Abhishap by rajvansh Best Hindi Novel | Grehlakshmi
Abhishap by rajvansh

‘निक्की!’

मनु ने गाड़ी बाईं दिशा में मोड़ते हुए लंबे मौन के पश्चात् निखिल से कहा-तो वह उसकी ओर प्रश्नवाचक नजरों से देखने लगा।

मनु ने फिर कहा- ‘यह-यह भारती थी न?’

अभिशाप नॉवेल भाग एक से बढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें- भाग-1

‘हां।’

‘तुम्हारी दीदी?’

निखिल ने क्रोध को पीते हुए कहा- ‘मेरा इन लोगों से कोई रिश्ता नहीं।’

‘तुम्हारे इंकार करने से क्या भाई-बहन का संबंध टूट जाएगा।’

‘संबंध हृदय से बनते हैं मनु! बातों से नहीं। जब हृदय ही अलग हो गए तो संबंध कैसा?’

‘फिर भी कहा तो यही जाएगा कि भारती तुम्हारी बड़ी बहन है। लोगों की जुबान तो तुम बंद नहीं कर सकते।’

‘काश! ऐसा होता।’ निखिल ने निःश्वास ली और खिड़की से बाहर देखने लगा। मनु बोली- ‘एक बात कहूं?’

‘वह क्या?’

‘मुझे लगता है भारती अच्छी लड़की नहीं।’

‘क्यों?’

‘उसका यों पर-पुरुष के साथ घूमना, उससे हंस-हंसकर बातें करना मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगा। मैं तो यह सोचती हूं कि विनोद उसे उसकी चरित्रहीनता के कारण तलाक दे रहा है।’

‘क्या तुम्हारे पास इन बातों के सिवा अन्य विषय नहीं?’

‘विषय तो है, किन्तु मैं सोच रही हूं कि तुम्हारी बहन आनंद जैसे युवक पर विश्वास करके ठीक नहीं कर रही है। आनंद कभी किसी का नहीं बन सकता! वह-वह उसे धोखा दे रहा है।’

‘यह सब तुम मुझसे क्यों कह रही हो?’

‘यह सोचकर कि वह तुम्हारी बहन है। सोचती हूं-कहीं वह किसी दिन तुम्हारे खानदान के मस्तक पर कलंक का टीका न लगा दे।’

‘मरने दो।’ निखिल घृणा से बोला।

‘किसे?’

‘उसी कमीनी को। मुझे उसकी सूरत से भी घृणा है। किन्तु तुम यह सब क्यों कह रही हो?’

‘देखकर बुरा लगा-इसलिए। तुम जानते हो-शीघ्र ही मैं तुम्हारे घराने की बहू बन जाऊंगी। अतः कोई तुम्हारे घराने की इज्जत से खिलवाड़ करे, इसे मैं किस प्रकार सहन कर सकती हूं।’

‘नाम मत लो उस घराने का।’

‘ठीक है।’ मनु बोली- ‘किन्तु तुम भारती को समझा तो सकते हो।’

‘मैं केवल आनंद को समझा सकता हूं। उसके पश्चात् मुझे यह भी विश्वास है कि वह अपने जीवन में कोई गलती न करेगा।’

‘कमाल है। गलती भारती की है और आनंद से झगड़ा करोगे।’

‘गलती दोनों की है। मगर मैं आनंद से इसलिए झगड़ा करूंगा-क्योंकि मैं दीदी को समझा नहीं सकता।’

‘वह क्यों?’

‘क्योंकि आयु में मैं उनसे छोटा हूं।’

मनु ने फिर कुछ न कहा।

वह पूरी कुशलता से ड्राइविंग करती रही।

लंबे मौन के पश्चात् उसने पूछा- ‘कोठी तो चलोगे?’

‘नहीं! इस समय नहीं।’

‘आराम नहीं करोगे?’

‘आज नहीं। आज तो मुझे अपनी नई फिल्म का प्रिंट देखना है।’

‘मैं भी चलूं?’

‘कहां?’

‘स्टूडियो में तुम्हारे पास।’

‘नहीं! वह फिल्म तुम्हारे मतलब की नहीं।’

‘बच्चों की हो सकती है।’

‘हां!’

‘मुझे बच्चों की फिल्में बहुत अच्छी लगती हैं।’

‘किन्तु इस फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं-जो तुम्हें अच्छा लग सके। हां! आने वाली फिल्म तुम्हारे मतलब की है। अच्छी लगेगी।’ निखिल ने कहा और फिर से खिड़की से बाहर देखने लगा।

मनु अब आनंद एवं भारती के विषय में सोच रही थी।

पाशा ने कमरे में प्रवेश किया और निखिल से बोला- ‘सर! कपूर साहब आए थे।’

‘कब?’ निखिल ने पूछा।

‘कुछ देर पहले।’

‘फिल्म का प्रिंट देखा?’

‘यस सर!’

‘अच्छा लगा।’

‘यस सर! किन्तु एक प्रॉब्लम है।’

‘वह क्या?’

‘सर! कपूर साहब का कहना है कि आने वाली फिल्म में कोई नया चेहरा होना चाहिए।’

‘नया चेहरा तुम कहां से लाओगे?’

‘प्रबंध तो करना ही पड़ेगा सर!’

‘वह कैसे?’

‘उसकी आप बिलकुल भी चिंता न करें सर! सलीम के पास इस बीमारी का उपचार है।’

घर पर बनाएं रेस्टोरेंट जैसी दाल, हर कोई चाटता रह जाएगा उंगलियां: Dal Fry Recipe

‘हूं।’ निखिल ने उंगलियों में दबी सिगरेट का लंबा कश लिया और फिर पाशा से बोला- ‘मिस्टर पाशा! सलीम की सेवाएं केवल उतनी लो जितनी कि आवश्यक हैं। वैसे भी मैं ऐसे व्यक्ति पर आंख मूंदकर विश्वास करने को तैयार नहीं।’

‘आपा पाशा को मूर्ख न समझें सर! पाशा ने कन्या कुमारी से लेकर झुमरीतलैया तक बड़े-बड़े खेल खेले हैं और मजेदार बात तो यह है कि सर! कि कभी हार का मुंह नहीं देखा।’

‘ऐसी कोई लड़की है तुम्हारी नजरों में?’

‘बिलकुल है सर! गोरे गाल-कजरारी आंखें-बातों में नशा और चाल में मस्ती।’

‘पढ़ती होगी?’

‘यस सर!’

‘किन्तु वह…?’

‘उसकी आप चिंता न करें सर! उसे कैमरे के सामने लाना मेरा काम होगा। और यह तो आप जानते होंगे कि पाशा जिसे एक बार कैमरे के सामने ले आता है, वह लड़की हमेशा-हमेशा के लिए हमारी रखैल बन जाती है।’

‘बहुत ऊंची चीज हो पाशा!’

‘थैंक्यू सर! तो मैं चलूं?’

‘कामिनी को भेज दो।’

पाशा चला गया। निखिल ने सिगरेट ऐश ट्रे में कुचल दी और दूसरे ही क्षण कामिनी उसके कमरे में आ गई। कामिनी अधिक सुंदर तो न थी किन्तु उसके शरीर का गठन आकर्षक था।

निखिल ने उससे कहा- ‘आओ कामिनी!’

कामिनी दो पग आगे बढ़ी। निखिल ने उससे पूछा- ‘शूटिंग बीत गई तुम्हारी?’

‘यस सर! किन्तु मुझे दुःख है कि मैं भविष्य में किसी भी फिल्म में काम न कर पाऊंगी।’

‘क्यों?’

‘सर! मेरी शादी हो रही है।’

‘खुशी की बात है, किन्तु शादी का काम करने से क्या संबंध? शूटिंग सप्ताह में तीन दिन होती है। शादी के पश्चात् भी तुम्हें इतना समय तो मिल ही सकता है।’

‘बात समय की नहीं सर!’

‘और?’

‘बात है-पूरी ईमानदारी के साथ दाम्पत्य जीवन जीने की। विवाह के पश्चात् मैं केवल अपने पति के लिए जीना चाहती हूं। वह भी पूरी ईमानदारी एवं प्रेम के साथ।’

‘यह फिजूल की बातें हैं। मैं नहीं मानता कि इस युग में कहीं प्रेम और ईमानदारी है। सब जगह धोखा है-सब जगह विश्वासघात है। इस युग के पुरुष स्त्रियों को धोखा दे रहे हैं और स्त्रियां पुरुषों को। मैंने अधिकांश घरों में यही सब देखा है।’

‘सर! मैं अपने आपको बदलना चाहती हूं।’

‘यह तुम्हारा व्यक्तिगत मामला है। मैं तो सिर्फ यह कहना चाहता हूं कि यदि तुम विवाह के पश्चात् भी फिल्मों में काम करती हो तो उसमें कोई बुराई नहीं। तुम्हारा पति कभी न जान पाएगा कि तुम ब्लू फिल्म में काम करती हो। इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि हमारी फिल्में विदेशों में जाती हैं। अतः किसी प्रकार की बदनामी का प्रश्न ही नहीं उठता। ऐसा भी नहीं कि तुम्हारे जाने के पश्चात् हम तुम्हें ब्लैकमेल करेंगे।’

कामिनी बोली- ‘यह तो मैं जानती हूं सर! मुझे मिस्टर पाशा और आप पर पूरा भरोसा है। किन्तु मैं वास्तव में इस जीवन से ऊब गई हूं और नए ढंग से जीना चाहती हूं।’

‘जैसी तुम्हारी इच्छा।’ निखिल ने कहा और सिगरेट सुलगाने लगा।

कामिनी कुछ देर तो खड़ी रही और फिर चली गई।

अभिशाप-भाग-23 दिनांक 13 Mar. 2022 समय 04:00 बजे साम प्रकाशित होगा

Leave a comment