चात् तुम कुछ न कर सकोगी। न तो तुम्हारी शादी होगी और न ही यह सुंदरता तुम्हारे पास रहेगी। मिट्टी में मिला देंगे हम तुम्हारे एक-एक इरादे को। जलाकर राख कर देंगे हम तुम्हारी खूबसूरती को।’

शिल्पा पत्ते की भांति कांप गई।

निखिल ने सिगरेट का कश लिया और घृणा से कहता रहा- ‘चार दिन-सिर्फ चार दिन रह गए हैं तुम्हारी शादी में। मगर यह दिन तुम्हारी जिंदगी में कभी नहीं आएंगे शिल्पा रानी! यह चार दिन तुम्हें यहीं गुजारने होंगे-हमारी कैद में। उसके पश्चात-या तो हम तुम्हें खत्म कर देंगे या फिर तुम्हारे चेहरे पर तेजाब डालकर तुम्हें हमेशा-हमेशा के लिए बदसूरत बना देंगे। वैसी स्थिति में कोई आंख उठाकर भी नहीं देखेगा तुम्हारी ओर। लोग घृणा करेंगे तुमसे। इतनी घृणा कि तुम उसे सह न पाओगी और अपनी जान दे दोगी।’

शिल्पा ने तड़पकर कहा- ‘एक शेरनी भी जब पिंजरे में कैद कर दी जाती है तो वह भी कुछ नहीं कर पाती कमीने। विवश हो जाती है वह, किन्तु वो विवशता उसकी कायरता नहीं होती। मैं जानती हूं-तू मेरे साथ कुछ भी कर सकता है। मगर मैं इसे तेरी बहादुरी और अपनी कायरता नहीं मानती। यदि तू मर्द है और तूने वास्तव में अपनी मां का दूध पिया है तो एक बार-सिर्फ एक बार मेरे बंधन खोलकर देख…। उसके पश्चात् मैं तुझे दिखाऊंगी कि औरत साहस और वीरता में किसी भी पुरुष से कम नहीं होती।’

‘हूं।’ निखिल बैठ गया और सिगरेट का धुआं उछालकर बोला- ‘हिम्मत तो तुममें है-साथ ही चालाकी भी। मगर तुम्हारी यह हिम्मत और चालाकी हमारा कुछ बिगाड़ लेगी, ऐसा हम नहीं सोचते। रही तुम्हारे बंधन खोलने की बात तो यह बेवकूफी हम कभी नहीं करेंगे। कम-से-कम चार दिन तक तो बिलकुल भी नहीं। अब तुम आराम करो। और हां-यहां तुम्हें कोई असुविधा न होगी। हम एक सेविका तुम्हारे पास छोड़ देंगे-जो तुम्हारी सुविधाओं का पूरा ध्यान रखेगी। अब हम चलते हैं।’

इतना कहकर निखिल उठा और ज्यों ही द्वार की ओर बढ़ा-शिल्पा बेबसी से दांत पीसकर बोली- ‘मुझे जाने दे कुत्ते। जाने दे मुझे। मेरे माता-पिता मेरे वियोग में अपने प्राण दे देंगे।’

निखिल ने व्यंग्य से कहा- ‘डोंट वरी शिल्पा रानी! हमें यकीन है कि ऐसा कुछ न होगा। और यदि ऐसा हुआ भी तो उनका अंतिम संस्कार हम कर देंगे। ओ-के–अब तुम सो जाओ।’

कहकर निखिल बाहर आ गया।

पाशा उस समय बाहर ही खड़ा था।

पूरन ने रो-रोकर बुरा हाल कर रखा था और उसके निकट खड़े राजाराम के परिवार के लोग यों एक-दूसरे का चेहरा देख रहे थे-मानो उन्हें सांप सूंघ गया हो।

पूरन ने उनसे शिल्पा के अपहरण के विषय में सब कुछ बता दिया था। साथ ही यह भी बताया था कि संध्या समय निखिल नाम का एक अमीर युवक उन्हें यह विवाह न होने की धमकी देकर गया था। पूरन ने निखिल का कहा हुआ एक-एक वाक्य राजाराम को बता दिया था।

राजाराम चुप था-घर के अन्य लोग भी चुप थे। किसी में इतना साहस न था कि वह पूरन के सामने सच्चाई स्वीकार कर पाते और कह पाते कि निखिल अखिल का ही बड़ा भाई था।

अंत में अखिल ने पूरन से कहा- ‘आप चिंता न करें अंकल! शिल्पा को कुछ नहीं होगा।’

‘बेटे! उसे गुंडे उठाकर ले गए हैं।’

‘मैं अच्छी तरह जानता हूं उसे कौन उठाकर ले गया है। आप घर जाइए-मैं शिल्पा को लेकर आता हूं।’

राजाराम ने कहा- ‘ठहर अखिल! मैं भी तेरे साथ चलता हूं।’

‘नहीं पापा! आप यहीं रुकिए। आप दिल के मरीज हैं-आपकी तबीयत बिगड़ते देर नहीं लगती।’

‘लेकिन अखिल!’ कौशल्या बोली- ‘यह तो पता चले कि शिल्पा है कहां?’

‘शिल्पा का मुझे पता है मम्मी! आप चिंता न करें।’ फिर उसने पूरन से कहा- ‘अंकल! आप आराम से घर जाइए। मैं शिल्पा को लेकर आता हूं।’ इतना कहकर अखिल तेजी से बाहर आ गया।

ठीक एक घंटे पश्चात् वह निखिल की उस कोठी पर पहुंचा-जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में उसकी फिल्म कंपनी का बोर्ड लगा था।

कोठी का गेट बंद था।

गेट पर खड़ा गनमैन उसे देखते ही आगे आया और उससे बोला- ‘कहिए।’

‘मिस्टर निखिल वर्मा?’

‘आप?’

‘मैं उनका भाई हूं-अखिल वर्मा।’

यह सुनकर गनमैन ने निखिल को सूचित करने की आवश्यकता नहीं समझी।

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अखिल ने अंदर प्रवेश किया। निखिल का कमरा बरामदे के दूसरी ओर था। चपरासी से कमरे के विषय में पूछकर अखिल आगे बढ़ा और कमरे के सामने आ गया। कमरा अंदर से बंद था। अखिल ने द्वार पर दस्तक दी तो द्वार खुल गया। द्वार खुलते ही अखिल ने अंदर प्रवेश किया। द्वार एक लड़की ने खोला था। अखिल को अंदर आते देखकर वह एक ओर को हट गई और रिवाल्विंग चेयर पर बैठा निखिल उसे देखकर एक झटके से उठ गया।

किन्तु उसने शीघ्र ही अपने आपको संभाल लिया और स्थिति को समझकर वहां मौजूद लड़की से बोला- ‘कामिनी! तुम जा सकती हो।’

कामिनी चली गई।

निखिल ने फिर अखिल से कहा- ‘आ-आ अखिल! बैठ।’

‘मैं यहां बैठने नहीं आया मिस्टर निखिल वर्मा!’ क्रोध के कारण अखिल का चेहरा भट्टी की भांति दहक रहा था। घृणा से दांत पीसते हुए वह बोला- ‘मुझे तो आपके इस महल में पांव रखते हुए भी यों लगा कि मानो मैंने कोई बहुत बड़ा गुनाह किया है। आप जानते हैं न-पाप की कमाई से महल खड़ा करने वाला इंसान तो पापी होता ही है-उस महल में रहने और पांव रखने वाले भी पापी कहे जाते हैं।’

‘नाराज क्यों है?’

‘खुश तो मैं आपसे पहले भी नहीं था मिस्टर निखिल वर्मा! मगर उस वक्त आप मेरे दुश्मन न थे।’

‘और आज……?’

‘दुश्मन हैं आप मेरे। आपने मेरे साथ वो किया है-जो शायद एक दुश्मन भी नहीं कर सकता।’

‘म-मैंने ऐसा करा किया है?’

‘बहुत खूब मिस्टर निखिल वर्मा!’ अखिल ने घृणा से एक-एक शब्द को चबाते हुए कहा- ‘नीचता की ऐसी सीमा लांघकर भी आप मुझसे पूछ रहे हैं कि क्या हुआ? कौन-सी नीचता नहीं दिखाई आपने? आपने पहले मुझ पर दबाव डाला कि मैं अपना विवाह रोक दूं। उसके पश्चात् आप शिल्पा के पिता से मिले! आपने उनके सामने बीस हजार के नोट रखे और चाहा कि वह शिल्पा की शादी मुझसे न करें। और-और जब उन्होंने किसी प्रकार भी अपना ईमान न बेचा तो आपने वहां गुंडे भेजकर शिल्पा का अपहरण करा लिया। बांधकर डाल दिया गया शिल्पा के माता-पिता को।’

यह सुनकर निखिल के चेहरे पर सन्नाटा फैल गया।

फिर भी स्वयं को संभालकर वह कांपती आवाज में बोला- ‘यह-यह सब झूठ है।’

‘यह सच है मिस्टर निखिल वर्मा!’ अखिल गुस्से में चिल्लाया और एक कदम आगे बढ़कर निखिल से बोला- ‘और यदि यह झूठ है तो सौगंध लीजिए उस कोख की, जिससे आपने जन्म लिया है। सौगंध लीजिए मां के उस दूध की, जो आपने पिया है और उसके पश्चात् कहिए…। कहिए कि यह सब झूठ है। कहिए कि आपको शिल्पा के विषय में कोई जानकारी नहीं। कहिए कि आपने उसका अपहरण नहीं कराया। कहिए मिस्टर निखिल वर्मा!’ निखिल का चेहरा झुक गया।

कहने के लिए कोई शब्द न रहा, किन्तु उसके मौन ने जैसे सब कुछ कह डाला। अखिल उसे मौन देखकर गुर्राया- ‘मिस्टर निखिल वर्मा! मेरी विवशता यह है कि हम दोनों को एक ही देवी ने जन्म दिया है। विवशता यह है कि हम दोनों ने एक ही कोख में पांव फैलाए हैं और उस रिश्ते से आप मेरे भाई हैं। यदि यह विवशता न होती तो सौगंध उसी देवी की-मिस्टर निखिल! मैं तुम्हारी बोटी-बोटी काटकर फेंक देता। ऐसी सजा देता इस अपराध की कि उसे देखकर आपकी आत्मा भी कांप जाती।’

निखिल की टांगें कांपने लगीं। वह बैठ गया और रूमाल से अपने चेहरे का पसीना पोंछने लगा। उसके पास कहने के लिए अब भी शब्द न थे।

कुछ क्षणों तक ब्लेड की धार जैसा मौन रहा।

मौन के इन क्षणों में अखिल पागलों की भांति अपने दांत पीसता रहा और फिर बोला- ‘शिल्पा कहां है?’

‘शिल्पा घर जा चुकी है।’ निखिल ने झूठ कहा।

‘कब?’

‘अभी आधा घंटा पहले।’

‘तुम झूठ बोल रहे हो निखिल!’

‘मैं सच कह रहा हूं। वह थोड़ी देर पहले ही घर गई है। तुम इस विषय में उसके पिता से पूछ सकते हो।’

‘ठीक है मिस्टर निखिल!’ कुछ सोचकर अखिल ने कहा- ‘मैं शिल्पा के घर जा रहा हूं। मगर एक बात का ध्यान रखना-शिल्पा यदि वहां न हुई तो मैं-मैं तुम्हें जिंदा नहीं छोडूंगा।’ कहते ही अखिल मुड़ा और द्वार खोलकर तेजी से बाहर चला गया। कदमों की तेजी उसके अस्तित्व में चीखने वाले क्रोध के तूफान की ओर संकेत कर रही थी।

निखिल उसे मूर्तिमान-सा देखता रहा।

अभिशाप-भाग-16 दिनांक 06 Mar. 2022 समय 04:00 बजे साम प्रकाशित होगा

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