Abhishap by rajvansh Best Hindi Novel | Grehlakshmi
Abhishap by rajvansh

गोपीनाथ ने रिसीवर रख दिया। उसी समय मनु ने अंदर प्रवेश किया। वे उससे बोले- ‘मनु! आज निखिल से न मिलोगी?’

‘नहीं! इस समय नहीं पापा! शाम को जाऊंगी।’

‘तो ऐसा करना-पुलिस स्टेशन जाना।’

अभिशाप नॉवेल भाग एक से बढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें- भाग-1

‘पुलिस स्टेशन!’ मनु चौंककर बोली- ‘वहां क्यों?’

गोपीनाथ ने व्यंग्य से मुस्कुराते हुए कहा- ‘क्योंकि तुम्हारा निखिल इस वक्त पुलिस स्टेशन में है और पुलिस उसे गुजरात के नागरिक बैंक को लूटने तथा ब्लू फिल्में बनाने के अपराध में जेल भेजने की तैयारी कर रही है।’

मनु पर व्रजपात-सा हुआ।

गोपीनाथ फिर बोले- ‘पुलिस ने उसकी फिल्म कंपनी में छापा मारकर ब्लू फिल्मों के कई प्रिंट और शूटिंग का सामान बरामद किया है। निखिल का मुख्य व्यवसाय यह ही था। वह फिल्मों की आड़ में ब्लू फिल्में बनाता था। उसका कैमरामैन और डायरेक्टर पाशा भी गिरफ्तार हो चुका है। उन्होंने भी अपना अपराध स्वीकार किया है।’

मनु के मस्तिष्क पर सन्नाटा छा गया।

‘और।’ गोपीनाथ ने फिर कहा- ‘तुम शायद यह भी जानना चाहोगी कि निखिल के पास इतनी दौलत कहां से आई थी।’

‘उसका चाचा!’

‘नहीं! वह कहानी झूठी थी। निखिल के किसी चाचा के पास इतनी दौलत न थी।’

‘फिर…?’

‘असल में निखिल अपनी गरीबी से तंग आकर गुजरात चला गया था। शायद नौकरी की तलाश में गया हो, किन्तु जब नौकरी न मिली तो वह जरायम पेशा लोगों के साथ रहने लगा। वहीं उसकी मुलाकात मोहन पाटिल से हुई। मोहन पाटिल किसी समय नागरिक बैंक में कैशियर था और धोखाधड़ी के आरोप में नौकरी से निकाल दिया गया था। मोहन पाटिल ने निखिल के सामने बैंक लूटने का प्लान रखा।’

‘और-इस प्रकार निखिल ने नागरिक बैंक लूटा।’

‘हां! काफी चालाकी और होशियारी के साथ उन्होंने नागरिक बैंक के वॉल्ट से करोड़ों रुपए निकाले, किन्तु निखिल ने एक चालाकी यह दिखाई कि उसने मोहन पाटिल को लूट का हिस्सा न दिया और उसे धोखे से गोली मार दी। इसके पश्चात् निखिल यहां आ गया क्योंकि उसे एकाएक अमीर व्यक्ति के रूप में देखकर पुलिस उस पर संदेह करती-अतः उसने यह प्रचार किया कि यह दौलत उसे चाचा से मिली है।’

मनु की आंखें भर आईं।

सर चकराता रहा।

गोपीनाथ फिर देर तक चुप रहे और बेटी को ध्यान से देखते रहे। इसके पश्चात् वह बोले- ‘तुम्हारे लिए एक खुशखबरी और है।’

‘वह क्या?’

‘आनंद भारती से विवाह कर रहा है।’

मनु के सर पर मानो चट्टान टूट पड़ी। वह कुछ क्षणों तक तो अपने पिता का चेहरा देखती रही और फिर अविश्वास से चिल्लाई- ‘नहीं-नहीं यह नहीं हो सकता।’

‘यह सच है मनु! मुझे अभी-अभी आनंद ने फोन पर बताया है कि वह भारती से विवाह कर रहा है। आनंद इस समय सूर्या होटल में है। और वैसे जब तुम अपने जीवन की दिशा बदल सकती हो-तो क्या आनंद ऐसा नहीं कर सकता? आखिर वह भी इंसान है-जीने की चाह तो उसके हृदय में भी है।’

मनु ने फिर कुछ न कहा।

उसने पीड़ा से होंठ काट लिए और उंगलियों की पोरों से अपनी आंखें पोंछते हुए कमरे से बाहर चली गई।

गोपीनाथ मुस्कुराते रहे।

पुलिस स्टेशन का एक कक्ष।

फर्श पर बैठे निखिल की आंखों से अभी भी पश्चाताप के आंसू उबल रहे थे और इंस्पेक्टर गिरि उससे पूछ रहा था- ‘मोहन पाटिल तुमसे कब मिला था?’

‘तीस तारीख की शाम।’

‘बैंक लूटने का प्लान किसने बनाया था?’

‘मोहन पाटिल ने।’

‘किन्तु पाटिल तो अकेला भी वॉल्ट तोड़ सकता था, फिर उसने तुम्हारी मदद क्यों ली?’

‘दो बातें थीं।’ निखिल बोला- ‘पहली तो यह कि पाटिल का दिमाग जितना तेज था-उतना ही उसका दिल कमजोर था।’

‘अर्थात् उसके अंदर बैंक लूटने का साहस न था।’

‘हां। और दूसरी बात यह थी कि वाल्ट तोड़ने के लिए दो व्यक्तियों का होना आवश्यक था।’

‘लूट की रकम कितनी थी?’

‘दस करोड़। किन्तु मैंने पहले ही यह निश्चय कर लिया था कि मैं पाटिल को एक भी पैसा नहीं दूंगा। अतः जब हम नोटों से भरा बैग लेकर प्रज्ञा मंदिर के खंडहर में गए तो मैंने मोहन पाटिल को गोली मार दी।’

‘मोहन पाटिल की लाश?’

‘मंदिर के निकट ही प्रज्ञा नदी बहती है। पाटिल की लाश मैंने नदी में डाल दी थी।

‘खैर!’ इंस्पेक्टर गिरि बोला- ‘यह ब्लू फिल्म बनाने का काम तुमने कहां से सीखा?’

‘मुझे इस व्यवसाय की कोई जानकारी न थी। अचानक ही मेरी मुलाकात पाशा से हुई। पाशा ने ही मुझे सलाह दी कि मैं अपना पैसा इस व्यवसाय में लगा दूं।’

‘यह फिल्में कहां-कहां जाती थीं?’

‘नेपाल, चाइना और बर्मा।’ निखिल ने बताया।

इंस्पेक्ट गिरि को इसके अतिरिक्त और कुछ न पूछना था। वह उठ गया। निखिल उससे बोला- ‘इंस्पेक्टर! मेरी आपसे एक प्रार्थना है।’

‘अपने परिवार वालों से मिलना चाहते हो?’

‘नहीं इंस्पेक्टर! मेरे अंदर इतना साहब नहीं कि उन लोगों की नजरों का सामना कर सकूं।’

‘और क्या बात है?’

‘इंस्पेक्टर! आपका अपराध विज्ञान कहता है कि कोई भी अपराधी बुनियादी तौर पर अपराधी नहीं होता। इंसान जब अपराधों की दुनिया में कदम रखता है तो उसके पीछे कुछ ठोस कारण होते हैं।’

‘तुम अपना कारण बता सकते हो?’

‘मेरा प्यार।’

‘क्या मतलब?’

निखिल ने निःश्वास ली-बोला- ‘इंस्पेक्टर! एक सुंदर-सी लड़की थी मनु। मेरा विचार है उस जैसी चंचल और शोख लड़की पूरे शहर में न होगी।’

‘फिर?’ गिरि ने उत्सुकता से कहा और बैठ गया।

‘न जाने उस राजकुमारी ने मुझमें क्या देखा कि वह मुझसे प्यार कर बैठी।’

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‘और तुम भी?’

‘हां इंस्पेक्टर साहब! यह जानते हुए भी कि मैं एक चपरासी का बेटा हूं, मैं भी उससे प्यार कर बैठा।’

‘फिर क्या हुआ?’

‘हमारा प्रेम पूरे एक वर्ष चला। किन्तु फिर-एकाएक वह मुझसे घृणा करने लगी। घृणा का कारण थी मेरी गरीबी। स्वयं उसके पिता ने भी मेरा अपमान किया था।’

‘उसके पश्चात् तुम गुजरात चले गए।’

‘इंस्पेक्टर साहब! मैं मनु को कुछ बनकर दिखाना चाहता था। अपने खोए हुए प्यार को पाने के लिए मेरे पास दौलत का होना बहुत जरूरी था।’

‘अर्थात् सिर्फ अपनी मनु को पाने के लिए तुम गुजरात गए और वहां तुमने नागरिक बैंक को लूटा?’

निखिल बोला- ‘यह सच है इंस्पेक्टर! आज मैं पूरी ईमानदारी के साथ कह सकता हूं कि यदि मुझे मेरी मनु का प्यार मिला होता। यदि उसने केवल मुझसे प्रेम किया होता तो मुझे दौलत से रिश्ता जोड़ने की कोई आवश्यकता न थी। उस समय मेरा प्यार ही मेरे लिए सबसे बड़ी दौलत होती।’

‘किन्तु अमीर बनने के पश्चात् तो…।’

‘मनु मेरी हो गई थी। मेरे लिए उसने अपने पति को भी त्याग दिया था! अपनी भूलों पर वह फूट-फूटकर रोई थी।’

‘और तुम इसे उसका प्यार समझ बैठे।’ इंस्पेक्टर गिरि बोला- ‘मिस्टर निखिल वर्मा! सच्चाई यह है कि उस लड़की ने तुमसे कभी प्यार नहीं किया था। प्यार किया होता तो वह तुम्हारी गरीबी से घृणा न करती। प्यार कभी गरीबी-अमीरी नहीं देखता मिस्टर निखिल! प्यार सिर्फ हृदय को देखता है। बाद में उसने अपने पति को छोड़ दिया-मगर तुम्हारे लिए नहीं-तुम्हारी दौलत के लिए। उसे तुम्हारी दौलत की जरूरत थी।’

‘इंस्पेक्टर साहब! मैं उससे मिलना चाहता हूं।’

‘सॉरी निखिल! मैं तुम्हें ऐसी इजाजत नहीं दे सकता।’

इतना कहकर इंस्पेक्टर बाहर चला गया।

निखिल की आंखें भर आईं।

अभिशाप-भाग-27 दिनांक 17 Mar. 2022 समय 04:00 बजे साम प्रकाशित होगा

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